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सोमवार, 29 दिसंबर 2014
बुधवार, 17 दिसंबर 2014
फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं आदिम लोग
संक्षिप्त खबर
गया : गया जिले के फतेहपुर प्रखंड स्थित गुरपा जंगल में आदिम जाति के लोग रहते हैं। प्राकृतिक संसाधन जल, जंगल और जमीन के सहारे उनका जीवन गुजरता है। पहाड़ से गिरने वाला पानी पीते हैं। ये गुरपा जंगल में रहते और वनभूमि की जमीन पर खेती करते हैं।

सीओ शैलेष कच्छप कहते हैं कि आवासीय भूमिहीनों को सरकारी मापदंड के अनुसार जमीन दी जाएगी। जिन आवासीय भूमिहीनों को जमीन मिली, मगर कब्जा नहीं हो सका, उनको जमीन पर कब्जा दिलवाया जाएगा। वासगीत पर्चा का वितरण किया जाएगा। इसमें एनजीओ का सहयोग लिया जा रहा है। जिनको वासगीत पर्चा नहीं मिला है, ऐसे लोगों की सूची एनजीओ के लोग बना रहे हैं। हर हाल में मार्च, 2015 तक वासगीत पर्चा निर्गत कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव के दिशा निर्देशानुसार आॅपरेशन बसेरा को सफल बनाना है। इस बाबत रणनीति बना ली गयी है।
आंदोलन मंच ने किया अनशन, रखीं कई मांगें
पटना : मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी प्रखंड के लोगों ने आंदोलन मंच का निर्माण किया है। और इसी के बैनर तले लोगों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर गांधी मैदान स्थित कारगिल चैक पर अनशन किया। अनशन कर रहे लोगों का कहना था कि सूबे में सरकारी योजनाएं तो कई बनीं, पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है। लोगों ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से तुरंत सुधार की मांग की है। अपनी विभिन्न मांगों को लोगों ने इस प्रकार बताया -
- खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मिलने वाले राशन कार्ड से बड़ी संख्या में गरीब वंचित हैं। वहीं जिन्हें राशन कार्ड प्राप्त हो चुका है, वे राशन से वंचित हैं। साथ ही, अयोग्य लोगों के नाम इस योजना में शामिल हो गये हंै। अतः पंचायत स्तर पर राशन प्राप्त करने लायक परिवारों को चिन्हित करने, उन्हें राशन कार्ड देकर राशन आवंटन करने एवं उक्त योजना में शामिल अयोग्य परिवारों को योजना से अलग करने की व्यवस्था हो।
- घर-घर शौचालय का निर्माण करना है। परन्तु, उक्त योजना का प्रचार-प्रसार जिस रूप में किया जा रहा है, ठीक नहीं है। इसकी प्रक्रिया जटिल एवं आवंटित राशि लागत राशि से काफी कम है। इस कारण उक्त योजना के क्रियान्वयन में काफी कठिनाई हो रही है। अतः क्षेत्रवार शौचालय निर्माण की लागत राशि की समीक्षा कर प्रत्येक परिवार को कम से कम 25000 रुपए उक्त योजना के तहत दी जाए एवं इसकी प्रक्रिया सरल एवं सुलभ बनाई जाए। योजना क्रियान्वयन हेतु एजेंसी की जवाबदेही तय हो।
- आज भी प्रदेश के गरीब बीपीएल कार्ड से महरूम हैं। वे सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हो जा रहे हैं। इस समय सभी तरह के कल्याण व विकास कार्यों में बीपीएल कार्ड की मांग की जाती है, अतः वंचित गरीबों हेतु एक नीति बनाकर उन्हें इंदिरा आवास योजना, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन अथवा अन्य योजनाओं से लाभ दिलाने की व्यवस्था हो।
- शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के नाम पर लगने वाले चापाकल योजना में काफी भ्रष्टाचार है। सच्चाई यह है कि पीएचईडी विभाग मुफ्त में सरकारी वेतन ले रहा है। इसका कुप्रभाव अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति पर पड़ रहा है। इस कारण समाज बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो रहा है। अतः गहराई वाले चापाकल लगाने की व्यवस्था हो। साथ ही, गुणवत्ता हेतु विभाग की जवाबदेही तय हो।
- वर्तमान में ग्रामीण सड़कों के निर्माण, जीर्णोद्धार, पक्कीकरण से जुड़े कार्य में सांसद, विधायक, विधान पार्षद स्तर के जनप्रतिनिधियों की भूमिका बनाई गयी है। पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिला परिषद सदस्य को विकास हेतु कोई अधिकार नहीं दिया गया है। यह उचित नहीं है। इस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
- मनरेगा को सशक्त बनाने, इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार हटाने हेतु उक्त अधिनियम को कृषि एवं किसान से जोड़ने पर किसान एवं कृषि मजदूर के साथ-साथ राज्य एवं राष्ट्र के समृद्धि की भी संभावना है। अतः अधिनियम के तहत कृषि मजदूर किसान की भूमि पर कृषि कार्य करें।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े-बड़े भू-खंड हैं। इसे चैर कहा जाता है। जल-जमाव होने के कारण कृषि कार्य से वंचित है। अतः वैसे भू-स्थलों को चिन्हित कर जल निकास कराते हुए सरकारी स्तर से सिंचाई हेतु बिजली आधारित नलकूप प्रदान करने की नीति लागू हो।
- प्रदेश में वित्तरहित शिक्षा नीति के कुप्रभाव से पीडि़त लगभग 300 बालिका विद्यालय सरकारीकरण से वंचित हैं। जबकि विद्यालयों में मैट्रिक स्तर की परीक्षा आयोजित करने की अनुमति प्राप्त है। यह स्थिति शर्मनाक है। अतः महिला शिक्षा को मजबूत एवं जागरूक बनाने हेतु सभी वैसे बालिका विद्यालय, जहां मैट्रिक की परीक्षा आयोजित होती है, उसे सरकारीकरण किया जाए।
- बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग संघ, खादी आयोग, जिला खादी संघ जैसी संस्थाओं की हालत दयनीय है। इसमें सरकारी हस्तक्षेप कर पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इस संबंध में एक नीति बनाकर उसे क्रियान्वित किया जाए।
- जिला मुजफ्फरपुर के प्रखंड मुशहरी के प्रखंड मुख्यालय के निकट स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का भवन अति जर्जर है। उक्त केन्द्र की क्षमता मात्र 6 बेडो की है। अतः उक्त केन्द्र का भवन नया बनाते हुए इसे अस्पताल का रूप देकर इसकी क्षमता बढ़ाई जाए।
- जिले के प्रखंड मुशहरी के ग्राम पंचायत डुमरी स्थित बुढ़ी गंडक नदी, बुधनगरा घाट पर वर्ष 1993 में नाव दुर्घटना हुई थी, जिसमें 17 लोग मर गए थे। तब लालू प्रसाद एवं रमई राम ने पुल निर्माण कराने की घोषणा की थी, परन्तु पुल नहीं बन सका। अतः उक्त स्थल पर पुल का निर्माण हो।
- दरभंगा, समस्तीपुर, बेगूसराय को जोड़ने वाली मुजफ्फरपुर पूसा पथ की लंबाई लगभग 40 किलोमीटर है। इससे प्रतिदिन लाखों व्यक्तियों, वाहनों का आना-जाना होता है। परन्तु, सड़क एक लेन होने के कारण सदैव दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। अतः इस पथ का दोहरीकरण किया जाये।
