COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna
COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

शनिवार, 28 मई 2016

35 नर्सों को राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटन्गेल पुरस्कार

नई दिल्ली : राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने पिछले दिनों राष्ट्रपति भवन में अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस के अवसर पर नर्सिंग कर्मियों को राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटन्गेल पुरस्कार प्रदान किये। इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा उपस्थित थे। राष्ट्रपति ने पुरस्कार विजेताओं को बधाई देते हुए कहा कि स्वास्थ्य के सभी पहलुओं में, चाहे यह पोलियो उन्मूलन, मिड वाइफ सेवा और सामुदायिक शिक्षा जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम हों, नर्स की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनके समर्पण और देखभाल की प्रशंसा शहरी और देश के दूरदराज के क्षेत्रों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी की जाती है। देश के स्वास्थ्य लक्ष्य की प्राप्ति में नर्सिंग कर्मियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य क्षेत्र की नीतियां बनाते समय नर्सिंग समुदाय की राय लेना महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रपति ने नर्सों की करुणा, अनुशासन और समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम विकास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लचीली स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करनी होगी। माइक्रोबायल प्रतिरोध, नई महामारियां, संक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं जैसे खतरों से दबाव बढ़ा है। स्वास्थ्य क्षेत्र में मांग बढ़ी है। अनुक्रिया प्रणाली के लिए नर्सों की सेवा महत्वपूर्ण है।
स्वास्थ्य मंत्री ने पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी और उनकी उदाहरणीय सेवा की सराहना की। नर्सिंग समुदाय की देखभाल और करुणा की प्रवृत्ति को स्वीकार करते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्राइमरी, सेकेंड्री और तीसरे स्तर तक स्वास्थ्य देखभाल करने में नर्सों की भूमिका अहम है। नर्सिंग कर्मी अपनी योग्यता से युवा पीढ़ी के लिए रोल माडल बने हैं। उन्होंने नर्सिंग क्षेत्र में अवसरंचना और मानव संसाधन विकास के लिए उठाए दए कदमों का उल्लेख किया। 
जेपी नड्डा ने यह भी बताया कि उनके मंत्रालय ने नर्सिंग कैडर को मजबूत बनाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इन कदमों में एएनएम/जीएनएम स्कूलों की स्थापना, संस्थानों का स्कूल ऑफ नर्सिंग से कॉलेज ऑफ नर्सिंग में उन्नयन, संकट काल और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नर्सों का प्रशिक्षण तथा नर्स प्रैक्टिशनर्स कोर्स विकास हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नर्सिंग और मिड वाइफ पोर्टल विकसित किया जा रहा है। इसमें नर्सिंग से संबंधित सभी सूचनाएं दी जाएंगी, नर्सिंग क्षेत्र में भारत सरकार की गतिविधियों की जानकारी होगी, नर्सिंग और मिड वाइफ शिक्षा तथा मानव संसाधन उपलब्धता की जानकारी होगी, सर्कुलर, अधिसूचना, नौकरी के अवसर तथा ई-लर्निंग माड्यूल होंगे।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि भारतीय नर्सों के लाइव रजिस्टर बनाने से नर्सिंग में वर्तमान मानव संसाधन की नवीनतम सूचना, सटीक जानकारी और रियल टाइम सूचना होगी। लाइव रजिस्टर नामक टेक्नोलॉजी प्लैटफार्म प्रारंभ किया गया है, ताकि वर्तमान में प्रैक्टिशिंग नर्सों की जानकारी हो। इससे सरकार को बेहतर मानव शक्ति नियोजन करने तथा भारत में नर्सिंग समुदाय के लिए नीति स्तर निर्णय में मदद मिलेगी। राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटन्गेल पुरस्कार के तहत विजेता को 50,000 रुपये नकद, एक प्रमाण पत्र, एक प्रशस्ति पत्र और एक पदक दिया जाता है।

बदलने वाला है अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का पता

 संक्षिप्त खबरें 
  • पर्यावरण भवन का नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय भवन रखने का निर्णय

