COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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बुधवार, 17 दिसंबर 2014

फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं आदिम लोग

संक्षिप्त खबर
गया : गया जिले के फतेहपुर प्रखंड स्थित गुरपा जंगल में आदिम जाति के लोग रहते हैं। प्राकृतिक संसाधन जल, जंगल और जमीन के सहारे उनका जीवन गुजरता है। पहाड़ से गिरने वाला पानी पीते हैं। ये गुरपा जंगल में रहते और वनभूमि की जमीन पर खेती करते हैं। 
ये लोग पहाड़ से गिरने वाले पानी को गड्ढे में जमा करते हैं। बाद में इस पानी का व्यवहार घरेलू कार्य और पीने के लिए करते हैं। एक एनजीओ के कार्यकर्ता शत्रुघ्न कुमार ने पहाड़ के इस पानी की जांच करवायी, प्रचुर मात्रा में फ्लोराइड मिला। इस संदर्भ में फतेहपुर अंचल के अंचलाधिकारी शैलेष कच्छप ने कहा कि मैं इस उपेक्षित गांव से वाकिफ हूं। यहां पर एनजीओ वाले कार्यशील हैं। अभी बीडीओ साहब ने चापाकल लगवाया है। लोगों का परिचय पत्र बना दिया है। लोगों को स्वरोजगार के तहत बकरी दी गयी है। उन्होंने कहा कि आदिम जातियों को वनाधिकार 2006 कानून के तहत वनभूमि पर अधिकार दिलवाया जाएगा। इन लोगों द्वारा प्रेषित आवेदनों पर विचार होगा और जल्द से जल्द वनाधिकार कानून से लाभ दिलवाया जाएगा।
सीओ शैलेष कच्छप कहते हैं कि आवासीय भूमिहीनों को सरकारी मापदंड के अनुसार जमीन दी जाएगी। जिन आवासीय भूमिहीनों को जमीन मिली, मगर कब्जा नहीं हो सका, उनको जमीन पर कब्जा दिलवाया जाएगा। वासगीत पर्चा का वितरण किया जाएगा। इसमें एनजीओ का सहयोग लिया जा रहा है। जिनको वासगीत पर्चा नहीं मिला है, ऐसे लोगों की सूची एनजीओ के लोग बना रहे हैं। हर हाल में मार्च, 2015 तक वासगीत पर्चा निर्गत कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव के दिशा निर्देशानुसार आॅपरेशन बसेरा को सफल बनाना है। इस बाबत रणनीति बना ली गयी है।

आंदोलन मंच ने किया अनशन, रखीं कई मांगें

पटना : मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी प्रखंड के लोगों ने आंदोलन मंच का निर्माण किया है। और इसी के बैनर तले लोगों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर गांधी मैदान स्थित कारगिल चैक पर अनशन किया। अनशन कर रहे लोगों का कहना था कि सूबे में सरकारी योजनाएं तो कई बनीं, पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है। लोगों ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से तुरंत सुधार की मांग की है। अपनी विभिन्न मांगों को लोगों ने इस प्रकार बताया -
  • खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मिलने वाले राशन कार्ड से बड़ी संख्या में गरीब वंचित हैं। वहीं जिन्हें राशन कार्ड प्राप्त हो चुका है, वे राशन से वंचित हैं। साथ ही, अयोग्य लोगों के नाम इस योजना में शामिल हो गये हंै। अतः पंचायत स्तर पर राशन प्राप्त करने लायक परिवारों को चिन्हित करने, उन्हें राशन कार्ड देकर राशन आवंटन करने एवं उक्त योजना में शामिल अयोग्य परिवारों को योजना से अलग करने की व्यवस्था हो। 
  • घर-घर शौचालय का निर्माण करना है। परन्तु, उक्त योजना का प्रचार-प्रसार जिस रूप में किया जा रहा है, ठीक नहीं है। इसकी प्रक्रिया जटिल एवं आवंटित राशि लागत राशि से काफी कम है। इस कारण उक्त योजना के क्रियान्वयन में काफी कठिनाई हो रही है। अतः क्षेत्रवार शौचालय निर्माण की लागत राशि की समीक्षा कर प्रत्येक परिवार को कम से कम 25000 रुपए उक्त योजना के तहत दी जाए एवं इसकी प्रक्रिया सरल एवं सुलभ बनाई जाए। योजना क्रियान्वयन हेतु एजेंसी की जवाबदेही तय हो।
  • आज भी प्रदेश के गरीब बीपीएल कार्ड से महरूम हैं। वे सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हो जा रहे हैं। इस समय सभी तरह के कल्याण व विकास कार्यों में बीपीएल कार्ड की मांग की जाती है, अतः वंचित गरीबों हेतु एक नीति बनाकर उन्हें इंदिरा आवास योजना, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन अथवा अन्य योजनाओं से लाभ दिलाने की व्यवस्था हो।
  • शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के नाम पर लगने वाले चापाकल योजना में काफी भ्रष्टाचार है। सच्चाई यह है कि पीएचईडी विभाग मुफ्त में सरकारी वेतन ले रहा है। इसका कुप्रभाव अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति पर पड़ रहा है। इस कारण समाज बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। अतः गहराई वाले चापाकल लगाने की व्यवस्था हो। साथ ही, गुणवत्ता हेतु विभाग की जवाबदेही तय हो। 
  • वर्तमान में ग्रामीण सड़कों के निर्माण, जीर्णोद्धार, पक्कीकरण से जुड़े कार्य में सांसद, विधायक, विधान पार्षद स्तर के जनप्रतिनिधियों की भूमिका बनाई गयी है। पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिला परिषद सदस्य को विकास हेतु कोई अधिकार नहीं दिया गया है। यह उचित नहीं है। इस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। 
  • मनरेगा को सशक्त बनाने, इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार हटाने हेतु उक्त अधिनियम को कृषि एवं किसान से जोड़ने पर किसान एवं कृषि मजदूर के साथ-साथ राज्य एवं राष्ट्र के समृद्धि की भी संभावना है। अतः अधिनियम के तहत कृषि मजदूर किसान की भूमि पर कृषि कार्य करें। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े-बड़े भू-खंड हैं। इसे चैर कहा जाता है। जल-जमाव होने के कारण कृषि कार्य से वंचित है। अतः वैसे भू-स्थलों को चिन्हित कर जल निकास कराते हुए सरकारी स्तर से सिंचाई हेतु बिजली आधारित नलकूप प्रदान करने की नीति लागू हो।
  • प्रदेश में वित्तरहित शिक्षा नीति के कुप्रभाव से पीडि़त लगभग 300 बालिका विद्यालय सरकारीकरण से वंचित हैं। जबकि विद्यालयों में मैट्रिक स्तर की परीक्षा आयोजित करने की अनुमति प्राप्त है। यह स्थिति शर्मनाक है। अतः महिला शिक्षा को मजबूत एवं जागरूक बनाने हेतु सभी वैसे बालिका विद्यालय, जहां मैट्रिक की परीक्षा आयोजित होती है, उसे सरकारीकरण किया जाए।
  • बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग संघ, खादी आयोग, जिला खादी संघ जैसी संस्थाओं की हालत दयनीय है। इसमें सरकारी हस्तक्षेप कर पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इस संबंध में एक नीति बनाकर उसे क्रियान्वित किया जाए। 
  • जिला मुजफ्फरपुर के प्रखंड मुशहरी के प्रखंड मुख्यालय के निकट स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का भवन अति जर्जर है। उक्त केन्द्र की क्षमता मात्र 6 बेडो की है। अतः उक्त केन्द्र का भवन नया बनाते हुए इसे अस्पताल का रूप देकर इसकी क्षमता बढ़ाई जाए। 
  • जिले के प्रखंड मुशहरी के ग्राम पंचायत डुमरी स्थित बुढ़ी गंडक नदी, बुधनगरा घाट पर वर्ष 1993 में नाव दुर्घटना हुई थी, जिसमें 17 लोग मर गए थे। तब लालू प्रसाद एवं रमई राम ने पुल निर्माण कराने की घोषणा की थी, परन्तु पुल नहीं बन सका। अतः उक्त स्थल पर पुल का निर्माण हो। 
  • दरभंगा, समस्तीपुर, बेगूसराय को जोड़ने वाली मुजफ्फरपुर पूसा पथ की लंबाई लगभग 40 किलोमीटर है। इससे प्रतिदिन लाखों व्यक्तियों, वाहनों का आना-जाना होता है। परन्तु, सड़क एक लेन होने के कारण सदैव दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। अतः इस पथ का दोहरीकरण किया जाये। 
  • बिहार सरकार में लंबे समय से रमई राम मंत्री रहे हैं। पद पर रहते हुए उन्होंने काफी संपत्ति अर्जित की है। इनके रिश्तेदारों के नाम से भी काफी संपत्ति है। अतः 1990 से अबतक रमई राम, इनकी पुत्री गीता कुमारी एवं दामाद विजय कुमार द्वारा अर्जित संपत्ति की जांच कर उसका प्रकाशन हो।
  • मंत्री रमई राम ने मजदूर आनंदू पासवान के साथ अमानवीय व्यवहार किया। यह लोकतंत्र के लिए कलंक एवं मानव अधिकारों का उल्लंघन है। अतः आनंदू पासवान के बयान के आधार पर सचिवालय थाना, पटना में प्राथमिकी दर्ज कराकर मंत्री रमई राम के विरूद्ध कार्रवाई हो।
  • सूबे में विकास कार्य में दलाल एवं बिचौलियों का राज खत्म हो। 

इस संबंध में मुजफ्फरपुर जिला परिषद के सदस्य व अनशनकारी मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि अनशनकारी मांग पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें उपेन्द्र तिवारी, चन्द्रकेश चैधरी, मो. तैयब अंसारी और रामसकल सिंह हैं। अन्ना आंदोलन के को-आॅडिनेटर डाॅ. रत्नेश चैधरी और भाजपा नेत्री सह पूर्व प्रत्याशी बोचहां विधान सभा सुरक्षित आदि ने भी जनहित के समर्थन में हस्ताक्षर किया है।

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

गोविन्दाचार्य का आदिवासी अधिकार पदयात्रा को समर्थन

न्यूज@ई-मेल
कवर्धा : राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविन्दाचार्य ने आदिवासी अधिकार पदयात्रा को अपना समर्थन दिया है। ग्राम सिघांरी में जनसमूह को संबोधित करते हुए गोविन्दाचार्य ने कहा कि अन्याय के खिलाफ हमसब को एकजूट होकर लड़ना और जीतना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी बेहतर जिन्दगी जी सके। पूरे समाज को न्याय मिले और सभी लोग सम्मान से शांतिपूर्वक जीवन जी सके। एकता परिषद के तत्वावधान में आयोजित व राजगोपाल पी.व्ही. के नेतृत्व में चल रहे न्याय, शांति और सम्मान के लिए आदिवासी अधिकार पदयात्रा को समर्थन देने गोविन्दाचार्य यहां आये थे। उन्होंने कहा कि यहां की खनिज सम्पदा का मनमाना दोहन कर पूंजीपति खूब धन बटोर रहे हैं। यहां के भोले-भाले निवासियों के हिस्से धूल, मिट्टी, प्रदूषण व बीमारियां हाथ लग रही है। उन्होंने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि सभा के दौरान जो समस्याएं ग्रामीणों ने रखी हैं, उन्हें केन्द्र एवं राज्य सरकार के सामने लाया जायेगा। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन समस्याओं पर ध्यान देगी। 
इस अवसर पर पूर्व विधायक वीरेन्द्र पांडे ने कहा कि संवाद से समझ बनती है और समझ से हर समस्या का हल निकलता है। आदिवासियों के प्रति अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज तीन लोगों को सरकार मानता है - वन विभाग, पटवारी और थानेदार। इन्हीं विभाग को वे अपना माई-बाप या सरकार मानते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश ये तीनों विभाग आदिवासियों के शोषण करने में लगे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी सबकुछ सहन कर लेता है, लेकिन अपने जीवन में हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करता। सरकार पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि जब से सरकार ने लोगों को सस्ता अनाज देना प्रारंभ किया है, प्रदेश में नशाखोरी लगातार बढ़ती जा रही है। यह एक सोची समझी साजिश है। इस अन्याय के खिलाफ केवल आदिवासी समाज को ही नहीं, पूरे समाज को लड़ना होगा। 
मध्यप्रदेश के डिण्डोरी, मण्डला, बालाघाट से यात्रा में चल रहे नान्हू बैगा, शोभा बहन, समलियाबाई, अनिता, चन्द्रकांता एवं छतीसगढ़ के शिकारी बैगा, कोरबा क्षेत्र से आये पाण्डों समाज के मुखिया अहिबरन व ग्राम सिघांरी के मुखिया ने वन भूमि अधिकार, नेशनल पार्क विस्तार, कारीडोर परियोजना, बांध, वन्य जीव संरक्षण और खदानों के नाम पर हो रहे विस्थापन एवं विकास प्राधिकरण में हो रही धांधली व अनियमितताओं पर अपनी-अपनी बात रखी। 
सभा में उपस्थित समस्त पदयात्री एवं ग्रामीणों का आह्वान करते हुए एकता परिषद, छतीसगढ़ के संयोजक प्रशांत कुमार ने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर वंचित समाज को हक और अधिकार दिलाने की कड़ी में निकली इस पदयात्रा का अंतिम पड़ाव कवर्धा है। इसी क्रम में 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस के दिन गांवों से प्राप्त समस्याओं पर शासन-प्रशासन के साथ संवाद स्थापित किया गया। उपरोक्त बातों की जानकारी छतीसगढ़ के मीडिया प्रभारी पीलाराम पटेल ने दी है।

