COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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शुक्रवार, 16 मई 2014

कचरे से 500 रुपए रोज कमाती है रीता देवी!

पटना : बिहार में मनरेगा लागू होने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दानापुर प्रखंड अन्तर्गत जमसौत मुसहरी में रहने वाले महादलित मुसहर समुदाय के बीच जाॅब कार्ड निर्गत किया। जाॅब कार्ड के द्वारा कुछ साल तक लोगों को काम मिला। शहर में जाकर कचरा से रद्दी कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुनना बंद हुआ। इससे लोगों के बीच स्वाभिमान जागा। जि़ंदगी थोड़ी सुधरी। लेकिन, अब लोगों को समय पर काम और मजदूरी नहीं मिलने से परेशानी बढ़ी है। महादलितों का जीवन फिर से उसी पटरी पर आ गया है, जिसपर पहले था।
आइए, अब महादलितों की जिन्दगी पर एक नजर डालते हैं। जमसौत में ही दिनेश मांझी रहते हैं। इनकी पत्नी है रीता देवी। रीता का मायका शबरी काॅलोनी, दीघा में है। यह अनपढ़ है। इसे भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम मिलता है। लेकिन, यह सब सिर्फ कहने को! यही कारण है कि वह प्रतिदिन जमसौत से टेम्पो पकड़कर दीघा अपने मायके आती है। यहां आकर अपनी सहेलियों के साथ कचरे के ढेर से कागज, प्लास्टिक, लोहा आदि चुनने जाती है। और उसे किसी कबाड़ी वाले के यहां बेचकर प्रतिदिन करीब 500 रुपए कमाती है। 
रीता के चार बच्चे हैं। दो लड़की और दो लड़का। फिलवक्त तीन बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। एक विकास कुमार ही पढ़ने नहीं जाता है। वह भी अपनी मां के साथ कचरे के ढेर पर अपनी तकदीर तलाशता है! 
इसी तरह यहां के लोगों का जाॅब कार्ड से मोहभंग हो चुका है। जाॅब कार्ड को वे बक्सा में रखकर भूल चुके हैं। अब अन्य तरह के कार्य में जुट गए हैं। यह है सरकारी योजनाओं की सच्चाई। और वह भी वहां जहां सुशासन की सरकार हो! सरकारी बाबू तो भगवान बने बैठे हैं यहां। चुनाव में सरकार को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसा वे लोग ही कह रहे हैं, जिन्हें कचरे के ढेर पर अपनी जिन्दगी तलाशनी पड़ रही है। 

साफ दिखता है पवना पंचायत के मुसहरों का दर्द

भोजपुर : दस साल पहले अगलगी में पवना मुसहरी टोला के 74 लोगों के जमीन के कागजात जलकर खत्म हो गये। इस पंचायत के मुखिया उमेश सिंह हैं। इस संबंध में प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ता इन्दु देवी और विनोद कुमार ने सीओ को आवेदन दिया और वासगीत पर्चा निर्गत करने का आग्रह किया। अबतक कार्रवाई नहीं हुई। 
4 बीघा जमीन पर मुसहरी फैली है। कच्ची-पक्की 75 झोपडि़यां हैं। जनसंख्या करीब 300 के आसपास। मात्र 3 बच्चे प्रमोद राम, विमलेश राम और सुरजीत राम मैट्रिक पास हैं। बताते चलें कि भोजपुर जिले के मुसहर ‘मांझी’ के बदले ‘राम’ लिखते हैं। केवल 5 भाग्यशाली हैं, जिनका राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत स्मार्ट कार्ड बना है। लेकिन, इन्होंने कभी स्मार्ट कार्ड का उपयोग नहीं किया है। बगल में स्थित प्राथमिक विद्यालय में 25 बच्चे पढ़ने जाते हैं। व्यवस्थित ढंग से आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित नहीं है। महाराज राम बताते हैं कि उनके 12 साल के बेटे शारदा कुमार को मिर्गी की बीमारी है। वहीं तपेश्वर राम की 10 साल की बेटी हीराझरी कुमारी को भी मिर्गी की बीमारी है। रामाशीष राम ने बताया कि इन्दिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि नियमित नहीं मिलती है। पिछले एक साल से अनियमित है। 
झोपड़ी में बैठी यमुनी देवी कहती है कि इन्दिरा आवास योजना के तहत मकान नहीं बन रहा है। जिसका मकान बना है, उसे मात्र 20 हजार रुपए मिले हैं। कुछ सीमेंट भी मिला था। घर से पैसा भी लगाया, इसके बावजूद मकान अधूरा है। अभी कुछ को 70 हजार रुपए मिले हैं। यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। यहां 75 हजार रुपए मिलने चाहिए थे। पूरे टोला में केवल एक चापाकल है। इसी से पूरी मुसहरी का काम चलता है। यहां के लोग खेत में मजदूरी करते हैं। अभी गेहूं कटनी में 12 बोझा तैयार करने पर एक बोझा मजदूरी में मिलता है।

भोजन के बाद पानी पर भी आफत!

पटना : भोजन के बाद पानी पर भी आफत आ चुका है। ऐसे में गरीबों का क्या होगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बिहार में तो काफी पहले से बोतलबंद पानी बेचा जाता रहा है। अब बड़े-बड़े जार में भी बिकने लगा है। पेयजल की किल्लत ने इसकी मांग बढ़ा दी है। इसी क्रम में दानापुर में एक नया प्लांट बैठाया गया है। पहले से ही बिहार में कई प्लांट हैं। 
स्वास्तिक एक्वा नामक जार में पेयजल भरकर लाया जाता है। इससे आप 8 घंटे तक ठंडा पानी का मजा ले सकते हैं। अभी दो तरह के जार में पानी मुहैया कराया जा रहा है। 2 रुपए लीटर की दर से 15 लीटर वाले जार की कीमत 30 रुपए और 20 लीटर वाले जार की कीमत 40 रुपए है। पहले 15 लीटर वाले और बाद में 20 लीटर वाले जार को मार्केट में उतारा गया है। दानापुर, राजाबाजार, बोरिंग रोड, खगौल आदि क्षेत्रों में इस पेयजल को उपलब्ध कराया जा रहा है। कंपनी के पास 6 वाहन हैं। एक वाहन पर 70 जार लादे जाते हैं। उपभोक्ताओं को कार्ड इश्यू किये जाते हैं। महीना पूरा होने पर सेल्समैन कीमत वसूल करते हैं। धीरे-धीरे ही सही, राजधानी में पानी का कारोबार फल-फूल रहा है। सरकार मौन धारण कर रखी है। जनता को पीने के पानी तक खरीदने पड़ रहे हैं!

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