नई दिल्ली : अल्पसंख्यक कार्य मंत्री डॉ. नजमा हेपतुल्ला के सुझाव पर शहरी विकास मंत्रालय ने नई दिल्ली के सीजीओ कॉम्प्लेक्स स्थित पर्यावरण भवन का नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय भवन रखने का निर्णय लिया है। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय भी इसी परिसर में स्थित है। पर्यावरण मंत्रालय की अब खुद की अलग इमारत है। 
शहरी विकास, आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा डॉ. नजमा हेपतुल्ला को लिखे गये पत्र में कहा गया है कि मंत्रालय ने सीपीडब्ल्यूडी को निर्देश दिया है कि वह अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के साथ सलाह-मशविरा कर इस इमारत का नया नाम तत्काल रखने के लिए आवश्यक कदम उठाये। 
डॉ. नजमा हेपतुल्ला ने 15 मार्च, 2016 को शहरी विकास मंत्रालय को लिखे पत्र में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर पर्यावरण भवन का नाम रखने का सुझाव दिया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ही ‘अंत्योदय’ का विचार प्रस्तुत किया था। पत्र में लिखा गया था कि यह पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष है, अतः इसके मद्देनजर यही उचित रहेगा कि राष्ट्रीय राजधानी में एक महत्वपूर्ण इमारत का नाम अब उनके नाम पर रखा जाए। वहीं, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय एक पूर्णकालिक मंत्रालय के रूप में अपनी स्थापना का एक दशक पूरा करने जा रहा है।

250 मैला ढोने वालों को स्व-रोजगार प्रमाण-पत्र

नई दिल्ली : सिर पर मैला ढोने वाले लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने 250 सफल प्रशिक्षुओं को पिछले दिनों कोर्स पूरा करने का प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस तथा रोजगार पत्र दिया। 
मैला ढोने वाले लोगों के पुर्नवास के लिए स्व-रोजगार योजना के अंतर्गत विभिन्न कार्यों के लिए प्रशिक्षण दिया गया। अधिकतर वाणिज्यिक मोटर चालक प्रशिक्षुओं को विभिन्न ऑनलाइन कैब सेवाओं तथा स्वंयसेवी संगठनों ने नियुक्त कर रखा है। वाणिज्यिक वाहनों को खरीदने के लिए दिल्ली अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, शारीरिक रूप से दिव्यांग वित्त तथा विकास निगम (डीएसएफडीसी) के साथ वित्तीय सहायता का प्रबंध किया गया है। 
श्री गहलोत ने ई-रिक्शा के लिए लाभार्थियों को ऋण स्वीकृति पत्र दिया। ई-रिक्शा को डीएसएफडीसी द्वारा वित्तीय सहायता दी गई है। उन्होंने कहा कि उनके मंत्रालय ने वाणिज्यिक वाहन चालन क्षमताओं तथा आत्मरक्षा के लिए 200 महिलाओं को प्रशिक्षित किया है। इस प्रयास से रोजगार/स्व-रोजगार के अवसर देकर महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा। 
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने कहा कि आत्मरक्षा के बारे में कौशल प्रशिक्षण से महिला चालकों को न केवल आत्मरक्षा में मदद मिलेगी, बल्कि महिला यात्रियों में सुरक्षाभाव विकसित होगा। 

जनजातीय मामलों के मंत्रालय में स्वच्छता अभियान लांच

नई दिल्ली : केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुआल ओराम ने कहा है कि कार्यालय और उसके आसपास के क्षेत्रों की स्वच्छता से अधिकारियों को श्रेष्ठ कार्य प्रदर्शन करने की शक्ति मिलती है। नई दिल्ली में स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत स्वच्छता अभियान लांच करते हुए श्री ओराम ने कहा कि स्वच्छता के बारे में जो महत्व घऱ में दिया जाता है, वैसा ही महत्व कार्यालय में भी दिया जाना चाहिए। श्री ओराम ने अगस्त क्रांति भवन स्थित मंत्रालय के कार्यालय के विभिन्न कमरों को भी देखा। बाद में अधिकारियों के साथ बैठक में श्री ओराम ने कहा कि स्वच्छता सुनिश्चित करने में सुधार के बावजूद अभी भी सुधार की गुंजाइश है। उन्होंने स्वच्छता मानक बनाए रखने के लिए मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से नियमित निरीक्षण करने को कहा।

