COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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बुधवार, 5 नवंबर 2014

ईसाइयों ने मनाया ‘मृतकों का पर्व’

न्यूज@ई-मेल
पटना : जैसा की सभी जानते हैं कि किसी ईसाई के मरने के बाद उसे कब्र में दफनाया जाता है। इन्हीं मरे हुए लोगों की याद में 2 नवम्बर को ‘मृतकों का पर्व’ मनाया जाता है। राजधानी पटना में भी मृतकों का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर पूरे कब्रिस्तान को अच्छी तरह सजाया गया। रंग-रोगन का काम हुआ। कब्र को रौनकदार बनाया गया। कब्र पर लगे क्रूसों को ठीक किया गया। फूलवाड़ी को व्यवस्थित किया गया।
राजधानी स्थित कुर्जी कब्रिस्तान में मुर्दों के इस पर्व को लेकर अनुष्ठान किया गया। तीन बार मिस्सा पूजा की गयी। दो बार सुबह की मिस्सा पूजा के बाद तीसरी बार कब्रिस्तान में पूजा की गयी। 
ज्ञात हो कि इस दिन सूबे के सभी ईसाई कब्रिस्तान में मिट्टी को समर्पित हो चुके लोगों की याद में कब्र के पास आंसू बहाते हैं। यह उनकी भावना और अपनों से घनिष्टता को दर्शाता है। इसी क्रम में कब्र पर फूल चढ़ाये गये और अगरबत्ती व मोमबत्तियां जलायी गयीं। पुरोहितों ने धार्मिक अनुष्ठान कर परमप्रसाद आदि रस्म अदायगी कर अंत में सभी कब्रों के पास पहुंचकर पवित्र जल का छिड़काव किया। 
बताते चलें कि इससे ठीक एक दिन पहले यानी एक नवम्बर को ईसाई समुदाय सभी संतों का पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर धर्मावलम्बी गिरजाघर पहुंचे। वहां प्रार्थना किया गया। प्रार्थना के दौरान श्रद्धालुओं ने सभी संतों से परिवार में सहयोग देने और कृपा बरसाने का आग्रह किया। पुरोहितों ने पवित्र परमप्रसाद का वितरण किया। 
ज्ञात हो कि ईसाई समुदाय के अनेक संत हैं। कुछ चर्चित संतांे के नामों में जोसेफ, मरिया, जौर्ज, जोन, थोमस, अगस्तीन, लुकस जेवियर, फ्रांसिस आदि हैं। इन्हीं ‘संतों’ के नाम से लोग अपने बच्चों व संस्थाओं के नाम भी रखते हैं। इन संतों के प्रति अपनी आस्था व उन्हें पवित्र मानते हुए ईसाई समुदाय इसे उत्साह से मनाते हैं। लेकिन, बदली परिस्थिति में हिन्दी नाम रखने का प्रचलन भी हो गया है। 

पेट के लिए हजामत बनाने का पुश्तैनी काम छोड़कर बनना पड़ा पुजारी !

पटना : रोजगार की तलाश में पलायन कर रघुनाथ ठाकुर 1960 में वैशाली जिले के लालगंज से पटना आए थे। अब रघुनाथ ठाकुर नहीं रहे। आज उनके तीन पुत्र बोरिंग कैनाल रोड स्थित पंचमुखी मंदिर के पास सड़क पर ही हजामत बनाते हैं। 1975 से इन भाइयों का एक-एक कर यहां आना हुआ। ये आने वाले ग्राहकों को ईंट पर बैठाते हैं। इसके बाद प्रेम से हजामत बनाते हैं। इन्हीं के परिवार के सरोज ठाकुर पुजारी बन गए हैं। काम ना मिलने और हजामत के काम से घर-परिवार ना चल पाने के कारण इन्हें यह करना पड़ा। आज इनकी अच्छी कमाई हो जाती है।
उमा ठाकुर बताते हैं कि पहले डेढ़ रुपए से दाढ़ी बनाने का काम शुरू किये, आज 10 रुपए में दाढ़ी बनाते हैं। इसी अल्प मजदूरी से परिवार की जरूरतों को पूरा करना होता है। वे कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री हुए, लेकिन उन्होंने नाई समुदाय पर ध्यान नहीं दिया। इस कारण यह समुदाय अपने हाल पर ही रह गया। उमा ठाकुर को एक लड़की और दो लड़के हैं। वहीं उसके भाई उमेश ठाकुर को तीन लड़की और एक लड़का। तीसरे भाई ललन ठाकुर को तीन लड़के हैं। 
ललन ठाकुर बताते हैं कि हमलोगों की घरवाली एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं। समूह से कर्ज लेती हैं। कम ब्याज पर कर्ज मिलता है। इससे खर्च चल पाता है। खेती योग्य जमीन नहीं है। गांव पर हमलोग छोटा-छोटा घर बनाकर रहते हैं। समझ लें कि घर किसी सुअर के बखौर की तरह है। काफी दिक्कत से जिन्दगी काट रहे हैं। गरीबी के कारण हमलोग फुटपाथ पर ही बैठकर हजामत बनाते हैं। करीब 40 साल के बाद भी किराये पर सैलून न खोल सकें।

