COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

महोदय, कैसी है इस योजना की व्यवस्था?

न्यूज@ई-मेल
  • प्रसव पीड़ा से भी कष्टकर है जननी सुरक्षा योजना का लाभ लेना
आलोक कुमार
एक सरकारी योजना है। नाम है जननी सुरक्षा योजना। इसके तहत गांव और शहर की गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव करवाने के बाद जच्चा-बच्चा को लाभ पहुंचाने का प्रावधान है। इस समय बिहार में जननी सुरक्षा योजना का हाल ‘अपनी डफली, अपना राग’ की तरह है। योजना में एकरुपता का काफी अभाव है। कहीं जच्चा-बच्चा का नाम कटते ही चेक दे दिया जाता है, कहीं चेक लेने के लिए बाबुओं की चिरौरी करनी पड़ती है। कहीं मैराथन दौड़ चार-पांच माह तक लगाने के बाद ही चेक नसीब हो पाता है। उस चेक को लेकर बैंक जाने पड़ लंबी लाइन।
प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने जननी सुरक्षा योजना की शुरूआत 12 अप्रैल, 2005 को किया था। इसे राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा देशभर में क्रियान्वित किया जाता है। मकसद है ग्रामीण एवं शहरी गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव सुविधा दिलवाना। यानी आशा बहनों द्वारा गर्भवती महिलाओं की पहचान कर प्रसव पूर्व और प्रसव पश्चात स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना ताकि मातृ शिशु मृत्यु दर पर काबू पाया जा सके। इसके अलावा जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराना है।
सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में गर्भवती महिलाओं को पंजीकृत कराना पड़ता है। गर्भधारण के बाद जांच तीन बार करवाना होता है। इसके लिए तीन सौ रुपए दिये जाते हैं। आयरन फोलिक एसिड यानी आईएफए तीन बार लेना पड़ता है। इसके लिए भी तीन सौ रुपए दिये जाते हैं। दो बार टीटी लेना पड़ता है। इसके लिए दो सौ रुपए मिलते हैं। संस्थागत प्रसव करवाने पर सात सौ रुपए दिये जाते हैं। इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव उपरांत 14 सौ रुपए मिलते हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में प्रसव एवं जांच के लिए तीन सौ, आईएफए के लिए तीन सौ और टीटी के लिए एक सौ रुपए दिये जाते हैं। संस्थागत प्रसव के लिए सिर्फ तीन सौ रुपए दिये जाते हैं। इस तरह शहरी क्षेत्रों में जच्चा-बच्चा को 1,000 रुपए मिलते हैं।
गर्भवती महिलाओं को आशा कार्यकर्ताओं द्वारा संस्थागत प्रसव कराने के लिए तैयार किया जाता है। नौ महीने तक उन्हें समझाना-बुझाना पड़ता है। ऐसा करने से स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में जो सुधार आया है, उसका काफी श्रेय आशा कार्यकर्ताओं को जाता है। इसके आलोक में स्वास्थ्य विभाग ने आशा कार्यकर्ताओं को पैकेज दे रखा है। एक बंघ्याकरण करवाने पर 150 रुपए, एक नसबंदी करवाने पर 200 रुपए, टीकाकरण सत्र के दौरान 21 बच्चों को टीकाकरण करवाने पर 200 रुपए, टीबी नियंत्रण (डाॅट्स) के तहत प्रति रोगी 250 रुपए, कुष्ठ रोगी लाने पर 300 रुपए, मोतियाबिन्द आॅपरेशन करवाने पर 175 रुपए, कालाजार रोगी लाने पर 100 रुपए, गांवघर में सेनिटरी नैपकिन का वितरण करने पर 1 रुपया (पैक), किशोर के साथ बैठक करने पर 50 रुपए (बैठक), मृत्यु निबंधन करवाने पर 50 रुपए (प्रति निबंधन) पोलियो टीकाकरण पर 75 रुपए (प्रति दिन) और आशा दिवस में भागीदारी करने पर 100 रुपए देय होगा। इसके अलावा आदर्श दंपति योजना के तहत परिवार नियोजन सुनिश्चित करवा देने पर आशा को 1,000 रुपए प्रोत्साहन राशि मिलनी है। शादी के दो वर्ष बाद पहला जन्म सुनिश्चित कराने पर 500 और पहले बच्चे के जन्म में तीन वर्ष का अंतराल सुनिश्चित कराने पर 500 रुपए आशा को मिलना तय है। सुरक्षित प्रसव कराने के लिए आशा को गांवों में 600 रुपए और शहरों में 200 रुपए प्रोत्साहन राशि मिलती है।
