- दीघा रेलवे लाइन के किनारे सरकारी जमीन पर बसायी बस्ती
- अधिकांश हैं रविदास और मुसहर समुदाय से
- सरकारी सुविधाओं से हैं वंचित
राजीव मणि
पटना : पश्चिमी पटना स्थित दीघा रेलवे लाइन के किनारे दलितों की एक बस्ती है। यह बस्ती विस्तार पाकर बड़ी होती जा रही है। पहले यहां कुछेक झोपडि़यां ही थीं। अब कई नयी झोपडि़यां और बन गयीं। यहां रहने वाले कुछ तो अपनों के ठुकराये हैं। दूसरी तरफ ज्यादातर बढ़ती महंगाई से तंग आकर यहां झोपड़ी बनाने को मजबूर हैं। अधिकांश का कहना है कि इन्हें कभी कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का खर्च चला रहे हैं।
यहीं चालीस वर्षीय विजय दास अपनी पत्नी लालती (35) और चार छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहते हैं। विजय प्राइवेट गाड़ी चलाकर हर माह तीन-चार हजार रुपए कमा लेते हैं। लालती घरों में दाई का काम करती है। वह भी हर माह करीब तीन हजार रुपए कमा लेती है। किसी तरह इनके घर का खर्च चल पाता है। लालती बताती है कि पहले वह पास के ही मुहल्ले में किराये पर रहती थी। लेकिन, महंगाई बढ़ जाने पर जब घर का खर्च चलाना मुश्किल हुआ, तो वह यहां झोपड़ी बनाकर रहने लगी। वह कहती है कि आजतक कभी कोई सरकारी मदद नहीं मिली।

यहीं शिवनाथ चौधरी (40) मिलें। राजमिस्त्री का काम करते हैं। यह भी अपनी पत्नी धर्मशीला देवी (38) और बच्चों के साथ यहां रहते हैं। शिवनाथ कहते हैं कि हर दिन काम नहीं मिलने से आर्थिक तंगी बनी रहती है। धर्मशीला भी दाई का काम करती है। दाई का काम कर वह हर माह दो हजार रुपए कमा लेती है।

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