नौ सूत्री मांगों को लेकर प्रदर्शन

पटना : सरकार 38 जिले के प्रखंडों में कार्यरत महिला पर्यवेक्षिका का शोषण कर रही है। ये साढ़े तीन साल से कार्यरत हैं। बतौर मानदेय 12 हजार रुपए मिलते हैं। एक महिला पर्यवेक्षिका को 25 से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्र का पर्यवेक्षण करना पड़ता है। बिहार राज्य आईसीडीएस महिला पर्यवेक्षिका एवं कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष विन्देश्वर सिंह और महासचिव पार्वती देवी ने अनशन स्थल पर पिछले दिनों यह बातें कहीं। वहीं मोकामा की रंजू कुमारी कहती है कि उनके जिम्मे 72 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। आंगनबाड़ी केन्द्र के पर्यवेक्षण के एवज में 1000 रुपए टीए दिया जाता है। इस टीए की राशि से अधिक ही खर्च हो जाता है। 
अपनी दुधमुंही बच्ची साक्षी को संजू देवी साथ लायी हैं। अनशन स्थल पर मां से साक्षी दूध की मांग करती है। एक ओर मां संजू देवी बच्ची को दूध पिलाती है, दूसरी ओर अपनी 9 सूत्री मांगों के लिए आवाज बुलंद करती है। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समक्ष अपनी मांगों को लेकर 60 घंटे का अनशन शुरू किया गया। साथ ही, 4 दिसम्बर को प्रदर्शन किया गया। 
इनकी मांगें हैं - अनुबंध पर कार्यरत महिला पर्यवेक्षिका को बिना शर्त सरकारी कर्मचारी का दर्जा देते हुए नियमित किया जाए। स्थायी महिला पर्यवेक्षिका के वेतन के समान मानदेय राशि दी जाए। परीक्षा के नाम पर हटाने की साजिश पर रोक लगे। पांच लाख रुपए का जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा और स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाए। पेंशन ग्रेच्युटी, अनुकंपा एवं सभी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। चिकित्सा सुविधा, विशेषावकाश एवं अर्जित अवकाश दी जाए। अतिरिक्त कार्य हेतु अतिरिक्त भत्ता तथा आईसीडीएस के अलावा अन्य कार्य न लिया जाए। लंबित मानदेय का शीघ्र भुगतान किया जाए और चयन रद्द - रिकवरी पर मिलने वाले अंक के आधार पर अवधि विस्तार सिस्टम बनाया जाए।

आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं ने किया प्रदर्शन

पटना : एटक सहित सभी श्रमिक संगठनों द्वारा राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध दिवस के अवसर पर बिहार राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन के बैनर तले 14 सूत्री मांगों को लेकर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समक्ष प्रदर्शन किया गया। ज्ञात हो कि सूबे में हरेक आंगनबाड़ी केन्द्र में एक सेविका और एक सहायिका कार्यरत है। इन दोनों की संख्या करीब एक लाख 95 हजार है। सरकार द्वारा सेविका को 3 हजार और सहायिका को 15 सौ रुपए मिलते हैं। आंगनबाड़ी केन्द्र के अलावा इन्हें पल्स पोलियो अभियान, आरएसबीवाई, कुपोषण अभियान आदि में भी सहयोग देना होता है। 
औरंगाबाद की सेविका सविता यादव का कहना है कि हमलोगों को तरह-तरह के अभियानों में जोड़ा गया है। मगर, हमारी भुखमरी दूर नहीं की जा रही है। समस्याओं को लेकर 38 जिलों की आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका-सहायिकाएं गांधी मैदान में जुटीं। 
बिहार राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन की अध्यक्ष उषा सहनी और महासचिव कुमार विन्देश्वर सिंह ने 14 सूत्री मांगों के बारे में बताया कि आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देकर सेविका को 3 श्रेणी और सहायिका को 4 श्रेणी के कर्मचारी के रूप में समायोजित किया जाय। जबतक सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता, सेविका को 15 हजार और सहायिका को 10 हजार रुपए मानदेय राशि दी जाय। काम का समय निर्धारित कर आठ घंटे किया जाय। गोवा एवं अन्य राज्य सरकारों की तरह बिहार सरकार द्वारा भी सेविका को 4200 और सहायिका को 2100 रुपए अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाय। श्रम कानूनों में संशोधन, निजीकरण, उदारीकरण, ठेका प्रथा, मानदेय प्रथा पर रोक लगायी जाय। सेविका को सुपरवाईजर एवं सहायिका को सेविका के पद पर पदोन्नति की व्यवस्था हो तथा उम्र सीमा समाप्त की जाय। सेविका को पांच लाख एवं सहायिका को तीन लाख की बीमा सुविधा दी जाय तथा स्वीकृत बीमा का क्रियान्वयन सुनिश्चित की जाय। चयन रद्द करना बंद हो तथा न्यायिक प्रक्रिया सुलभ बनायी जाय। आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका की बर्खास्तगी वापस ली जाय एवं चल रही बर्खास्तगी की प्रक्रिया पर रोक लगे। सेवानिवृत, पेंशन, ग्रेच्यूटी और प्रोविडेंड फंड सहित सभी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करायी जाय। स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधा एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की सुविधा मिले। सेवाकाल में मृत्यु होने पर योग्यतानुसार अनुकंपा के आधार पर उनके आश्रितों की बहाली हो। तमाम आंगनबाड़ी केन्द्रों के भवन निर्माण शीघ्र हों तथा सभी आधारभूत सुविधाएं शामिल हों। प्रत्येक गांव, मुहल्ला, कस्बा में आंगनबाड़ी केन्द्र खोला जाय। आईसीडीएस का किसी तरह का निजीकरण न हो और गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों व कारपोरेटों को सौंपने की साजिश पर रोक लगे।

मनायी जाने लगी प्रभु येसु के आगमन की खुशी

संक्षिप्त खबर
पटना : बालक येसु का जन्म 24 दिसम्बर की मध्यरात्रि को एक गौशाला में साधारण परिवार के घर हुआ था। माता मरियम के गर्भ से बालक येसु का जन्म होने पर उसे कपड़े में लपेटकर चरणी में सुला दिया जाएगा। इस वर्ष भी इसी समय का इंतजार है। घर-घर जाकर क्रिसमस साॅग गाने का सिलसिला शुरू हो गया है। गीत मंडली की टोली में किसी बच्चे के हाथ में बालक येसु की प्रतिमा होती है। जब गीत मंडली ईसाई समुदाय के घर पहुंचती है, घर के लोग बालक येसु का स्वागत करते हैं। इस अवसर पर गीत मंडली भक्ति गीत गाती है। आया येसु राजा कि सब मिलकर गाओ खुशियां मनाओ.... जगत का राज दुलारा आया....। खुशी मनाओ रे जन्मा येसु राजा-राजा... जन्मा येसु राजा...। फिर एक से दूसरे घर की ओर प्रस्थान करने के पहले घर वालों को हैप्पी क्रिसमस और हैप्पी न्यू ईयर की अग्रिम शुभकामनाएं दी जाती है।
ज्ञात हो कि बालक येसु के इस इंतजार के चार रविवार को आगमन का रविवार कहते हैं। आजकल ईसाई समुदाय आगमन काल से गुजर रहा है। रविवार 30 नवम्बर कोे प्रथम, 7 दिसम्बर को द्वितीय, 14 दिसम्बर को तृतीय और 21 दिसम्बर को चतुर्थ है। 24 दिसम्बर को छोटा पर्व और 25 दिसम्बर को बड़ा पर्व है। बालक येसु के जन्म के साथ ही बड़ा दिन शुरू हो जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न गिरजाघरों में 24 दिसम्बर की मध्यरात्रि और 25 दिसम्बर को प्रातःकाल मिस्सा होगा। इस मिस्सा पूजा में शिरकत करने लोग जाते हैं। 
आगमन के दूसरे रविवार से गीत मंडली द्वारा भक्ति गीत का गायन शुरू हो चुका है। यह सिलसिला सप्ताह भर से अधिक चलेगा। वहीं 13 दिसम्बर से पटना स्थित कुर्जी पल्ली में भक्ति गीत का आयोजन होगा।

चर्च में लगी आग पर दुख जताया

दिल्ली : पिछले दिनों संत सेबेस्टियन चर्च में आग लगने की घटना हुई। बताया जाता है कि चर्च से किरासन तेल की महक आ रही थी। यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आग लगने की घटना राजनीतिक लाभ लेने या फिर शाॅट सर्किट होने के कारण हुई है। चर्च के अंदर रखे सामान जलकर राख हो गये। लेकिन, यह किसी चमत्कार सा ही रहा कि ‘परमप्रसाद’ और रखने वाले स्थान का बाल भी बाका नहीं हुआ। यहां के फादर कहते हैं कि यह सचमुच चत्मकार ही है। 
संत सेवेस्टियन चर्च से जुड़ी पल्ली में करीब छह सौ परिवार रहते हैं। दिल्ली के फादर डोमनिक का कहना है कि क्रिसमस पर्व का काउंटडाउन आरंभ हो गया है। आखिर लोग त्योहारी मिस्सा पूजा में भाग लेने कहां जाएंगे? चर्च बनाने में समय और धनराशि की आवश्यकता पड़ती है। कैसे संभव हो सकेगा ? पटना से सामाजिक कार्यकर्ता व कांग्रेस नेता सिसिल साह ने संत सेवेस्टियन चर्च में लगी आग पर दुःख व्यक्त किया है। वे कहते हैं कि अभी एक चर्च में आग लगी है, यह सिलसिला न बने। साथ ही इस घटना की जांच होनी चाहिए। दोषी को सख्त सजा मिलनी चाहिए। 

विकलांगों ने रखी 21 सूत्री मांग

पटना : पिछले दिनों विभिन्न जिलों के विकलांगों ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समक्ष प्रदर्शन किया। बिहार विकलांग अधिकार मंच के बैनर तले 21 सूत्री मांगें रखी गईं। ये हैं - राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा, एवं विधान परिषद में विकलांगों के लिए सीट आरक्षित हो। साथ ही, पंचायत एवं वार्डों के चुनाव में भी आरक्षण की व्यवस्था हो। पीडब्ल्यूडी 1995 के संशोधन कानून विकलांग अधिकार अधिनियम, लोकसभा से अविलम्ब पारित कर देश स्तर पर उसे लागू किया जाय। देश स्तर पर राष्ट्रीय विकलांग आयोग एवं राज्यों में राज्य विकलांग आयोग का स्वतंत्र प्रभार के रूप में गठन हो। दिल्ली एवं अन्य राज्यों के आधार पर सभी राज्यों में विकलांग मंत्रालय एवं विभाग का गठन किया जाए। देश के सभी रेलवे स्टेशनों पर विकलांग बोगी के सामने बोर्ड लगाया जाए तथा रेल के बीच में ही विकलांग डब्बा लगे। यह जानकारी संघ के सचिव राकेश कुमार ने दी।
संघ की मांग है कि देश एवं राज्य स्तर पर विकलांगों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं की जानकारी रेडियो, अखबार, टीवी, आदि पर हो। देश के सभी श्रेणी की नौकरियों में विकलांगों की क्षमता के अनुसार आरक्षण का प्रावधान हो। राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर मिलने वाली विकलांग पेंशन को बैंक से जोड़ दिया जाए। देश के बेरोजगार विकलांगों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। साथ ही अन्य कई मांगें संघ ने रखी हैं।

गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

गया में 148 महिला कर्मचारियों की छंटनी

  • मामला कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का
  • चयन समिति की गलती का खामियाजा पड़ रहा है भुगतना
  • सीएम, पूर्व सीएम व अधिकारियों ने नहीं सुनी फरियाद
  • 17 नवम्बर से महिलाएं कर रही हैं अनशन 

पिछले दिनों 
आलोक कुमार 
गया : कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के 148 कर्मचारियों की छंटनी पिछले दिनों कर दी गयी है। इनका चयन चार सदस्यीय टीम द्वारा किया गया था। चयन 27 सितम्बर, 2007 को हुआ था, जिनमें 45 शिक्षक, 44 रसोइया, 22 आदेशपाल, 20 रात्रिप्रहरी और 17 वार्डेन थे। दुर्भाग्य से चयन समिति के सदस्य अपना हस्ताक्षर करना भूल गए। अब इसे ही आधार बनाकर 1 जनवरी, 2013 को नियोजन रद्द कर दिया गया है। इस आदेश पर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रारम्भिक शिक्षा एवं सर्वशिक्षा अभियान, गया का हस्ताक्षर है। विडम्बना यह है कि उक्त पदाधिकारी ने 5 नवम्बर, 2014 को हस्ताक्षर किया है, मगर छंटनीग्रस्त कर्मियों को इसकी सूचना नहीं दी गयी। 
छंटनीग्रस्त कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्य परियोजना निदेशक, जिले के शिक्षा पदाधिकारी, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, जिलाधिकारी आदि के पास अपनी फरियाद की है। जब इसपर ध्यान नहीं दिया गया, तो लोग राजधानी में धरना व प्रदर्शन करने को बाध्य हुए। अब 17 नवम्बर, 2014 से पटना में सामूहिक अनशन किया जा रहा है। प्रत्येक दिन 10 महिलाकर्मी सामूहिक अनशन करती हैं। 
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय संघ की सचिव कुमारी विद्यावती सिंह कहती है कि कार्यालय जिला शिक्षा पदाधिकारी, बिहार शिक्षा परियोजना, गया द्वारा आदेश निर्गत किया गया है। इसमें उल्लेख किया गया है कि गया में कार्यरत कर्मियों का नियोजन 27 सितम्बर, 2007 के बाद किया गया था, जो जांच में अवैध पाया गया। साथ ही, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रारंभिक शिक्षा एवं सर्वशिक्षा अभियान, गया के पत्रांक 03, दिनांक 04 जनवरी, 2013 के द्वारा नियोजन रद्द कर दिया गया। श्रीमती सिंह ने कहा कि तत्पश्चात जिला शिक्षा पदाधिकारी, गया के ज्ञापांक 100, दिनांक 24 जनवरी, 2013 द्वारा उक्त पत्र (पत्रांक 03, दिनांक 04 जनवरी) को विलोपित कर दिया गया। पुनः जिला शिक्षा पदाधिकारी, गया ने आदेश ज्ञापांक 204, दिनांक 03 मार्च, 2013 द्वारा पूर्व ज्ञापांक 100, दिनांक 24 जनवरी को निरस्त करते हुए जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रारम्भिक शिक्षा एवं सर्वशिक्षा अभियान, गया के पत्रांक 03, दिनांक 04 जनवरी को पुनर्जीवित कर दिया। राज्य परियोजना निदेशक, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद, पटना के पत्रांक 6466, दिनांक 18 सितम्बर, 2014 द्वारा भी जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रारम्भिक शिक्षा एवं सर्वशिक्षा अभियान, गया के द्वारा निर्गत पत्रांक 03, दिनांक 04 जनवरी, 2013 के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया। इसी क्रम में जिला शिक्षा पदाधिकारी, गया के पत्रांक 2269, दिनांक 14 अक्टूबर, 2014 द्वारा उक्त पत्रांक 03, दिनांक 04 जनवरी के क्रियान्वयन के लिए जिला कार्यक्रम समन्वयक, बिहार महिला समाख्या सोसाइटी, गया को निर्देशित किया गया था, किन्तु जिला कार्यक्रम समन्वयक, बिहार महिला समाख्या सोसाईटी, गया द्वारा पत्रांक 115, दिनांक 18 अक्टूबर से सूचित किया गया कि चूंकि कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के कर्मियों का मानदेय बिहार शिक्षा परियोजना, गया द्वारा दिया जाता है तथा बिहार शिक्षा परियोजना, गया द्वारा उनकी नियुक्ति रद्द की गयी है, इसलिए संबंधित कर्मियों को सूचना बिहार शिक्षा परियोजना, गया द्वारा दिया जाना उचित एवं प्रभावी होगा। 
अनशन स्थल पर शिक्षिका कुमारी अमिता, रंजना कुमारी, और संजू कुमारी, रसोइया सुनीता देवी और चिन्ता देवी, आदेशपाल मंजू देवी, उषा देवी और पूनम कुमारी व रात्रि प्रहरी ममता देवी और विमला देवी मिलीं। इन महिला कर्मियों का कहना है कि पिछले सात साल से वे सेवारत हैं। महज चयन समिति के सदस्यों का हस्ताक्षर नहीं होने के कारण 148 कर्मियों की छंटनी कर दी गयी है। इसमें हम महिला कर्मियों की क्या गलती है ?
लेखक परिचय : आलोक कुमार समाजसेवी हैं। पिछले कई वर्षों से वे दलित, महादलित व वंचित समुदायों के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही पत्रकारिता उनकी रुचि रही है। विभिन्न विषयों पर आप अखबारों व पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे हैं।