प्रायः प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक ही मोबाइल गाड़ी उपलब्ध रहती है। मोबाइल गाड़ी व्यस्त होने की स्थिति में गर्भवती को टेम्पो पर बैठाकर लाया जाता है। यह काफी खतरनाक होता है। बेलागंज पंचायत के नवाबगंज गांव में रहने वाले राजकुमार दास की पत्नी पूनम देवी को प्रसव पीड़ा हुई। यहां की आशा कार्यकर्ता मंजू कुमारी के कहने पर टेम्पो पर बैठाकर पूनम को संस्थागत प्रसव कराने के लिए लाया जा रहा था। अचानक रेलवे लाइन के पास आते ही उबड़-खाबड़ रोड की चपेट में आने से पूनम देवी का प्रसव पीड़ा बढ़ गया। इसी पीड़ा में टेम्पो पर ही प्रसव हो गया। किसी तरह से पूनम और नवजात कन्या शिशु को संभालकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रांगण में लाया गया। जहां केन्द्र की दाई ने ‘नाभी’ काटकर जच्चा-बच्चा को अलग कर दिया। शिशु को ट्रे में उठाकर अंदर लिया गया। मां को बाहर ही रखा गया। यह स्थिति देख लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। काफी हंगामा के बाद ही पूनम को जननी सुरक्षा योजना के तहत 14 सौ रुपए का भुगतान किया गया।
नक्सल प्रभावित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और रेफरल अस्पताल, संदेश में कार्यरत राज्यकर्मियों को न तो नक्सली और न ही किसी समाजसेवी का खौफ है। यहां राज्यकर्मी अपने काम का पूरा दाम बटोरते हैं। हरेक रोगी से 100 से अधिक रुपए बटोरते हैं। अगर हैंड टू हैंड चेक चाहिए, तो उसके लिए 200 रुपए चढ़ावा चढ़ाना होगा। ऐसा नहीं करने पर तीन-चार माह के बाद ही चेक मिलेगा। जी हां, भोजपुर जिले के संदेश प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का यह हाल है। हालांकि यहां की दीवारों पर अस्पताल प्रबंधन द्वारा लिखवा दिया गया है कि रोगियों से घूस लेना दण्डनीय अपराध है। इसके बावजूद यह खेल यहां धड़ल्ले से चल रहा है।
सच्चाई यह है कि सूबे के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जननी सुरक्षा योजना के तहत 14 सौ रुपए चेक देने के नाम पर रकम बटोरी जाती है। एक मां ने बताया कि जननी सुरक्षा योजना के तहत 14 सौ रुपए के चेक लेने के लिए बड़ा बाबू को 100 रुपए देने पड़े। ज्ञात हो कि यह रकम जच्चा-बच्चा के सेहत को ठीक रखने के लिए दी जाती है। स्वास्थ्य केन्द्र में ही एक महिला ने बताया कि उसे चार माह से दौड़ाया जा रहा है। हां, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेेत्र है नालंदा। यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की हालत ठीक मिली।
पटना जिले के दानापुर बस पड़ाव के बगल में स्टेट बैंक आॅफ इंडिया की शाखा है। साढ़े दस बजे बैंक खुलता है। काउंटर पर बाबू पौने ग्यारह बजे बैठने आते हैं। काम शुरू होते-होते ग्यारह बज जाता है। इस बीच काफी भीड़ लग जाती है। एक ही काउंटर पर दो लाइन! एक में महिलाएं और दूसरी लाइन में पुरूष। इसी लाइन में जननी सुरक्षा योजना से लाभ उठाने वाली महिलाएं भी मिलीं। एक हाथ में 14 सौ रुपए का चेक और दूसरे हाथ में नवजात शिशु! इन्हें दो घंटे से अधिक लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। शिशु स्तनपान करने के लिए रोने लगता है। बगल के मर्दों की घूरती आंखों के सामने किसी तरह से स्तन को ढककर शिशु को दूध पिलाना पड़ता है। फिर भी स्तन का कुछ हिस्सा खुला ही रह जाता है। इसे देखकर मर्द खुश होते रहते हैं। ऐसा लगता है कि प्रसव पीड़ा से भी ज्यादा कष्टकर है यहां जननी सुरक्षा योजना के तहत मिली चेक को भुनाना।
लेखक परिचय : आलोक कुमार ने पटना विश्वविद्यालय से ग्रामीण प्रबंधन एवं कल्याण प्रशासन में डिप्लोमा किया है। ये पिछले कई वर्षों से समाजसेवी के रूप में कार्य कर रहे हैं। दलितों, महादलितों के बीच जाना, उनका दुख-दर्द सुनना और उसे दूर करने का प्रयास करना इनका कार्य है। खासकर मुसहर समुदायों के बीच ये काफी लोकप्रिय हैं।

