स्मार्ट कार्ड रहते दिखाते हैं प्राइवेट डाॅक्टर को
भोजपुर : ग्राम-देवनारायण नगर, पंचायत-बरूही, पोस्ट-बरूही, थाना-सहार, जिला-भोजपुर। व्यवसाय बांस के सूप, बेना आदि बनाना और बेचना। खेती के समय धान और गेहंू काटना और पिटाई करना। देवनारायण नगर में करीब 130 घर हैं। ये सभी मुसहर और डोम जाति के हैं। 55 परिवारों का स्मार्ट कार्ड बना हुआ है। यहां काफी लोगों को फोटो के लिए पर्चा मिला, पर फोटो नहीं खिचवाने गये। इस कारण स्मार्ट कार्ड नहीं बन सका। बीमारी होने पर ये अपने पैसे से इलाज करवाते हैं। कुछेक के पास स्मार्ट कार्ड है। फिर भी ये स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल नहीं करते। गांव की ही एक महिला कहती है, ‘‘हमरो पेट के आॅपरेशन करावे के रहे, पर पैसा ना जुटल अउर आॅपरेशन न हो सकल।’’ यह गांव जिला से 43 किलोमीटर दक्षिण सोन नदी के पूर्वी किनारे पर अवस्थित है।
कार्ड को लेकर जागरूकता का अभाव
भोजपुर : जिले मंे सहार प्रखंड है। इसी प्रखंड में है गुलजारपुर पंचायत। गांव से प्रखंड की दूरी 8 किलोमीटर है। जिला मुख्यालय की दूरी 32 किलोमीटर। गांव में कुल 263 घर हैं। दलित और पिछड़ी जाति के लोग यहां रहते हैं। बीमार पड़ने पर लोग 5 किलोमीटर की दूरी तय कर नारायणपुर बाजार स्थित निजी क्लिनिक में जाते हैं। यहां के कुछ लोग 8 किलोमीटर की दूरी तय कर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सहार जाते हैं। गांव में करीब 150 लोगों का राष्ट्रीय स्वास्थ्य जीवन बीमा के तहत कार्ड बना है। यहीं विधवा महेश्वरी देवी भी रहती है। इनका भी स्मार्ट कार्ड बना हुआ है। विडम्बना है कि महेश्वरी ने 30 रुपए देकर स्मार्ट कार्ड तो बनवा लिया है, लेकिन उसे बक्सा में रखकर भूल चुकी है। महेश्वरी इनदिनों बीमार है। इसके बावजूद स्मार्ट कार्ड से मिलने वाली बीमित राशि का उपयोग नहीं कर सकी है। साथ ही, उसके पास पैसे का अभाव है। इस तरह वह डाॅक्टर को नहीं दिखवा पा रही है। स्मार्ट कार्ड रहते रोग लेकर घुम रही है। कुछ ऐसी ही स्थिति गांव के अन्य लोगों की भी है।
दस साल बाद हो सकेगा बच्चेदानी का आॅपरेशन
गया : जिले के मोचारिम पंचायत में मोचारिम मुसहरी है। यहीं भोला साव नामक मजदूर रहता है। उसे एक लड़का और एक लड़की है। मानसी कुमारी (9 साल) और मानव कुमार (7 साल) का है। दोनों के जन्म के बाद भोला साव की पत्नी शकुंतला देवी (30 साल) महिला रोग से बेहाल हो गयी। ठीक तरह से मासिक स्त्राव नहीं होने और पेट दर्द की शिकायत है। वह चिकित्सकों को दिखवा चुकी है। चिकित्सक उसे आॅपरेशन करवाने की सलाह दे चुके हैं। लेकिन, परेशानी यह है कि स्मार्ट कार्ड के माध्यम से उसे आॅपरेशन का लाभ तभी मिल सकेगा, जब वह 40 साल की हो जाएगी। इस समय बच्चेदानी का आॅपरेशन करना हाई रिस्क हो गया है। ज्ञात हो कि हाल के दिनों में बच्चेदानी का आॅपरेशन करने पर लूटपाट की खबरें आयी थीं। इस कारण ही चिकित्सक स्मार्ट कार्ड से आॅपरेशन करने से कतरा रहे हैं। मजदूर परिवार की होने के कारण शकुंतला किसी प्राइवेट क्लिनिक में आॅपरेशन करवाने में सक्षम नहीं है। ऐसे में स्मार्ट कार्ड के रहते उसे कम से कम 10 साल तक इंतजार करना होगा। और इन दस सालों में अगर वह बच जाती है, तो उसका आॅपरेशन हो सकेगा।
मृत्यु प्रमाण पत्र भी निर्गत नहीं करते डाॅक्टर
भोजपुर : जिले के संदेश प्रखंड में कन्हैया लाल के पुत्र दुर्गा लाल (45 साल) रहते हैं। दुर्गा लाल को पेशाब की थैली में पत्थरी थी। करीब 15 दिनों से पेशाब रूक गया था। उनकी पत्नी पार्वती देवी ने संदेश के ही किसी चिकित्सक से दुर्गा को दिखाया। उन्हें पाइप लगाकर पेशाब उतार दिया गया। पांच दिनों के बाद संदेश से दुर्गा को आरा लाया गया। डाॅ. टीपी सिंह से 8 दिनों तक इलाज करवाया गया। दुर्गा की मर्ज में सुधार नहीं होने पर उसे बिहटा ले जाया गया। यहां के चिकित्सक ने जांच कर कहा कि पेशाब की थैली में पत्थरी है। ऑपरेशन करने में 14 हजार रुपए लगेंगे।
