COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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शनिवार, 4 जनवरी 2014

मजदूरी से खुश ग्रामीण किसान

न्यूज@ई-मेल
दानापुर : यहां खेत मालिकों द्वारा धान काटने वाले मजदूरों को ‘बंधोडि़या धान’ देने का प्रचलन आज भी है। इस तरह की मजदूरी मिलने से महिला किसानों को फायदा हो रहा है। वहीं शहरों में मजदूरी के रूप में ‘फेकोडि़या’ दी जाती है। इससे किसानों को नुकसान होता है। ज्ञात हो कि मालिकों के यहां खेतों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर दलित हैं।
एक महिला किसान किरण देवी कहती है कि सबसे पहले खेत में तैयार धान को काटा जाता है। धान को काटने के बाद उसे खेत में ही सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। कोई चार-पांच दिनों के बाद धान सूख जाने पर इसे पुआल से बांध दिया जाता है। पुआल से बंधे पांच बंधन को एक गाही कहा जाता है। इसे 17 जगहों पर रखा जाता है। कुल मिलाकर 17 गाही में 85 बंधन होते है। इनमें से 16 गाही यानी 80 बंधन को मालिक के घर पहुंचा दिया जाता है। शेष एक गाही यानी पांच बंधन ही महिला किसान को मिलता है। इस तरह की मजदूरी को ‘फेकोडि़या’ कहा जाता है। इसमें ढाई किलोग्राम तक धान निकल जाता है। वहीं आज भी देहात में धान के तैयार बोझा में से एक बोझा महिला किसान को दिया जाता है। बोझा उठा पाने भर ही बांधा जाता है। देहात में महिला किसानों को ‘बंधोडि़या धान’ ही मजदूरी में दी जाती है। इसमें सात-आठ किलो धान निकल जाता है। धान कटाई से लेकर मालिक के घर तक पहुंचाने में 14-15 दिन लग जाते हैं।

विकलांगता बाधा नहीं

दानापुर : वीरहरन मांझी जब दस साल के थे, उनके पैर में एक घाव हुआ। ठीक से इलाज नहीं हो पाया। परिणाम यह हुआ कि वे सदा के लिए विकलांग हो गये। वीरहरन दानापुर स्थित कोथवां ग्राम पंचायत के निवासी हैं। यहीं महादलितों का एक टोला है। करीब सौ घर हैं यहां। इसी में से एक में वीरहरन रहते हैं।
वीरहरन कहते हैं कि पैर खराब होने के बाद से लाठी ही एकमात्र मेरा सहारा है। इसी की बदौलत मैं हर काम कर लेता हूं। दूसरों की खेत में काम करता हूं। मजदूरी में धान ज्यादा नहीं मिलता, फिर भी साल भर खाने लायक तो हो ही जाता है। अभी मेरी शादी नहीं हुई है। इसलिए कोई परेशानी नहीं। विकलांगता के सवाल पर वे कहते हैं कि मैं दूसरों को प्रेरणा देता रहा हूं। शारीरिक कमजोरी को लाचारी न बनाएं। प्रयास करने से तो हर काम आसान हो जाता है। इनके पिता करीबन मांझी कहते हैं कि सरकार द्वारा निःशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिल रहा है। प्रतिमाह दो सौ रुपए मिलते हैं। इससे क्या होगा। परिवार के लिए सभी को मिलकर मजदूरी करनी पड़ती है।

टेंट में आंगनबाड़ी केन्द्र!

दानापुर : सूबे के अधिकांश आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। यहां ना तो ‘आंगन’ है और न ही ‘बाड़ी’। कुछ इसी तरह की स्थिति बालवाड़ी केन्द्रों की भी है। यहां दलित, महादलित व पिछड़े वर्ग के बच्चे पढ़ने आते हैं।
फिलवक्त दानापुर स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र की बात करते हैं। यहां महादलित वर्ग के लोग अभी रह रहे हैं। इनके बीच ही समेकित बाल विकास सेवा परियोजना के तहत आंगनबाड़ी केन्द्र चल रहा है। कायदे से यह केन्द्र पुरानी पानापुर ग्राम पंचायत के महादलित टोली में रहना चाहिए था। लेकिन, गंगा नदी से होने वाले कटाव के कारण इसे लोगों के साथ भी विस्थापित होना पड़ा। अब प्लास्टिक का टेंट बनाकर इसमें ही चलाया जा रहा है। केन्द्र की सेविका उर्मिला देवी और सहायिका मिन्ती देवी हैं। यहां पर कुछ बच्चों को सहायिका मिन्ती देवी पढ़ा रही हैं। सेविका उर्मिला देवी केन्द्र कम ही आती हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब बच्चों को सहायिका पढ़ा रही हैं, तो बच्चों का खाना कौन बनाएगा और खिलाएगा?

आंख की रोशनी नहीं तो क्या

आरा : भोजपुर जिले के उदवंतनगर थानान्तर्गत बेलाउर पंचायत के चक्रधर टोला में बादशाह राम और उनकी पत्नी कमली देवी रहती हैं। इनकी सात संतानें हैं। चार लड़का और तीन लड़की। सबसे पहला निर्मल कुमार राम जब सात साल का था, तब 1998 में उसकी आंख की रोशनी धीरे-धीरे चली गयी। इसके बाद 2003 में सुनील कुमार राम और उसके पहले 2002 में सोनामुन्नी कुमारी की आंख की रोशनी गायब हो गयी। ये दलित परिवार के हैं।
इससे अन्य खेतिहर मजदूरों में हड़कंप मच गया। परिवार में एक के बाद एक तीन बच्चे अंधे हो गए। वहीं चार अन्य बच्चे सामान्य हैं। इनके मां-बाप परेशान हो उठे। तीनों को कई जगहों पर ले जाकर इलाज करवाया, मगर सुधार नहीं हो सका। भोजपुर के सिविल सर्जन भी इनकी रोशनी वापस लाने में कामयाब नहीं हो सके। हां, अपाहिज प्रमाण पत्र जरूर मिल गया। निर्गत विकलांग प्रमाण पत्र पेश करने से निःशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिल पा रहा है।
आज निर्मल कुमार राम एमए पास कर चुका है। सुनील कुमार राम बीए है और सोनामुन्नी कुमारी दसवीं की परीक्षा देने वाली है। दोनों अंधे भाई विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। कई जगह बाहर जाकर परीक्षा भी दे चुके हैं। आंखों की रोशनी इनके लिए बाधक नहीं। बल्कि ये अपने क्षेत्र के लोगों के लिए एक उदाहरण बन चुके हैं।