इस लोकतंत्र में सुपर हीरो का मतलब?

ग्लैडसन डुंगडुंग
न्यूज@ई-मेल
ग्लैडसन डुंगडुंग
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, देश में एक सुपर हीरो तलाशने की प्रक्रिया में काफी तेजी आयी है। ऐसा सुपर हीरो, जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सभी समस्याओं को अपनी जादू की छड़ी से छुमंतर कर देगा। इस होड़ में सबसे आगे भारतीय जनता पार्टी है, जिसने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को सुपर हीरो की तरह जनता के सामने पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहीं कांग्रेस पार्टी भी प्रधानमंत्री पद के अपने अघोषित प्रत्याशी राहुल गांधी को मोदी के सामने अलग ढंग से पेश करने की तैयारी कर रही है। दूसरी तरफ दिल्ली में मिली सफलता के बाद लोग आप पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को भी सुपर हीरो ही मान रहे हैं। इसमें गौर करनेवाली बात यह है कि नरेन्द्र मोदी स्वंय को सुपर हीरो की तरह पेश करते हुए कह रहे हैं कि वे रोने नहीं, लोगों के आंसू पोछने के लिए घुम रहे हैं। वहीं झारखंड में लगाये गये भाजपा के बैनर, पोस्टर यही बताने की कोशिश में जुटे हैं कि मोदी का भाषण सुनते ही देश की समस्या खत्म हो जायेगी। यहां सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या सचमुच नरेन्द्र मोदी जैसा एक सुपर हीरो 125 करोड़ लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकता है? क्या लोकतंत्र एक जादू की छड़ी है? और क्या यह आम जनता को तथ्य और सत्य से परे भरमाने की कोशिश नहीं है?  
भारतीय लोकतंत्र का पिछला 67 वर्ष का अनुभव यह बताता है कि सुपर हीरो देश की समस्याओं का समाधान नहीं है, बल्कि उससे यहां की समस्याएं बढ़ी ही है। देश की आजादी के समय नेतृत्वकर्ताओं की भरमार थी, लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरु एक सुपर हीरो बनकर निकले। उन्होंने देश की समस्याओं को समझने के लिए चारो ओर भ्रमण कर ‘डिस्काभरी आॅफ इंडिया’ नामक पुस्तक भी लिखी और विदेशों का भ्रमण करने के बाद वहां की विकास नीतियों को यहां लागू किया। फलस्वरूप, समाज में बडे़ पैमाने पर आर्थिक असमानता बढ़ी। समाज के जिन कमजोर तबकों के पास आजीविका के संसाधन थे, वे संसाधनहीन होते गए और देश का संसाधन पूंजीपतियों के पास केन्द्रित हो गया। बावजूद इसके, एक समय ऐसा था, जब कहा जाता था कि नेहरु के बाद देश का क्या होगा? लेकिन फिर इसी सुपर हीरो के फर्मूला को आगे बढ़ाते हुए इंदिरा गांधी ने देश का नेतृत्व संभाला।
एक समय ऐसा आया, जब भारत में इंदिरा गांधी से बड़ा सुपर हीरो की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती थी! उन्होंने गरीबी हटाओ का जबर्दस्त नारा दिया, लेकिन क्या हुआ? उनके सामने बड़े-बड़े कांग्रेसी नेता मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। फलस्वरूप, यह सुपर हीरो तानाशाह बन गया, जो स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लेकिन, इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आमजनता की गोलबंदी ने उसे धाराशाही कर दिया। जेपी आंदोलन के समय ऐसी स्थिति बन गयी, मानो लग रहा था कि देश में सबकुछ बदल जायेगा। लेकिन ठीक उल्टा हुआ। आज देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट नेताओं के तार जेपी आंदोलन से जुड़े हैं। वहीं देश में भ्रष्ट एनजीओ का जाल बिछानेवाले लोग भी कौन हैं, यह किसी से छुपी है क्या? इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के रूप में फिर से देश को सुपर हीरो मिला। उन्होंने पहली बार जनता को बताया कि केन्द्र सरकार उनके लिए एक रुपये भेजती है, लेकिन उनके पास मात्र 15 पैसा ही पहुंचता है। यह जानने के बाद भी राजीव गांधी इस समस्या का समाधान नहीं निकाल सके और उनके बेटे राहुल गांधी को भी इसी बात को दुहराना पड़ रहा है। अब तो हद यह हो गई कि कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार के शिकार हुए बिना नहीं रह सकी। अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी एक भी सरकारी योजना ऐसी नहीं है, जो पूर्णरूप से सफल रही हो।
देश के अगले तथाकथित सुपर हीरो नरेन्द्र मोदी ने तो कांग्रेस भगाओ देश बचाओ, कांग्रेस भारत छोड़ो और कांग्रेस को बीमारी का जड़ तक कहा है। लेकिन, हमें यह समझना चाहिए कि कांग्रेस के अलावा देश में जनता पार्टी के नेता मोरारजी देशाई, भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सुपर हीरो के हाथों में सत्ता की चाभी दी गई, लेकिन क्या समस्याएं छुमंतर हो पायीं। जब नरेन्द्र मोदी को देश बचाने वाला एकमात्र सुपर हीरो के तौर पर पेश किया जा रहा है, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि गुजरात राज्य जहां वे पिछले 15 वर्षों से सरकार चला रहे हैं, क्या वहां अब कोई समस्या नहीं है? गुजरात के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, भूख से हुई मौत और गरीबी की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। यह सुपर हीरो वहां की मूलभूत समस्याओं का समाधान अपनी जादू की छड़ी से क्यों नहीं कर पा रहा है?
हमें यह भी समझना होगा कि आप पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से चुनाव में जो वादे किये, क्या वे पूरे कर पायेंगे? क्या वे प्रत्येक परिवार को 700 लीटर पानी मुफ्त में देंगे? क्या वे बिजली दर 70 प्रतिशत कम करेंगे? और अगर करेंगे भी, तो उसकी भरपाई के लिए कहां से अतिरिक्त धन आएगा। वैसे देखा जाये तो अपने जमाने व क्षेत्र में एनटी रामाराव, जे. जयललिता, ममता बनर्जी, प्रफुल्ल कुमार महंत, करूणानिधि, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, बीजू पटनायक और नीतीश कुमार भी सुपर हीरो के तौर पर चर्चित रहे हैं। लेकिन क्या इनके शासनकाल में उन राज्यों की समस्याओं का समाधान हो गया? भाजपा एक समय नीतीश कुमार को बिहार का सुपर हीरो बता रही थी, आज उनके खिलाफ ही सवाल उठा रही है।
यह सारा कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत के बहुसंख्यक ऐसे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं जो व्यक्तिवादी सोच पर आधारित है। सबकुछ एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घुमता रहता है। यही वजह है कि यहां नयी-नयी समस्याएं पैदा होती हैं। साथ ही, पहले की समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। हमें यह समझना चाहिए कि नेतृत्व जबतक सामुहिक नहीं होगा, सरकारी बाबू ईमानदारी से काम नहीं करेंगे, लोग अपनी जिम्मेवारी नहीं निभायेंगे। दरअसल भारतीय लोकतंत्र को एक सक्षम नेतृत्व चाहिए जो सभी को लेकर चले। आज लोकतंत्र सही मायने में जिन्दा है तो बस इसलिए, क्योंकि पिछले छः दशकों से लगातार ठगे जाने के बावजूद यहां के किसान, मजदूर, आदिवासी, दलित और गरीब इस उम्मीद में अपना वोट देते हैं कि एक दिन उनके लिए भी सूर्योदय होगा।
ग्लैडसन डुंगडुंग मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। ये आदिवासी समाज से आते हैं और पिछले कई वर्षों से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। ये विचार उनके अपने हैं।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

