COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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बुधवार, 19 नवंबर 2014

एलसीटी घाट मुसहरी में टीबी से कई मरे

न्यूज@ई-मेल
पटना : पश्चिमी पटना स्थित एलसीटी घाट मुसहरी इनदिनों टीबी रोग की चपेट में है। महादलित नौवी मांझी के पिता का नाम रामजी मांझी और माता का नाम मिनता देवी है। दोनों कचरा के ढेर पर जाकर रद्दी कागज आदि चुनते और बेचते हैं। दोनों को यक्ष्मा की बीमारी है। पहले मिनता देवी रोगग्रस्त हुई। आसपास से दवा लेकर खाने लगी। दवा खाती तो ठीक हो जाती और छोड़ने पर फिर रोग पकड़ लेता। परिणाम यह हुआ कि उसकी मौत हो गयी। इसके बाद रामजी मांझी बीमार पड़े। वह दवा के साथ दारू का सेवन भी करता रहा। इस बीच अपने पुत्र नौवी कुमार की शादी कर दी। इसके बाद रामजी मांझी की भी मौत हो गयी। 
इस बीच नौवी मांझी की पत्नी अंजू देवी गर्भवती हो गयी। मगर जन्म के बाद नवजात शिशु की मौत हो गयी। कुछ दिनों के बाद अंजू भी परलोक सिधार गयी। नौवी मांझी कहता है कि टीबी से प्रभावित होने से उसका भी एक तरफ का फेफड़ा खराब हो गया था। महादलित रेखा देवी का कहना है कि हमलोग गरीबी से परेशान हैं। कचरा चुनने जाते हैं। अगर आमदनी नहीं हुई, तो भूखे सो जाना पड़ता है। मुसहरी में काफी गंदगी फैली रहती है। 

युख्रीस्तीय यात्रा 23 नवम्बर को

पटना : ईसाई समुदाय की वार्षिक युख्रीस्तीय यात्रा 23 नवम्बर को होगी। कुर्जी पल्ली परिषद द्वारा आयोजित यात्रा में पटना शहर के ईसाई समुदाय भाग लेंगे। कोई 10 हजार लोगों के भाग लेने की संभावना है। ईसाई धर्मावलम्बी पटना डीनरी के दानापुर, खगौल, फुलवारीशरीफ, मनेर, राजा बाजार, आईजीआईएमएस, पाटलिपुत्र, चकारम, कुर्जी, बालूपर, मखदुमपुर, बांसकोठी, मरियम टोला, फेयर फील्ड काॅलोनी आदि से आकर आशादीप, दीघा में जमा होंगे। 
दीघा फेयर फील्ड काॅलोनी में आशादीप है। यहां दोपहर दो बजे से प्रार्थना सभा का आयोजन होगा। प्रार्थना सभा में शामिल होने वाले लोग कतारबद्ध होकर आगे बढ़ेंगे और प्रार्थना के साथ बीच-बीच में गीत और भजन भी गायेंगे। पवित्र बाइबिल से लिए गए महत्वपूर्ण वाक्यांश को बैनर में लिखकर हाथ में लिए चलेंगे। 
क्या है युख्रीस्तीय यात्रा : ईसाई समुदाय प्रभु येसु ख्रीस्त के प्रति अपनी भक्ति एवं विश्वास की उद्धघोषणा करने के लिए युख्रीस्तीय यात्रा में आते हैं। इस यात्रा के नेतृत्वकर्ता के हाथ में विशेष तरह के बने पात्र में ‘परमप्रसाद’ रहता है। ईसाई समुदाय धार्मिक अनुष्ठान के समय ‘परमप्रसाद’ ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस परमप्रसाद के रूप में प्रभु येसु ख्रीस्त का शरीर ग्रहण किया जाता है। इस युख्रीस्तीय यात्रा को ‘जतरा’ भी कहा जाता है। जतरा के दिन जन्म लेने वाले पुरुष का नाम ‘जतरा’ और स्त्री का नाम ‘जतरी’ भी रखा जाता है। इस नामकरण से सीधे बोध हो जाता है कि अमुख का जन्म युख्रीस्तीय यात्रा के दिन ही हुआ है। 