भारतीय ईसाइयों के लिए 23 नवम्बर रहा सुपर संडे

न्यूज@ई-मेल
आलोक कुमार
पटना : अब लोगों को मदर टेरेसा के संत घोषित होने का इन्तजार है। लोग पोप फ्रांसिस को धन्यवाद दे रहे हैं कि उन्हें ‘धन्य’ घोषित कर दिया गया है। बताते चलें कि संत घोषित होने की प्रक्रिया को कैनोनाइजेशन कहा जाता है और इसमें कई साल भी लग जाते हैं। भारतीय ईसाई समुदाय के लिए 23 नवम्बर सुपर संडे साबित हुआ। वेटिकन सिटी में दो भारतीयों को संत घोषित किया गया। आजतक भारत के केरल से तीन महान आत्मा को संत बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वेटिकन द्वारा अबतक सिस्टर अल्फोंसा, फादर कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया को संत घोषित किया गया है। 
क्या है कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया : ईसाइयों की मृत्यु के बाद शव को एक विशेष तरह के बाॅक्स में रखा जाता है। बाॅक्स को बंद करके कब्रिस्तान में दफना दिया जाता है। मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की जाती है। जब प्रार्थना करने वाले व्यक्ति की प्रार्थना सुन ली जाती है, मृतक के नाम का प्रचार-प्रसार किया जाता है। उसके बाद पोप द्वारा गठित समिति के तहत मंथन किया जाता है। समिति के सदस्य आते हैं, कब्रिस्तान में मृतक के शरीर की जांच की जाती है। उसके बाद ही कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया की शुरूआत होती है। संत केवल याजक ही नहीं, गैर याजक भी बन सकते हैं। 
चमत्कार का होता है महत्व : यह अद्भूत चमत्कार धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय के बंधन से मुक्त होता है। अगर किसी कैंसर रोगी को चिकित्सकों ने जांचोपरांत कह दिया कि रोगी लास्ट स्टेज पर है। दवा-दारू का असर अब उसपर नहीं होने वाला। रोगी कुछ ही दिनों का मेहमान है। तब रोगी के परिजन किसी मृत व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करने लगते हैं। अगर ऐसा करने से रोगी की तबीयत में सुधार होता है और अंततः कैंसर रोगी ठीक हो जाता है, तो पुनः चिकित्सक उसकी जांच करते हैं। चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित हो जाने के बाद जिस मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की गई थी, उसे अद्भूत चमत्कार माना जाता है। इस तरह से दो-तीन चमत्कार सिद्ध हो जाने पर उस चमत्कार को रोम द्वारा गठित समिति के सदस्य जांच करते हैं। हर पहलू पर गौर किया जाता है। वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्षों को देखा जाता है। तब मृत व्यक्ति को ‘धन्य’ घोषित किया जाता है और बाद में संत की उपाधि दी जाती है। 
भारत की पहली महिला संत अल्फोंसा बनी : सदियों पुराने साबरी मालाबार कैथोलिक चर्च से जुड़े हैं फादर कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया। इसी चर्च से सिस्टर अल्फोंसा भी जुड़ी हैं। इस तरह इससे जुड़े तीन लोग अबतक संत बन चुके हैं। छह साल पहले ही 2008 में सिस्टर अल्फोंसा संत की उपाधि पाने वाली पहली भारतीय बनी थी। चर्च स्काॅलर्स के मुताबिक, साबरी मालाबार चर्च उस जमाने का है, जब अपोस्टल सेंट थोमस पहली सदी (एडी) में केरल तट पर आये थे। वह पूर्वी देशों के उन 22 चर्चों में शुमार है जो रोम के साथ पूरी तरह जुड़े हैं। कोट्टयम जिले के पणिद्यान्नम में संत अल्फोंसा का अंतिम संस्कार किया गया था। 
संत कुरियाकोस एलियास चावारा : फादर कुरियाकोस एलियास चावारा को संत घोषित करने की प्रक्रिया 1984 में शुरू हुई। उन्हें 23 नवम्बर को संत घोषित कर दिया गया। फादर चावारा (1805 से 1871) के संबंध में इतिहासकार और समाज सुधारक भी मानते हैं कि वे एक ऐसे शख्स थे, जिन्होंने सिर्फ कैथोलिक ही नहीं, दूसरे समुदाय के वंचित बच्चों में भी सेक्युलर एजुकेशन पर जोर दिया। उन्होंने जो पहला संस्थान शुरू किया, वह संस्कृत स्कूल ही था। उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस भी लगाये और कम्युनिटी लीडर्स को खुद के पब्लिकेशन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयास का ही नतीजा रहा कि केरल के भीतर और बाहर कई एजुकेशन व चैरिटी संस्थाएं खुल गयीं। उनका जन्म अलपुज्जा जिले के कइनाकरी गांव में 10 फरवरी, 1805 को हुआ था। संत कुरियाकोस एलियास चावरा को कोट्टयम के मान्नमन में दफन किया गया है। 
त्रिचुर की यूफ्रेसियम्मा : सिस्टर सुफ्रेसिया एक आध्यात्मिक महिला थी। इन्होंने त्रिचुर के एक काॅन्वेंट में लोगों की मदद करते हुए उम्र बिता दी। जो भी उससे प्रेयर के जरिए आता या परामर्श करता, उसे आध्यात्मिक शांति का अहसास होता था। उनका जन्म त्रिचुर के अरनाटुकारा में 17 अक्टूबर, 1877 में हुआ था। सिस्टर यूफ्रेसिया त्रिचुर में यूफ्रेसियम्मा के नाम से मशहुर थीं। उनका निधन 1952 में हुआ और 1987 में उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। संत सुफ्रेसिया को एर्णाकुलम में दफन किया गया। 
वेटिकन सिटी का सेंट पीटर्स स्काॅवर : सुपर संडे 23 नवम्बर को वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्काॅवर में विशेष प्रार्थना में पोप फ्रांसिस ने कुरियाकोस एलियास चावारा और सुफ्रेसिया को   संत घोषित किया। इस मौके पर केरल से गये कई ईसाई श्रद्धालु भी मौजूद थे। पोप ने जैसे ही वेटिकन में संतों की घोषणा की, पूरे केरल के चर्चों में खुशी व उमंग का माहौल कायम हो गया। इस उमंग और हर्ष को एक नया स्वर दिया गया। उधर वेटिकन में भी घोषणा के समय बड़ी संख्या में केरल से गये श्रद्धालु, दो कार्डिनल, बिशप, कलर्जी और नन मौजूद थे। वहीं संत कुरियाकोस एलियास चावारा और संत सुफ्रेसिया से जुड़े कोट्टायम के मान्नमन, एर्णाकुलम के कुनम्मदू और त्रिचुर के ओल्लुर में तो कई दिन पहले से ही खुशी का माहौल था। 
लेखक परिचय : आलोक कुमार समाजसेवी हैं। पिछले कई वर्षों से वे दलित, महादलित व वंचित समुदायों के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही पत्रकारिता उनकी रुचि रही है। विभिन्न विषयों पर आप अखबारों व पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे हैं।

सोमवार, 24 नवंबर 2014

पटना में युख्रीस्तीय यात्रा की एक झलक

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Photo : Alok Kumar

ईसाइयों ने पवित्र युख्रीस्तीय यात्रा निकाला

पटना : ईसाई समुदाय ने आशादीप, फेयर फील्ड काॅलोनी से अपना युख्रीस्तीय यात्रा प्रारंभ किया। इसमें पटना और आसपास के करीब पांच हजार लोगों ने भाग लिया। कुर्जी पल्ली के प्रधान पल्ली पुरोहित फादर जोनसन केलकत, येसु समाजी ने कहा कि इस वर्ष की यात्रा का उद्देश्य ‘‘आज के सामाजिक जीवन में पारिवारिक जीवन का महत्व’’ है। इस अवसर पर फादर अनिल मिंज, येसु समाजी ने कहा कि ख्रीस्तीय समुदाय को विश्वास प्रकट करने का यह अच्छा अवसर मिला है, जो अपने विश्वास और अनुभव से अन्य लोगों को प्रभावित कर सके। 
युख्रीस्तीय यात्रा का विशेष आर्कषक सफेद पोशाक पहने बालक व बालिकाएं थे। इस वार्षिक यात्रा में पुष्प बिखेरने का कार्य बच्चे व बच्चियां करती हैं। इन्हें प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने का अवसर प्राप्त हुआ। इन लोगों को 2014 के मई माह में प्रथम परमप्रसाद मिला है। धर्मपरायण महिला ग्रेसी आल्फ्रेड और बेर्नादेक्त सोरेन के नेतृत्व में बच्चों ने पुष्प बिखेरी। 
इसमें पवित्र बाइबिल से ली गयी उक्ति लिपिबद्ध की गयी थी। वहीं आनंद के पांच भेद वाले माला विनती पढ़ी गयी। गीत और भजन गाये गए। बाद में चलकर युख्रीस्तीय यात्रा कुर्जी पल्ली के प्रांगण स्थित प्रेरितों की महारानी ईश मंदिर में पहुंची। यहां पुरोहित ने आशीर्वाद दिए। इसके बाद कुर्जी पल्ली के सहायक पल्ली पुरोहित फादर सुशील साह ने संध्याकालीन मिस्सा पूजा किया। 
युख्रीस्तीय यात्रा के नेतृत्व करने वालों में पल्ली पुरोहित फादर जोनसन, येसु समाजी, सहायक पल्ली पुरोहित फादर सुशील साह, फादर अनिल मिंज और फादर अगस्टीन हेम्ब्रम समेत पल्ली परिषद के सदस्य सुशील लोबो, जेवियर लुइस, चार्ली ग्राब्रिएल, राकेश मोरिस, वरिष्ठ कांग्रेस नेता सिसिल साह, स्टेला साह, राजन साह, ग्रेसी, समाजसेवी आलोक कुमार आदि थे। धन्यवाद ज्ञापन पल्ली पुरोहित फादर जोनसन केलकत ने किया।

बुधवार, 19 नवंबर 2014

एलसीटी घाट मुसहरी में टीबी से कई मरे

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पटना : पश्चिमी पटना स्थित एलसीटी घाट मुसहरी इनदिनों टीबी रोग की चपेट में है। महादलित नौवी मांझी के पिता का नाम रामजी मांझी और माता का नाम मिनता देवी है। दोनों कचरा के ढेर पर जाकर रद्दी कागज आदि चुनते और बेचते हैं। दोनों को यक्ष्मा की बीमारी है। पहले मिनता देवी रोगग्रस्त हुई। आसपास से दवा लेकर खाने लगी। दवा खाती तो ठीक हो जाती और छोड़ने पर फिर रोग पकड़ लेता। परिणाम यह हुआ कि उसकी मौत हो गयी। इसके बाद रामजी मांझी बीमार पड़े। वह दवा के साथ दारू का सेवन भी करता रहा। इस बीच अपने पुत्र नौवी कुमार की शादी कर दी। इसके बाद रामजी मांझी की भी मौत हो गयी। 
इस बीच नौवी मांझी की पत्नी अंजू देवी गर्भवती हो गयी। मगर जन्म के बाद नवजात शिशु की मौत हो गयी। कुछ दिनों के बाद अंजू भी परलोक सिधार गयी। नौवी मांझी कहता है कि टीबी से प्रभावित होने से उसका भी एक तरफ का फेफड़ा खराब हो गया था। महादलित रेखा देवी का कहना है कि हमलोग गरीबी से परेशान हैं। कचरा चुनने जाते हैं। अगर आमदनी नहीं हुई, तो भूखे सो जाना पड़ता है। मुसहरी में काफी गंदगी फैली रहती है। 