पिछड़ेपन का दस्तावेज है उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत

राजीव मणि
पटना सदर में कुल बारह ग्राम पंचायतें हैं। इनमें से छह पूर्वी पटना और छह पश्चिमी पटना में हैं। पश्चिमी पटना के छह पंचायतों में से एक है उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत। गंगा किनारे का क्षेत्र है यह। राजापुल से लेकर दीघा तक का बांध किनारे का इलाका।
इस ग्राम पंचायत की खास बात यह है कि पूरे पंचायत में दलित, महादलित, पिछड़ी जाति और कुछेक आदिवासी वर्ग के लोग रहते हैं। अधिकांश मजदूर वर्ग के हैं। गंगा नदी और बांध के बीच की जमीन काफी कम है। इस कारण से बस्ती काफी घनी है। गलियां तंग और गंदी!
इस ग्राम पंचायत का दर्द वर्षों पुराना है। जगह नहीं होने के कारण इस पंचायत क्षेत्र में ना तो कोई स्कूल है और ना ही काॅलेज। छात्र-छात्राएं दूसरी पंचायतों में पढ़ने जाने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं, यहां कोई स्वास्थ्य केन्द्र भी नहीं है। और हां, सामुदायिक भवन की कमी भी यहां खलती रही है। काली मंदिर के पास एक भवन बना जरूर, लेकिन कभी-कभी ही ग्राम पंचायत के कामों के लिए इस्तेमाल हो पाता है। आंगनबाड़ी केन्द्र किराये के मकान में चल रहा है।
इस पंचायत का दर्द तब और बढ़ जाता है, जब बरसाती नदी हो चुकी गंगा में लबालब पानी भर जाता है। पानी ऊपर तक आते ही सरकारी खर्च पर बांध के गेट को बंद कर दिया जाता है। और तब इस पंचायत क्षेत्र के लोग खुद को बाढ़ में फंसा महसूस करते हैं। अबतक कइयों के घर गंगा नदी में समा चुके हैं। कुछेक घर अब भी गिरे पड़े हैं।
यहां करीब चार हजार वोटर हैं। पिछड़ी जाति के 15 सौ, अति पिछड़ी जाति के दो हजार, आदिवासी 30, सामान्य 20 और शेष अन्य पिछड़ी जाति के लोग हैं।
इस पंचायत के पंचायत समिति सदस्य उमा शंकर आर्य हैं। उमा शंकर बताते हैं कि यहां समस्याओं की एक लंबी लिस्ट है। समाधान कुछ का ही हो पाता है। जमीन की कमी यहां काफी खलती है। लालू प्रसाद के समय में ही इंदिरा आवास योजना से काफी घर बनें। अब अधिकांश ढह रहे हैं। वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, लाल व पीले कार्ड के लाभान्वितों की संख्या अच्छी है। एपीएल, बीपीएल कार्ड धारक भी कई हैं। कइयों के कार्ड अभी बन रहे हैं।
गरीबी, अशिक्षा और बीमारी यहां साथ-साथ चलती है। महादलित वर्ग से सुरता, आसू, प्रहलाज, रामजी, रावण और इसी तरह के सैकड़ों नाम हैं, जो अभी बीमार हैं। आर्थिक तंगी के कारण इनका ईलाज नहीं हो पा रहा है। साथ ही राजेन्द्र, संजय, सुनिल, मुन्ना, भुवेश्वर, रामानन्द, विलट, अर्जुन सहित कइयों के घर ढहने लगे हैं।
सुधीर सिंह यहां के मुखिया हैं। लोगों की शिकायत है कि मुखिया क्षेत्र में नहीं आते। बुद्धू रविदास चमरटोली में रहते हैं। चापाकल दिखाते हुए कहते हैं कि काफी समय से यह खराब पड़ा है। इस वजह से पानी दूर से लाना पड़ता है। यहीं लोगों ने अपने पैसे से दूसरा चापाकल लगा रखा है। इससे भी गंदा पानी आता है। साथ ही कई महतो परिवारों का कहना है कि इन्हें इंदिरा आवास नहीं मिला है।