आदिवासी और वंचित समाज के अधिकारों के लिए पदयात्रा

भोपाल : पिछले कुछ सालों में आदिवासी समुदाय के लिए कई नियम-कानून बनाए गए, जिसके माध्यम से उन्हें अधिकार एवं सम्मान देने का वायदा किया गया। वन अधिकार कानून की प्रस्तावना में यह लिखा गया है कि यह कानून आदिवासियों को अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए बनाया गया है। इसके बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि आज भी आदिवासियों के साथ अन्याय हो रहा है। उनके अधिकार छिने जा रहे हैं। उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। शान्ति एवं सम्मान से वे जी नहीं पा रहे हैं। आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ एकता परिषद और सहयोगी संगठनों द्वारा मध्यप्रदेश में डिंडोरी, मंडला और बालाघाट एवं छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में आदिवासी और वंचित समाज के अधिकारों के लिए एक पदयात्रा का आयोजन किया गया है। पदयात्रा 20 नवंबर को डिंडोरी जिले के बजाग विकासखंड के चाड़ा गांव से प्रारंभ होकर 10 दिसंबर, 2014 को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) में संपन्न होगी। एकता परिषद की मांग है कि सरकार आदिवासी समुदाय से जुड़े सारे मसलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र जांच समिति का गठन जल्द से जल्द करे। 
जन संगठन एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य राजगोपाल पी.व्ही. ने आयोजित पत्रकार वार्ता में जोरदार ढंग से ये बातें रखीं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन का औसत 30 फीसदी है, जो कि बहुत ही कम है। यदि 6 सालों में 10 फीसदी की दर से भी इसपर क्रियान्वयन होता, तो यह आंकड़ा 60 फीसदी तक पहुंच जाता। आदिवासियों के खिलाफ मनगढ़ंत और फर्जी प्रकरणों को भी अभी तक पूरी तरह नहीं हटाया गया है। प्रदेश में डेढ़ लाख प्रकरण हटाए जाने के बाद भी वर्तमान में लगभग 3 लाख फर्जी प्रकरण आदिवासियों के खिलाफ दर्ज हैं। विस्थापन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार, विस्थापन से पहले विस्थापितों से पूर्व सहमति लिया जाना जरूरी है, पर मंडला, डिंडोरी क्षेत्र में बनने वाले हेरिटेज काॅरिडोर में 600 किलोमीटर का इलाका चला जाएगा, जिससे हजारों लोग विस्थापित होंगे। इसकी योजना बन गई है, पर लोगों को इसके बारे में नहीं मालूम है। प्रदेश की विशेष जनजाति बैगा के लिए बनाए गए बैगा विकास प्राधिकरण के माध्यम से करोड़ों रुपए खर्च किए गए, पर उसका काम पारदर्शी नहीं है। ये सारे मसले बहुत ही गंभीर हैं, जिसकी स्वतंत्र जांच जरूरी है, जिससे कि आदिवासी समाज को न्याय मिल सके और वे शांति एवं सम्मान के साथ जी सकें। सभी मसले की जमीनी हकीकत को ज्यादा करीब से देखने एवं आदिवासी समुदाय को जोड़ने के लिए आदिवासी अधिकार पदयात्रा निकाली जा रही है। पदयात्रा में देश के विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, आदिवासी व वंचित समाज के प्रतिनिधि, विभिन्न दलों के नेतागण, वरिष्ठ पत्रकार तथा बुद्धिजीवी होंगे। 

