COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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सोमवार, 28 अप्रैल 2014

टीबी से मर रहे महादलित

न्यूज@ई-मेल
आलोक कुमार
पटना : एलसीटी घाट मुसहरी निवासी सुदेश्वर मांझी की पत्नी चंदा देवी की मौत पिछले दिनों टीबी बीमारी से हो गयी। उसे गंगा किनारे दफन कर दिया गया। इस मुसहरी में अभी तक कइयों की मौत टीबी बीमारी से हो चुकी है। मोती मांझी और उनकी पत्नी, उनके दामाद सुरेन्द्र मांझी और उनकी पत्नी सीता देवी की मौत हो चुकी है। अभी हाल ही में ललित मांझी भी मर गया। 
ज्ञात हो कि इसी क्षेत्र में कुर्जी होली फैमिली अस्पताल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास समिति के परिसर में डाट्स सेन्टर है। यहां पर पंजीकृत रोगियों को दवा के साथ एक अंडा फ्री में दिया जाता है। यहीं से चन्दा देवी दवा खा रही थी। कुछ दिनों तक दवा खाने के बाद दवा छोड़ दी। इसके बाद फिर से बीमार पड़ी तो राजापुर-मैनपुरा स्थित स्वास्थ्य केन्द्र में जाकर टीबी की दवाई आरंभ की, मगर उसे बचाया नहीं जा सका।
पहल के निदेशक डाॅ. दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि एक्सडीआर (एक्सटंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट) एवं एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट) टीबी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। विशेषकर, एक्सडीआर टीबी की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह एड्स से भी अधिक खतरनाक है। पब्लिक अवेयरनेस फाॅर हेल्थफुल एप्रोच फाॅर लिबिंग (पहल) के निदेशक डाॅ. दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि बिहार एवं देश में नए टीबी के रोगियों में तीन से चार प्रतिशत एमडीआर टीबी एवं रिलैप्स टीबी के रोगियों में करीब-करीब 15 प्रतिशत एमडीआर टीबी पाई जा रही है। उन्होंने बताया कि इसका घातक पहलू यह है कि इस बीमारी से होने वाले संक्रमित व्यक्ति को भी इसी कैटोगरी की बीमारी होती है, जिनपर दवाओं का प्रभाव नहीं होता। प्रतिरोधक टीबी की जांच के लिए बलगम को कल्चर एवं सेंसीटीविटी के लिए भेजा जाता है, जिसमें छह से आठ सप्ताह का समय लगता है।

पट्टाहीनों को पट्टा दे सरकार

जहानाबाद : सेवनन ग्राम पंचायत में मोकर गांव है। यहां के किसी व्यक्ति ने बिन्द समुदाय को जमीन दी थी। इसपर बिन्द लोग 25 घर बनाकर रहते हैं। कोई 125 लोगों की आबादी है। कोई भी मैट्रिक पास नहीं है। इन बिन्दों को खेत में काम करवाने के लिए यहां लाया गया था। 
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सांसद डी. बंधोपाध्याय की अध्यक्षता में भूमि सुधार आयोग गठित किया था। आयोग के अध्यक्ष ने सरकार को सुझाया था कि बटाईदारों को पहचान पत्र निर्गत किया जाए। ऐसा करने से बटाईदारों को भी सरकारी क्षतिपूर्ति का लाभ मिल पाता। इस तरह की अनुशंसा को सरकार मानी नहीं। फलतः किसी तरह से फसल नुकसान होने पर बटाईदारों को सरकारी क्षतिपूर्ति का लाभ नहीं मिल पाता है। इस कारण लोगों में गुस्सा है।
राम ईश्वर बिन्द बताते हैं कि यहां के बिन्द समुदाय के सभी 25 परिवारों को सरकार ने बीपीएल श्रेणी में शामिल किया है। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत इस बार बीपीएल व एपीएल को समान रूप से योजना में शामिल कर लिया गया है। सभी को 5 किलोग्राम अनाज प्रति व्यक्ति के हिसाब से मिलने लगा है। दूसरी तरफ इंदिरा आवास योजना का लाभ कुछेक को मिला है। अभी और लोग हैं, जिनका मकान नहीं बना है। इसके अलावा सभी को वासगीत पट्टा भी मिलना चाहिए, यह आजतक नहीं मिला है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी से आग्रह किया गया है कि आम चुनाव के बाद अधिकारियों को भेजकर वासगीत पट्टा निर्गत कर दिया जाए। 

