COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna
COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

सोमवार, 25 नवंबर 2013

सुशासन में ऐसे होता है जमीन पर कब्जा

न्यूज@ई-मेल
बिहार सरकार द्वारा 9 दिसम्बर, 2011 को 14 महादलितों के बीच जमीन का पर्चा वितरण किया गया। 25 सालों से इन्तजार के बाद इन्हें यह सरकारी कागज मिल सका। उसपर संगठित दबंगों ने जमीन पर अधिकार पाने के लिए महादलितों को दबाना शुरू कर दिया। आखिरकार दबंगों की करतूतों के कारण महादलितों को विस्थापित होना पड़ा। सरकार के तमाम कानून दबंगों के आगे छोटा पड़ गये।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र भोजपुर जिले के गड़हनी प्रखंड का यह मामला है। इस प्रखंड में बलिगांव नामक ग्राम पंचायत है। इस पंचायत की मुखिया धनकेशरी देवी हैं, जो महिलाओं की इज्जत सुरक्षित रखने में अक्षम हैं। उनके पति आनंद पासवान ही पंचायतों का कार्य किया करते हैं। इस कारण महिला मुखिया से उम्मीद करना बेइमानी है। खैर, इसी पंचायत में महथिन टोलाडीह है। यहां पर 25 सालों से महादलित पासी समुदाय के लोग रहते थे। गौपाल चौधरी का कहना है कि जिस जमीन पर हमलोग रहते थे, उसी जमीन का पर्चा सरकार द्वारा 9 दिसंबर, 2011 को मिला।
पर्चा मिलते ही दबंगों का खेल शुरू हो गया। महथिन टोला गांव के दबंग शिवराज महतो, चन्द्रशेखर महतो, कृष्णा बिहारी, समई यादव, श्रीभगवान यादव संगठित हो गये। ये कहने लगे कि जो महथिन टोलाडीह की जमीन मिली है, वह जमीन हमलोगों की है। वे जमीन पर जबरन मिट्टी भरवाने लगे। पर्चाधारी महादलितों ने इसका विरोध किया, पर दबंगों पर कोई असर नहीं हुआ। वे महादलितों को गाली देकर धमकाने लगे। अगर नहीं भागते हो तो जमीन पर जबरन कब्जा कर लेंगे। इतना हो ही रहा था कि लाठीधारी आकर लाठी चलाने लगे। लाठी चलाने से दहशत पैदा नहीं कर सकने पर दबंगों ने गोली चलानी शुरू कर दी। इसमें छह महादलित घायल हो गये। घायल होने वालों में गोपाल चौधरी, अशोक चौधरी, मुन्ना चौधरी, लक्ष्मी देवी, बुधन चौधरी और दुधनाथ चौधरी शामिल हैं। इस वारदात में दो पूर्णतः विकलांग हो गये। जिस जमीन को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, उसपर घर बनाकर रहने वालों की पूरी संपत्ति लूट ली गयी। इसमें गोपाल चौधरी के धान कूटने वाली और गेहूं पीसने वाली मशीन भी शामिल है। पुलिस को सूचना दी गयी। आते ही भीड़ और हमलावर को हटाने के लिए वह लाठी-डंडा चलाने लगी। पुलिस ने महिलाओं को भी नहीं छोड़ा। कई महादलित घायल हुए।
लाठी-गोली से घायलों का इलाज सदर अस्पताल, आरा में हुआ। इसपर महादलितों ने निर्णय लिया कि अब वे सरकार के द्वारा पर्चा मिली जमीन पर जाकर नहीं बसेंगे। अगर फिर से उक्त जमीन पर कदम रखेंगे, तो इस बार दबंग उनकी हत्या कर देंगे। पुलिस भी दबंगों पर कार्रवाई नहीं कर रही थी। आज गोपाल चौधरी, दुधनाथ चौधरी, बुधन चौधरी, चंदन चौधरी, सत्येन्द्र चौधरी, अशोक चौधरी, मुन्ना चौधरी, भरत चौधरी, विजय चौधरी और रामजी चौधरी महथिन टोलाडीह को अलविदा कह धवनियां गांव में जाकर बसने को मजबूर हैं। इन लोगों ने बहुत ही छोटा घर बना रखा है। किसी तरह जिन्दगी कट रही है।

