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पटना : इस कानून के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में उन गरीब परिवारों को भूमिहीन तथा आश्रयहीन माना गया है, जिनके पास वैधानिक तौर पर कोई भी आवासीय भूमि नहीं है। इन सभी परिवारों के लिए प्रस्तावित आवसीय भूमि का तात्पर्य ऐसी भूमि से है, जो परिवार अथवा व्यक्ति के लिए निजी उपयोग हेतु सुनिश्चित हो। प्रत्येक भूमिहीन तथा आश्रयहीन परिवार को न्यूनतम 10 डिस्मिल (4400 वर्ग फीट) भूमि का आबंटन किया जायेगा। यह भूमि, वंशानुगत प्रक्रियाओं को छोड़कर अहस्तांतरणीय होगी। उपरोक्त प्रक्रियाओं को पूर्ण करने हेतु इस कानून की अधिसूचना जारी होने के 6 माह के भीतर सभी राज्य सरकारें क्रियान्वयन की नीति और नियोजन प्रस्तुत करेंगी। जिसके तहत ग्राम सभा द्वारा प्रस्तुत सूची के अनुसार जिला प्रशासन का दायित्व योग्य परिवारों को न्यूनतम 10 डिस्मिल भूमि का आबंटन करना होगा। राज्य प्रशासन की ओर से इन प्रक्रियाओं में होने वाले विवादों के निपटारे हेतु उपयुक्त न्यायिक निकायों की स्थापना भी की जायेगी। आवासीय भूमि का अधिकार वयस्क महिला सदस्य के नाम पर किया जायेगा। उन परिस्थितियों में जहां वयस्क महिला सदस्य नहीं है, भूमि का आबंटन वयस्क पुरुष के नाम पर किया जायेगा। इस प्रक्रिया में महिला मुखिया आधारित परिवार, एकल महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, घुमंतु जनजाति तथा विकलांग परिवारों को विशेष प्राथमिकता दी जायेगी।
इस कानून के वित्तीय प्रबंधन के लिए भारत सरकार की भागीदारी 75 प्रतिशत तथा राज्य सरकारों की भागीदारी 25 प्रतिशत होगी। ग्राम पंचायतों का दायित्व होगा कि सभी भूमिहीन तथा आश्रयहीन परिवारों की पहचान करके ग्राम सभा से अनुमोदन करके सूची तैयार करे और इसे विकासखंड तथा जिला पंचायतों को प्रस्तुत करे। इस कानून के क्रियान्वयन हेतु प्रत्येक जिला स्तर पर अधिसूचना जारी की जायेगी। तत्पश्चात चिन्हित परिवारों को दो वर्ष के भीतर भूमि का आबंटन सुनिश्चित किया जायेगा। किसी भी राज्य और जिला स्तर पर यह कानून अधिकतम 5 वर्ष के भीतर पूर्णतः लागू कर दिया जायेगा। राज्य सरकारों का यह दायित्व होगा कि नयी आबादी बस्तियों में पेयजल तथा अन्य नागरिक सुविधाएं भी मुहैया करायें। भारत सरकार द्वारा इस कानून की अधिसूचना जारी होने के पश्चात राज्य सरकार के स्तर पर इसे लागू करने हेतु नियमों का निर्धारण 6 माह के भीतर किया जायेगा।
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