पटना : सरकार, सरकारी बाबू, मीडिया! इनसब के बीच फंसा महादलित। अब देखिए खेल, पिछले साल 15 अगस्त, 2013 को बिहार के तत्कालिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी महादलित बस्ती में जाकर झंडा लहराना चाहते थे। इसकी व्यवस्था जिलाधिकारी पटना के चिरैयाढाड़ मुसहरी में करने लगे। इसके अलावा अन्य मुसहरी को भी तैयार करके रखा गया। इसमें चिरैयाढाड़ मुसहरी के महादलितों को फायदा हुआ। मुसहरी की गंदगी दूर हो गयी। लेकिन, मुख्यमंत्री जी यहां आते, इससे पहले ही कार्यक्रम में बदलाव कर रोनिया मुसहरी में झंडा फहराने का कार्यक्रम करवा दिया गया।
तब प्रिंट मीडिया में यह खबर आयी भी थी। अखबारों ने फोटो के साथ कुछ खबरें छापे थे। लेकिन, बाद में इसके बारे में कुछ नहीं छपा। संक्षिप्त में भी नहीं! वैसे भी महादलितों की खबर कहां खबर होती है! छोटे-छोटे नेता कभी मरते हैं तो खबर बन जाती है, मुसहरी में तो हर साल दर्जनों मरते हैं। खैर, आगे देखिए...।
इनसब के बीच चिरैयाढाड़ मुसहरी के लोगों को थोड़ा फायदा हुआ। मुसहरी की गंदगी खत्म हो गयी। चबुतरे का पक्कीकरण कर दिया गया। खराब पड़े चापाकल को दुरूस्त किया गया। लेकिन, एक बार फिर चापाकल से पानी नहीं निकल रहा है। लोग चापाकल को ठीक किये जाने की मांग कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, महादलितों को इंदिरा आवास योजना से मकान बनाने के लिए 45 हजार रुपए मिलने थे। अधिकारियों ने 30 हजार रुपए देकर हाथ खड़ा करना चाहा। शिकायत करने पर शेष 15 हजार रुपए की राशि दी गयी। जिन्हें यह राशि मिली, वे छत ढालने में सफल रहे। वहीं कुछ लोगों को लटकाया भी गया। इन्हीं में से एक है महेन्द्र मांझी। महेन्द्र कहता है कि झोपड़ी हटाकर इन्दिरा आवास योजना से मकान बनवाना था। 30 हजार रुपए मिले, इस राशि से छत नहीं ढल पायी। पिछले चार साल से शेष 15 हजार रुपए के लिए दौड़ादौड़ी कर रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है।
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