महादलितों में साक्षरता दर काफी कम

पटना : पिछले दिनों पटना में महिला किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर योजना एवं विकास विभाग के प्रधान सचिव विजय प्रकाश ने कहा कि यदि हम राज्य में महिला किसानों की संख्या पर गौर करते हैं, तो पाते हैं कि 1961 में 16 प्रतिशत, 1971 में 2 प्रतिशत, 2001 में 5 प्रतिशत और 2011 में 7 प्रतिशत महिला किसानों की संख्या रही है। कुल मिलाकर 30 लाख महिला किसान हैं। वहीं किसानों की कुल संख्या 1 करोड़ 61 लाख है।
उन्होंने कहा कि त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत में 50 प्रतिशत, शिक्षिकाओं की बहाली में 50 प्रतिशत, पैक्स में 50 प्रतिशत और पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर की बहाली में 35 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को दी जा रही है। इसके अलावा समेकित बाल विकास परियोजना महिलाओं के ही जिम्मे हैं। आंगनबाड़ी केन्द्र में 90 लाख सेविका और 90 लाख सहायिका सेवारत हैं। इसमें सीडीपीओ भी महिला ही हैं। अभी स्वयं सहायता समूह की महिला सदस्यों की संख्या 64 लाख 61 हजार है। वहीं 1 लाख 10 हजार स्वयं सहायता समूह हैं। इस दिशा में मेजर परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा के संदर्भ में जिक्र करते हुए उन्होंने आगे कहा कि 2001-11 तक 20 प्रतिशत साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। कुल मिलाकर 53 से 73 प्रतिशत साक्षरता दर में इजाफा हुआ है।
उन्होंने हासिये पर रहने वाले महादलित मुसहर समुदाय के लोगों के बारे में कहा कि 1961 में ढाई प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 9 प्रतिशत साक्षरता दर हो गयी है। इस समुदाय में साक्षरता दर की रफ्तार काफी धीमी है। अगर इसी तरह का हाल रहा तो 500 साल में ये महादलित साक्षर हो सकेंगे। सभागार में बैठे महिला किसानों से उन्होंने कहा कि महिला किसान होने के साथ शिक्षा का अधिकार भी लेने की जरूरत है, तब जाकर सही मायने में अधिकार मिल सकेगा। शिक्षा के क्षेत्र में लड़का और लड़की की संख्या में समानता के लिए सरकार गंभीरता से काम कर रही है। इसी तरह खेत में पुरुष और महिला को ‘समान अधिकार समान पहचान’ की दिशा में कार्य करने की जरूरत है।

जमीन के बदले जेल

पटना : पिछले दिनों पटना में एकता परिषद के द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पूरे सूबे से संस्था के कार्यकर्ता, पदाधिकारी व प्रमुख लोग आए। एकता परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि जहां नरसंहार कर धरती को लाल कर दिया जाता था, आज गैर सरकारी संस्थाओं और ग्रामीणों के सहयोग से वहां खेती संभव हो सकी है। भोजपुर, गया, अरवल, जमुई, पश्चिम चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सहरसा, मधेपुरा आदि जिलों में सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। उन्होंने कहा कि वनभूमि पर रहने वाले आदिवासी और गैर आदिवासियों को 13 दिसम्बर, 2005 से पहले रहने का प्रमाण देने पर वनाधिकार कानून, 2006 के तहत सरकार द्वारा वनभूमि का पट्टा देकर मालिकाना हक देना है। यह बिहार में मंथरगति से संचालित है।
प्रियदर्शी ने कहा कि खेत का तीन हिस्सा कार्य महिलाएं ही करती हैं। एक हिस्से का कार्य पुरुष किया करते हैं। इसके बावजूद खेती कार्य में महिलाओं की पहचान ही नहीं है। वे उपेक्षा का दंश झेलती हैं। उन्होंने कहा कि पूरे देश में बिहार अव्वल है जहां कृषि कैबिनेट बनाया गया। सरकार से आग्रह किया गया है कि कृषि कैबिनेट को महिला केन्द्रित कार्य वाला बनाना चाहिए।
इस अवसर पर पश्चिम चम्पारण जिले के बगहा की रहने वाली ज्ञान्ति देवी ने कहा कि भले ही हमलोग अनपढ़ हैं, मगर खेती कार्य अच्छी तरह कर लेते हैं। खेत में सभी चीज उपजा लेते हैं। अब तो पश्चिम चम्पारण के लोग वनभूमि पर खेती करने लगे हैं। वनभूमि कानून, 2006 के तहत वनभूमि का पट्टा नहीं दिया जा रहा है। जमीन का पट्टा देने के बदले लोगों को जेल में बंद कर दिया जा रहा है। झूठा मुकदमा कर दिया जाता है। सरकार दलित, महादलित, आदिवासी व वंचित समुदायों की मदद करने के बदले उसे सताने में लगी है।

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