युख्रीस्तीय यात्रा 23 नवम्बर को

पटना : ईसाई समुदाय की वार्षिक युख्रीस्तीय यात्रा 23 नवम्बर को होगी। कुर्जी पल्ली परिषद द्वारा आयोजित यात्रा में पटना शहर के ईसाई समुदाय भाग लेंगे। कोई 10 हजार लोगों के भाग लेने की संभावना है। ईसाई धर्मावलम्बी पटना डीनरी के दानापुर, खगौल, फुलवारीशरीफ, मनेर, राजा बाजार, आईजीआईएमएस, पाटलिपुत्र, चकारम, कुर्जी, बालूपर, मखदुमपुर, बांसकोठी, मरियम टोला, फेयर फील्ड काॅलोनी आदि से आकर आशादीप, दीघा में जमा होंगे। 
दीघा फेयर फील्ड काॅलोनी में आशादीप है। यहां दोपहर दो बजे से प्रार्थना सभा का आयोजन होगा। प्रार्थना सभा में शामिल होने वाले लोग कतारबद्ध होकर आगे बढ़ेंगे और प्रार्थना के साथ बीच-बीच में गीत और भजन भी गायेंगे। पवित्र बाइबिल से लिए गए महत्वपूर्ण वाक्यांश को बैनर में लिखकर हाथ में लिए चलेंगे। 
क्या है युख्रीस्तीय यात्रा : ईसाई समुदाय प्रभु येसु ख्रीस्त के प्रति अपनी भक्ति एवं विश्वास की उद्धघोषणा करने के लिए युख्रीस्तीय यात्रा में आते हैं। इस यात्रा के नेतृत्वकर्ता के हाथ में विशेष तरह के बने पात्र में ‘परमप्रसाद’ रहता है। ईसाई समुदाय धार्मिक अनुष्ठान के समय ‘परमप्रसाद’ ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस परमप्रसाद के रूप में प्रभु येसु ख्रीस्त का शरीर ग्रहण किया जाता है। इस युख्रीस्तीय यात्रा को ‘जतरा’ भी कहा जाता है। जतरा के दिन जन्म लेने वाले पुरुष का नाम ‘जतरा’ और स्त्री का नाम ‘जतरी’ भी रखा जाता है। इस नामकरण से सीधे बोध हो जाता है कि अमुख का जन्म युख्रीस्तीय यात्रा के दिन ही हुआ है। 

आदिवासी और वंचित समाज के अधिकारों के लिए पदयात्रा

भोपाल : पिछले कुछ सालों में आदिवासी समुदाय के लिए कई नियम-कानून बनाए गए, जिसके माध्यम से उन्हें अधिकार एवं सम्मान देने का वायदा किया गया। वन अधिकार कानून की प्रस्तावना में यह लिखा गया है कि यह कानून आदिवासियों को अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए बनाया गया है। इसके बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि आज भी आदिवासियों के साथ अन्याय हो रहा है। उनके अधिकार छिने जा रहे हैं। उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। शान्ति एवं सम्मान से वे जी नहीं पा रहे हैं। आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ एकता परिषद और सहयोगी संगठनों द्वारा मध्यप्रदेश में डिंडोरी, मंडला और बालाघाट एवं छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में आदिवासी और वंचित समाज के अधिकारों के लिए एक पदयात्रा का आयोजन किया गया है। पदयात्रा 20 नवंबर को डिंडोरी जिले के बजाग विकासखंड के चाड़ा गांव से प्रारंभ होकर 10 दिसंबर, 2014 को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) में संपन्न होगी। एकता परिषद की मांग है कि सरकार आदिवासी समुदाय से जुड़े सारे मसलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र जांच समिति का गठन जल्द से जल्द करे। 
जन संगठन एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य राजगोपाल पी.व्ही. ने आयोजित पत्रकार वार्ता में जोरदार ढंग से ये बातें रखीं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन का औसत 30 फीसदी है, जो कि बहुत ही कम है। यदि 6 सालों में 10 फीसदी की दर से भी इसपर क्रियान्वयन होता, तो यह आंकड़ा 60 फीसदी तक पहुंच जाता। आदिवासियों के खिलाफ मनगढ़ंत और फर्जी प्रकरणों को भी अभी तक पूरी तरह नहीं हटाया गया है। प्रदेश में डेढ़ लाख प्रकरण हटाए जाने के बाद भी वर्तमान में लगभग 3 लाख फर्जी प्रकरण आदिवासियों के खिलाफ दर्ज हैं। विस्थापन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार, विस्थापन से पहले विस्थापितों से पूर्व सहमति लिया जाना जरूरी है, पर मंडला, डिंडोरी क्षेत्र में बनने वाले हेरिटेज काॅरिडोर में 600 किलोमीटर का इलाका चला जाएगा, जिससे हजारों लोग विस्थापित होंगे। इसकी योजना बन गई है, पर लोगों को इसके बारे में नहीं मालूम है। प्रदेश की विशेष जनजाति बैगा के लिए बनाए गए बैगा विकास प्राधिकरण के माध्यम से करोड़ों रुपए खर्च किए गए, पर उसका काम पारदर्शी नहीं है। ये सारे मसले बहुत ही गंभीर हैं, जिसकी स्वतंत्र जांच जरूरी है, जिससे कि आदिवासी समाज को न्याय मिल सके और वे शांति एवं सम्मान के साथ जी सकें। सभी मसले की जमीनी हकीकत को ज्यादा करीब से देखने एवं आदिवासी समुदाय को जोड़ने के लिए आदिवासी अधिकार पदयात्रा निकाली जा रही है। पदयात्रा में देश के विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, आदिवासी व वंचित समाज के प्रतिनिधि, विभिन्न दलों के नेतागण, वरिष्ठ पत्रकार तथा बुद्धिजीवी होंगे। 

बेहाल हैं नगर निगम के मजदूर

पटना : प्रदेश के सभी नगर निगमों में मजदूरों का जमकर शरीरिक व मानसिक शोषण किया जा रहा है। पटना नगर निगम, बांकीपुर अंचल, नूतन राजधानी अंचल, कंकड़बाग अंचल, गया नगर निगम, जहानाबाद नगर निगम, आदि निगमों के मजदूरों की दशा खराब है। ये मजदूर से काम शुरू करते हैं और मजदूर बने रहकर ही अवकाश ग्रहण कर जाते हैं। विडम्बना यह है कि पार्षदों का ध्यान इन असंगठित मजदूरों की ओर नहीं जाता। और तो और, कल्याणकारी सरकार भी इनपर ध्यान नहीं देती। प्रतिमाह इन्हें 26 दिनों की मजदूरी मिलती है। ऐसे निगमकर्मी मजदूरी के रूप में 184 रुपए पाते थे। फिलवक्त इसमें 66 रुपए की वृद्धि की गयी है। अब मजदूरों को प्रतिदिन 250 रुपए मिलेंगे। सूत्र बनाते हैं कि नयी दर पर मजदूरी सितम्बर, 2014 से मिलनी चाहिए थी, मगर बढ़ी मजदूरी मजदूरों को नहीं दी गयी। अब कहा जा रहा है कि यह अक्टूबर माह से मिलेगी। 
बताते चलें कि इन मजदूरों को मालूम ही नहीं है कि भविष्य निधि क्या होता है। श्रम अधिनियम के तहत मिलने वाली सुविधाओं से ये महरूम हैं। चिकित्सा भत्ता, परिवहन भत्ता, आवास भत्ता, नगर निवास भत्ता आदि इनके लिए किसी सपना-सा है। पवन कुमार ‘गौतम’ नामक सफाईकर्मी कहते हैं कि यहां पदोन्नति नहीं मिलती है। मैट्रिक पास होने के बाद भी ‘झाड़ू’ लगाना पड़ता है। 
सफाईकर्मी पवन कुमार ‘गौतम’ ने जाति बंधन तोड़कर मंजू देवी के संग विवाह रचाया था। विवाह के नौ साल के बाद भी संतान नहीं होने पर वे परेशान हैं। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण ढंग से इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। वे कहते हैं कि अगर सरकार और नौकरशाह चाहे तो नगर निगमकर्मियों की माली हालत सुधार सकती है। कल्याण और विकास योजनाओं से जोड़कर लाभ दिलवाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से स्मार्ट कार्ड निर्गत कर स्वास्थ्य क्षेत्र से लाभान्वित करवाया जा सकता है। आवासहीन मजदूरों को जमीन देकर इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनवाया जा सकता है। यहां पेयजल और शौचालय की व्यवस्था की जा सकती है। बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन, संपूर्ण कार्य नगर निगम के महापौर की दिलचस्पी पर निर्भर है। साथ ही नगर विकास व आवास विकास मंत्री को भी ध्यान देना चाहिए।

‘गया में एक हजार बंधुआ मजदूर’

गया : एकता पीस फाउन्डेशन के सचिव शत्रुध्न कुमार बताते हैं कि बंधुआ मजदूरों की खोज की जा रही है। प्रत्येक माह बैठक की जाती है। सरकारी नौकरशाहों द्वारा बैठकों में जानकारी ली जाती है, मगर जो आंकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं, वे सच्चाई से काफी दूर हैं। कम कर आंकड़ा पेश करने का तात्पर्य यह है कि सरकार को बचाया जाता है। लेकिन, सच्चाई सामने आ ही जाती है। गया, मुजफ्फरपुर, सहरसा आदि जिलों के गरीबों को सब्जबाग दिखाकर दलाल ले जाते वक्त स्टेशनों पर पुलिस के हत्थे चढ़ जाते हैं। पलायन करने वालों में अबोध बच्चे और सयाने भी होते हैं। 
शत्रुध्न आगे बताते हैं कि हमलोग ‘बंधुआ मजदूर खोजो अभियान’ शुरू किए हैं। अभी फाउन्डेशन के द्वारा गया जिले के आठ पंचायतों में अभियान चलाया जा रहा है। अभी तक तीन हजार लोगों का सर्वें किया जा चुका है। इनमें एक हजार की संख्या में विशुद्ध बंधुआ मजदूर हैं। 
‘कौन बनेगा करोड़पति’ से लौटे ओम प्रकाश का कहना है कि मेरे पिताजी भजन लाल बंधुआ मजदूर थे। किसान के पास दादाजी पराधीन थे। महज 25 रुपए की लेनदारी थी। दादाजी की मौत के बाद किसान के पास बाबूजी को बंधुआ मजदूर बनना पड़ा। वे किसी तरह सात रुपए अदा कर पाए। किसान के 18 रुपए बकाया रहते बाबूजी फरार हो गए। तब दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी में रहकर नये सिरे से जीवन शुरू किया।

रविवार, 16 नवंबर 2014

बहुजनों को जगा रहा ‘महिषासुर’