गुरुवार, 12 मई 2016

झारखंड में गंगा संरक्षण के लिए ग्रामीण स्वच्छता पहल का शुभारंभ

केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने साहिबगंज, झारखंड में गंगा संरक्षण के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत ग्रामीण स्वच्छता पहल के लिए नौ परियोजनाओं का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि झारखंड में गंगा के समस्त 83 किलोमीटर विस्तार को इस कार्यक्रम के तहत लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के तीन महत्वपूर्ण उपायों - गंगा नदी के तट पर बसने वाले सभी 78 गांवों की खुले में शौच मुक्त स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता के तौर-तरीकों को प्रोत्साहन देना, ठोस और तरल अपशिष्टों के प्रभावी प्रबंधन के लिए सृजित उन्नत पहुंच, निरंतर उपयोग और बुनियादी ढांचे के रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए लागत प्रभावी, उचित रूप से स्थानीय, कम लागत तथा स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए आसान प्रबंध वाली प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना तथा गांवों में सफाई, स्वच्छता में सुधार लाने तथा एकीकृत तथा समग्र आजीविका पहुंच के लिए स्थापित सुविधाओं का प्रभावी प्रबंधन करने, इन सुविधाओं में वृद्धि करने तथा इनका रखरखाव के लिए पंचायतों, ग्राम स्तर स्वच्छता समितियों और स्व- सहायता समूहों सहित स्थानीय संस्थाओं को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 
मंत्री महोदया ने कहा कि इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य उन्नत स्वच्छता तौर-तरीकों के माध्यम से झारखंड में गंगा नदी बेसिन में बसे इन 78 गांवों के 45,000 परिवारों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इसके अलावा इन गांवों से गंगा नदी में बहकर जाने वाले अपशिष्ट जल और वर्षा के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाना भी है। सुश्री भारती ने कहा कि डिग्रैडबल (नष्ट करने योग्य) ठोस अपशिष्ट के संग्रह, भंडारण और कम्पोस्ट खाद बनाने और बाइओडग्रैडबल (गैर जैवनिम्नीकरण) सामग्री के लिए लघु उद्यमों की स्थापना के लिए परियोजना गांवों में 78 इकाइयां स्थापित की जाएंगी। उन्होंने बताया कि 5,460 परिवारों को पशु और कृषि अपशिष्ट के लाभदायक उपयोग के लिए कीड़े वाली खाद का उपयोग करने के लिए कम्पोस्ट खाद सुविधाओं को अपनाने में मदद दी जाएगी इसके अलावा पशु अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान में मदद के लिए बायोगैस संयंत्र लगाने के लिए 1,860 परिवारों की मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि 40 सामुदायिक शौचालयों के साथ-साथ 8 ग्रामीण स्तर शवदाहगृहों और 32 स्नान घाटों का भी निर्माण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि घरों और समुदायिक हैंडपंपों से निकलने वाले फालतू और गंदे पानी का सुरक्षित रूप से निपटान करने के लिए सामुदायिक भागीदारी से 10,000 से अधिक सोख गड्ढ़ों का निर्माण किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि घर से निकलने वाले अपशिष्ट और वर्षा के दौरान बहने वाले पानी के जल्दी और सुरक्षित निपटान के लिए परियोजना गांवों में 1,52,000 मीटर सामुदायिक नेतृत्व में निर्मित खुली चैनल की नालियों का भी निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा घरेलू अपशिष्ट और वर्षा के दौरान बहने वाले पानी के जैव उपचार और सुरक्षित निपटान के लिए 92 सामुदायिक तालाबों का निर्माण और नवीनीकरण किया जाएगा। 
इस पूरी परियोजना को यूएनडीपी, सामुदायिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के समग्र मार्गदर्शन में चलाया जाएगा। इन परियोजना पहलों से पहचान किए गए गांवों में उन्नत, सतत, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन और कृषि सहित ग्रामीण स्रोतों से गंगा में होने वाले प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी। यूएनडीपी इस कार्य में तकनीकी और कार्यान्वयन सहायता प्रदान करेगा।

