COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

एक बस्ती, तीस घर, दस विधवाएं

 संक्षिप्त खबर 
पश्चिमी पटना में एक मुहल्ला है एलसीटी घाट। यहीं गंगा किनारे मुसहरों की एक बस्ती है। नाम है एलसीटी घाट मुसहरी। इस मुसहरी में करीब तीस घर हैं। और इन तीस घरों की बस्ती में दस विधवाएं ! सबकी उम्र 45 साल से कम। सभी अपने-अपने पति की मनमानी की सजा विधवा के रूप में भुगत रही हैं। सभी को शराब की लत थी। पत्नियां काफी समझाती थीं। इसके बावजूद उनकी बात वे नहीं माने। बात मानने की बात तो दूर, वे मारपीट करने लगते थे। परिणाम यह हुआ कि शराब के कारण अधिकांश क्षयरोग के शिकार हो गये। साथ ही, कालाजार व किडनी की समस्या भी। और इन्हीं रोगों से वे एक-एक कर चल बसे। 
कलासो देवी (45), गीता (30), सुशीला (40), शान्ति देवी (45), शारदा (35), तारामुनि (35) के अलावा चार अन्य महिलाएं आज विधवा हैं। सभी के छोटे-छोटे बच्चे हैं। कचरा के ढेर से कागज, लोहा, प्लास्टिक आदि चुनकर किसी तरह गुजारा चलता है। इनके पास ना लाल कार्ड है, ना पीला। विधवा पेंशन भी नहीं मिलता है। ज्ञात हो कि यह क्षेत्र उत्तरी मैनपुरा पंचायत में पड़ता है। कभी इंदिरा आवास योजना अंतर्गत इनके मकान बने थे। आज ढह रहे हैं। अब इन्हें किसी तरह की सरकारी या गैर सरकारी सहायता नहीं मिल पा रही है। भगवान भरोसे जी रहे हैं सभी। 
इस संबंध में उत्तरी मैनपुरा पंचायत के मुखिया सुधीर सिंह से बात की गई। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं ने आवेदन जमा कर रखा है, उनका काम जल्द ही हो जायेगा। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव के कारण विधवा पेंशन सहित अन्य मामला अटका पड़ा था।  

डाॅक्टर ने बनाया अंधा 

दस वर्षीया सुमन जन्मजात अंधी नहीं है। एक नर्सिंग होम के डाॅक्टरों ने उसे अंधी बना दिया। जी हां, यही कहना है सुमन की माता रीता देवी का। वह बताती है कि बचपन में एकबार सुमन बीमार पड़ी थी। उसे तेज बुखार के साथ उल्टी हो रही थी। सुमन को पटना के बोरिंग रोड चैराहा स्थित एक नर्सिंग होम में ले जाया गया। वहां इलाज के दौरान उसके आंख की रौशनी खत्म हो गयी। सुमन को कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। तब सुमन मात्र चार साल की थी। सुमन एलसीटी घाट मुसहरी में रहती है। इसके पिता अर्जुन मांझी मजदूरी करते हैं। मां रीता देवी कचरा से कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुनती है। 

बेटी चला रही सारा खर्च

जी हां, इसी एलसीटी घाट मुसहरी में एक बेटी ऐसी भी है, जो अपने मां-बाप सहित भाई-बहनों का सारा खर्च ना सिर्फ चला रही है, बल्कि घर बनवाने को अपने मां-बाप को पैसे भी दिये। इस बेटी का नाम है मनीषा। मनीषा मात्र 18 साल की है और महंथ स्कूल के पास होसिनी मियां के कबाड़ की दुकान पर काम करती है। छह हजार रुपए प्रतिमाह वेतन पर। मनीषा के पिता बालदेव मांझी मजदूर हैं। मां सूगापति देवी कचरा चुनने जाती है। बालदेव मांझी बताते हैं कि मनीषा हमेशा अपने घर में सहयोग करती है। अब उसकी शादी नदौल में ठीक हो गयी है। अगले साल वह शादी कर अपने घर चली जायेगी।

पर्यावरण सह पुस्तक प्रदर्शनी का समापन

दो दिवसीय पर्यावरण सह पुस्तक प्रदर्शनी का समापन पिछले दिनों हो गया। साईं-शिवम् पब्लिक स्कूल एवं शिवम् क्लाशेज की ओर से इस प्रदर्शनी का आयोजन पटना के बोरिंग रोड में किया गया था। सड़क किनारे लगी इस प्रदर्शनी की खास बात यह रही कि इसमें 30 रुपए की कोई भी किताब खरीदने पर एक पौधा बिल्कुल फ्री दिया गया। प्रदर्शनी का संचालन कर रहे एवं लालजी साहित्य प्रकाशन के लालजी सिंह ने बताया कि इस तरह की प्रदर्शनी का मकसद लोगों को साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति भी जागरूक करना है।
 और अंत में 

कैसे-कैसे बाबा !

एक बाबा हैं। उन्होंने अपना नाम रखा है भगवान ललन जी। जी हां, खुद को वे भगवान ही बताते हैं। एकबार वे कहीं से पता करते मेरे घर अपनी खबर छपवाने पहुंच गये। उन्होंने मुझे ‘‘भगवान ललन जी दर्शन होंगे’’ नामक एक परची भी दी। उस परची में यह दावा किया गया है कि ललन जी भूकंप को रोक सकते हैं। नेपाल में आये प्रलयंकारी भूकंप की तीव्रता को उन्होंने ही अपने तप से कम किया था। परची के माध्यम से वे दावा करते हैं कि संसार में झूठ, छल, अधर्म तथा पाप के बढ़ने के कारण ही इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। अतः मनुष्य को झूठ, छल, अधर्म तथा पाप का त्याग करना चाहिए। साथ ही, उन्होंने कहा कि प्रलय तीन प्रकार के होते हैं - पल में प्रलय, जल प्रलय और भूकंप।

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