शौचालय के नाम पर सरकारी खेल

पिछले ही दिनों गया के डोभी प्रखंड के कांजियार गांव की बात है। सुशीला देवी शौच के लिए खेत में गयी थी। बदमाशों ने पहले सुशीला के साथ बलात्कार किया और फिर हत्या कर दी। वह बोधगया भूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सौदागर दास की पत्नी थी। अभी तक इस कांड में एक की ही गिरफ्तारी हो सकी है। यह कोई नयी बात नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की घटनाएं अकसर होती हैं।
23 नवम्बर, 2013 को ही विश्व शौचालय दिवस घोषित किया गया है। दूसरी तरफ गांव के घरों की स्थिति तो क्या, विद्यालयों की स्थिति भी देखी जा सकती है। प्राथमिक विद्यालय कमालपुर, मानपुर के शौचालय की स्थिति को आप देख सकते हैं। पानी के अभाव में शौचालय की दुर्दशा झलकती है। अभी यह होता है कि एक विभाग के द्वारा शौचालय का निर्माण करा दिया जाता है। उसके बाद दूसरे विभाग के द्वारा पानी की व्यवस्था की जाती है। तीसरे के द्वारा सफाई की व्यवस्था होती है। यही कारण है कि सरकारी विद्यालयों के शौचालय का यह हाल है। यह किसी एक विद्यालय की बात नहीं, करीब-करीब सभी की है।
हालात यह है कि सूबे के लाखों महादलित, गरीब, आदिवासी, अत्यंत गरीब लोगों के पास शौचालय नहीं है। इसके कारण हैं गरीबी और अपर्याप्त जमीन। अभी इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत गरीबों को जो जमीन दी जाती है, उसमें एक बड़ा कमरा या एक छोटा कमरा और एक छोटा बरामदा ही बनाया जा सकता है। इसके बाद जमीन बचती ही नहीं है। इसी कारण खामियाजा महिलाएं, किशोरी एवं बच्चियों को भुगतना पड़ता है। उन्हें दुष्कर्म का शिकार होना पड़ता है।
इधर सरकार और सरकारी आंकड़ों की कारीगरी भी देखना जरूरी है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश भी घर-घर शौचालय निर्माण करने की वकालत करते हैं। निर्मल भारत अभियान के तहत 9 हजार रुपए दिये जाते हैं। वहीं वाटर एड के परियोजना निदेशक बृजेन्द्र कुमार कहते हैं कि जुलाई, 2013 से शौचालय निर्माण पर 9100 रुपए दिये जा रहे हैं। बीपीएल परिवारों को व्यक्तिगत शौचालय के निर्माण पर सरकार 9100 रुपए आर्थिक सहायता दे रही है। यह राशि लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग व ग्रामीण विकास विभाग की ओर से दी जा रही है। केन्द्र सरकार के निर्मल भारत अभियान से 4600 रुपए व मनरेगा के तहत 4500 रुपए दिये जा रहे हैं। लाभार्थी के जॉब कार्ड से मनरेगा की राशि की निकासी की जाती है। वहीं लाभार्थी को अपने पास से 900 रुपए का योगदान करना पड़ता है। इस तरह से एक यूनिट शौचालय निर्माण पर 10 हजार रुपए व्यय होगा! लेकिन, हकीकत कुछ और है।

विश्व शौचालय दिवस पर रैली

विश्व शौचालय दिवस 19 नवम्बर को मनाया गया। इस अवसर पर गांवघर में जन जागरण पैदा किया गया। इसे वाटर एड इंडिया ने मिशन बना लिया है। अब वाटर एड इंडिया ने निर्मल भारत अभियान के तहत सरकार को सहयोग भी देना प्रारंभ कर दिया है। गांवघर में जन जागरण के साथ स्कूली बच्चों को निर्मल भारत अभियान की जानकारी दी जा रही है। और तो और बच्चे घर-घर जाकर अभिभावकों को घरेलू शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बच्चों का कहना मानकर अभिभावक आवेदन दे रहे हैं। सब ठीक चला तो निर्मल पंचायत घोषित करवाने में लोग पीछे नहीं रहेंगे। कई क्षेत्रों में तेजी से घरेलू शौचालय का निर्माण होने लगा है।
इधर फतेहपुर में रैली निकाली गयी। इसमें राजकीय मध्य विद्यालय, कांति, नौर्थ लॉडवे के 875, उत्क्रमिक मध्य विद्यालय, बुद्धहॉल, मतासो के 88, मध्य विद्यालय, डिहरी, नीमी के 405 और उत्क्रमिक विद्यालय, पहाड़पुर के 412 परिजन व छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। इसके बाद सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि 2011 के जनगणना के अनुसार, देश से 3.75 करोड़ शौचालय गायब हैं। यह भी सत्य है कि आज भी 626 मिलियन लोग खुले में शौच करने को बाध्य हैं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वक्तव्य का स्वागत किया गया, जिसमें उन्होंने नगर निकाय और पंचायत चुनाव में तकदीर चमकाने वाले नेताजी के घर में घरेलू शौचालय होना अनिवार्य कर दिया है।

