COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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सोमवार, 2 मार्च 2015

मोटी पत्नी

  Kaka  Hathrasi  
  बुरा ना मानो होली है  
काका हाथरसी

ढाई मन से कम नहीं, तौल सके तो तौल 
किसी-किसी के भाग्य में, लिखी ठौस फुटबौल
लिखी ठौस फुटबौल, न करती घर का धंधा
आठ बज गये किंतु पलंग पर पड़ा पुलंदा
कहँ ‘काका‘ कविराय, खाय वह ठूँसमठूँसा
यदि ऊपर गिर पड़े, बना दे पति का भूसा।

2.  जम और जमाई

बड़ा भयंकर जीव है, इस जग में दामाद
सास-ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद
कर देता बरबाद, आप कुछ पियो न खाओ
मेहनत करो, कमाओ, इसको देते जाओ
कहॅं ‘काका‘ कविराय, सासरे पहुँची लाली
भेजो प्रति त्यौहार, मिठाई भर-भर थाली।
लल्ला हो इनके यहाँ, देना पड़े दहेज
लल्ली हो अपने यहाँ, तब भी कुछ तो भेज
तब भी कुछ तो भेज, हमारे चाचा मरते
रोने की एक्टिंग दिखा, कुछ लेकर टरते
‘काका‘ स्वर्ग प्रयाण करे, बिटिया की सासू
चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू।
जीवन भर देते रहो, भरे न इनका पेट
जब मिल जायें कुँवर जी, तभी करो कुछ भेंट
तभी करो कुछ भेंट, जँवाई घर हो शादी
भेजो लड्डू, कपड़े, बर्तन, सोना-चाँदी
कह ‘काका‘, हो अपने यहाँ विवाह किसी का
तब भी इनको देउ, करो मस्तक पर टीका।
कितना भी दे दीजिये, तृप्त न हो यह शख्श
तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स ?
अथवा लैटर बक्स, मुसीबत गले लगा ली
नित्य डालते रहो, किंतु खाली का खाली
कहँ ‘काका‘ कवि, ससुर नर्क में सीधा जाता
मृत्यु-समय यदि दर्शन दे जाये जमाता।
और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल
आया हिंदू कोड बिल, इनको ही अनुकूल
इनको ही अनुकूल, मार कानूनी घिस्सा
छीन पिता की संपत्ति से, पुत्री का हिस्सा
‘काका‘ एक समान लगें, जम और जमाई
फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई।।

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