Mani Prime Time बिहार-झारखंड के वंचित समुदायों की आवाज है। इन समुदायों के बीच काम करना, उनकी आवाज आप तक पहुंचाना और सामाजिक न्याय दिलाना, हमारा मुख्य उद्देश्य है। साथ ही दलित, महादलित व वंचित समुदायों पर शोध कर रहे छात्र-छात्राओं के लिए भी यह ब्लाॅग काफी उपयोगी होगा। मुझे विश्वास है, इस कार्य को सफल बनाने में आप सभी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा।
रविवार, 25 जनवरी 2015
आँख और लड़की
हास्य व्यंग्य
शैल चतुर्वेदी
वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ,
आप ही की तरह श्रीमान हूँ,
मगर अपनी आँख से,
बहुत परेशान हूँ।
अपने आप चलती है,
लोग समझते हैं -चलाई गई है,
जान-बूझ कर चलाई गई है,
एक बार बचपन में,
शायद सन पचपन में,
क्लास में ,
एक लड़की बैठी थी पास में,
नाम था सुरेखा,
उसने हमें देखा,
और बाईं चल गई,
लड़की हाय-हाय कहकर,
क्लास छोड़ बाहर निकल गई,
थोड़ी देर बाद
प्रिंसिपल ने बुलाया,
लम्बा-चौड़ा
लेक्चर पिलाया,
हमने कहा कि जी भूल हो गई,
वो बोले-ऐसा भी होता है,
भूल में,
शर्म नहीं आती ऐसी गन्दी हरकतें करते हो,
स्कूल में?
और इससे पहले कि,
हकीकत बयां करते,
कि फिर चल गई,
प्रिंसिपल को खल गई,
हुआ यह परिणाम,
कट गया नाम,
बमुश्किल तमाम,
मिला एक काम,
इंटरव्यू में खड़े थे क्यू में,
एक लडकी थी सामने अड़ी,
अचानक मुड़ी,
नज़र उसकी हम पर पड़ी,
और हमारी आँख चल गई,
लड़की उछल गई,
दूसरे उम्मीदवार चौंके,
फिर क्या था,
मार मार जूते-चप्पल
फोड़ दिया बक्कल,
सिर पर पाँव रखकर भागे,
लोगबाग पीछे हम आगे।
घबराहट में,
घुस गये एक घर में,
बुरी तरह हाँफ रहे थे,
मारे डर के काँप रहे थे,
तभी पूछा उस गृहणी ने-
कौन?
हम खड़े रहे मौन
वो बोली
बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?
और उससे पहले,
कि जबान हिलाऊँ,
आँख चल गई,
वह मारे गुस्से के,जल गई,
साक्षात् दुर्गा- सी दीखी,
बुरी तरह चीखी,
बात कि बात में जुड़ गये अड़ोसी-पडौसी,
मौसा-मौसी, भतीजे-मामा
मच गया हंगामा,
चड्डी बना दिया हमारा पजामा,
बनियान बन गया कुर्ता,
मार मार बना दिया भुरता,
हम चीखते रहे,
और पीटने वाले, हमे पीटते रहे।
भगवान जाने कब तक,
निकालते रहे रोष,
और जब हमें आया होश,
तो देखा अस्पताल में पड़े थे,
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे,
हमने अपनी एक आँख खोली,
तो एक नर्स बोली,
दर्द कहाँ है?
हम कहाँ कहाँ बताते,
और उससे पहले कि कुछ,कह पाते,
आँख चल गई,
नर्स कुछ न बोली,
बाई गाड ! (चल गई) ,
मगर डाक्टर को खल गई,
बोला इतने सिरियस हो,
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो,
इस हाल में शर्म नहीं आती,
मोहब्बत करते हुए,
अस्पताल में,
उन सबके जाते ही आया वार्ड बॉय,
देने लगा आपनी राय,
भाग जाएँ चुपचाप नहीं जानते आप,
बढ़ गई है बात,
डाक्टर को गड़ गई है,
केस आपका बिगाड़ देगा,
न हुआ तो मरा बताकर,
जिंदा ही गड़वा देगा.