गुरुवार, 5 मई 2016

मीडिया का करप्शन कनेक्शन

 मजाक डाॅट काॅम 
राजीव मणि
इस नश्वर संसार में मानव ही एक ऐसा सामाजिक पशु है, जिसके बीच चढ़ावे की काफी महिमा है। इसे ‘सुविधा शुल्क’ के नाम से भी जाना जाता है। जैसा नाम से ही प्रतित होता है, किसी काम को करवाने या अपना स्वार्थ साधने के लिए चढ़ाया गया शुल्क ! और इसकी कहानी भी ठीक उतनी ही पुरानी है, जितना मानव का इतिहास। प्राचीन काल से लेकर अबतक इसकी बदौलत बड़े-बड़े कार्य सिद्ध हुए हैं। इसकी कृपा से कइयों के राजपाट संवर गए। कइयों की लाइफ ही बन गयी। कहने का मतलब कि चढ़ावा या सुविधा शुल्क के जरिये कोई राजा भोज बना, कोई गंगू तेली भी। और हां, यह सुविधा शुल्क कई बार मुंह बंद रखने को भी दिये जाते हैं। 
यहां यह भी समझ लेना ठीक रहेगा कि चढ़ावे का रंग-रूप कैसा होता है। तो जनबा, यह तो आप पर निर्भर करता है कि आपकी श्रद्धा कितनी है। आप चाहें तो मिठाइयां चढ़ाएं, चाहें तो रुपए-पैसे। हां, आप कार, बंगला, टीवी, फ्रीज भी चढ़ा सकते हैं। कुछ लोग तो यहां दारू-मुरगा भी चढ़ाते हैं। कुछ चढ़ावे में पार्टी देते हैं। कुछ वेश्याएं भी। इतिहास गवाह है कि इसी धरती पर कुछेक ने अपनी पत्नी या बेटी को भी सुविधा शुल्क के रूप में चढ़ा दिया। हालांकि पत्नी या बेटी को सुविधा शुल्क के रूप में दिये जाने की घटनाएं मुगल काल में सबसे ज्यादा हुईं। लेकिन, आज के सभ्य समाज में भी चोरी-छिपे यह सब होता रहा है। इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हालांकि ऐसे चढ़ावे अब बहुत कम देखने को मिलते हैं। 
खैर, बात ताजा चढ़ावे की ही कर लेते हैं। कोहराम मचा है कि इटली के उड़नखटोले के सौदे में कई लोगों को चढ़ावे के रूप में मोटी रकम दी गयी। मोटी रकम पाने वालों में कई बड़े राजनेताओं के नाम शामिल हैं। मेरी दिलचस्पी अभी इस छोटी खबर में नहीं। वैसे नेता का नाता तो विवाद, घोटाला, रिश्वत आदि से पुराना रहा है। मेरी दिलचस्पी अभी इस बात में है कि नेताओं के साथ कुछ बड़े पत्रकारों को भी ‘मैनेज’ करने के लिए चढ़ावा चढ़ाया गया। हालांकि अभी तक उन बड़े पत्रकारों के नामों का खुलासा नहीं हुआ है। हो सकता है, अगर आगे अच्छे दिन आयेंगे, तो नामों के खुलासे भी हो जायेंगे। और तब पता चल सकेगा कि जितना शोर मचा हुआ है, उसमें कुछ सच्चाई है भी या नहीं। 
वैसे, मीडिया का करप्शन कनेक्शन कोई नयी बात नहीं। आमजन को भी यह पता है। अब तो खुलेआम लोग कहने लगे हैं कि कुछ पत्रकार तो चंद रुपए में बिक जाते हैं। मैं भी इसी बिरादरी से हूं। लेकिन, लोगों की भावनाओं को समझता हूं। ये वही लोग हैं जो यह भी कहते हैं कि अखबार या टीवी में दिया है, तो सच ही होगा। यह उनका विश्वास है, अटूट! इसी कारण मैं लोगों की बात सुनकर बुरा नहीं मानता। इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात भी नहीं। वैसे शिकवा-शिकायत पर तो अपनों का ही अधिकार होता है। 
पिछले दिनों एक परिचित मुझे पटना में एक लोकल चैनल के दफ्तर में ले गये। वहां एक व्यक्ति से मेरा परिचय कराया। मुझे बताया गया कि ये चैनल के हेड हैं। फिर वे आपस में बातें करने लगें। उन दोनों की बात सुनकर मुझे काफी हैरानी हुई। दो घंटे के वार्तालाप में वे सिर्फ वसूली और बड़े-बड़े अधिकारियों, नेताओं से अपने कनेक्शन पर ‘बकलोली’ करते दिखे। तथाकथित चैनल हेड यह बार-बार बताते नहीं थकते थे कि कैसे उनके दफ्तर में रात दस के बाद बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी और नेता आकर घंटों बैठते हैं। और यहीं से कैसे-कैसे ‘खेल’ हो जाते हैं। उस दिन मुझे लगा था, मेरा जीवन कितना व्यर्थ है। अपने बीस वर्षों की पत्रकारिता में मैं सिर्फ समाज, गरीब, मुसहर, न्याय जैसे शब्दों के मायाजाल में ही उलझा रहा। और तभी मुझे पता चला, इससे बाहर एक अनोखी ‘बहार की दुनिया’ भी है। यहां पैसा, शोहरत, अय्यासी का पूरा सामान है!