पुस्तक चर्चा
राजीव मणि
आधुनिक विश्व और भारत को अब यह समझ लेना चाहिए कि किसी भी समाज-देश को इकहरी कहानियों से चलाना खतरनाक है। लोकतंत्र में सबकी कहानियों को सुनने का धैर्य होना चाहिए। हजारों वर्षों से एक नस्लीय दंभ, वर्चस्व की कहानी सुनायी जा रही है। सभी सुन रहे हैं और दूसरों को सुनने के लिए लगातार दबाव भी डाला जा रहा है। इतिहास, शिक्षा, साहित्य, फिल्म, मीडिया और धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए। यह किसी भी रूप में सामाजिक न्याय की आकांक्षा के अनुकूल नहीं है।
सांस्कृतिक उपनिवेशों का खात्मा प्राथमिक होना चाहिए। बुद्ध इसके सबसे बड़े अगुआ हैं। उन्होंने कोई आर्थिक आंदोलन नहीं चलाया। बुद्ध ने ब्राह्मणवादी धर्म-संस्कृति के आधारों पर सीधी चोट की। एक नई वैचारिकी वाली संस्कृति दी दुनिया को और पूरी दुनिया बौद्ध हो गई। 
ये बातें ‘महिषासुर’ नामक पुस्तिका में अश्विनी कुमार पंकज ने अपने लेख ‘दुर्गासप्तशी का असुर पाठ’ में कही हैं। इस पुस्तिका के संपादक हैं प्रमोद रंजन। दुसाध प्रकाशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित इस पुस्तिका में संपादकीय सहित कुल बीस पाठ हैं। पाठों के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि आखिर दुर्गा-महिषासुर की पौराणिक कथा के पुनर्पाठ की आवश्यकता आज क्यों पड़ी। संपादकीय में पुस्तिका के संपादक प्रमोद रंजन ने लिखा है कि यह पुनर्पाठ न्याय की अवधारणा और मनुष्योचित नैतिकता को स्थापित करने के लिए है। सामथ्र्य पर सच्चाई की विजय के लिए है। सैकड़ों वर्षों से जाति-व्यवस्था से त्रस्त भारतीय समाज का अवचेतन इन्हीं कथाओं से बना है। भीषण असमानता से ग्रस्त इस समाज को अपनी मुक्ति के लिए अपने इस अवचेतन में उतरना ही होगा। महज विज्ञान आधारित आधुनिकता के बाहरी औजारों की शल्य क्रिया से इसका मानसिक-मवाद पूरी तरह खत्म न किया जा सकेगा। पौराणिक कथाओं के पुनर्पाठ को इसके मनोवैज्ञानिक इलाज की कोशिश के रूप में भी देखा जाना चाहिए। 
‘एक सांस्कृतिक युद्ध’ शीर्षक पाठ में श्री रंजन ने लिखा है कि सांस्कृतिक गुलामी क्रमशः सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक गुलामी को मजबूत करती है। उत्तर भारत में राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक गुलामी के विरुद्ध तो संघर्ष हुआ, लेकिन सांस्कृतिक गुलामी अभी भी लगभग अछूती रही है। जो संघर्ष हुए भी, वे प्रायः धर्म सुधार के लिए हुए अथवा उनका दायरा हिंदू धर्म के इर्द-गिर्द ही रहा। हिंदू धर्म की नाभि पर प्रहार करने वाला आंदोलन कोई न हुआ। महिषासुर आंदोलन की महत्ता इसी में है कि यह हिंदू धर्म की जीवन-शक्ति पर चोट करने की क्षमता रखता है। 
इसके बाद प्रेमकुमार मणि के दो पाठ ‘किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन?’ और ‘हत्याओं का जश्न क्यों?’ हैं। जैसा कि लेखक परिचय में लिखा गया है कि प्रेमकुमार मणि का यह लेख महिषासुर शहादत आंदोलन का प्रस्थान बिंदु है। ........ ‘फाॅरवर्ड प्रेस’ में प्रकाशित होने के बाद इस महत्वपूर्ण लेख पर बुद्धिजीवियों तथा जेएनयू के छात्रों की नजर गयी, उसके बाद से उत्तर भारत में विशद पैमाने पर महिषासुर विषयक आंदोलन का जन्म हुआ। 
‘देखो मुझे, महाप्रतापी महिषासुर की वंशज हूं मैं’ में अश्विनी कुमार पंकज लिखते हैं कि झारखंड और छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल के तराई इलाके में भी कुछ संख्या में असुर समुदाय रहते हैं। वहां के असुर बच्चे मिट्टी से बने शेर के खिलौने से खेलते तो हैं, लेकिन उनके सिर काट कर। क्योंकि उनका विश्वास है कि शेर उस दुर्गा की सवारी है, जिसने उनके पुरखों का नरसंहार किया था। ........ भारत के अधिकांश आदिवासी समुदाय ‘रावण’ को अपना वंशज मानते हैं। दक्षिण के अनेक द्रविड़ समुदायों में रावण की आराधना का प्रचलन है। बंगाल, उड़ीसा, असम और झारखंड के आदिवासियों में सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय ‘संताल’ भी स्वयं को रावण वंशज घोषित करता है। झारखंड-बंगाल के सीमावर्ती इलाके में तो बकायदा नवरात्रि या दशहरा के समय ही ‘रावणोत्सव’ का आयोजन होता है। यही नहीं, संताल लोग आज भी अपने बच्चों का नाम ‘रावण’ रखते हैं। .......... पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बदायूं के मोहल्ला साहूकारा में भी सालों पुराना रावण का एक मंदिर है, जहां उसकी प्रतिमा भगवान शिव से बड़ी है और जहां दशहरा ‘शोक दिवस’ के रूप में मनाया जाता हैै। इसी तरह इंदौर में रावण प्रेमियों का एक संगठन है, लंकेश मित्र मंडल! राजस्थान के जोधपुर में गोधा एवं श्रीमाली समाज वहां के रावण मंदिर में प्रति वर्ष दशानन श्राद्ध कर्म का आयोजन करते हैं और दशहरे पर सूतक मानते हैं। गोधा एवं श्रीमाली समाज का मानना है कि रावण उनके पुरखे थे व उनकी रानी मंदोदरी यहीं की मंडोरकी थीं।
झारखंड की सुषमा ‘आदिम जनजाति’ असुर समुदाय से आती है। सुषमा कहती है, ‘मुझे आश्चर्य होता है कि पढ़ा-लिखा समाज और देश अभी भी हम असुरों को ‘कई सिरों’, ‘बड़े-बड़े दांतो-नाखुनों’ और ‘छल-कपट, जादू जानने’ वाला जैसा ही राक्षस मानता है। लोग मुझमें ‘राक्षस’ ढूंढते हैं, पर उन्हें निराशा हाथ लगती है। बड़ी मुश्किल से वे स्वीकार कर पाते हैं कि मैं भी उन्हीं की तरह एक इंसान हूं। हमारे प्रति यह भेदभाव और शोषण-उत्पीड़न का रवैया बंद होना चाहिए। 
‘महिषासुर की याद’ में जितेंद्र यादव लिखते हैं कि महिषासुर बंग प्रदेश के राजा थे। बंग प्रदेश अर्थात् गंगा-यमुना के दोआब में बसा उपजाऊ मैदान जिसे आज बंगाल, बिहार, उड़ीसा और झारखंड के नाम से जाना जाता है। कृषि आधारित समाज में भूमि का वही महत्व था, जो आज ऊर्जा के प्राकृतिक स्त्रोतों का है। बंग प्रदेश की उपजाऊ जमीनों पर अधिकार के लिए आर्यों ने कई बार हमले किए, परंतु राजा महिषासुर की संगठित सेना से उन्हें पराजित होना पड़ा। ‘बल नहीं तो छल, छल का बल!’ महिषासुर की हत्या छल से एक सुंदर कन्या दुर्गा के द्वारा की गई। दुर्गा नौ दिनों तक महिषासुर के महल में रही और अंततः उसने उनकी हत्या कर दी। जितेंद्र आगे लिखते हैं कि महिषासुर को याद करते हुए हम इतिहास में अपने अस्तित्व की खोज कर रहे हैं। हम जानना चाहते हैं कि आखिर समुद्र मंथन के समय जो लोग शेषनाग की मुंह की तरफ थे, जो हजारों की संख्या में मारे गए, उन्हें विष क्यों दे दिया गया? जो लोग पूंछ पकड़े रहे, वे अमृत के हकदार कैसे हो गए? आजादी के आंदोलन को यदि समुद्र मंथन कहें, तो पिछड़ों के हिस्से में तो आज भी विष ही आया है। अमृत तो आज भी पूंछ पकड़ने वालों ने ही गटक लिया है। देश के सत्ता, संसाधनों और नौकरियों पर सवर्णों का ही कब्जा है। 
‘महिषासुर यादव वंश के राजा थे’ में चंद्रभूषण सिंह यादव ने लिखा है कि अनार्य महापुरुष महिषासुर ने जब इनको परास्त किया, तो आर्य खेमे में मायूसी छा गयी। यह मायूसी कैसी थी? यह मायूसी यज्ञ न कर पाने की थी। यज्ञ में क्या होता था? यज्ञ में लाखों गायों, बैलों, भैंसों, घोड़ों, भेड़ों, बकरों को काटकर आर्य लोग चावल मिश्रित मांस पकाकर मधुपर्क के रुप में खाते थे। सोमरस एवं मैरेय पीते थे। जौ, तिल, घी, आग में जलाते थे। अनार्य पशुपालक एवं कृषक थे, जबकि आर्य मुफ्तखोर थे, जो अनार्यों से यह सबकुछ छीनने के लिए युद्ध करते थे। अनार्यों एवं आर्यों के बीच होने वाले इस युद्ध में अनार्यों को यज्ञ विरोधी घोषित कर राक्षस परिभाषित किया जाता था। आर्य सुरा सुन्दरी के सेवनहार थे। अप्सराएं रखना इनका शौक था। समस्त हिंदू धर्मग्रन्थ जारकर्म को पुण्यकार्य घोषित करते हैं। आर्य उपरोक्त कार्यों को वैदिक सनातन धर्म का आवश्यक अंग बताये, तो अनार्यों ने इनके विरुद्ध महिषासुर, बलि, रावण, हिरण्यकश्यप, आदि के रुप में युद्ध किया, जिन्हें इन आर्यों ने सीधी लड़ाई में परास्त करने के बजाय धोखे एवं छल से मारा, जो इन्होंने खुद द्वारा लिखी किताबों में स्वीकार किया है। महिषासुर से वर्षों लड़ने के बाद जब आर्य राजा इन्द्र परास्त कर पाने के बजाय परास्त होकर भाग खड़ा हुआ, तो आर्यों ने ‘छल’ का सहारा लिया और आर्य कन्या दुर्गा को महिषासुर के पास भेजकर महिषासुर का दिल जीतकर उसे मारने की रणनीति बनाई। इसके बाद ही अश्विनी कुमार पंकज का लेख ‘दुर्गासप्तशी का असुर पाठ’ और समर अनार्य का ‘मुक्ति के महाआख्यान की वापसी’ है। 
दिलीप मंडल के ‘धर्म ग्रंथों के पुनर्पाठ की परंपरा’ शीर्षक लेख में उन्होंने लिखा है कि फुले ने मिथकों के पुनर्पाठ के माध्यम से वर्ण-व्यवस्था के मूलाधार ऋग्वेद के पुरुष सूक्त को अवैज्ञानिक और कोरा गप करार दिया है। ऐसा करते समय उनका लक्ष्य सिर्फ यह स्थापित करना है कि हर मनुष्य उत्पत्ति की दृष्टि से समान है। कोई मनुष्य मुंह से पैदा नहीं हो सकता। क्या फुले ऐसा करते हुए किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे थे? हां, मुमकिन है कि इस लेखन से किसी को ठेस पहुंच रही हो, लेकिन इस वजह से सत्य कहने के ऐतिहासिक कार्यभार को फुले ने मुल्तवी नहीं किया। क्योंकि जैसे ही कोई यह मान लेता है कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुंह से पैदा हुए हैं, इसके साथ ही यह भी मान्यता होती है कि इस देश के बहुजन पैर से पैदा हुए हैं। यह बात ऊंच-नीच को धार्मिक मान्यताओं के साथ स्थापित करती है। इसलिए इसका खंडन जरूरी है, बेशक इससे किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस लगती हो। 
इन पाठों के अलावा संजीव चंदन का ‘महिषासुर और दुर्गा की उपकथाएं’, अरविंद कुमार का ‘महिषासुर दिवस की जन्म कथा’, राजकुमार राकेश का ‘महिषासुर: पुनर्पाठ की जरुरत’, सुरेश पंडित का ‘मिथक का सच’, अरुण कुमार का ‘सौ जगहों पर मनाया जा रहा शहादत दिवस’, विनोद कुमार का ‘आर्य व्याख्या का आदिवासी प्रतिकार’ और अभिषेक यादव का ‘इतिहास को यहां से देखिए’ इस पुस्तिका में पढ़ने को मिलेंगे। अभिषेक यादव लिखते हैं कि अगर आप महिषासुर-दुर्गा प्रकरण पर विचार करेंगे, तो पाएंगे कि यह एक देवासुर संग्राम ही है और संयोग वह देखिए कि ब्राम्हणवादी भी इसे देवासुर संग्राम ही मानते हैं। जो बाहर से आए आर्यों और यहां के मूलनिवासियों के बीच हुआ। संसाधनों पर अपने नियंत्रण को बचाने की खातिर महिषासुर, जो कि यहां के मूल निवासियों के नेता थे, ने आर्यों से भीषण संघर्ष किया। आर्य दूसरों की संपत्ति हड़पने के लिए लड़ रहे थे और महिषासुर अपने लोगों की संपत्ति की रक्षा के लिए। बार-बार पराजित हो रहे आर्यों ने दुर्गा का उपयोग किया। महिषासुर मारे गए। इतिहास लिखना आर्यों के हाथ में था, सो धूर्तता करने वाले देवी और देवता कहे गए, और अपनी जनता की रक्षा करने वाले असुर राक्षस और न जाने क्या-क्या।
पुस्तिका के अंत में ‘जिज्ञासाएं और समाधान’ शीर्षक पाठ है। इसके तहत महिषासुर की हत्या कब हुई, महिषासुर शहादत दिवस किस तारीख को मनाया जाना चाहिए और शहादत दिवस का आयोजन कैसे करें, इसकी चर्चा विस्तार से की गई है। कुल मिलाकर पुस्तिका में दुर्गा-महिषासुर युद्ध और महिषासुर के शहादत की चर्चा है। पुस्तिका में महिषासुर की एक रंगीन स्केच चित्र भी छापी गयी है। आवरण ठीक-ठाक है। हां, कुछ अशुद्धियां अवश्य रह गयी हैं। पुस्तिका का मूल्य है 50 रुपए।

बुधवार, 5 नवंबर 2014

ईसाइयों ने मनाया ‘मृतकों का पर्व’

न्यूज@ई-मेल
पटना : जैसा की सभी जानते हैं कि किसी ईसाई के मरने के बाद उसे कब्र में दफनाया जाता है। इन्हीं मरे हुए लोगों की याद में 2 नवम्बर को ‘मृतकों का पर्व’ मनाया जाता है। राजधानी पटना में भी मृतकों का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर पूरे कब्रिस्तान को अच्छी तरह सजाया गया। रंग-रोगन का काम हुआ। कब्र को रौनकदार बनाया गया। कब्र पर लगे क्रूसों को ठीक किया गया। फूलवाड़ी को व्यवस्थित किया गया।
राजधानी स्थित कुर्जी कब्रिस्तान में मुर्दों के इस पर्व को लेकर अनुष्ठान किया गया। तीन बार मिस्सा पूजा की गयी। दो बार सुबह की मिस्सा पूजा के बाद तीसरी बार कब्रिस्तान में पूजा की गयी। 
ज्ञात हो कि इस दिन सूबे के सभी ईसाई कब्रिस्तान में मिट्टी को समर्पित हो चुके लोगों की याद में कब्र के पास आंसू बहाते हैं। यह उनकी भावना और अपनों से घनिष्टता को दर्शाता है। इसी क्रम में कब्र पर फूल चढ़ाये गये और अगरबत्ती व मोमबत्तियां जलायी गयीं। पुरोहितों ने धार्मिक अनुष्ठान कर परमप्रसाद आदि रस्म अदायगी कर अंत में सभी कब्रों के पास पहुंचकर पवित्र जल का छिड़काव किया। 
बताते चलें कि इससे ठीक एक दिन पहले यानी एक नवम्बर को ईसाई समुदाय सभी संतों का पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर धर्मावलम्बी गिरजाघर पहुंचे। वहां प्रार्थना किया गया। प्रार्थना के दौरान श्रद्धालुओं ने सभी संतों से परिवार में सहयोग देने और कृपा बरसाने का आग्रह किया। पुरोहितों ने पवित्र परमप्रसाद का वितरण किया। 
ज्ञात हो कि ईसाई समुदाय के अनेक संत हैं। कुछ चर्चित संतांे के नामों में जोसेफ, मरिया, जौर्ज, जोन, थोमस, अगस्तीन, लुकस जेवियर, फ्रांसिस आदि हैं। इन्हीं ‘संतों’ के नाम से लोग अपने बच्चों व संस्थाओं के नाम भी रखते हैं। इन संतों के प्रति अपनी आस्था व उन्हें पवित्र मानते हुए ईसाई समुदाय इसे उत्साह से मनाते हैं। लेकिन, बदली परिस्थिति में हिन्दी नाम रखने का प्रचलन भी हो गया है। 

पेट के लिए हजामत बनाने का पुश्तैनी काम छोड़कर बनना पड़ा पुजारी !