बेहाल हैं नगर निगम के मजदूर

पटना : प्रदेश के सभी नगर निगमों में मजदूरों का जमकर शरीरिक व मानसिक शोषण किया जा रहा है। पटना नगर निगम, बांकीपुर अंचल, नूतन राजधानी अंचल, कंकड़बाग अंचल, गया नगर निगम, जहानाबाद नगर निगम, आदि निगमों के मजदूरों की दशा खराब है। ये मजदूर से काम शुरू करते हैं और मजदूर बने रहकर ही अवकाश ग्रहण कर जाते हैं। विडम्बना यह है कि पार्षदों का ध्यान इन असंगठित मजदूरों की ओर नहीं जाता। और तो और, कल्याणकारी सरकार भी इनपर ध्यान नहीं देती। प्रतिमाह इन्हें 26 दिनों की मजदूरी मिलती है। ऐसे निगमकर्मी मजदूरी के रूप में 184 रुपए पाते थे। फिलवक्त इसमें 66 रुपए की वृद्धि की गयी है। अब मजदूरों को प्रतिदिन 250 रुपए मिलेंगे। सूत्र बनाते हैं कि नयी दर पर मजदूरी सितम्बर, 2014 से मिलनी चाहिए थी, मगर बढ़ी मजदूरी मजदूरों को नहीं दी गयी। अब कहा जा रहा है कि यह अक्टूबर माह से मिलेगी। 
बताते चलें कि इन मजदूरों को मालूम ही नहीं है कि भविष्य निधि क्या होता है। श्रम अधिनियम के तहत मिलने वाली सुविधाओं से ये महरूम हैं। चिकित्सा भत्ता, परिवहन भत्ता, आवास भत्ता, नगर निवास भत्ता आदि इनके लिए किसी सपना-सा है। पवन कुमार ‘गौतम’ नामक सफाईकर्मी कहते हैं कि यहां पदोन्नति नहीं मिलती है। मैट्रिक पास होने के बाद भी ‘झाड़ू’ लगाना पड़ता है। 
सफाईकर्मी पवन कुमार ‘गौतम’ ने जाति बंधन तोड़कर मंजू देवी के संग विवाह रचाया था। विवाह के नौ साल के बाद भी संतान नहीं होने पर वे परेशान हैं। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण ढंग से इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। वे कहते हैं कि अगर सरकार और नौकरशाह चाहे तो नगर निगमकर्मियों की माली हालत सुधार सकती है। कल्याण और विकास योजनाओं से जोड़कर लाभ दिलवाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से स्मार्ट कार्ड निर्गत कर स्वास्थ्य क्षेत्र से लाभान्वित करवाया जा सकता है। आवासहीन मजदूरों को जमीन देकर इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनवाया जा सकता है। यहां पेयजल और शौचालय की व्यवस्था की जा सकती है। बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन, संपूर्ण कार्य नगर निगम के महापौर की दिलचस्पी पर निर्भर है। साथ ही नगर विकास व आवास विकास मंत्री को भी ध्यान देना चाहिए।

‘गया में एक हजार बंधुआ मजदूर’

गया : एकता पीस फाउन्डेशन के सचिव शत्रुध्न कुमार बताते हैं कि बंधुआ मजदूरों की खोज की जा रही है। प्रत्येक माह बैठक की जाती है। सरकारी नौकरशाहों द्वारा बैठकों में जानकारी ली जाती है, मगर जो आंकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं, वे सच्चाई से काफी दूर हैं। कम कर आंकड़ा पेश करने का तात्पर्य यह है कि सरकार को बचाया जाता है। लेकिन, सच्चाई सामने आ ही जाती है। गया, मुजफ्फरपुर, सहरसा आदि जिलों के गरीबों को सब्जबाग दिखाकर दलाल ले जाते वक्त स्टेशनों पर पुलिस के हत्थे चढ़ जाते हैं। पलायन करने वालों में अबोध बच्चे और सयाने भी होते हैं। 
शत्रुध्न आगे बताते हैं कि हमलोग ‘बंधुआ मजदूर खोजो अभियान’ शुरू किए हैं। अभी फाउन्डेशन के द्वारा गया जिले के आठ पंचायतों में अभियान चलाया जा रहा है। अभी तक तीन हजार लोगों का सर्वें किया जा चुका है। इनमें एक हजार की संख्या में विशुद्ध बंधुआ मजदूर हैं। 
‘कौन बनेगा करोड़पति’ से लौटे ओम प्रकाश का कहना है कि मेरे पिताजी भजन लाल बंधुआ मजदूर थे। किसान के पास दादाजी पराधीन थे। महज 25 रुपए की लेनदारी थी। दादाजी की मौत के बाद किसान के पास बाबूजी को बंधुआ मजदूर बनना पड़ा। वे किसी तरह सात रुपए अदा कर पाए। किसान के 18 रुपए बकाया रहते बाबूजी फरार हो गए। तब दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी में रहकर नये सिरे से जीवन शुरू किया।

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