तब अँधेरे में आँखें मूंदकर,
खिड़की के कूदकर भाग आए,
जान बची तो लाखों पाए।
एक दिन सकारे,
बापूजी हमारे,
बोले हमसे-
अब क्या कहें तुमसे?
कुछ नहीं कर सकते,
तो शादी कर लो ,
लडकी देख लो।
मैंने देख ली है,
जरा हैल्थ की कच्ची है,
बच्ची है फिर भी अच्छी है,
जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहाँ भी तो कड़की है
हमने कहा-
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले- गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फँस गया तो सम्भल जाओगे।
तब एक दिन भगवान से मिलके
धडकते दिल से
पहुँच गये रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली-
यात्रा में तकलीफ़ तो नहीं हुई
और आँख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई
बोली-
लड़की तो अंदर है,
मैं लड़की की माँ हूँ ,
लड़की को बुलाऊँ?
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ,
आँख चल गई दुबारा ,
उन्हों ने किसी का नाम ले पुकारा,
झटके से खड़ी हो गईं।
हम जैसे गए थे लौट आए,
घर पहुँचे मुँह लटकाए,
पिताजी बोले-
अब क्या फ़ायदा ,
मुँह लटकाने से ,
आग लगे ऐसी जवानी में,
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आँखें फोड़ लो,
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो।
जब भी कहीं आते हो,
पिटकर ही आते हो ,
भगवान जाने कैसे चलते हो?
अब आप ही बताइए,
क्या करूँ, कहाँ जाऊँ?
कहाँ तक गुण आऊँ अपनी इस आँख के,
कमबख़्त जूते खिलवाएगी,
लाख दो लाख के,
अब आप ही संभालिये,
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिए।
जवान हो या वृद्धा, पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की जिसकी आँख चलती हो,
पता लगाइए और मिल जाये तो,
हमारे आदरणीय काका जी को बताइए।
शनिवार, 24 जनवरी 2015
शुक्रवार, 9 जनवरी 2015
हर्ष को ओलंपियाड फाॅर कम्प्यूटर का गोल्ड
- इन्टरनेट पर आया सिल्वर जोन द्वारा आयोजित कम्प्यूटर ओलंपियाड का रिजल्ट
- ग्यारह वर्षीय हर्ष है लोयला हाई स्कूल का छात्र
इससे पहले भी वर्ष 2013 में हर्ष इस प्रतियोगिता में भाग ले चुका है। तब दूसरे लेबल में इसका क्लास रैंक द्वितीय, स्टेट रैंक 15 और ओलंपियाड रैंक 322 था। ज्ञात हो कि सिल्वर जोन फाउन्डेशन प्रति साल स्कूली बच्चों के लिए अलग-अलग विषयों की प्रतियोगिताएं करवाता है। इसमें भारत सहित विश्व के कई देशों के स्कूली बच्चे भाग लेते हैं। पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को जूनियर वर्ग और छठी से बारहवीं कक्षा तक के बच्चों को सिनियर वर्ग में बांटा गया है।
हर्ष बताता है कि सिनियर वर्ग के आखिरी लेबल की परीक्षा पास करने पर संस्था की ओर से नासा भेजा जाता है। साथ ही, विदेश में पढ़ाई का पूरा खर्च संस्था देती है। मैं इसके लिए ही अभी से प्रयास कर रहा हूं। हर्ष के पिता, राजीव मणि, पत्रकार हैं। माता सरोज बाला घरेलू महिला हैं। राजीव कहते हैं कि कम्प्यूटर से हर्ष का लगाव शुरू से ही रहा है। प्रतिदिन एक घंटा उसे कम्प्यूटर पर बैठने दिया जाता है। लेकिन, अन्य विषयों पर भी ध्यान देना जरूरी है। वहीं उसके दादाजी, चन्द्र मणि प्रसाद, कहते हैं कि हर्ष का कम्प्यूटर ज्ञान कुछ तो ईश्वरीय देन है। स्थिति यह है कि अब तो वह बड़ों को भी कम्प्यूटर के क्षेत्र में कोई दिक्कत होने पर बताने लगा है।
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