- बिहार सरकार में लंबे समय से रमई राम मंत्री रहे हैं। पद पर रहते हुए उन्होंने काफी संपत्ति अर्जित की है। इनके रिश्तेदारों के नाम से भी काफी संपत्ति है। अतः 1990 से अबतक रमई राम, इनकी पुत्री गीता कुमारी एवं दामाद विजय कुमार द्वारा अर्जित संपत्ति की जांच कर उसका प्रकाशन हो।
- मंत्री रमई राम ने मजदूर आनंदू पासवान के साथ अमानवीय व्यवहार किया। यह लोकतंत्र के लिए कलंक एवं मानव अधिकारों का उल्लंघन है। अतः आनंदू पासवान के बयान के आधार पर सचिवालय थाना, पटना में प्राथमिकी दर्ज कराकर मंत्री रमई राम के विरूद्ध कार्रवाई हो।
- सूबे में विकास कार्य में दलाल एवं बिचौलियों का राज खत्म हो।

इस संबंध में मुजफ्फरपुर जिला परिषद के सदस्य व अनशनकारी मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि अनशनकारी मांग पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें उपेन्द्र तिवारी, चन्द्रकेश चैधरी, मो. तैयब अंसारी और रामसकल सिंह हैं। अन्ना आंदोलन के को-आॅडिनेटर डाॅ. रत्नेश चैधरी और भाजपा नेत्री सह पूर्व प्रत्याशी बोचहां विधान सभा सुरक्षित आदि ने भी जनहित के समर्थन में हस्ताक्षर किया है।
गुरुवार, 11 दिसंबर 2014
गोविन्दाचार्य का आदिवासी अधिकार पदयात्रा को समर्थन
कवर्धा : राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविन्दाचार्य ने आदिवासी अधिकार पदयात्रा को अपना समर्थन दिया है। ग्राम सिघांरी में जनसमूह को संबोधित करते हुए गोविन्दाचार्य ने कहा कि अन्याय के खिलाफ हमसब को एकजूट होकर लड़ना और जीतना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी बेहतर जिन्दगी जी सके। पूरे समाज को न्याय मिले और सभी लोग सम्मान से शांतिपूर्वक जीवन जी सके। एकता परिषद के तत्वावधान में आयोजित व राजगोपाल पी.व्ही. के नेतृत्व में चल रहे न्याय, शांति और सम्मान के लिए आदिवासी अधिकार पदयात्रा को समर्थन देने गोविन्दाचार्य यहां आये थे। उन्होंने कहा कि यहां की खनिज सम्पदा का मनमाना दोहन कर पूंजीपति खूब धन बटोर रहे हैं। यहां के भोले-भाले निवासियों के हिस्से धूल, मिट्टी, प्रदूषण व बीमारियां हाथ लग रही है। उन्होंने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि सभा के दौरान जो समस्याएं ग्रामीणों ने रखी हैं, उन्हें केन्द्र एवं राज्य सरकार के सामने लाया जायेगा। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन समस्याओं पर ध्यान देगी।
इस अवसर पर पूर्व विधायक वीरेन्द्र पांडे ने कहा कि संवाद से समझ बनती है और समझ से हर समस्या का हल निकलता है। आदिवासियों के प्रति अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज तीन लोगों को सरकार मानता है - वन विभाग, पटवारी और थानेदार। इन्हीं विभाग को वे अपना माई-बाप या सरकार मानते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश ये तीनों विभाग आदिवासियों के शोषण करने में लगे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी सबकुछ सहन कर लेता है, लेकिन अपने जीवन में हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करता। सरकार पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि जब से सरकार ने लोगों को सस्ता अनाज देना प्रारंभ किया है, प्रदेश में नशाखोरी लगातार बढ़ती जा रही है। यह एक सोची समझी साजिश है। इस अन्याय के खिलाफ केवल आदिवासी समाज को ही नहीं, पूरे समाज को लड़ना होगा।