वोट बैंक की जाल में नहीं फंसेंगे बिन्द

राजीव मणि
पटना। बिहार में बिन्दों की जनसंख्या करीब 40 लाख 20 हजार है। इनमें मतदाताओं की संख्या करीब अठारह लाख है। इसके बावजूद बिन्द समाज को राजनीति में भागीदारी नहीं मिल रही है। अबतक इन्हें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। ये बातें बिहार प्रदेश बिन्द विकास महासंघ की बैठक में दो जनवरी को उठायी गयी। बैठक का आयोजन महासंघ की अध्यक्ष इन्दु देवी के कुर्जी स्थित आवास पर किया गया।
इस अवसर पर इन्दु देवी ने कहा कि बिन्द समाज को न्याय दिलाने के उद्देश्य से ही 2008 में महासंघ की स्थापना की गयी थी। आजादी के एक लंबे अरसे के बाद भी बिन्दों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हक नहीं मिला है। आज भी इस समाज के 40 प्रतिशत लोग नाव चलाकर, मछली मारकर व टोकरी-सूप बनाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। वहीं 10 प्रतिशत लोग खेती तथा शेष 50 प्रतिशत मजदूरी करते हैं।
महासंघ के सचिव राम शंकर महतो बिन्द ने कहा कि बिन्द समाज पहले बिहार प्रदेश निषाद महासंघ से जुड़ा था। इसमें कुल 12 जातियां थीं। शादी-ब्याह एक-दूसरे के साथ होने के कारण इनमें सामाजिक रिश्ता तो है, लेकिन राजनीतिक लाभ से बिन्दों को दूर रखा गया। इस कारण ही अलग से बिन्द महासंघ की नींव पड़ी। कोषाध्यक्ष शिव रतन बिन्द ने कहा कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले हम सभी पार्टियों के पास जायेंगे। जो बिन्दों को अपना प्रत्याशी बनाएगा, वोट उसी को दिया जायेगा। इस अवसर पर रामवल्ली बिन्द, महानन्द प्रसाद बिन्द, वंशराज सिंह बिन्द, राजेन्द्र महतो बिन्द, सुरेश महतो बिन्द, उमा शंकर आर्य, अशोक कुमार, मीना देवी तथा अन्य सदस्य उपस्थित थे।

‘भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता’

पटना। दि आॅल इंडिया बैकवर्ड एण्ड मायनरिटी कम्युनिटी इम्पलाईज फेडरेशन (बामसेफ) एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ का पांच दिवसीय 30वां राष्ट्रीय अधिवेशन 25 से 29 दिसम्बर तक पटना के वेटनरी काॅलेज स्थित साहेब करीब नगर में मनाया गया। इस अवसर पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष केजी बालाकृष्णन ने कहा कि भारत में सामाजिक-आर्थिक समानता नहीं है। बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास के लिए 20 हजार रुपए और आवास एवं जोतने के लिए मुफ्त जमीन देने का प्रावधान है। इसका पालन नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया में मूल निवासियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन भारत में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि यहां शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया गया है। आज अच्छे स्कूल-काॅलेज में सिर्फ पैसे वालों के बच्चे पढ़ रहे हैं। इस अवसर पर बामसेफ के संस्थापक सदस्य मास्टर मान सिंह ने कहा कि बिखरे समाज को महात्मा बुद्ध, कबीर, फूले, कर्पूरी ठाकुर, कयूम, डाॅ. अम्बेदकर जैसे महापुरुषों ने एकजुट किया। इस अभियान को हमें आगे बढ़ाना है।
बामसेफ के सह समन्यवक सुबचन राम ने कहा कि हमें बाबा साहेब की लड़ाई आगे बढ़ानी होगी। सभी के मिलजुलकर किये गये प्रयास से ही यह संभव है। अधिवेशन को न्यायमूर्ति सुभाषचंद्र राजन, डीडी कल्याणी, डीजे सोमैया, ई. एके रंजन, शिवाजी राय, साधु शरण पासवान ने भी संबोधित किया।