पटना : रोजगार की तलाश में पलायन कर रघुनाथ ठाकुर 1960 में वैशाली जिले के लालगंज से पटना आए थे। अब रघुनाथ ठाकुर नहीं रहे। आज उनके तीन पुत्र बोरिंग कैनाल रोड स्थित पंचमुखी मंदिर के पास सड़क पर ही हजामत बनाते हैं। 1975 से इन भाइयों का एक-एक कर यहां आना हुआ। ये आने वाले ग्राहकों को ईंट पर बैठाते हैं। इसके बाद प्रेम से हजामत बनाते हैं। इन्हीं के परिवार के सरोज ठाकुर पुजारी बन गए हैं। काम ना मिलने और हजामत के काम से घर-परिवार ना चल पाने के कारण इन्हें यह करना पड़ा। आज इनकी अच्छी कमाई हो जाती है।
उमा ठाकुर बताते हैं कि पहले डेढ़ रुपए से दाढ़ी बनाने का काम शुरू किये, आज 10 रुपए में दाढ़ी बनाते हैं। इसी अल्प मजदूरी से परिवार की जरूरतों को पूरा करना होता है। वे कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री हुए, लेकिन उन्होंने नाई समुदाय पर ध्यान नहीं दिया। इस कारण यह समुदाय अपने हाल पर ही रह गया। उमा ठाकुर को एक लड़की और दो लड़के हैं। वहीं उसके भाई उमेश ठाकुर को तीन लड़की और एक लड़का। तीसरे भाई ललन ठाकुर को तीन लड़के हैं। 
ललन ठाकुर बताते हैं कि हमलोगों की घरवाली एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं। समूह से कर्ज लेती हैं। कम ब्याज पर कर्ज मिलता है। इससे खर्च चल पाता है। खेती योग्य जमीन नहीं है। गांव पर हमलोग छोटा-छोटा घर बनाकर रहते हैं। समझ लें कि घर किसी सुअर के बखौर की तरह है। काफी दिक्कत से जिन्दगी काट रहे हैं। गरीबी के कारण हमलोग फुटपाथ पर ही बैठकर हजामत बनाते हैं। करीब 40 साल के बाद भी किराये पर सैलून न खोल सकें।

पति ने दिया दगा, भटक रही सीता

पटना : पटना जिले के मोकामा ताड़तर गांव में अर्जुन चैहान रहते हैं। उनकी बेटी है सीता देवी। सीता की शादी इन्द्रजीत चैहान के संग हो गयी। दानापुर प्रखंड के बलवा पंचायत के बलवा कठौती गांव में इन्द्रजीत चैहान और सीता देवी रहने लगे। देखते ही देखते दोनों के चार बच्चे हुए। दो लड़की और दो लड़के हैं। इनका नाम सुमन कुमारी, तुलसी कुमारी, पिंटू कुमार और कुंदन कुमार है। सुमन तीसरी में और तुलसी दूसरी कक्षा में पढ़ती है। 
लेकिन, सीता की किस्मत में कुछ और ही लिखा था। पति इन्द्रजीत से धोखा खा बैठी। वह घर छोड़कर चला गया। मगर वह हारी नहीं। हिम्मत कर जालंधर, पंजाब में दिहाड़ी पर काम करने चली गयी। काम नहीं मिलने पर वापस आ गयी। अब पटना में अपने घर पर तीन बच्चों को छोड़ और एक को अपनी गोद में लिए काम की तलाश में आ पहुंची। जब उसका पति घर से फरार हुआ, उस समय वह गर्भवती थी। किसी तरह सीता ने चैथे पुत्र को जन्म दिया। अभी वह दो साल का है। बाद में सीता को ज्ञात हुआ कि तीन साल पहले उसका पति अब इस दुनिया में नहीं रहा। 
काम खोजते-खोजते सीता दीघा पहुंच गयी। दीघा से चलने वाली रेल पर ही उसे रंधीर रविदास और रंभू यादव नामक मजदूर मिल गए। दोनों मजदूरों ने सीता को काम और घर दिलवाने के बहाने पुनाईचक हाॅल्ट पर उतर लिए। आशंका है कि वह किसी गलत हाथों में ना फंस गयी हो। 

परिचर्चा का आयोजन

पटना : पिछले दिनों अन्तरराष्ट्रीय खाद्य दिवस के अवसर पर आॅक्सफैम इंडिया और भोजन का अधिकार अभियान के संयुक्त तत्वावधान में ग्रो सप्ताह के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 के नियमावली पर पैनल परिचर्चा की गयी। इस अवसर पर आॅक्सफैम इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवीन्द कुमार प्रवीण ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। क्षेत्रीय प्रबंधक ने कहा कि 16 अक्टूबर, 1945 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना की गई थी। 1979 में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के सदस्य देशों के 20वें आमसभा में 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। आज ग्रो सप्ताह के तहत अंतरराष्ट्रीय खाद्य दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 के अंतर्गत लाभान्वितों की पहचान, अनाज का उठाव, भंडारण एवं वितरण, कुपोषण तथा मातृत्व लाभ को शामिल कर चर्चा करेंगे। 
इस मौके पर भोजन अधिकार अभियान (बिहार) के संयोजक रुपेश ने कहा कि दुनिया को भूख से मुक्ति दिलाने को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के मुद्दे से जुड़े संगठन इस दिवस को मनाते हैं। भारत में इस दिन का महत्व और अधिक है, क्योंकि एक ओर तो देश तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है, दूसरी तरफ आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों से भूख से मौत की खबरें आती हैं। बिहार में भी लगातार मौते होती रही हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न रिपोर्टो के अनुसार, राज्य में लगभग 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। वहीं लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं।
उन्होंने कहा कि गया के सामाजिक कार्यकर्ता शत्रुध्न कुमार और बोधगया प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता बच्चू मांझी ने जब भूख से होने वाली मौत को गंभीरता से उठाया, तो प्रशासन ने उक्त मौत को भूख से नहीं, परन्तु बीमारी से करार दिया। उन्होंने कहा कि कल्याणकारी सरकार और तथाकथित सभ्य समाज नहीं चाहते कि कोई व्यक्ति भूख से मरे। इसका ही परिणाम है कि लोग चूहा, मेढ़क, घोंघा, सितुआ आदि खाने को विवश हैं। 
परिचर्चा में रुपेश, भोजन का अधिकार अभियान, डीएम दिवाकर, निदेशक, अनुग्रह नारायण समाज अध्ययन संस्थान, प्रतिभा सिन्हा, ओएसडी खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, डाॅ. चांदनी, समेकित बाल विकास परियोजना तथा देवशील प्रसाद, मध्याह्न भोजन निदेशालय के अलावा दलित अधिकार मंच के अध्यक्ष कपिलेश्वर राम ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर फादर फिलिप मंथरा, डाॅ. शरद, नीलू आदि भी मौजूद थे।

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

महापर्व छठ की शुभकामनाएं


अब न्यूनतम पेंशन एक हजार रुपए

न्यूज@ई-मेल
पटना : अब कर्मचारी पेंशन योजना के तहत पेंशनधारकों को न्यूनतम एक हजार रुपए मासिक पेंशन मिलेगा। इसका श्रेय भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को जाता है। पिछले दिनों पटना के क्षेत्रीय कार्यालय में एक समारोह का आयोजन किया गया। केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने दीप जलाकर समारोह का उदघाटन किया। इस अवसर पर पेंशनधारकों को सम्मानित भी किया गया।
इस अवसर पर श्री पासवान ने कहा कि 3-4 सौ रुपयों से रिटायर कर्मचारियों का भविष्य कैसे संवर सकता है! इसलिए प्रधानमंत्री ने पेंशन की राशि में बढ़ोतरी कर दी है। अब किसी भी कर्मचारी को न्यूनतम एक हजार रुपए मिलेंगे। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव, सांसद रामकृपाल यादव आदि ने भी विचार व्यक्त किए।

अब मिड डे मील में बच्चों को मिलने लगा अंडा

दानापुर : सूबे के शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल ने कहा है कि राज्य सरकार ने मिड डे मील में बच्चों को अंडा देने का निश्चय किया है। जो बच्चे शाकाहारी होंगे, उन्हें फल दिया जाएगा। सप्ताह में कितने दिन अंडे मिलेंगे और कब से मिलेंगे, इसे लेकर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इस बीच आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को अंडा दिया जाने लगा है। 
ज्ञात हो कि दानापुर प्रखंड में 226 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। इन केन्द्रों पर बच्चों को अंडा मिलने लगा। वहीं प्रखंड पर्यवेक्षक एस. मिंज ने 29 बच्चों को पोशाक खरीदने के लिए प्रति बच्चे 250 रुपए दिये। कौथवां ग्राम पंचायत अन्तर्गत आंगनबाड़ी केन्द्र, कोड संख्या 44 में बच्चों को उबला अंडा खाने को दिया गया। यहां की सविता देवी सेविका और सोना देवी सहायिका हैं। 
लोगों ने बताया कि कौथवां ग्राम पंचायत के मुखिया की उपेक्षा के कारण 2006 से केन्द्र का भवन नहीं बन पा रहा है। यहां पर गैरमजरूआ आम भूमि है। यहां 40 बच्चे पढ़ते हैं। एक छोटे से कमरा में बच्चे पढ़ने को बाध्य हैं। बतौर 200 रुपए किराया दिया जाता है। आठ गर्भवती और आठ दूध पिलाने वाली मां को टेक होम राशन मिलता है। इसके अलावा सात माह पूर्ण करने वाली 40 गर्भवती महिलाओं को तीन साल तक टीएचए दिया जाता है। 14 से 18 उम्र की किशोरियों को भी टीएचए मिलता है। 
इस केन्द्र के अंतर्गत महादलित मुसहर समुदाय के लोग आते हैं। ये अंधविश्वास से ग्रस्त हैं। गरीबी काफी है। इन्दिरा आवास योजना से निर्मित उनके मकान ध्वस्त हो गए हैं। सीएम जीतन राम मांझी की बिरादरी के लोग हैं। 

हर गरीब का अपना मकान का सपना 2022 तक होगा सच 

पटना : पिछली सरकार के समय आगरा में एक जनसंगठन द्वारा आयोजित एक आमसभा में शिरकत करने आये पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इन्दिरा आवास योजना की राशि में बढ़ोतरी करने की घोषणा की थी। इसके तहत इन्दिरा आवास योजना यानी आईएवाई से सामान्य क्षेत्र के लाभान्वितों को 70 हजार रुपए और नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लाभान्वितों को 75 हजार रुपए मिलेंगे। इस बढ़ोतरी को मोदी सरकार ने मानते हुए आईएवाई की राशि में वृद्धि कर दी है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने ऐलान किया कि अब आईएवाई के तहत सभी लाभान्वितों को सामान्य क्षेत्र में 70 हजार के बदले 95 हजार रुपए और नक्सलग्रस्त व पहाड़ी क्षेत्रों में 75 हजार के बदले एक लाख रुपए मिलेंगे। इसके बाद सामान्य क्षेत्र में 115 लाख रुपए और नक्सल क्षेत्र में 125 लाख रुपए करने की योजना भी हैं। वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा। यह वादा भी किया गया कि हरेक गरीब के अपना मकान का सपना 2022 तक साकार कर दिया जाएगा।
अब जिनका नाम बीपीएल सूची में नहीं है, उन्हें भी ग्राम सभा की स्वीकृति से इन्दिरा आवास मिलेगा। ग्रामीण आवास मिशन के तहत आवासविहीन सभी लोगों को अगले 7 सालों में आवास उपलब्ध कराया जाएगा। इसमें आवास के साथ ही शौचालय, पीने का पानी और बिजली की भी व्यवस्था होगी। 70 हजार रुपए के साथ मजदूरी चार्ज के रूप में 15 हजार रुपए और शौचालय निर्माण के लिए 10 हजार रुपए यानी एक इंदिरा आवास पर 95 हजार रुपए दिए जायेंगे। इसी तरह नक्सलग्रस्त व पहाड़ी क्षेत्रों में 75 हजार रुपए के साथ मजदूरी चार्ज के रूप में 15 हजार रुपए और शौचालय निर्माण के लिए 10 हजार रुपए यानी एक इंदिरा आवास पर एक लाख रुपए दिए जायेंगे। 
दलित अधिकार मंच के प्रांतीय अध्यक्ष कपिलेश्वर राम ने घर का अधिकार कानून बनाने पर बल दिए हैं। साथ ही अरबन और रूरल एरिया में अधूरा निर्मित इंदिरा आवास को पूरा करवाने का आग्रह किया है। खराब अवस्था में पड़े इन्दिरा आवास के लाभान्वितों को आईएवाई से लाभ देने का आग्रह किया गया है। इसके साथ ही अरबन एरिया में जिस जमीन पर लोग रहते हैं, उसपर आईएवाई की तरह ही मकान निर्माण करवाने की राशि उपलब्ध करायी जाए। वहीं केन्द्र सरकार द्वारा इन्दिरा आवास निर्माण की संख्या में कटौती पर चिन्ता व्यक्त की गयी। 