चैनल की बात निकली है तो कुछ और बात कर ही लेता हूं। आज चैनलों की भरमार है। और चैनल में काम करने वालों की तो पूछिए ही मत ! अब तो ऐसे-वैसे भी चैनल में आसानी से बहाल हो जाते हैं, जो ठीक से हिन्दी भी नहीं बोल पाते। आपने देखा होगा, कैसे-कैसे सवाल पूछे जाते हैं। 
पटना में ही अगलगी की घटना हुई थी। करीब दो सौ झोपड़ियां जलकर राख हो गयीं। मैं भी वहां पहुंचा था। एक लोकल चैनल के पत्रकार ने पीड़ित से पूछ लिया - ‘‘आपको कैसा लग रहा है ?’’ मैं बगल में खड़ा था। सवाल वे पूछ रहे थे, शर्म मुझे आ रही थी। आखिर इन्हीं कारणों से पूरी बिरादरी बदनाम होती है। खैर, मैं अखबार, पत्रिका से जुड़ा रहा हूं। उसी की बात करता हूं। 
तब मुझे पटना से प्रकाशित सबसे बड़े हिन्दी समाचार पत्र में काम करने का अवसर मिला था। मैं वहां लंबे समय तक रहा। मुझे पता चला कि जिलों में कार्यरत अधिकांश पत्रकारों को वेतन नहीं मिलता, प्रति खबर दस रुपए दिये जाते हैं। मैं सोच में पड़ गया, कैसे उन बेचारों का गुजारा चलता होगा। सुबह से देर रात तक वे भाग-दौड़ करते हैं। प्रतिदिन अगर पांच खबरें भी प्रकाशित हों, तो सिर्फ पचास रुपए ही बनते हैं। इससे ज्यादा का पेट्रोल तो प्रतिदिन बाइक पी जाती होगी। 
कुछ समय बाद मुझे पटना से बाहर व्यक्तिगत काम से जाना पड़ा। संयोग से एक पत्रकार मिल गये। परिचय हुआ, बातों का सिलसिला चल पड़ा। वे बताने लगे - ‘‘भैया, अब तो मीडिया-हाऊस ही अप्रत्यक्ष रूप से वसूली करने को प्रेरित करता है। समझने की बात है, अखबार के काम से दिनभर बाहर रहने वाले पत्रकार को उसके परिश्रम का पुरस्कार पचास रुपए मिले, तो क्या वह हवा पीकर रह सकता है ? सच्चाई यह है कि जिले के अधिकांश पत्रकारों का रहन-सहन किसी रईस की तरह होता है। तो फिर कहां से बरसते हैं पैसे ! और जो पत्रकार इस धारा में नहीं बहते, वे अपने घर पर भार ही होते हैं। अकाल मौत को प्राप्त होते हैं। और वही अखबार, उनकी मृत्यु की दो लाइन की खबर भी प्रकाशित नहीं करता ! 
कहा जाता है कि पत्रकारों का काम ही खुद ब खुद उनका परिचय दे देता है। लेकिन, दुखद है कि आजकल के पत्रकार खुद को काम से नहीं, जबान से बड़ा बताने में लगे हैं। ये उन गरीबों की नहीं सुनते, जो सबसे ज्यादा उनपर विश्वास करते हैं। ये उन गरीबों के पास नहीं जाते, जो आज भी उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान देते हैं। ये लाल बत्ती के पीछे भागने वाले पत्रकार हैं। वीआईपी से सटे रहने वाले जीव हैं। जिस तरह कोई नेता वोट बैंक के हिसाब से काम करता है, उसी तरह ये पत्रकार लाभ-हानि को ध्यान में रख काम करते हैं। 
ये उन कार्यक्रमों में ज्यादा जाना पसंद करते हैं, जहां खाने-पीने की पूरी व्यवस्था हो। साथ ही, उन कार्यक्रमों को ज्यादा महत्व देते हैं, जहां गिफ्ट बांटी जाती हो। लेकिन, वैसी जगह जाना पसंद नहीं करते, जहां ना खाने-पीने की व्यवस्था हो और ना गिफ्ट मिले। ये ‘पेड न्यूज’ को खास खबर बना डालते हैं। इनमें विज्ञापन को भी खबर बना डालने का हुनर होता है। चुनाव का ये बेसब्री से इन्तजार करते हैं। बड़े नेताओं के कार्यक्रमों में जाने की आपाधापी मचाते हैं। ये दूसरों या अपने जूनियर की खबर को भी अपनी खबर बना लेते हैं। ये सच को झूठ और झूठ को सच बनाने के खिलाड़ी होते हैं। ये वैसे लोग हैं, जो अपने ऊपर लगे इल्जाम से खुद ही अपनी अदालत में अपने कुतर्कों से बरी हो जाते हैं। क्योंकि यह है मीडिया का करप्शन कनेक्शन।