डाॅक्टर की लापरवाही ने बनाया निःसंतान

पटना। डाॅक्टर की लापरवाही ने रेखा देवी को निःसंतान बना दिया। महादलित रेखा देवी पटना सदर स्थित पूर्वी मैनपुरा ग्राम पंचायत अंतर्गत गोसाईटोला मुहल्ले में रहती है। वर्ष 1994 में वह पहली बार मां बनी थी।
रेखा बताती है कि जांच के लिए वह अपने पति अर्जुन मांझी के साथ पीएमसीएच गयी। वहां डाॅक्टर ने आॅपरेशन कर बच्चा निकालने की बात कही। डाॅक्टर की बात मानकर ये आॅपरेशन को तैयार हो गये। कुछ दिनों के बाद आॅपरेशन किया गया। बच्चा बच नहीं सका। आॅपरेशन के बाद रेखा को पेट में थोड़ा-थोड़ा दर्द रहने लगा। पेशाब भी बूंद-बूंद कर लगातार गिरने लगा। इससे ये लोग डर गये। इसके बाद कुर्जी होली फैमली अस्पताल में दिखाया गया। यहां भी आॅपरेशन किया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अपनी पत्नी की परेशानी देख अर्जुन उसे राजाबाजार स्थित रामवती नर्सिंग होम ले गये। यहां तीसरी बार आॅपरेशन किया गया। इस आॅपरेशन के बाद भी ना तो रेखा ठीक हो सकी और ना ही कभी मां बन सकी।
अर्जुन कहते हैं कि अबतक मैं अपनी पत्नी की ईलाज में दो लाख रुपए खर्च कर चुका हूं। अमूल ब्रेड का ठेला चलाकर चार हजार रुपए प्रतिमाह कमाता हूं। इससे ही घर का खर्च चलता है। वे कहते हैं कि अब डाॅक्टरों पर से हमलोगों का विश्वास खत्म हो चुका है। हारकर हमलोगों ने परिवार के ही एक बच्चे को गोद ले लिया है। इस बच्चे का नाम रखा है छोटू। यह अभी तीन साल का है।

विश्व को चैलेंज कर यूरोप से लौटीं महादलित छात्राएं

राजीव मणि
बिहार के महादलितों में मुसहर समुदाय सबसे ज्यादा उपेक्षित रहा है। आज भी इनकी बस्ती समाज से अलग-थलग पायी जाती है। धरातल पर ना तो सरकारी प्रयास कहीं दिखता है और ना ही समाज का किसी तरह का योगदान।
इन बातों ने सामाजिक कार्यकर्ता सुधा वर्गीज को काफी आन्दोलित किया। नतीजा यह हुआ कि 2006 में उन्होंने नारी गुंजन नामक संस्था की स्थापना की। बिहार महादलित विकास मिशन द्वारा संचालित नारी गुंजन आज मुसहर बच्चियों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर काफी अच्छा काम कर रही है।
नारी गुंजन संस्था पटना एवं सारण जिले में काम करती है। यहां मुसहर बच्चियों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। साथ ही, छात्रावास की सुविधा, भोजन, कपड़ा, सबकुछ फ्री। यहां फिलहाल आठवीं तक पढ़ाई की व्यवस्था है। पढ़ाई के साथ खेलकुद, कराटे, चित्रकला का भी नियमित क्लास चलता है।
पद्मश्री सुधा वर्गीज के प्रयास का ही नतीजा है कि संस्था की 11 छात्राएं अंतर्राष्ट्रीय वुडो काई कराटे चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए 16 दिसम्बर की शाम यूरोप गयीं। आर्मेनिया की राजधानी येरेवान में यह प्रतियोगिता 21-22 दिसम्बर को हुई। इसमें 60 देशों की छात्राएं भाग ले रही थीं। बिहार की इन 11 महादलित छात्राओं ने वहां 18 मेडल अपने नाम कर लिये। इनमें 6 गोल्ड, 9 सिल्वर और 3 ब्राॅज हैं।
सुधा वर्गीज बताती हैं कि दानापुर सेन्टर से 150 लड़कियों में से पूनम कुमारी और निक्की कुमारी का चयन हुआ था। वहीं गया सेन्टर से 110 लड़कियों में काजल कुमारी, गीता कुमारी, बेबी कुमारी, ललिता कुमारी, निक्की कुमारी, गुडि़या कुमारी - प्रथम, गुडि़या कुमारी - द्वितीय, अंजु कुमारी और मधु कुमारी का चयन हो पाया था। इन लड़कियों के साथ सुधा वर्गीज और प्रशिक्षक सेन्सई अश्वनी राज गये थे। इन लड़कियों को विशेष प्रशिक्षण कोच शशि सुमन ने दिया था।
अश्वनी राज कहते हैं कि लड़कियों को पिछले कई माह से कड़ा प्रशिक्षण दिया जा रहा था। खास बात यह है कि सभी लड़कियां व्हाइट बेल्ट हैं और यूरोप में ब्लैक बेल्ट लड़कियों से टक्कर लेकर लौटी हैं। राज बताते हैं कि 2011 में भी यहां की सात लड़कियां अंतर्राष्ट्रीय कराटे चैंपियनशिप में भाग लेने जापान गयी थीं। वहां इन लड़कियों ने कई मेडल जीते थे।
संस्था के गया प्रभारी रंजन बताते हैं कि आर्मेनिया जाने वाली लड़कियां आजतक विदेश तो क्या, नजदीक से प्लेन तक नहीं देखी थीं। आज इनका सपना सच हो गया। इसे लेकर इनमें काफी उत्साह है। विदेश दौरे को लेकर सभी के स्वास्थ्य और भोजन का पूरा ध्यान रखा गया। पूरी टीम मुंबई होते हुए येरेवान, आर्मेनिया पहुंची और अपने देश का नाम रौशन कर लौटी हैं।
पदक जितने वाली छात्राओं के नाम :
गीता कुमारी         ः 2 गोल्ड
निक्की कुमारी     ः 1 गोल्ड
ललिता कुमारी     ः 1 गोल्ड, 1 ब्राॅज
मधु कुमारी         ः 1 गोल्ड, 1 सिल्वर
अंजु कुमारी         ः 1 गोल्ड, 1 ब्राॅज
बेबी कुमारी         ः 1 सिल्वर
गुडि़या कुमारी     ः 2 सिल्वर
गुडि़या कुमारी द्वितीय : 1 सिल्वर
काजल कुमारी     ः 2 सिल्वर
निक्की कुमारी     ः 1 सिल्वर, 1 ब्राॅज
पुनम कुमारी  द्वितीय : 1 सिल्वर।

