COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 12 अक्तूबर 2014

फाॅरवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में छापेमारी, अक्टूबर अंक जब्त

न्यूज@ई-मेल
पटना : हिन्दी-अंग्रेजी की मासिक पत्रिका फॉरवर्ड प्रेस के नई दिल्ली स्थित संपादकीय कार्यालय में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने छापेमारी की और चार कर्मचारियों को उठा ले गयी। साथ ही, पत्रिका के अक्टूबर अंक को जब्त कर लिया। पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ फाॅरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने गुरुवार को जारी बयान में कहा कि फाॅरवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में वसंतकुंज थाना, दिल्ली पुलिस के स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों द्वारा की गयी तोड़फोड़ व हमारे चार कर्मचारियों की अवैध गिरफ्तारी की हम निंदा करते हैं। फाॅरवर्ड प्रेस का अक्टूबर, 2014 अंक ‘बहुजन-श्रमण परंपरा’ विशेषांक के रूप में प्रकाशित है तथा इसमें विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों व नामचीन लेखकों के शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हैं। 
श्री रंजन ने कहा कि विशेषांक में ‘महिषासुर और दुर्गा’ की कथा को बहुजन पाठ चित्रों व लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। लेकिन, अंक में कोई भी ऐसी सामग्री नहीं है, जिसे भारतीय संविधान के अनुसार आपत्तिजनक ठहराया जा सके। बहुजन पाठों के पीछे जोतिबा फूले, पेरियार, डॉ आम्बेडकर की एक लंबी परंपरा रही है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए इस हमले की भर्तसना करते हुए यह भी कहना चाहते हैं कि यह कार्रवाई स्पष्ट रूप से भाजपा में शामिल ब्राह्मणवादी ताकतों के इशारे पर हुई है। 
उन्होंने कहा कि देश के दलित-पिछड़ों और आदिवासियों की पत्रिका के रूप में फाॅरवर्ड प्रेस का अस्तित्व इन ताकतों की आंखों में लंबे समय से गड़ता रहा है। फाॅरवर्ड प्रेस ने हाल के वर्षों में इन ताकतों की ओर से हुए अनेक हमले झेले हैं। इन हमलों ने हमारे नैतिक बल को और मजबूत किया है। हमें उम्मीद है कि इस संकट से मुकाबला करने में हम सक्षम साबित होंगे।

महिषासुर शहादत दिवस के कार्यक्रम में एबीबीपी छात्रों का हंगामा

9 अक्टूबर, 2014 को महिषासुर शहादत दिवस के कार्यक्रम में एबीबीपी के छात्रों ने जिस प्रकार की हिंसात्मक वारदात को अंजाम दिया, वह वाकई चिंताजनक और निंदनीय है। 9 अक्टूबर के दिन कैम्पस महिषासुर के मुद्दे पर देखते-देखते दो ध्रुवों में बंट गया। जाहिर है कि महिषासुर के समर्थक छात्रों की संख्या ज्यादा थी, परन्तु परिषद् के छात्रों ने अपने प्रायोजित कार्यक्रम के अनुसार कार्यक्रम स्थल पर हिंसात्मक उपद्रव मचाया। वे ‘भारत माता की जय’ और ‘दुर्गा माता की जय’ का नारा लगाते हुए कार्यक्रम के बीचोबीच पहुंच कर व्यवधान डालने की कोशिश करते रहे। उन्होंने कावेरी छात्रावास के शीशे और दरवाजे तोड़ दिए। महिषासुर के समर्थक छात्रों से उनकी हाथापाई भी हुई, जिसमें कई छात्र-छात्राओं को चोंटे भी आई। इस हिंसात्मक संघर्ष के क्रम में महिषासुर समर्थक छात्रों ने बराबर शांति-व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश की।
एक घंटे चले इस कार्यक्रम में जेएनयू के लगभग सभी प्रगतिशील संगठनों के प्रतिनिधियों ने महिषासुर पर अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद महिषासुर की जयघोष के साथ छात्रों ने जेएनयू परिसर में एक प्रोटेस्ट मार्च भी निकाला। 
गौरतलब है कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिवस मनाने की शुरुआत 2011 में एक लम्बे संघर्ष के बाद हुई। विदित है कि 2011 के दशहरा के अवसर पर आॅल इण्डिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम ने प्रेमकुमार मणि द्वारा लिखित ‘किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन’ नामक आलेख जेएनयू की दीवारों पर चिपकाया। इस पोस्टर को लेकर जेएनयू में तनाव का माहौल बन गया। विद्यार्थी परिषद् के छात्रों ने इसके विरोध में विश्वविद्यालय प्रशासन से धार्मिक भावनाओं के आहत होने की शिकायत की। पूरे मामले में एक नया मोड़ तब आ गया, जब परिषद् के छात्रों ने एआईबीएसएफ के अध्यक्ष जितेन्द्र यादव और उनके साथियों पर हमला किया। जेएनयू प्रशासन ने मामले पर त्वरित कार्यवाही करते हुए हमलावर छात्रों को दण्डित करने के बजाय जितेन्द्र यादव को ही धार्मिक भावनाओं के आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया। बहरहाल, जेएनयू प्रशासन और सांप्रदायिक शक्तियों के गठजोड़ के विरोध में जेएनयू के छात्रों ने प्रगतिशील मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई। जएनयू प्रशासन को इस मुद्दे पर माफी मांगनी पड़ी। महीने भर चले इस गतिरोध के बाद जेएनयू के छात्रों ने इस संघर्ष में हुई जीत से उत्साहित होकर 24 अक्टूबर, 2011 को महिषासुर शहादत दिवस मनाया। तब से यह क्रम प्रत्येक वर्ष चल रहा है।
वीरेन्द्र कुमार यादव फाॅरवर्ड प्रेस के पटना संवाददाता हैं।

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