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Alok Kumar, Writer |
न्यूज@ई-मेल
आलोक कुमार
पटना : राजधानी के पश्चिमी भाग में गंगा किनारे करीब 200 घरों का एक गांव है, नाम है बिन्दटोली। काफी पुरानी दलितों की बस्ती है यह। आबादी यही कोई 18 सौ के आसपास होगी। यहां के कुछ लोग पट्टा पर जमीन लेकर खेती करते हैं, कुछ मजदूरी। इसी से इनका गुजारा चलता है। इस गांव में जाने के लिए एक कच्ची सड़क है। आजतक बिजली नहीं पहुंची है। साथ ही बरसात के दिनों में जब गंगा का पानी बढ़ता है, तो गांव के किनारे का अधिकांश घर पानी में डूब जाता है। सांप, बिच्छू तैरने लगते हैं। किसी तरह लोग 2-3 माह गुजारते हैं। जब गंगा का पानी उतरता है, लोग चैन की सांस लेते हैं। लेकिन, अब यहां एक दूसरी समस्या आ खड़ी हुई है।
बिन्दटोली के लोग बताते हैं कि हमलोग रैयती जमीन पर रहते हैं। दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि बिन्द समुदाय के लोग खास महाल की भूमि पर रहते हैं। यह मौजा दीघा दियारा थाना नं. 1/2, खाता सं. 82, 71, 36, 93, 196 का अंश है। इसका खसरा सं. 272 से 276 का अंश है। इसे सरकार ने दीघा रेलपुल परियोजना हेतु हस्तान्तरित कर दिया है। इस तरह ये गांव के लोग अनाधिकृत रूप से बसे हुए हैं।
बताते चलें कि लालटेन युग में रहने वाले इन लोगों ने अब गांव में बिजली लाने का प्रयास शुरू कर दिया है। इसी संदर्भ में अब एक नया मामला सामने आ गया है। गांव के ही मेघनाथ महतो कहते हैं कि कोई एक सौ लोगों ने नोटरी से 150 रुपए देकर कागजात तैयार करवाए। फिर आवेदन पत्र तैयार कर पाटलिपुत्र औद्योगिक प्रांगण में स्थित बिजली विभाग के दफ्तर में जमा करवाया गया। इसपर बिजली विभाग ने सभी आवेदकों को रकम जमा करने को कहा। प्रति आवेदक को 875 रुपए जमा करना था। इनमें 79 आवेदकों ने 875 रुपए जमा कर दिए। कुछ दिनों के बाद 42 लोगों को रकम प्राप्ति की रसीद भी मिल गई। बाकी लोगों को रसीद नहीं दी गयी। अब आवेदकों द्वारा बिजली विभाग में जमा 69125 रुपए फंस गए।
मेघनाथ बताते हैं कि बिन्दटोली के आवेदकों से बिजली विभाग ने दीघा रेल परियोजना के अधिकारियों द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र पेश करने को कहा गया। ज्ञात हो कि इस समय सरकार द्वारा बिन्दटोली के लोगों को हटाने की बात हो रही है। इस संबंध में 10 जून, 2015 को अंचल अधिकारी, पटना सदर के साथ बैठक होने वाली है। बताया जाता है कि उस समय बिन्दटोली के लोग रैयती जमीन का दस्तावेज पेश करेंगे। अगर बिन्दटोली के लोगों द्वारा पेश दस्तावेज का दावा खोखला साबित होता है और प्रशासन का दावा सही निकलता है, तो खास महाल की भूमि पर बसने वालों को भूमि पर से हट जाना पड़ेगा। अब यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि ऐसे में टकराव की स्थिति आ सकती है। साथ ही बिजली विभाग के पास जमा रकम को वापस करने की मांग होगी। ऐसे में गांव के लोग एक तरफ जमीन की जंग तो दूसरी तरफ बिजली विभाग से लड़ने को विवश होंगे।
परिचय : आलोक कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और Mani Prime Time के लिए काफी समय से लिखते रहे हैं। आपकी रचनाएं, लेख, फीचर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं।
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