मध्यप्रदेश के डिण्डोरी, मण्डला, बालाघाट से यात्रा में चल रहे नान्हू बैगा, शोभा बहन, समलियाबाई, अनिता, चन्द्रकांता एवं छतीसगढ़ के शिकारी बैगा, कोरबा क्षेत्र से आये पाण्डों समाज के मुखिया अहिबरन व ग्राम सिघांरी के मुखिया ने वन भूमि अधिकार, नेशनल पार्क विस्तार, कारीडोर परियोजना, बांध, वन्य जीव संरक्षण और खदानों के नाम पर हो रहे विस्थापन एवं विकास प्राधिकरण में हो रही धांधली व अनियमितताओं पर अपनी-अपनी बात रखी।
सभा में उपस्थित समस्त पदयात्री एवं ग्रामीणों का आह्वान करते हुए एकता परिषद, छतीसगढ़ के संयोजक प्रशांत कुमार ने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर वंचित समाज को हक और अधिकार दिलाने की कड़ी में निकली इस पदयात्रा का अंतिम पड़ाव कवर्धा है। इसी क्रम में 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस के दिन गांवों से प्राप्त समस्याओं पर शासन-प्रशासन के साथ संवाद स्थापित किया गया। उपरोक्त बातों की जानकारी छतीसगढ़ के मीडिया प्रभारी पीलाराम पटेल ने दी है।
नौ सूत्री मांगों को लेकर प्रदर्शन


इनकी मांगें हैं - अनुबंध पर कार्यरत महिला पर्यवेक्षिका को बिना शर्त सरकारी कर्मचारी का दर्जा देते हुए नियमित किया जाए। स्थायी महिला पर्यवेक्षिका के वेतन के समान मानदेय राशि दी जाए। परीक्षा के नाम पर हटाने की साजिश पर रोक लगे। पांच लाख रुपए का जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा और स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाए। पेंशन ग्रेच्युटी, अनुकंपा एवं सभी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। चिकित्सा सुविधा, विशेषावकाश एवं अर्जित अवकाश दी जाए। अतिरिक्त कार्य हेतु अतिरिक्त भत्ता तथा आईसीडीएस के अलावा अन्य कार्य न लिया जाए। लंबित मानदेय का शीघ्र भुगतान किया जाए और चयन रद्द - रिकवरी पर मिलने वाले अंक के आधार पर अवधि विस्तार सिस्टम बनाया जाए।
आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं ने किया प्रदर्शन

औरंगाबाद की सेविका सविता यादव का कहना है कि हमलोगों को तरह-तरह के अभियानों में जोड़ा गया है। मगर, हमारी भुखमरी दूर नहीं की जा रही है। समस्याओं को लेकर 38 जिलों की आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका-सहायिकाएं गांधी मैदान में जुटीं।
बिहार राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन की अध्यक्ष उषा सहनी और महासचिव कुमार विन्देश्वर सिंह ने 14 सूत्री मांगों के बारे में बताया कि आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देकर सेविका को 3 श्रेणी और सहायिका को 4 श्रेणी के कर्मचारी के रूप में समायोजित किया जाय। जबतक सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता, सेविका को 15 हजार और सहायिका को 10 हजार रुपए मानदेय राशि दी जाय। काम का समय निर्धारित कर आठ घंटे किया जाय। गोवा एवं अन्य राज्य सरकारों की तरह बिहार सरकार द्वारा भी सेविका को 4200 और सहायिका को 2100 रुपए अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाय। श्रम कानूनों में संशोधन, निजीकरण, उदारीकरण, ठेका प्रथा, मानदेय प्रथा पर रोक लगायी जाय। सेविका को सुपरवाईजर एवं सहायिका को सेविका के पद पर पदोन्नति की व्यवस्था हो तथा उम्र सीमा समाप्त की जाय। सेविका को पांच लाख एवं सहायिका को तीन लाख की बीमा