पटना जिले के दानापुर प्रखंड में पुरानी पानापुर ग्राम पंचायत है। इसी पंचायत में महादलितों के करीब 160 घर हैं। ये यहां सौ वर्षों से रहते आ रहे हैं। नौ बीघा जमीन पर इनकी बस्ती कभी गुलजार हुआ करती थी। पिछले जुलाई माह में गंगा का पानी बढ़ा और देखते ही देखते पूरी की पूरी बस्ती गंगा में समा गई। अब ये सभी खुले आकाश के नीचे प्लास्टिक तानकर रहने को विवश हैं।
अभी इन लोगों ने जहां शरण ले रखी है, वहां कई समस्याएं हैं। सबसे पहले तो असामाजिक तत्वों से इन्हें परेशानी होती है। साथ ही, साप, बिच्छा से भी हमेशा डर बना रहता है। इसके अलावा ठंड का प्रकोप। इन्हीं लोगों में से रंजीत कुमार बताते हैं कि हमलोग चमार जाति के हैं। करीब 800 की जनसंख्या है यहां। अधिकांश लोग मजदूरी करते हैं। कुछ मकान बनाने में राजमिस्त्री के साथ, तो कुछ खेतों में। पहले इंदिरा आवास योजना से मकान बना था, अब नहीं रहा। गंगा में मकान बह गया। सभी लोगों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत स्मार्ट कार्ड मिला है। कुछ को अंत्योदय योजना के तहत निःशुल्क राशन मिलता है। 25 लोगों को पीला कार्ड और अन्य सभी को लाल कार्ड निर्गत किया गया है।
रंजीत कहते हैं कि बस्ती में 15 मैट्रिक पास हैं। इनमें 6 महिलाएं हैं। यहां के लोगों ने अखिल भारतीय रविदासिया धर्म संगठन का निर्माण कर रखा है। अबतक अपनी समस्याओं को राज्यपाल के समक्ष रख चुके हैं लोग। साथ ही, मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी आवेदन दिया गया है। लेकिन, कोई फायदा नहीं हुआ। संगठन के अध्यक्ष जनार्दन राम का कहना है कि ठंड से चुल्हन राम की मौत हो चुकी है। यहां कोई देखने वाला नहीं है।
संगठन के सचिव जेके दास की मांग है कि विस्थापितों को कहीं सुरक्षित जगह पर बसाया जाये। साथ ही इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनवाया जाये, ताकि लोगों का जीवन फिर से पटरी पर आ सके।
कटाव पीडि़तों का आरोप है कि पुरानी पानापुर पंचायत की मुखिया बेबी देवी और उनके पति अशोक राय उर्फ इंजीनियर साहब महादलित विरोधी हैं। ये पुनर्वास कराने में सहयोग नहीं कर रहे हैं। हमलोगों ने सीओ को गंगा नदी के दक्षिणी भाग की जमीन का व्योरा दिया है। यहीं पुनर्वास कराने की मांग की जा रही है। राजद के सांसद रामकृपाल यादव ने भी लोगों को बसाने का सरकार से आग्रह किया है।
इस बीच दानापुर प्रखंड के अंचलाधिकारी कुमार कुन्दन लाल द्वारा विस्थापितों को दानापुर के दियारा क्षेत्र के मानस दह में बसाने का प्रयास किया गया। इसे विस्थापितों ने नकार दिया। विस्थापितों का कहना है कि मानस दह में बरसात के समय 10 से 12 फीट पानी रहता है। मानस दह गड्ढ़ा वाली जमीन है। यहां 12 पंचायतों का पानी गिरता है। उसी गड्ढ़े में रहने के लिए सीओ साहब बोल रहे हैं। बाढ़ खत्म हो जाने के बाद भी यहां पानी लगा है। इसे भरने में कितना बालू लगेगा, यह सोच से परे है। हम गरीबों के साथ यह खेल नहीं तो और क्या है।
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