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

सूबे की जनता को भा रहा ‘आप’ का आना

  • वोट के लिए कुछ भी करेगा
  • गहराने लगी अल्पसंख्यकों व पिछड़ों की राजनीति
 राजीव मणि
मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं मेरी मरजी! जी हां, पहले राजनीति में कुछ ऐसी ही बातें देखने को मिलती थीं। लोकसभा चुनाव में जनता के पास ज्यादा विकल्प नहीं था। तब ना तो ‘नोटा’ था और ना ही ‘आप’ का सोंटा। घुमाफिरा कर दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही जनता फंसी रहती थी। लेकिन, अब मामला पहले जैसा नहीं रहा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की आप पार्टी ने जिस तरह अपनी ताकत साबित की है, उससे बड़े-बड़े दिग्गजों को चक्कर आने लगे हैं। दिल्ली में राहूल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि उन्होंने आप को कम करके आंका। आप से कांग्रेस को बहुत कुछ सीखना है।
बिहार में तो कांग्रेस ने सीखना भी शुरू कर दिया है। आजतक जो नहीं किया, वोट के लिए कुछ भी करेगा की तर्ज पर काम भी शुरू कर दिया है। अबतक कई बार राजधानी पटना में कांग्रेस की तरफ से सफाई अभियान चलाया गया। हाथ में झाड़ू लेकर सड़क की सफाई की गयी। ट्रैक्टर पर झंडा-बैनर लगा सड़क किनारे से कचरा हटाया गया।
इधर, लालू जी भी अपनी ताकत दिखाने में लगे हैं। भाजपा, जदयू, आप, सभी को भला-बुरा कह रहे हैं। रामविलास पासवान यदा-कदा कुछ बोल रहे हैं। भाजपा लगातार जदयू पर वार करती दिख रही है। किसी भी मौके को चूकना नहीं चाहती। लेकिन, अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के भाजपा सांसद व सिने अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा ने यह कहकर अपनी ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है कि दिल्ली के चुनाव परिणाम तमाम राजनीतिक दलों के लिए सबक है। ‘आप’ ने अपने आप को कई राजनीतिक दलों का ‘बाप’ साबित कर दिया है। गाड़ी, बंगले जैसे मुद्दों पर आप को घेरने के सवाल पर उन्होंने साफ-साफ कह डाला कि केजरीवाल की सफलता को ऐसे मुद्दों के आधार पर चुनौती देना सच्चाई से मुंह मोड़ना है।
इन सब के बीच जदयू भी लगातार खुद को श्रेष्ठ साबित करने में लगी है। जदयू ने आठ साल में क्या कुछ किया, बताया जा रहा है। नयी-नयी घोषणाएं की जा रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोस चुनाव में किसी दल से गठबंधन की संभावना से साफ इंकार किया है। उन्होंने कहा है कि विशेष राज्य का दर्जा अब राजनीतिक एजेंडा होगा।
इधर, आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान जोरो पर है। अबतक ना सिर्फ लाखों लोग ‘आप’ से जुड़ चुके हैं, बल्कि श्रीकृष्णा नगर के रोड न. 21 में आम आदमी पार्टी ने अपना कार्यालय भी खोला है। आप के राज्य प्रभारी सोमनाथ त्रिपाठी व पार्टी के वरिष्ठ नेता डाॅ. एएन सिंह ने बताया कि इसी कार्यालय से प्रदेश में पार्टी की तमाम गतिविधियों का संचालन किया जाएगा। इतना ही नहीं, गांवों में भी आप का प्रभाव देखा जा रहा है। प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का बोर्ड लग चुका है। वहीं नगरों में वार्ड स्तर तक पार्टी को मजबूत बनाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने का अभियान चल रहा है।
खास बात यह कि दलित, महादलित, अल्पसंख्यक व सभी पिछड़ी जातियों पर सबकी नजर है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, यही वर्ग तो चुनाव के दिन सबसे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है। और इन वोटरों की संख्या भी अच्छी-खासी है।