अब रिंकी का क्या होगा

पटना जिले के दानापुर प्रखंड में कौथवा पंचायत है। यहीं कौथवा मुसहरी में उमेश मांझी रहते हैं। इनके पुत्र विजय मांझी (35 साल) की शादी रिंकी देवी के साथ पांच साल पूर्व हुई। इस बीच रिंकी का गर्भधारण हुआ। दुर्भाग्य से रिंकी का गर्भपात हो गया। रिंकी का मायका संपतचक थानान्तर्गत कच्छुआरा के कन्नौजी गांव में है। वहीं विजय मांझी गया था। खाना खाने के बाद छत पर जाकर सो गया। नींद से उठकर चलने पर विजय मांझी छत से गिर गया। वह ठेला चालक था। इसके अलावा कभी मजदूरी करके परिवार का लालन-पोषन करता था। उसी समय विजय मांझी को पटना मेडिकल काॅलेज हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया। 14 नवम्बर, को वह मर गया। अब उसकी विधवा की स्थिति काफी दयनीय है।

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं!


‘पर्चा मेरे साथ और जमीन किसी और के हाथ’

न्यूज@ई-मेल
बोधगया में सरकार द्वारा 9 दलितों को 32 डिसमिल जमीन दी गयी। इसपर देवनन्दन महतो के पुत्र युगल किशोर प्रसाद और कपिल लाल के पुत्र राजू लाल जबरन खेती कर रहे हैं। 
बोधगया प्रखंड के मोचारिम ग्राम पंचायत के मोचारिम मुसहरी के लोगों ने बताया कि रामपति मांझी के पुत्र राजेश मांझी को 3 डिसमिल, विफा मांझी के पुत्र राजेन्द्र मांझी को 4 डिसमिल, दुःखन मांझी के पुत्र रामटहल मांझी को 3 डिसमिल, झगरू मांझी के पुत्र बच्चू मांझी को 4 डिसमिल, अर्जुन मांझी के पुत्र शंकर मांझी को 4 डिसमिल, जागो मांझी के पुत्र कामेश्वर मांझी को 3 डिसमिल, आदित्य चैधरी के पुत्र नरेश चाौधरी को 4 डिसमिल, रामचन्द्र पासवान के पुत्र जगनारायण पासवान को 4 डिसमिल और पांची मांझी के पुत्र कुलेश्वर मांझी को 3 डिसमिल जमीन मिली है। परवाना 2000-01 में बना, लेकिन 5 साल के बाद दलितों के बीच परवाना का वितरण किया गया। इसपर वार्षिक लगान देना होगा। लगान प्रति एकड़ 10 रुपए लिया जाएगा। बन्दोबस्त की गयी भूमि विरासत योग्य होगी, परन्तु अन्तरणीय नहीं होगी। इसपर अनुमंडल अधिकारी, भूमि सुधार उप समाहर्ता और अंचल अधिकारी के हस्ताक्षर हैं। 
जब 2000-01 में बन्दोबस्त का परवाना दलितों को 2006 में वितरण किया गया, दलित खुश हो गये। लेकिन, खुशी बहुत दिनों तक नहीं रही। जब परवानाधारी को पता चला कि उनकी जमीन पर दबंग देवनन्दन महतो के पुत्र युगल किशोर प्रसाद और कपिल लाल के पुत्र राजू लाल का कब्जा है, तो दलित परेशान हो उठे। दलित उसी समय से अंचल कार्यालय और राजस्व कर्मचारी का चक्कर लगाने लगे। मगर अंचल कार्यालय के अधिकारी दलितों को सहयोग करने के पक्ष में नहीं दिखे। 
रामटहल मांझी कहते हैं कि हमलोगों को अधिकारी टहला रहे हैं। हारकर हमलोगों ने 1 अगस्त, 2013 को गया जिले के जिला पदाधिकारी को आवेदन दिया। सरकार के द्वारा वितरित परवाना की छायाप्रति संलग्न की गयी। इसमें सभी 9 परवानाधारी के हस्ताक्षर हैं। कृत मांझी का कहना है कि हाल में ही जमीन के अधिकार प्राप्त करने वाले कुलेश्वर मांझी का निधन हो गया। कुलेश्वर मांझी मेरे पिता थे। अब मैं ही अन्य दलितों के साथ दौड़धूप कर रहा हूं। 
जिला पदाधिकारी को दिये गये आवेदन पत्र में उल्लेख किया गया है कि हम दलितों की बात कोई नहीं सुनता। अंचल अधिकारी और राजस्व कर्मचारी, बोधगया को कई बार डिमाण्ड कायम एवं भूमि सीमांकन करने के लिए आवेदन दिया गया। परन्तु अभी तक न तो डिमाण्ड कायम किया गया और न ही सीमांकन। अभी उस जमीन को युगल किशोर प्रसाद, पिता देवनन्दन महतो और राजू लाल, पिता कपिल लाल द्वारा जबरन जोता जा रहा है। जांच कर हमें न्याय मिले और दोषियों को सजा।