सुविधा दी जाय तथा स्वीकृत बीमा का क्रियान्वयन सुनिश्चित की जाय। चयन रद्द करना बंद हो तथा न्यायिक प्रक्रिया सुलभ बनायी जाय। आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका की बर्खास्तगी वापस ली जाय एवं चल रही बर्खास्तगी की प्रक्रिया पर रोक लगे। सेवानिवृत, पेंशन, ग्रेच्यूटी और प्रोविडेंड फंड सहित सभी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करायी जाय। स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधा एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की सुविधा मिले। सेवाकाल में मृत्यु होने पर योग्यतानुसार अनुकंपा के आधार पर उनके आश्रितों की बहाली हो। तमाम आंगनबाड़ी केन्द्रों के भवन निर्माण शीघ्र हों तथा सभी आधारभूत सुविधाएं शामिल हों। प्रत्येक गांव, मुहल्ला, कस्बा में आंगनबाड़ी केन्द्र खोला जाय। आईसीडीएस का किसी तरह का निजीकरण न हो और गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों व कारपोरेटों को सौंपने की साजिश पर रोक लगे।
मनायी जाने लगी प्रभु येसु के आगमन की खुशी
संक्षिप्त खबर
पटना : बालक येसु का जन्म 24 दिसम्बर की मध्यरात्रि को एक गौशाला में साधारण परिवार के घर हुआ था। माता मरियम के गर्भ से बालक येसु का जन्म होने पर उसे कपड़े में लपेटकर चरणी में सुला दिया जाएगा। इस वर्ष भी इसी समय का इंतजार है। घर-घर जाकर क्रिसमस साॅग गाने का सिलसिला शुरू हो गया है। गीत मंडली की टोली में किसी बच्चे के हाथ में बालक येसु की प्रतिमा होती है। जब गीत मंडली ईसाई समुदाय के घर पहुंचती है, घर के लोग बालक येसु का स्वागत करते हैं। इस अवसर पर गीत मंडली भक्ति गीत गाती है। आया येसु राजा कि सब मिलकर गाओ खुशियां मनाओ.... जगत का राज दुलारा आया....। खुशी मनाओ रे जन्मा येसु राजा-राजा... जन्मा येसु राजा...। फिर एक से दूसरे घर की ओर प्रस्थान करने के पहले घर वालों को हैप्पी क्रिसमस और हैप्पी न्यू ईयर की अग्रिम शुभकामनाएं दी जाती है।
ज्ञात हो कि बालक येसु के इस इंतजार के चार रविवार को आगमन का रविवार कहते हैं। आजकल ईसाई समुदाय आगमन काल से गुजर रहा है। रविवार 30 नवम्बर कोे प्रथम, 7 दिसम्बर को द्वितीय, 14 दिसम्बर को तृतीय और 21 दिसम्बर को चतुर्थ है। 24 दिसम्बर को छोटा पर्व और 25 दिसम्बर को बड़ा पर्व है। बालक येसु के जन्म के साथ ही बड़ा दिन शुरू हो जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न गिरजाघरों में 24 दिसम्बर की मध्यरात्रि और 25 दिसम्बर को प्रातःकाल मिस्सा होगा। इस मिस्सा पूजा में शिरकत करने लोग जाते हैं।
आगमन के दूसरे रविवार से गीत मंडली द्वारा भक्ति गीत का गायन शुरू हो चुका है। यह सिलसिला सप्ताह भर से अधिक चलेगा। वहीं 13 दिसम्बर से पटना स्थित कुर्जी पल्ली में भक्ति गीत का आयोजन होगा।
चर्च में लगी आग पर दुख जताया
दिल्ली : पिछले दिनों संत सेबेस्टियन चर्च में आग लगने की घटना हुई। बताया जाता है कि चर्च से किरासन तेल की महक आ रही थी। यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आग लगने की घटना राजनीतिक लाभ लेने या फिर शाॅट सर्किट होने के कारण हुई है। चर्च के अंदर रखे सामान जलकर राख हो गये। लेकिन, यह किसी चमत्कार सा ही रहा कि ‘परमप्रसाद’ और रखने वाले स्थान का बाल भी बाका नहीं हुआ। यहां के फादर कहते हैं कि यह सचमुच चत्मकार ही है।