मंगलवार, 3 मई 2016

‘ए-2 टाइप दूध की परीक्षण प्रणाली शीघ्र विकसित हो’

  • देशी गाय के दूध की अलग से खरीद
  • प्रसंस्करण एवं विपणन करने को प्राथमिकता दी जाय : राधा मोहन सिंह 

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि पैदा होने से बुजुर्ग अवस्था तक दूध मनुष्य के लिए अनिवार्य खाद्य पदार्थ है। दूध एवं दूध के पदार्थं स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। विश्व भर में लोगों की प्रोटीन की 13 प्रतिशत आवश्यकता दूध व दुग्ध उत्पादों से ही पूरी होती है। सदियों से दूध को अच्छे स्वास्थ्य के लिए अमृत माना गया है। पिछले कुछ वर्षों से उपभोक्ताओं के बीच ए-1 एवं ए-2 दूध चर्चा का विषय बना हुआ है। श्री सिंह ने कहा कि वर्तमान में शोध से पाया गया है कि ए-2 टाइप दूध ए-1 टाइप दूध से कई गुणा ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक है। देसी नस्ल की गायों में ए-2 टाइप दूध प्रोटीन प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। ये कई बीमारियों जैसे कि हृदय रोग, डायबिटिज एवं न्यूरोलॉजीकल डिसऑर्डर से बचाता है एवं शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है। 
इस विषय पर चर्चा करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने बैठक में निर्देश दिये कि देशी गाय के दूध की अलग से खरीद, प्रसंस्करण एवं विपणन करने को प्राथमिकता दी जाय। साथ ही इस दूध को प्रीमियम (उच्चतर) कीमत मिलनी चाहिए। इससे न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सुधार होगा बल्कि हमारी देसी गाय का संरक्षण एवं विकास भी होगा। मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ए-2 टाइप दूध के परीक्षण के लिए सरल, सस्ती एवं त्वरित प्रणाली विकसित की जाय, जो कि किसान के द्वार पर उपलब्ध हो सके। कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार की योजनाओं को इस तरह संशोधित किया जाए कि देशी गाय के दूध के प्रसंस्करण एवं विपणन के लिए डेयरी यूनिट व मिल्क प्लांट की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाय। बैठक में पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड व डेयरी उद्योग के वरिष्ठ अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित थे।

होम्योपैथी केन्द्रीय परिषद अधिनियम, 1973 में संशोधन 

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने होम्योपैथी केन्द्रीय परिषद अधिनियम 1973 में संशोधन को मंजूरी दे दी। इस संशोधन के जरिए केन्द्र सरकार द्वारा होम्योपैथी मेडिकल कॉलेजों को पाठ्यक्रम व पाठ्यक्रमों को जारी रखने की अनुमति दिए जाने के प्रावधान तैयार किए जाएंगे। इससे केवल मेडिकल कॉलेजों द्वारा गुणवत्तापूर्ण होम्योपैथी शिक्षा दिया जाना सुनिश्चित होगा।
सभी मेडिकल कॉलेजों द्वारा वार्षिक प्रवेश के लिए केन्द्र सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य किया जा रहा है। साथ ही तय मानदंडों पर खरे उतरने वाले कॉलेजों को पांच साल के लिए अनुमति दिए जाने का प्रावधान भी जोड़ा गया है। यह संशोधन गुणवत्तापूर्ण होम्योपैथी शिक्षा सुनिश्चित करेगा जिससे होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जरिए बेहतर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी। 
पृष्ठभूमि : होम्योपैथी केन्द्रीय परिषद अधिनियम, 1973 के मौजूदा प्रावधान उन वर्तमान कॉलेजों में दाखिला रोकने में केंद्र सरकार को समर्थ नहीं कर पा रहे हैं जो अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों में निर्धारित मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं। इस वजह से होम्योपैथी शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। अतः संशोधन के परिणामस्वरूप मौजूदा कॉलेजों में मानक बेहतर होकर निर्धारित स्तरों तक पहुंच जाएंगे और इसके साथ ही मौजूदा होम्योपैथिक कॉलेजों में भी बुनियादी ढांचे, सुविधाओं एवं श्रमबल के वही मानक सुनिश्चित हो जायेंगे, जो नए कॉलेजों के लिए आवश्यक होंगे।