पटना नगर निगम के दैनिक मजदूरों की जिन्दगी बेहाल

पटना : पटना नगर निगम के अंचलों में दैनिक मजदूर के रूप में काम करने वालों की संख्या काफी है। वे लंबे समय से दैनिक मजदूर की तरह काम कर रहे हैं और इसी दशा में अवकाशप्राप्त भी कर लेते हैं। ये सभी दलित व महादलित वर्ग से हैं। इन्हीं में से एक हैं नूतन अंचल के वार्ड नम्बर 15 के वैशाखी मांझी। ये दैनिक मजदूर के रूप में अपनी जिन्दगी के 30 साल खपा चुके हैं। इन्हें आजतक ना तो स्थाई किया गया और ना ही किसी तरह की पदोन्नति मिली। मजदूरी में इजाफा भी नहीं किया गया है। इनके जैसे कई अन्य मजदूर भी हैं। 
मजदूरों का वेतन 26 जून, 2014 को जमा किया गया था। इसके बाद से मजदूरों के खाते में उनका वेतन जमा नहीं किया गया। परिणाम यह निकला कि मजदूर महाजनों के द्वार पर दस्तक देने लगें। ये अधिक ब्याज पर कर्ज ले रहे हैं। इस कारण मजदूरों की माली हालत चरमराती जा रही है। 
हार्डिंग रोड, हज भवन के पीछे झोपड़पट्टी में दैनिक मजदूर वैशाली मांझी रहते हैं। इनके पुत्र सुग्गा मांझी और करीमन मांझी भी वार्ड नम्बर 15 में मजदूरी करते हैं। सुग्गा मांझी 15 साल से और करीमन मांझी 10 साल से काम कर रहे हैं। आजतक स्थायी नौकरी नहीं हुई। वैशाली मांझी के पुत्र लड्डू मांझी वार्ड नम्बर 10, रंजीत मांझी वार्ड नम्बर 11 और दामाद सोनू मांझी वार्ड नम्बर 12 में कार्यरत हैं। ये तीनों मजदूर तीन साल से काम कर रहे हैं। इन मजदूरों को 184 रुपए दैनिक मजदूरी की दर से 26 दिनों की मजदूरी 4,784 रुपए मिलते हैं।

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

फाॅरवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में छापेमारी, अक्टूबर अंक जब्त

न्यूज@ई-मेल
पटना : हिन्दी-अंग्रेजी की मासिक पत्रिका फॉरवर्ड प्रेस के नई दिल्ली स्थित संपादकीय कार्यालय में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने छापेमारी की और चार कर्मचारियों को उठा ले गयी। साथ ही, पत्रिका के अक्टूबर अंक को जब्त कर लिया। पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ फाॅरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने गुरुवार को जारी बयान में कहा कि फाॅरवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में वसंतकुंज थाना, दिल्ली पुलिस के स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों द्वारा की गयी तोड़फोड़ व हमारे चार कर्मचारियों की अवैध गिरफ्तारी की हम निंदा करते हैं। फाॅरवर्ड प्रेस का अक्टूबर, 2014 अंक ‘बहुजन-श्रमण परंपरा’ विशेषांक के रूप में प्रकाशित है तथा इसमें विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों व नामचीन लेखकों के शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हैं। 
श्री रंजन ने कहा कि विशेषांक में ‘महिषासुर और दुर्गा’ की कथा को बहुजन पाठ चित्रों व लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। लेकिन, अंक में कोई भी ऐसी सामग्री नहीं है, जिसे भारतीय संविधान के अनुसार आपत्तिजनक ठहराया जा सके। बहुजन पाठों के पीछे जोतिबा फूले, पेरियार, डॉ आम्बेडकर की एक लंबी परंपरा रही है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए इस हमले की भर्तसना करते हुए यह भी कहना चाहते हैं कि यह कार्रवाई स्पष्ट रूप से भाजपा में शामिल ब्राह्मणवादी ताकतों के इशारे पर हुई है। 
उन्होंने कहा कि देश के दलित-पिछड़ों और आदिवासियों की पत्रिका के रूप में फाॅरवर्ड प्रेस का अस्तित्व इन ताकतों की आंखों में लंबे समय से गड़ता रहा है। फाॅरवर्ड प्रेस ने हाल के वर्षों में इन ताकतों की ओर से हुए अनेक हमले झेले हैं। इन हमलों ने हमारे नैतिक बल को और मजबूत किया है। हमें उम्मीद है कि इस संकट से मुकाबला करने में हम सक्षम साबित होंगे।

महिषासुर शहादत दिवस के कार्यक्रम में एबीबीपी छात्रों का हंगामा

9 अक्टूबर, 2014 को महिषासुर शहादत दिवस के कार्यक्रम में एबीबीपी के छात्रों ने जिस प्रकार की हिंसात्मक वारदात को अंजाम दिया, वह वाकई चिंताजनक और निंदनीय है। 9 अक्टूबर के दिन कैम्पस महिषासुर के मुद्दे पर देखते-देखते दो ध्रुवों में बंट गया। जाहिर है कि महिषासुर के समर्थक छात्रों की संख्या ज्यादा थी, परन्तु परिषद् के छात्रों ने अपने प्रायोजित कार्यक्रम के अनुसार कार्यक्रम स्थल पर हिंसात्मक उपद्रव मचाया। वे ‘भारत माता की जय’ और ‘दुर्गा माता की जय’ का नारा लगाते हुए कार्यक्रम के बीचोबीच पहुंच कर व्यवधान डालने की कोशिश करते रहे। उन्होंने कावेरी छात्रावास के शीशे और दरवाजे तोड़ दिए। महिषासुर के समर्थक छात्रों से उनकी हाथापाई भी हुई, जिसमें कई छात्र-छात्राओं को चोंटे भी आई। इस हिंसात्मक संघर्ष के क्रम में महिषासुर समर्थक छात्रों ने बराबर शांति-व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश की।
एक घंटे चले इस कार्यक्रम में जेएनयू के लगभग सभी प्रगतिशील संगठनों के प्रतिनिधियों ने महिषासुर पर अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद महिषासुर की जयघोष के साथ छात्रों ने जेएनयू परिसर में एक प्रोटेस्ट मार्च भी निकाला। 
गौरतलब है कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिवस मनाने की शुरुआत 2011 में एक लम्बे संघर्ष के बाद हुई। विदित है कि 2011 के दशहरा के अवसर पर आॅल इण्डिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम ने प्रेमकुमार मणि द्वारा लिखित ‘किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन’ नामक आलेख जेएनयू की दीवारों पर चिपकाया। इस पोस्टर को लेकर जेएनयू में तनाव का माहौल बन गया। विद्यार्थी परिषद् के छात्रों ने इसके विरोध में विश्वविद्यालय प्रशासन से धार्मिक भावनाओं के आहत होने की शिकायत की। पूरे मामले में एक नया मोड़ तब आ गया, जब परिषद् के छात्रों ने एआईबीएसएफ के अध्यक्ष जितेन्द्र यादव और उनके साथियों पर हमला किया। जेएनयू प्रशासन ने मामले पर त्वरित कार्यवाही करते हुए हमलावर छात्रों को दण्डित करने के बजाय जितेन्द्र यादव को ही धार्मिक भावनाओं के आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया। बहरहाल, जेएनयू प्रशासन और सांप्रदायिक शक्तियों के गठजोड़ के विरोध में जेएनयू के छात्रों ने प्रगतिशील मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई। जएनयू प्रशासन को इस मुद्दे पर माफी मांगनी पड़ी। महीने भर चले इस गतिरोध के बाद जेएनयू के छात्रों ने इस संघर्ष में हुई जीत से उत्साहित होकर 24 अक्टूबर, 2011 को महिषासुर शहादत दिवस मनाया। तब से यह क्रम प्रत्येक वर्ष चल रहा है।
वीरेन्द्र कुमार यादव फाॅरवर्ड प्रेस के पटना संवाददाता हैं।

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

आरा में पांच महादलित महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म

आरा : बिहार के भोजपुर जिले के सिकरहटा थाना क्षेत्र में एक कबाड़ी की दुकान (कबाड़खाना) में हथियार के बल पर महादलित परिवार की पांच महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना प्रकाश में आई है। पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। 
पुलिस के अनुसार, तरारी थाना क्षेत्र में पांच महिलाएं कबाड़ चुनने के बाद उसे बेचने के लिए बुधवार की शाम पास के गांव गई थीं। कबाड़ी दुकानदार ने खुदरा पैसा नहीं होने और कुछ देर में पैसा देने की बात कह कर उन्हें रोक लिया। आरोप है कि शाम होने के बाद तीन लोगों ने हथियार के बल पर सभी महिलाओं को जबरदस्ती शराब पिलाई और उसके बाद बारी-बारी से उनके साथ दुष्कर्म किया। आरोपियों ने पीडि़तों को इस बारे में किसी से नहीं बताने की धमकी भी दी।
बदहवास महिलाएं जब देर रात घर पहुंचीं, तो उन्होंने सारी बात घरवालों को बताई। गुरुवार को इसकी सूचना पुलिस को दी गई, जिसके बाद पुलिस हरकत में आई। पुलिस ने गुरुवार देर शाम पीडि़ताओं से पूछताछ की तथा घटनास्थल पर जाकर छानबीन की।
भोजपुर के पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार ने बताया कि इस मामले में एक प्राथमिकी संबंधित थाना में दर्ज कराई गई है, जिसमें कबाड़ी दुकान के मालिक उसके कर्मचारी जग्गू और उसके भाई को आरोपी बनाया गया है। एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि पीरो के पुलिस उपाधीक्षक कृष्ण कुमार सिंह क्षेत्र में मौजूद हैं। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है। घटना के विरोध में भाकपा (माले) के कार्यकर्ता शुक्रवार को सुबह सड़कों पर उतर आए। वे फतेहपुर-सिकरहटा मार्ग पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

Jharkhand Govt. Has No Funds For Minority School

जान बचाने को 350 दलितों ने छोड़ा गांव

खास खबर
गया : बिहार के एक गांव के 350 से अधिक दलित अपने गांव को छोड़ कर चले गए हैं। यह गया जिले के टेकारी प्रखंड का एक पूरा गांव है। इस गांव के लगभग सौ दलित परिवार लगातार मिल रही धमकी के कारण 25 सितंबर को गांव से पलायन कर गए। पलायन करने वालों में से एक ग्रामीण लालजीत कुमार मांझी ने बताया कि एक हत्या के अभियुक्तों के परिजनों की ओर से दिए जा रहे धमकी के कारण वे सब गांव छोड़ने पर मजबूर हुए हैं।
घटना के संबंध में गया के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि जिला प्रशासन इन ग्रामीणों का विश्वास हासिल कर उन्हें गांव लौटाने के प्रयासों में जुटा है। उन्होंने बताया कि हत्या के मुख्य अभियुक्त ऋषि शर्मा को शनिवार दोपहर गिरफ्तार कर लिया गया और गांव में पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है। साथ ही गांव के दलित टोले में पुलिस चैकी के स्थापना को भी स्वीकृति दे दी गई है।
सूचना के मुताबिक 19 सितंबर की रात महादलित समुदाय के एक युवक अर्जुन मांझी की हत्या कर दी गई थी। हत्या का संबंध सहकारी समिति (पैक्स) चुनाव से जुड़ा बताया जा रहा है।
गांव छोड़ने का सामूहिक फैसला : हत्या से संबंधित एफआईआर में गांव के ही सवर्ण जाति के सात लोग अभियुक्त हैं। ग्रामीणों के अनुसार, एफआईआर के बाद उन्हें लगातार धमकियां मिलने लगीं और फिर जब पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने में विफल रही, तो उन्होंने सामूहिक रूप से गांव छोड़ने का फैसला किया।
ग्रामीण अर्जुन मांझी के अनुसार, ग्रामीणों की योजना गया जाकर धरना देने की थी। लेकिन, प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वे टेकारी प्रखंड स्थित मोटीवेशन सेंटर में शरण लेने को तैयार हुए। ग्रामीणों की मांग है कि सुरक्षा के लिहाज से सरकार उन्हें किसी दूसरी जगह पर बसाए। इस संबंध में जिलाधिकारी का कहना है कि ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाना आसान है, लेकिन इससे पीडि़त परिवारों की परेशानी हल नहीं होगी।
जिलाधिकारी ने कहा कि उन्होंने ग्रामीणों से लौटने का आग्रह किया है। भविष्य में जिला प्रशासन पीडि़त परिवारों को न सिर्फ सुरक्षा मुहैया कराएगा, बल्कि उनके टोले को बिजली से जोड़ा जाएगा और वहां विकास संबंधी दूसरे कामों को जल्द से जल्द अमली जामा पहनाया जाएगा।
दूसरी ओर बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग की दो सदस्यीय टीम प्रभावित लोगों से मिलकर घटना की जांच करेगी। आयोग के अध्यक्ष विद्यानंद विकल ने बताया कि उन्होंने जिला प्रशासन को दलितों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, विकल ने यह भी कहा कि लक्ष्मणपुर बाथे और बथानी टोला के अभियुक्तों की रिहाई के कारण भी सूबे में दलित उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं।
अमर उजाला डाॅट काॅम से साभार

शनिवार, 13 सितंबर 2014

दलितों के विकास के लिए खोज रहा हूं जोड़ीदार : मांझी

संक्षिप्त खबर
पटना : सूबे के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी दलितों के हित के लिए जोड़ीदार बनाने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि मैं खुद कार्यपालिका देख रहा हूं और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चैधरी विधायिका। अब तीसरे जोड़ीदार की खोज जारी है, जो न्यायपालिका का कार्य देख सकें। हम चाहते हैं कि तीन जोड़ीदारों के बल पर वंचित समुदाय के लिए बिहार में शानदार कार्य किया जा सके। 
पिछले दिनों (07 सितम्बर) दलित अधिकार मंच के तत्वावधान में महादलित समारोह का आयोजन किया गया। मुख्यमंत्री श्री मांझी ने समारोह का उद्घाटन किया। मुख्य अतिथि बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चैधरी थे। समारोह की अध्यक्षता बाबू लाल मांझी और संचालन नरेश मांझी ने किया। 
इस अवसर पर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि अगर दलितों की जनसंख्या को सही ढंग से सर्वें कराया गया, तो हम आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा होंगे। इतनी जनसंख्या अन्य जातियों की नहीं है। अगर ऐसा होता है, तो दलित ही मुख्यमंत्री होंगे। उन्होंने कहा कि एकदिन दलितों का ही राज होगा! 
मुख्यमंत्री ने कहा कि अब नगर निगम क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भी वासगीत पर्चा मिलेगा। लेकिन, यह जरूरी है कि वे पिछले 12 सालों से क्षेत्र में रह रहे हों। वासगीत पर्चा महिलाओं के नाम से जारी किया जाएगा। इसी तरह इन्दिरा आवास योजना के तहत ग्रामीण और अरबन एरिया में राजीव आवास योजना से बहुमंजिला भवन बनेगा। उन्होंने कहा कि अधिकारी काफी कम संख्या में प्रोजेक्ट बनाते हैं। उनका तर्क होता है कि धनराशि नहीं है। अधिकारियों का काम तो प्रोजेक्ट बनाना है, अगर धनराशि कम पड़ेगी तो वे खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के घर के सामने धरना देंगे और अधिक धनराशि देने की मांग करेंगे। 
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि महादलित अंधविश्वास से निकलें। बीमार पड़ने पर सीधे सरकारी अस्पतालों में जाएं। सारी व्यवस्था दुरूस्त हो गयी है। झोलाछाप और माथा हिलाने वाले भगत और भक्तिनी के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने कहा कि 30 रुपए में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत स्मार्ट कार्ड बन रहा है। 534 प्रखंडों में इसकी व्यवस्था की जा रही है। इसे वार्ड स्तर तक पहुंचाया जाएगा। आरंभ में लोग 125 साल तक जीते थे। अब गिरावट आने पर 65 साल जीते हैं। इसके बावजूद मुसहर समुदाय के लोग 45 साल ही जीते हैं। उन्होंने कहा कि शराब को छोड़ देना होगा। हम दारू के बदले पानी की व्यवस्था कर रहे हैं। हरेक गांव में 5 चापाकल लगेंगे। युवाओं को विभिन्न तरह का प्रशिक्षण दिया जाएगा। युवा मनचाहा हुनर प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही बच्चों को स्कूल पढ़ने के लिए भेजें। सरकार मिड डे मील, पोशाक, किताब, छात्रवृति आदि मुहैया करती है। अब 40 परिवारों के ऊपर एक स्कूल खोलने का आदेश दिया गया है। इससे आप लाभ उठायें।