भूमि अधिकार घोषणा पत्र लागू हो

पटना : ‘जल, जंगल, जमीन की जंग में वंचित समुदाय संग में’ का नारा बुलंद करने वाली एकता परिषद के द्वारा भूमि अधिकार घोषणा पत्र जारी किया गया है। अभी राजनीतिक दलों के द्वारा आम चुनाव के अवसर पर घोषणा पत्र जारी करना है। इसके आलोक में भूमि अधिकार घोषणा पत्र जारी किया गया है। 
भूमि के मसले पर व्यापक कार्रवाई करने के लिए नवान्तुक सरकार और सांसद को मुद्दा थमा दिया गया है। यह है ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनों और आवासहीनों को भूमि अधिकार सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और अनुपालन। सामाजिक न्याय की पुनस्र्थापना के लिए ‘राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून’ तथा ‘कृषि भूमि वितरण कानून’ के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण भूमिहीन तथा आवासहीनों को भूमि अधिकार सुनिश्चित कराना है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक भूमिहीन और आवासहीन परिवारों को भूमि अधिकार देने के लिए ‘न्यूनतम भूमि धारिता कानून’। भूमि अधिकार और सुधार को लागू करने के लिए राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर पूर्णकालिक भूमि सुधार आयोग का गठन करना। राज्य तथा जिला स्तर पर वैधानिक मार्गदर्शन देने तथा गरीबों को कानूनी मदद देने के लिए त्वरित न्यायालय तथा कानूनी मार्गदर्शन केन्द्र की स्थापना करना। आदिवासी तथा दलितों को अवैध भूमि हस्तांतरण को सख्ती से रोकने के लिए मौजूदा कानूनों को लागू करना। दलित भूमि हस्तांरण (निरोधक) कानून की घोषणा और अनुपालन ताकि दलित समाज को व्यक्तिगत और सामुदायिक मानवाधिकार के वृहद, दृष्टिकोण से भूमि तथा कृषि सुधार नीतियां और कानूनों का अनुपालन। ‘सामुदायिक संसाधन एवं संवर्धन बोर्ड’ की स्थापना के माध्यम से ग्राम सभा को सशक्त करना। पंचायत (विस्तार उपबंध) अधिनियम-1996 को वैधानिक सर्वोच्चता प्रदान करना। नगरीय सीमा (विस्तार उपबंध) अधिनियम का निर्माण और लागू करना। राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर ‘वनाधिकार आयोग’ का गठन करते हुए आदिवासियों और परंपरागत वनवासियों को अधिकार सुनिश्चित करना। ‘राष्ट्रीय आदिवासी नीति’ की घोषणा और अनुपालन। ‘महिला भूमि अधिकार कानून’ की घोषणा और अनुपालन ताकि आधी आबादी को उनका अधिकार सुनिश्चित किया जा सके।

‘हमारा अधिकार, हमारी आवाज’ को बुलंद रखें: अभिनव

मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले दिनों कोई 17 जिलों से समुदाय आधारित संगठनों (सीबीओ) ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर सीबीओ के लगभग 2,000 लोग उपस्थित थे। जन उत्सव पर एकत्रित हुए सीबीओ ने अपनी उपलब्धियों को बताया। जमीनी स्तर से मिली सीख को साझा किया। स्थानीय लोक नृत्य और संगीत पेश किया गया। गर्भवती माताओं और बच्चों की देखभाल के लिए, किशोरों की शादी को लेकर उत्पन्न समस्याओं पर भी चर्चा हुई। स्थानीय समुदायों के हकों पर प्रकाश डालते हुए समारोह के लिए एक सांस्कृतिक संवाद की पेशकश की गयी।
इससे पहले पैक्स के हेड अभिनव कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पैक्स की शक्ति और ऊर्जा आज यहां मौजूद है। जन समुदाय के भीतर हमारे कार्यक्रम को विकसित किया गया। अब नेतृत्व क्षमता को देखना और उन्हीं के नेतृत्व में उत्सव करना है। दो दिनों तक जश्न मनाया गया। उन्होंने कहा कि ‘हमारा अधिकार, हमारी आवाज’ को लेकर ग्रामीण मुद्दों को उछालते रहना है। 
इस अवसर पर यहां रैली भी निकाली गयी। साथ ही स्वास्थ्य एवं भूमि अधिकार की मांग, रोजगार गारंटी कानून एवं वन अधिकार कानून में व्यापक सुधार करने की मांग की गयी। देश में 17 जिलों को सबसे पिछड़े जिलों के रूप में चिह्नित किया गया। पैक्स (पूअरेस्ट एरियाज सिविल सोसायटी) एवं 15 अन्य सहयोगी स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा निशात मंजिल में ‘जन उत्सव’ का आयोजन किया गया।