सबसे पहले सूबे में कुल वोटरों की संख्या देखें, तो एक आकलन के अनुसार, बिहार में 94.3 लाख नए वोटर आगामी लोकसभा चुनाव में अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे। यह बिहार में कुल वोटरों की संख्या का 1.63 फीसदी है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुल वोटरों का 0.79 फीसदी पुरुष और 0.63 फीसदी महिला वोटर हैं। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 0.11 फीसदी महिला और 0.1 फीसदी पुरुष वोटर हैं।
जनगणना कार्य निदेशालय के संयुक्त निदेशक एके सक्सेना ने पिछले दिनों मगध महिला काॅलेज में आयोजित कार्यशाला में एक आंकड़ा प्रस्तुत किया। बिहार में 2011 की जनगणना के अनुसार, 88 शहरों में झुग्गियां पायी गयीं। इनमें रहने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 12,37,682 हो गयी है। वहीं 2001 की जनगणना के अनुसार, 46 शहरों में स्लम यानी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की आबादी 5,31,481 थी। यह तो बात हुई दलित-महादलितों की झुग्गियों की, अब कुछ वायदें भी देख लें।
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली खां ने कहा है कि राज्य सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली तीन करोड़ महिलाओं को चरणबद्ध तरीके से टेबलेट देगी। यह लाभ उन महिलाओं को मिलेगा, जिनकी बच्चियां पढ़ती हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों को सेन्टर बनाकर ऐसी महिलाओं को कम्प्यूटर-टेबलेट चलाने का प्रशिक्षण दिया जायेगा। संक्षिप्त परीक्षा भी होगी। इससे संबंधित करीब 7 हजार करोड़ की योजना को जल्द अंतिम रूप दिया जायेगा। राज्य योजना से इसे संचालित करने की तैयारी है। यह घोषणा तो बस एक नमूना है, जो चुनाव के वक्त की गयी।
कुल मिलाकर मामला चुनावी है। महंगाई और जनता की आम समस्याओं की बात तो कोई कर ही नहीं रहा है। बिहार में अपराधी फिर से सिर उठाने लगे हैं। बिजली, पानी, पेट्रोल, डीजल सब गायब है। स्वास्थ्य का बुरा हाल है। गरीबों की थाली अब भी नहीं भर रही है।
हां, सोशल नेटवर्किंग पर जमकर कसरत करते लोग दिख रहे हैं। चर्चा है कि जिस राजनेता का आजतक फेसबुक या ट्वीटर से कुछ लेना-देना नहीं रहा, जो कम्प्यूटर और इन्टरनेट का प्रयोग करना भी अच्छी तरह नहीं जानते, वे भी दूसरों की मदद से फेसबुक और ट्वीटर पर अपना एकाउन्ट खुलवा रहे हैं। कई दिग्गजों ने तो इस काम के लिए आदमी तक बहाल कर रखे हैं। इन सब के बीच फर्जी एकाउन्ट भी खूब रंग जमा रहे हैं। विभिन्न तरह के बयान, एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल और आंकड़ेबाजी जमकर हो रहे हैं। ऐसे में इन आंकड़ों और भाषणों से जनता कितना प्रभावित होगी, यह तो वक्त ही बताएगा।
वैसे चलते-चलते एक बात बता देना जरूरी समझता हूं। सभी पार्टी के कार्यकर्ता जाग चुके हैं। चैराहा-नुक्कड़ पर जमा हो योजना बनाते दिख रहे हैं कि मुहल्ले में कहां काम हुआ, कहां नहीं हुआ। इनकी रुचि इसमें ज्यादा है कि कौन-कौन सा काम करवाना है। फंड कहां से और कैसे मिले। किसे काम दिया जाये। अपने आदमियों को गोलबंद करने में लगे हैं। आखिर नफा-नुकसान की बात तो ये कार्यकर्ता भी अच्छी तरह समझते हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व में बहती गंगा में हाथ धोने का मौका जो है।