दुर्गा लाल के नाम से स्मार्ट कार्ड बना हुआ है। कई जगहों पर चक्कर लगाने के बाद 12 मई, 2012 को डाॅक्टर नरेश प्रसाद से दुर्गा को देखा। आवश्यक जांच करवाने के बाद घर भेज दिया। उनको अगले दिन 13 मई को भर्ती किया गया। भर्ती होने के तीन घंटे के बाद डाॅक्टर नरेश प्रसाद ने दुर्गा का ऑपरेशन किया। मगर अगले ही दिन 14 मई को दुर्गा की मौत हो गयी।
मौत होने से घबराड़े डाॅक्टर ने खुद एम्बुलेंस कॉल करके मरीज को सदर अस्पताल ले जाने का आदेश दे दिया। शव को एम्बुलेंस से सदर अस्पताल ले जाया गया। रिश्तेदारों ने जब 15 मई को हंगामा किया, तो डाॅक्टर नरेश प्रसाद ने अपने लेटर पैड पर रेफर टू पीएमसीएच लिखकर दे दिया। पहले डाॅक्टर नरेश प्रसाद ने दिनांक 15-5-2012 लिखा। उसके बाद 15 तारीख को बदलकर 14 बना दिया। यहां से मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया गया। अस्पताल से मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत नहीं होने पर बिहार सरकार (योजना एवं विकास विभाग) के सांख्यिकी एवं मूल्यांकन निदेशालय से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया गया। इसकी संख्या 724183 है। पंजीयन संख्या 12 है। यह 18-5-2012 को सतीश कुमार सिंह के द्वारा जारी किया गया है। अब इस प्रमाण पत्र से बीमा की जमा राशि नहीं निकाली जा सक रही है। इस कारण परिवार की परेशानी बढ़ गयी है। 7वीं कक्षा छोड़कर जय गोविन्द कुमार (16 साल) बाल मजदूर बन गया है। अभी वह केरल में काम कर रहा है। प्रीति कुमारी (12 साल) 5वीं में और काजल कुमारी (6 साल) अध्ययनरत है। मां बावली बनकर न्याय की भीख मांगती फिर रही है।
परिजन दुर्गा लाल की मौत की न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। परिजनों का आरोप है कि चिकित्सक की लापरवाही के कारण दुर्गा लाल की मौत हुई है। अब वे मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपए की मांग कर रहे हैं। साथ ही, अस्पताल द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत करने की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी बेवा पार्वती बीमा कंपनी को प्रमाण पत्र देकर बीमा की राशि निकाल सके। साथ ही परिजनों की मांग है कि पार्वती को लक्ष्मी बाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिले और बाल मजदूर बन चुके जय गोविन्द कुमार और उसकी बहनों को पढ़ाने की व्यवस्था सरकारी स्तर से की जाए।
ज्ञात हो कि श्रम एवं नियोजन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा निजी कंपनी आईसीआईसीआई, लोम्बार्ड जेनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के सहयोग से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीआई) योजना के अन्तर्गत स्मार्ट कार्ड प्रदान किया जाता है।
- इस कार्ड के माध्यम से नगद भुगतान किये बिना एक वर्ष के अन्तर्गत तीस हजार रुपए तक का मुफ्त ईलाज कार्डधारी करा सकता है
- इस कार्ड का प्रयोग परिवार के पांच सदस्यों के मुफ्त ईलाज में किया जा सकता है
- भत्र्ती होने की स्थिति में कार्ड प्रस्तुत करने पर सूचीबद्ध बीमारियों का बिना किसी शुल्क का ईलाज होगा
- जरूरत के अनुसार, अस्पताल से छुट्टी होने पर पांच दिनों की अतिरिक्त दवा मुफ्त मिलेगी
- अस्पताल से छुट्टी होने पर 100 रुपए आने-जाने का खर्च मिलेगा
- इस कार्ड से देश भर में कहीं भी किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में ईलाज करवाया जा सकता है
- अस्पताल पहंुचने पर स्मार्ट कार्ड काउन्टर पर दर्ज करवाना होता है।
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