संत सेवेस्टियन चर्च से जुड़ी पल्ली में करीब छह सौ परिवार रहते हैं। दिल्ली के फादर डोमनिक का कहना है कि क्रिसमस पर्व का काउंटडाउन आरंभ हो गया है। आखिर लोग त्योहारी मिस्सा पूजा में भाग लेने कहां जाएंगे? चर्च बनाने में समय और धनराशि की आवश्यकता पड़ती है। कैसे संभव हो सकेगा ? पटना से सामाजिक कार्यकर्ता व कांग्रेस नेता सिसिल साह ने संत सेवेस्टियन चर्च में लगी आग पर दुःख व्यक्त किया है। वे कहते हैं कि अभी एक चर्च में आग लगी है, यह सिलसिला न बने। साथ ही इस घटना की जांच होनी चाहिए। दोषी को सख्त सजा मिलनी चाहिए।
विकलांगों ने रखी 21 सूत्री मांग

संघ की मांग है कि देश एवं राज्य स्तर पर विकलांगों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं की जानकारी रेडियो, अखबार, टीवी, आदि पर हो। देश के सभी श्रेणी की नौकरियों में विकलांगों की क्षमता के अनुसार आरक्षण का प्रावधान हो। राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर मिलने वाली विकलांग पेंशन को बैंक से जोड़ दिया जाए। देश के बेरोजगार विकलांगों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। साथ ही अन्य कई मांगें संघ ने रखी हैं।
रविवार, 7 दिसंबर 2014
गुरुवार, 4 दिसंबर 2014
गया में 148 महिला कर्मचारियों की छंटनी
- मामला कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का
- चयन समिति की गलती का खामियाजा पड़ रहा है भुगतना
- सीएम, पूर्व सीएम व अधिकारियों ने नहीं सुनी फरियाद
- 17 नवम्बर से महिलाएं कर रही हैं अनशन
पिछले दिनों
आलोक कुमार
गया : कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के 148 कर्मचारियों की छंटनी पिछले दिनों कर दी गयी है। इनका चयन चार सदस्यीय टीम द्वारा किया गया था। चयन 27 सितम्बर, 2007 को हुआ था, जिनमें 45 शिक्षक, 44 रसोइया, 22 आदेशपाल, 20 रात्रिप्रहरी और 17 वार्डेन थे। दुर्भाग्य से चयन समिति के सदस्य अपना हस्ताक्षर करना भूल गए। अब इसे ही आधार बनाकर 1 जनवरी, 2013 को नियोजन रद्द कर दिया गया है। इस आदेश पर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रारम्भिक शिक्षा एवं सर्वशिक्षा अभियान, गया का हस्ताक्षर है। विडम्बना यह है कि उक्त पदाधिकारी ने 5 नवम्बर, 2014 को हस्ताक्षर किया है, मगर छंटनीग्रस्त कर्मियों को इसकी सूचना नहीं दी गयी।
छंटनीग्रस्त कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्य परियोजना निदेशक, जिले के शिक्षा पदाधिकारी, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, जिलाधिकारी आदि के पास अपनी फरियाद की है। जब इसपर ध्यान नहीं दिया गया, तो लोग राजधानी में धरना व प्रदर्शन करने को बाध्य हुए। अब 17 नवम्बर, 2014 से पटना में सामूहिक अनशन किया जा रहा है। प्रत्येक दिन 10 महिलाकर्मी सामूहिक अनशन करती हैं।

अनशन स्थल पर शिक्षिका कुमारी अमिता, रंजना कुमारी, और संजू कुमारी, रसोइया सुनीता देवी और चिन्ता देवी, आदेशपाल मंजू देवी, उषा देवी और पूनम कुमारी व रात्रि प्रहरी ममता देवी और विमला देवी मिलीं। इन महिला कर्मियों का कहना है कि पिछले सात साल से वे सेवारत हैं। महज चयन समिति के सदस्यों का हस्ताक्षर नहीं होने के कारण 148 कर्मियों की छंटनी कर दी गयी है। इसमें हम महिला कर्मियों की क्या गलती है ?