प्रधानमंत्री को याद दिलाने के लिए भेजा पोस्टकार्ड

अरवल : एकता परिषद द्वारा पोस्टकार्ड अभियान चलाया गया। इसके तहत हजारों की संख्या में आवासीय भूमिहीन प्रधानमंत्री के नाम पाती भेज चुके हैं। इसके माध्यम से भूमिहीनों ने माननीय प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि ग्वालियर से चलकर सत्याग्रही अक्तूबर, 2012 को आगरा पहुंचे थे। तब केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और जन सत्याग्रह 2012 के महानायक पी.व्ही. राजगोपाल के संग ऐतिहासिक समझौता हुआ था। अब किये गये समझौते की याद प्रधानमंत्री को दिलायी जा रही है। साथ ही आवास भूमि अधिकार कानून बनाने की मांग की जा रही है।
अभियान का नेतृत्व कर रहे प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि अबतक सूबे से हजारों की संख्या में भूमिहीनों ने पोस्टकार्ड पर अपना दुखड़ा लिखकर भेजा है। एकता परिषद, बिहार संचालन समिति की सदस्य मंजू डुंगडुंग ने कहा कि बिहार में लाखों महिलाओं के पास सिर्फ 1-2 धूर ही जमीन है। इसी अल्प जमीन पर पूरे परिवार का जीवन गुजरता है। उन्होंने कहा कि जनादेश 2007 और जन सत्याग्रह 2012 में जन संगठनों द्वारा की गयी मांगों को केन्द्र सरकार ने अनदेखा कर दिया है। यूपीए सरकार के मुखिया को स्मरण करवाने के लिए अब पोस्टकार्ड भेजा जा रहा है। 

स्मार्ट कार्ड को लेकर गरीबों का मोहभंग

गया : राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) के तहत बनने वाले स्मार्ट कार्ड की राशि 30 रुपए को बढ़ाकर सीधे दोेगुना 60 रुपए कर दिया गया। स्मार्ट कार्ड बनवाने की राशि दोगुना कर देने से गरीबों में आक्रोश है। इनका कहना है कि सरकार पहले 30 रुपए में 30 हजार रुपए का इलाज करवाने की सुविधा देती थी। अब राशि 60 रुपए कर दी गयी है, तो 60 हजार रुपए के इलाज की सुविधा दी जानी चाहिए।
ज्ञात हो कि केन्द्र सरकार ने बीमा कम्पनी के साथ समझौता कर रखा है। इसके तहत एक परिवार के 5 सदस्यों के लिए स्मार्ट कार्ड 30 रुपए में बनाना है। स्मार्ट कार्ड बन जाने पर कार्डधारी अस्पताल में 30 हजार रुपए तक का इलाज करा सकेंगे। तीस हजार रुपए में एक जन अथवा 4 अन्य पर खर्च किया जा सकेगा। लेकिन, अब 30 रुपए में स्मार्ट कार्ड नहीं बनेगा। इसकी कीमत दोगुनी कर दी गयी है। अब गरीबों को स्मार्ट कार्ड के लिए 60 रुपए देने पडं़ेगे। भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि स्मार्ट कार्ड बनाने में अधिक खर्च होता है। इसी कारण से कीमत में बढ़ोतरी की गयी है। अगर बढ़ी राशि को राज्य सरकार वहन करें तो कोई आपत्ति नहीं है।
प्रगति ग्रामीण विकास समिति के परियोजना समन्वयक अनिमेश निरंजन का कहना है कि महंगाई को देखते हुए 60 हजार रुपए बीमा कंपनी को इलाज के लिए देना चाहिए। साथ ही 5 के बदले 6 सदस्यों का इलाज होना चाहिए। इस तरह एक ही परिवार के 6 सदस्यों का ईलाज 60 हजार रुपए में हो सकेगा। आरएसबीवाई के तहत निर्गत स्मार्ट कार्ड से केवल इनडोर मरीजों पर ही खर्च करने का प्रावधान है। परिवार के सदस्य मामूली रूप से बीमार पड़ते हैं तो उनको स्मार्ट कार्ड के द्वारा आउट डोर में चिकित्सों से परामर्श और दवा-दारू की सुविधा नहीं दी जाती है। इस कारण गांव घर में स्मार्ट कार्ड के प्रति लोगों का मोहभंग होने लगा है।

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