विधायक भी कर रहे भेदभाव

पटना : सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक मंचों पर हम यह दावा भले ही करते हों कि समाज बदल रहा है, सोच बदल रहा है। सामाजिक समरसता आ रही है। लेकिन, यथार्थ में ये सारी बातें बकवास ही नजर आती हैं। गुरुवार को पटना में नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ ग्रहण समारोह में यह बात साफ तौर पर दिखी कि सम्मान देने की परंपरा को जातियों में बांट दिया। नीतीश कुमार व दूसरे सवर्ण नेताओं के चरण स्पर्श करने वाले कई विधायक महादलित मुख्यमंत्री व स्पीकर को सम्मान देने में झेपते नजर आए। विधायक ऋषि मिश्रा ने इन दोनों के सामने सिर झुकाना भी उचित नहीं समझा।

गरीबों के स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर सीएम की बैठक

पटना : पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की अध्यक्षता में गया में एक बैठक हुई। इस बैठक का उद्देश्य केन्द्र प्रायोजित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत ज्यादा से ज्यादा गरीबों को लाभ पहुंचाना था। इसी क्रम में अब बीपीएल परिवारों के अलावा बीड़ी मजदूर, घरेलू कामगारों, मनरेगा मजदूरों, निर्माण श्रमिकों, रेलवे कुली, वेंडरों को भी इसमें शामिल करने का निर्णय लिया गया है। इसके बावजूद रिक्शा चालक, ऑटो रिक्शा चालक, जीप चालक और ईंट भट्ठा मजदूर इस लाभ से वंचित रह गये। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के कार्यान्वयन पर राज्य में वर्ष 2014-15 में 75 करोड़ खर्च होंगे। ज्ञात हो कि यह योजना गरीबी रेखा से नीचे जीवन वसर कर रहे लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा देने लिए शुरू की गई थी। 
सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहते थे कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत ओपीडी मरीजों को भी स्मार्ट कार्ड का लाभ मिले। ओपीडी में स्मार्ट कार्डधारियों को 40 फीसदी रियायते दी जाए, जो लागू नहीं हो सका। इसकी शिकायत भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के कार्यपालक अधिकारी से की गयी थी। 
जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में 66 प्रतिशत अंक लेकर केरल अव्वल स्थान पर है। वहीं 53 प्रतिशत अंक लेकर पड़ोसी उत्तर प्रदेश द्वितीय और 47 प्रतिशत अंक लेकर बिहार तृतीय स्थान पर है। 
बिहार में बीड़ी मजदूरों की संख्या करीब एक लाख 99 हजार और स्ट्रीट वेंडरों की संख्या करीब एक लाख 55 हजार है। वहीं घरेलू कामगारों की संख्या उपलब्ध नहीं है। रेलवे बोर्ड के अनुसार, 22 हजार की संख्या में रेलवे मजदूर हैं। बिहार में 30 रुपए में बीमा करके स्मार्ट कार्ड बनता है। इस स्मार्ट कार्ड से परिवार के 5 लोगों का ईलाज अस्पताल में भर्ती कर किया जाता है। प्रति व्यक्ति 30 हजार रुपए तक व्यय किया जाता है। इसमें अस्पताल का बिल, भोजन, यात्रा भत्ता शामिल है। वहीं आंध्रप्रदेश की सरकार ने राशि को बढ़ाकर 2 लाख रुपए तक कर दिया है। 

केबीसी से अर्चना ने जीते 50 लाख रुपए

रांची : अर्चना तिर्की ने लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति से 50 लाख जीत लिए हैं। हालांकि उसके सामने एक करोड़ रुपए के लिए भी प्रश्न रखे गये थे। लेकिन, उत्तर पता नहीं होने के कारण अर्चना ने बीच में ही गेम छोड़ना बेहतर समझा। अर्चना बैंक आॅफ बड़ौदा में अधिकारी हैं। खेल के क्रम में जब तारीफ करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा कि अर्चना जी सदैव मुस्कराती रहती हैं। इसके जवाब में अर्चना तिर्की ने कहा कि रोने के लिए भगवान ने बहुत कुछ दिया है। ज्ञात हो कि अर्चना की बेटी अनन्या एक गंभीर बीमारी से जुझ रही है। अब उसे विश्वास है कि केबीसी से जीते हुए पैसों से वह अपनी बेटी का बेहतर ईलाज करा पाएगी।

इंसेफ्लाइटिस से गंवाना पड़ा आंख

पटना : महादलित अर्जुन मांझी और रीता देवी की पुत्री सुमन कुमारी आंख से देख नहीं पाती है। उसे इंसेफ्लाइटिस नामक बीमारी है। ज्ञात हो कि उत्तर बिहार में इंसेफ्लाइटिस बीमारी से अबतक सैकड़ों बच्चों की मौत हो चुकी है। इस मामले में अर्जुन और रीता भाग्यशाली रहे। आंख गंवाने के बाद भी सुमन की मौत नहीं हुई। रीता देवी कहती है कि सभी जगहों पर दिखाकर हम हार चुके हैं। इसकी बीमारी जाने का नाम ही नहीं ले रही है। कई डाॅक्टरों को दिखाया गया। झारफूंक भी करवाया गया। डाॅक्टर कहते हैं कि सुमन के आंख का एक नस सूख गया है। इस कारण ही वह अंधी हो गयी है। ईलाज में अबतक काफी रुपए खर्च हो चुके हैं। ज्ञात हो कि अर्जुन और रीता कचरे के ढेर से रद्दी कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुन और उसे बेचकर अपना परिवार चलाते हैं।

पाटलिपुत्र जंक्शन बनाम विस्थापित

पटना : पाटलिपुत्र जंक्शन बनकर तैयार है। इसकी उद्घाटन तिथि अबतक कई बार बदलनी पड़ी है। इस कारण अभी रेल का परिचालन दानापुर जंक्शन से किया जा रहा है। पाटलिपुत्र जंक्शन से परिचालन शुरू नहीं किये जाने का कारण विस्थापितों को पुनर्वासित नहीं किया जाना है। हालांकि रेलवे ने सुरक्षा दीवार खड़ी कर लोगों को दीघा नहर के किनारे ढकेल दिया है। ज्ञात हो कि यहां 456 घरों में कमजोर वर्ग के लोग रहते हैं। लोगों ने इस मुहल्ले का नाम टेसलाल वर्मा नगर रखा था। 

डायना ने प्रधानमंत्री से की मांग

पटना : लोकसभा और विधानसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय से लोगों को प्रतिनिधित्व दिये जाने का प्रावधान है। लेकिन, झारखंड विभाजन के बाद बिहार विधानसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय से प्रतिनिधि नहीं चुना गया है। वहीं इस समुदाय से जेजी गोलस्टेन झारखंड में प्रतिनिधि हैं। 
जानकारों का कहना है कि बिहार में एंग्लो इंडियन समुदाय की संख्या काफी कम है। ऐसे में किस आधार पर बिहार विधानसभा में प्रतिनिधि दिया जाए। वहीं झारखंड में इस समुदाय की जनसंख्या अधिक है। सामाजिक कार्यकर्ता डायना ग्रेस थोमस का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 331 में स्पष्ट वर्णन है कि यदि सदन में पर्याप्त एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं है तो उन्हें चुना जाना चाहिए। इसी को आधार बनाकर तमिलनाडु की सामाजिक कार्यकर्ता डायना एंग्लो इंडियन समुदाय से होने के आधार पर लोकसभा में अपना नामांकन चाहती हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने नरेन्द्र मोदी से लोकसभा के लिए नामांकित किए जाने का आग्रह किया है। साथ ही दावा किया है कि उन्हें अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त है। इरोड में जन्मीं 33 वर्षीया डायना ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है।

पांच वर्षीया अंजली लापता

पटना : बिहटा के राघोपुर पंचायत स्थित बिहटा बंगला मुसहरी की पांच वर्षीया अंजली कुमारी पिछले 15 दिनों से लापता है। वह अपनी मां जीतनी देवी के साथ बिहटा स्टेशन से पटना के लिए रेल पर चढ़ी थी। और फिर उसे पटना से फतुहा जाना था। अंजली के पिता समन मांझी बताते हैं कि जब मां-बेटी पटना जंक्शन पर उतरीं, तो वहीं भीड़ में कहीं खो गयी। अपनी बेटी अंजली की तस्वीर लेकर पिता दर-दर भटक रहा है। परिवार, रिश्तेदारों के यहां भी काफी खोजा गया। सभी जान-पहचान वालों से पूछताछ की जा रही है। समन बताते हैं कि गायब होने के बक्त अंजली गुलाबी रंग का सलवार और कुर्ती पहनी थी। अब वे लोगों से अपील करते फिर रहे हैं कि जिसे भी वह बच्ची मिले, वह मोबाइल नंबर 9931126082 पर सूचित करे। 

शिक्षक दिवस पर गुरुजी हुए सम्मानित

पटना : श्रीकृष्णपुरी स्थित इन्दिरा गांधी कम्युनिटी हाॅल में एलेन क्लासेज के तत्वावधान में पिछले दिनों शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल थे। इस अवसर पर शिक्षा मंत्री ने डाॅ. आईसी कुमार, पूर्व कुलपति, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, सामाजिक कार्यकर्ता नरेन्द्र प्रताप मिश्रा, डीएन तिवारी, मानद परामर्शी, राहुल राज, एसके दुबे, आईडी सिंह, डाॅ. एलपी प्रभाकर, डी. सिंह, ध्रुव कुमार यादव, डाॅ. एके संतोष, डाॅ. परिमल खान, दिनेश चन्द्र और प्रेरणा को शाल, प्रसंशा पत्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। 
साथ ही डाॅं. रामदुलार दास, प्राचार्य, एसएमडी महाविघालय, जमालपुर (गोपालगंज), डाॅ. योगेन्द्र प्रसाद यादव, पृथ्वी चंद विज्ञान महाविघालय, छपरा, डाॅ. प्रभुनाथ ओझा, पूर्व प्राचार्य, राजकीय इंटर काॅलेज, अतरसन (सारण), प्रो. अवध बिहारी मिश्रा, पूर्व प्राध्यापक, जिन्नत जरीना ईस्माइल, संस्थापक, होली क्राॅस स्कूल, छपरा, रंजीता मिश्रा, राजकीय विद्यालय, महुआ (वैशाली), प्रो. अमरेन्द्र नारायण सिंह, भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, डाॅ. बिहारी सिंह, एएन काॅलेज, पटना, डाॅ. परशुराम सिंह, नव नालंदा विश्वविद्यालय, नालंदा, वीरेन्द्र मिश्र अभय, प्रख्यात कवि, प्रदुमन प्रसाद सिंह, बेनीपुर उच्च विद्यालय, बेनीपुर, सुमिन्द्र प्रसाद सिंह, उच्च विद्यालय, कल्याणपुर, बैद्यनाथ सिंह, सेवानिवृत्त शिक्षक, अनुग्रह नारायण सिंह, नरौली, बीसी राय, काॅलेज आॅफ काॅमर्स, पटना और विजय कुमार सिंह, शिक्षक, गोपालगंज को सम्मानित किया गया।

बदहाल है कौथवां ग्राम पंचायत

दानापुर : दानापुर प्रखंड में कौथवां ग्राम पंचायत है। इस पंचायत के मुखिया राजद के महासचिव बाहुबली रीतलाल यादव के पिता हैं। वहीं जदयू विधायक अरुण मांझी की दीदी का घर कौथवां मुसहरी में ही है। इसके बावजूद आजतक इस मुसहरी की सूरत नहीं बदल सकी।
कौथवां मुसहरी निवासी प्रदीप मांझी का कहना है कि रूपसपुर थानान्तर्गत चुल्हाई चक में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चैधरी आए थे। इन्हें लोगों ने एक आवेदन-पत्र सौंपा था। इस आवेदन में समस्याओं का जिक्र था। इसके बावजूद यहां विकास कार्य पर ध्यान नहीं दिया गया। 
ज्ञात हो कि ये महादलित यहां कई दशक से रह रहे हैं। करीब 20 साल पहले इन्दिरा आवास योजना से मकान बनाया गया था। आज सभी मकान जर्जर अवस्था में हैं। साथ ही, महादलितों को न तो वासगीत पर्चा दिया गया है और न ही जमीन उनके नाम से की गयी है। स्त्री-पुरुष बाहर खुले आकाश के नीचे शौचक्रिया को बाध्य हैं। आजतक इस मुसहरी ने बिजली की रोशनी नहीं देखी है।
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