‘नई मंजिल’ योजना के बारे में विचार-विमर्श

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय से संबंधित सलाहकार समिति की बैठक हुई। इस बैठक में ‘नई मंजिल’ योजना के बारे में विचार-विमर्श किया गया। इस बैठक की अध्यक्षता केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री डॉ. नजमा हेपतुल्ला ने की। डॉ. नजमा हेपतुल्ला ने समिति को योजना के बारे में जानकारी दी। समिति के सदस्यों ने योजना के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया और अपने सुझाव दिये। सदस्यों को उनके अमूल्य सुझावों के लिए आभार प्रकट करते हुए डॉ. नजमा ने उन्हें भरोसा दिलाया कि इन सुझावों पर गौर किया जाएगा और इन्हें लागू करने के लिए हरसंभव उपाय किये जाएंगे। इस बैठक में भाग लेने वालों में असादूद्दीन ओवैसी (लोकसभा सदस्य) और हाजी अब्दुल सलाम, अली अनवर अंसारी, गुलाम रसूल बलियावी (राज्यसभा सदस्य) शामिल थे। 

नए अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के नए नियम अधिसूचित 

संसद ने 2016 में अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 में संशोधन किया था, ताकि अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को अत्याचार से बचाने के लए कड़े प्रावधान लाए जा सकें। इन प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बन चुके हैं। इन नियमों से अत्याचार के शिकार लोगों को मिलने वाले न्याय में तेजी आएगी। ये नियम महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के प्रति काफी संवेदनशील हैं। ये नियम अत्याचार के शिकार होने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों को इससे मुक्त करेंगे और उन्हें जल्द राहत प्रदान करेंगे। 
नए नियमों के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान हैं :
  • अत्याचार के मामले में 60 दिनों के अंदर जांच पूरी कर अदालत में आरोपपत्र दाखिल करना होगा। 
  • बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामले में राहत का प्रावधान (यह प्रावधान पहली बार लाया गया है) 
  • यौन उत्पीड़न, इशारे या किसी अन्य कृत्य द्वारा महिलाओं के सम्मान को चोट पहुंचाने, हमला, निर्वस्त्र करने के लिए आपराधिक ताकत का इस्तेमाल, छिप कर देखने या पीछा करने के मामले में राहत पाने के लिए मेडिकल परीक्षण की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। 
  • गंभीर किस्म के अपराधों में अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं को ट्रायल खत्म होने पर ही राहत का प्रावधान, चाहे मुकदमा में किसी को दोषी न ठहराया गया हो। 
  • अत्याचार की प्रकृति के आधार पर राहत राशि 75000 रुपये से 7,50000 रुपये के बैंड से बढ़ा कर 85,0000 रुपये से लेकर 8,25,0000 रुपये कर दी गई। इसे जनवरी, 2016 के औद्योगिक श्रमिकों के लिए थोक मूल्य सूचकांक से जोड़ दिया गया है। 
  • अत्याचार के शिकार, उनके परिवार के सदस्यों और आश्रितों को सात दिन के भीतर नकदी और अन्य राहत प्रदान करने का प्रावधान। 
  • अलग-अलग किस्म के अत्याचार के शिकार लोगों के लिए राहत राशि के भुगतान का उचित वर्गीकरण। 
  • अत्याचार के शिकार लोगों और गवाहों के अधिकार और सुविधाओं की समीक्षा के लिए राज्य, जिला और सब-डिवीजन में संबंधित बैठकों में समीक्षा। 
  • अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के नए नियम बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की समान और न्यायपूर्ण समाज रचना की दृष्टि की ओर हमारी यात्रा में महत्वपूर्ण कदम हैं।