रविवार, 3 नवंबर 2013

कब थमेगी दलित महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं

राजीव/आलोक
दलितों के साथ हमेशा से शोषन होता रहा है। महिलाएं कुछ ज्यादा ही प्रभावित हुई हैं। सरकारी आकड़ों के अनुसार, बिहार में 2012 में कुल 4950 घटनाएं अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत दर्ज की गयीं। इनमें 191 घटनाएं केवल दलित महिलाओं पर हुए बलात्कार की थीं। इसके अलावा घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, राजनीतिक हिंसा और डायन का आरोप लगाकर प्रताडि़त करना जैसी घटनाएं इनके जीवन का हिस्सा बनीं। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि एक तिहाई से भी कम महिलाएं शिकायत निवारण प्रणाली तक पहुंच पाती हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता का अंत किया गया तथा अनुच्छेद 366, 341 व 342 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को परिभाषित कर व्याख्या की गयी। इस वर्ग को शोषण और अत्याचार से मुक्त कराने के उद्देश्य से 1989 में संसद द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया गया। कानून के अंतर्गत विशिष्ठ न्यायालयों का गठन करने का प्रावधान किया गया। कानून बनने के लगभग दो दशक बाद, हाल ही में, बिहार के 5 जिलों (पटना, मुजफ्फरपुर, गया, भागलपुर एवं बेगूसराय) में दलितों के लिए विशिष्ठ न्यायालयों की स्थापना की गयी है। इसके अतिरिक्त, दलित उत्पीड़न के दर्ज केसों के त्वरित निराकरण के लिए बिहार में सर्वाधिक (184) फास्ट ट्रैक न्यायालयों का गठन किया गया। बावजूद इसके लगभग 80 हजार केस आज भी विचाराधीन हैं। अतः इस तरह के न्यायिक ढांचे ज्वलंत समस्याओं के लिए अल्पकालीन निवारण मात्र हैं और इन ढांचों में दलित महिलाओं की समुचित सहभागिता के लिए कोई उचित स्थान नहीं है।
घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए वर्षों के अथक प्रयास के बाद 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) पारित किया गया। इस विधेयक को लागू करने के लिए व्यापक नियम बनाये गये, परन्तु इनका पालन बिहार में केवल महिला हेल्प लाइन के माध्यम से किया जा रहा है। इस कानून के प्रचार-प्रसार तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं तक पहुंच बनाने की कोशिश न के बराबर की गयी है। 
ग्रामीण स्तर पर ज्यादातर घरेलू हिंसा के मामले ग्राम कचहरी में दर्ज किये जाते हैं। एक तरफ जहां महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ी है, वहीं दलित महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास हो रहे हैं। अभी तक किये गये सारे प्रयास नाकाफी हैं।