पति ने दिया दगा, भटक रही सीता

पटना : पटना जिले के मोकामा ताड़तर गांव में अर्जुन चैहान रहते हैं। उनकी बेटी है सीता देवी। सीता की शादी इन्द्रजीत चैहान के संग हो गयी। दानापुर प्रखंड के बलवा पंचायत के बलवा कठौती गांव में इन्द्रजीत चैहान और सीता देवी रहने लगे। देखते ही देखते दोनों के चार बच्चे हुए। दो लड़की और दो लड़के हैं। इनका नाम सुमन कुमारी, तुलसी कुमारी, पिंटू कुमार और कुंदन कुमार है। सुमन तीसरी में और तुलसी दूसरी कक्षा में पढ़ती है। 
लेकिन, सीता की किस्मत में कुछ और ही लिखा था। पति इन्द्रजीत से धोखा खा बैठी। वह घर छोड़कर चला गया। मगर वह हारी नहीं। हिम्मत कर जालंधर, पंजाब में दिहाड़ी पर काम करने चली गयी। काम नहीं मिलने पर वापस आ गयी। अब पटना में अपने घर पर तीन बच्चों को छोड़ और एक को अपनी गोद में लिए काम की तलाश में आ पहुंची। जब उसका पति घर से फरार हुआ, उस समय वह गर्भवती थी। किसी तरह सीता ने चैथे पुत्र को जन्म दिया। अभी वह दो साल का है। बाद में सीता को ज्ञात हुआ कि तीन साल पहले उसका पति अब इस दुनिया में नहीं रहा। 
काम खोजते-खोजते सीता दीघा पहुंच गयी। दीघा से चलने वाली रेल पर ही उसे रंधीर रविदास और रंभू यादव नामक मजदूर मिल गए। दोनों मजदूरों ने सीता को काम और घर दिलवाने के बहाने पुनाईचक हाॅल्ट पर उतर लिए। आशंका है कि वह किसी गलत हाथों में ना फंस गयी हो। 

परिचर्चा का आयोजन

पटना : पिछले दिनों अन्तरराष्ट्रीय खाद्य दिवस के अवसर पर आॅक्सफैम इंडिया और भोजन का अधिकार अभियान के संयुक्त तत्वावधान में ग्रो सप्ताह के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 के नियमावली पर पैनल परिचर्चा की गयी। इस अवसर पर आॅक्सफैम इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवीन्द कुमार प्रवीण ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। क्षेत्रीय प्रबंधक ने कहा कि 16 अक्टूबर, 1945 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना की गई थी। 1979 में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के सदस्य देशों के 20वें आमसभा में 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। आज ग्रो सप्ताह के तहत अंतरराष्ट्रीय खाद्य दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 के अंतर्गत लाभान्वितों की पहचान, अनाज का उठाव, भंडारण एवं वितरण, कुपोषण तथा मातृत्व लाभ को शामिल कर चर्चा करेंगे। 
इस मौके पर भोजन अधिकार अभियान (बिहार) के संयोजक रुपेश ने कहा कि दुनिया को भूख से मुक्ति दिलाने को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के मुद्दे से जुड़े संगठन इस दिवस को मनाते हैं। भारत में इस दिन का महत्व और अधिक है, क्योंकि एक ओर तो देश तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है, दूसरी तरफ आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों से भूख से मौत की खबरें आती हैं। बिहार में भी लगातार मौते होती रही हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न रिपोर्टो के अनुसार, राज्य में लगभग 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। वहीं लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं।
उन्होंने कहा कि गया के सामाजिक कार्यकर्ता शत्रुध्न कुमार और बोधगया प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता बच्चू मांझी ने जब भूख से होने वाली मौत को गंभीरता से उठाया, तो प्रशासन ने उक्त मौत को भूख से नहीं, परन्तु बीमारी से करार दिया। उन्होंने कहा कि कल्याणकारी सरकार और तथाकथित सभ्य समाज नहीं चाहते कि कोई व्यक्ति भूख से मरे। इसका ही परिणाम है कि लोग चूहा, मेढ़क, घोंघा, सितुआ आदि खाने को विवश हैं। 
परिचर्चा में रुपेश, भोजन का अधिकार अभियान, डीएम दिवाकर, निदेशक, अनुग्रह नारायण समाज अध्ययन संस्थान, प्रतिभा सिन्हा, ओएसडी खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, डाॅ. चांदनी, समेकित बाल विकास परियोजना तथा देवशील प्रसाद, मध्याह्न भोजन निदेशालय के अलावा दलित अधिकार मंच के अध्यक्ष कपिलेश्वर राम ने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर फादर फिलिप मंथरा, डाॅ. शरद, नीलू आदि भी मौजूद थे।

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