लेखक परिचय : आलोक कुमार समाजसेवी हैं। पिछले कई वर्षों से वे दलित, महादलित व वंचित समुदायों के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही पत्रकारिता उनकी रुचि रही है। विभिन्न विषयों पर आप अखबारों व पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे हैं।
भारतीय ईसाइयों के लिए 23 नवम्बर रहा सुपर संडे
आलोक कुमार
पटना : अब लोगों को मदर टेरेसा के संत घोषित होने का इन्तजार है। लोग पोप फ्रांसिस को धन्यवाद दे रहे हैं कि उन्हें ‘धन्य’ घोषित कर दिया गया है। बताते चलें कि संत घोषित होने की प्रक्रिया को कैनोनाइजेशन कहा जाता है और इसमें कई साल भी लग जाते हैं। भारतीय ईसाई समुदाय के लिए 23 नवम्बर सुपर संडे साबित हुआ। वेटिकन सिटी में दो भारतीयों को संत घोषित किया गया। आजतक भारत के केरल से तीन महान आत्मा को संत बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वेटिकन द्वारा अबतक सिस्टर अल्फोंसा, फादर कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया को संत घोषित किया गया है।
क्या है कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया : ईसाइयों की मृत्यु के बाद शव को एक विशेष तरह के बाॅक्स में रखा जाता है। बाॅक्स को बंद करके कब्रिस्तान में दफना दिया जाता है। मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की जाती है। जब प्रार्थना करने वाले व्यक्ति की प्रार्थना सुन ली जाती है, मृतक के नाम का प्रचार-प्रसार किया जाता है। उसके बाद पोप द्वारा गठित समिति के तहत मंथन किया जाता है। समिति के सदस्य आते हैं, कब्रिस्तान में मृतक के शरीर की जांच की जाती है। उसके बाद ही कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया की शुरूआत होती है। संत केवल याजक ही नहीं, गैर याजक भी बन सकते हैं।
चमत्कार का होता है महत्व : यह अद्भूत चमत्कार धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय के बंधन से मुक्त होता है। अगर किसी कैंसर रोगी को चिकित्सकों ने जांचोपरांत कह दिया कि रोगी लास्ट स्टेज पर है। दवा-दारू का असर अब उसपर नहीं होने वाला। रोगी कुछ ही दिनों का मेहमान है। तब रोगी के परिजन किसी मृत व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करने लगते हैं। अगर ऐसा करने से रोगी की तबीयत में सुधार होता है और अंततः कैंसर रोगी ठीक हो जाता है, तो पुनः चिकित्सक उसकी जांच करते हैं। चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित हो जाने के बाद जिस मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की गई थी, उसे अद्भूत चमत्कार माना जाता है। इस तरह से दो-तीन चमत्कार सिद्ध हो जाने पर उस चमत्कार को रोम द्वारा गठित समिति के सदस्य जांच करते हैं। हर पहलू पर गौर किया जाता है। वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्षों को देखा जाता है। तब मृत व्यक्ति को ‘धन्य’ घोषित किया जाता है और बाद में संत की उपाधि दी जाती है।

संत कुरियाकोस एलियास चावारा : फादर कुरियाकोस एलियास चावारा को संत घोषित करने की प्रक्रिया 1984 में शुरू हुई। उन्हें 23 नवम्बर को संत घोषित कर दिया गया। फादर चावारा (1805 से 1871) के संबंध में इतिहासकार और समाज सुधारक भी मानते हैं कि वे एक ऐसे शख्स थे, जिन्होंने सिर्फ कैथोलिक ही नहीं, दूसरे समुदाय के वंचित बच्चों में भी सेक्युलर एजुकेशन पर जोर दिया। उन्होंने जो पहला संस्थान शुरू किया, वह संस्कृत स्कूल ही था। उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस भी लगाये और कम्युनिटी लीडर्स को खुद के पब्लिकेशन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयास का ही नतीजा रहा कि केरल के भीतर और बाहर कई एजुकेशन व चैरिटी संस्थाएं खुल गयीं। उनका जन्म अलपुज्जा जिले के कइनाकरी गांव में 10 फरवरी, 1805 को हुआ था। संत कुरियाकोस एलियास चावरा को कोट्टयम के मान्नमन में दफन किया गया है।
त्रिचुर की यूफ्रेसियम्मा : सिस्टर सुफ्रेसिया एक आध्यात्मिक महिला थी। इन्होंने त्रिचुर के एक काॅन्वेंट में लोगों की मदद करते हुए उम्र बिता दी। जो भी उससे प्रेयर के जरिए आता या परामर्श करता, उसे आध्यात्मिक शांति का अहसास होता था। उनका जन्म त्रिचुर के अरनाटुकारा में 17 अक्टूबर, 1877 में हुआ था। सिस्टर यूफ्रेसिया त्रिचुर में यूफ्रेसियम्मा के नाम से मशहुर थीं। उनका निधन 1952 में हुआ और 1987 में उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। संत सुफ्रेसिया को एर्णाकुलम में दफन किया गया।

लेखक परिचय : आलोक कुमार समाजसेवी हैं। पिछले कई वर्षों से वे दलित, महादलित व वंचित समुदायों के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही पत्रकारिता उनकी रुचि रही है। विभिन्न विषयों पर आप अखबारों व पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे हैं।
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