कवर्धा : राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविन्दाचार्य ने आदिवासी अधिकार पदयात्रा को अपना समर्थन दिया है। ग्राम सिघांरी में जनसमूह को संबोधित करते हुए गोविन्दाचार्य ने कहा कि अन्याय के खिलाफ हमसब को एकजूट होकर लड़ना और जीतना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी बेहतर जिन्दगी जी सके। पूरे समाज को न्याय मिले और सभी लोग सम्मान से शांतिपूर्वक जीवन जी सके। एकता परिषद के तत्वावधान में आयोजित व राजगोपाल पी.व्ही. के नेतृत्व में चल रहे न्याय, शांति और सम्मान के लिए आदिवासी अधिकार पदयात्रा को समर्थन देने गोविन्दाचार्य यहां आये थे। उन्होंने कहा कि यहां की खनिज सम्पदा का मनमाना दोहन कर पूंजीपति खूब धन बटोर रहे हैं। यहां के भोले-भाले निवासियों के हिस्से धूल, मिट्टी, प्रदूषण व बीमारियां हाथ लग रही है। उन्होंने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि सभा के दौरान जो समस्याएं ग्रामीणों ने रखी हैं, उन्हें केन्द्र एवं राज्य सरकार के सामने लाया जायेगा। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन समस्याओं पर ध्यान देगी।
इस अवसर पर पूर्व विधायक वीरेन्द्र पांडे ने कहा कि संवाद से समझ बनती है और समझ से हर समस्या का हल निकलता है। आदिवासियों के प्रति अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज तीन लोगों को सरकार मानता है - वन विभाग, पटवारी और थानेदार। इन्हीं विभाग को वे अपना माई-बाप या सरकार मानते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश ये तीनों विभाग आदिवासियों के शोषण करने में लगे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी सबकुछ सहन कर लेता है, लेकिन अपने जीवन में हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करता। सरकार पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि जब से सरकार ने लोगों को सस्ता अनाज देना प्रारंभ किया है, प्रदेश में नशाखोरी लगातार बढ़ती जा रही है। यह एक सोची समझी साजिश है। इस अन्याय के खिलाफ केवल आदिवासी समाज को ही नहीं, पूरे समाज को लड़ना होगा।
मध्यप्रदेश के डिण्डोरी, मण्डला, बालाघाट से यात्रा में चल रहे नान्हू बैगा, शोभा बहन, समलियाबाई, अनिता, चन्द्रकांता एवं छतीसगढ़ के शिकारी बैगा, कोरबा क्षेत्र से आये पाण्डों समाज के मुखिया अहिबरन व ग्राम सिघांरी के मुखिया ने वन भूमि अधिकार, नेशनल पार्क विस्तार, कारीडोर परियोजना, बांध, वन्य जीव संरक्षण और खदानों के नाम पर हो रहे विस्थापन एवं विकास प्राधिकरण में हो रही धांधली व अनियमितताओं पर अपनी-अपनी बात रखी।
सभा में उपस्थित समस्त पदयात्री एवं ग्रामीणों का आह्वान करते हुए एकता परिषद, छतीसगढ़ के संयोजक प्रशांत कुमार ने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर वंचित समाज को हक और अधिकार दिलाने की कड़ी में निकली इस पदयात्रा का अंतिम पड़ाव कवर्धा है। इसी क्रम में 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस के दिन गांवों से प्राप्त समस्याओं पर शासन-प्रशासन के साथ संवाद स्थापित किया गया। उपरोक्त बातों की जानकारी छतीसगढ़ के मीडिया प्रभारी पीलाराम पटेल ने दी है।
नौ सूत्री मांगों को लेकर प्रदर्शन
पटना : सरकार 38 जिले के प्रखंडों में कार्यरत महिला पर्यवेक्षिका का शोषण कर रही है। ये साढ़े तीन साल से कार्यरत हैं। बतौर मानदेय 12 हजार रुपए मिलते हैं। एक महिला पर्यवेक्षिका को 25 से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्र का पर्यवेक्षण करना पड़ता है। बिहार राज्य आईसीडीएस महिला पर्यवेक्षिका एवं कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष विन्देश्वर सिंह और महासचिव पार्वती देवी ने अनशन स्थल पर पिछले दिनों यह बातें कहीं। वहीं मोकामा की रंजू कुमारी कहती है कि उनके जिम्मे 72 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। आंगनबाड़ी केन्द्र के पर्यवेक्षण के एवज में 1000 रुपए टीए दिया जाता है। इस टीए की राशि से अधिक ही खर्च हो जाता है।
अपनी दुधमुंही बच्ची साक्षी को संजू देवी साथ लायी हैं। अनशन स्थल पर मां से साक्षी दूध की मांग करती है। एक ओर मां संजू देवी बच्ची को दूध पिलाती है, दूसरी ओर अपनी 9 सूत्री मांगों के लिए आवाज बुलंद करती है। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समक्ष अपनी मांगों को लेकर 60 घंटे का अनशन शुरू किया गया। साथ ही, 4 दिसम्बर को प्रदर्शन किया गया।
इनकी मांगें हैं - अनुबंध पर कार्यरत महिला पर्यवेक्षिका को बिना शर्त सरकारी कर्मचारी का दर्जा देते हुए नियमित किया जाए। स्थायी महिला पर्यवेक्षिका के वेतन के समान मानदेय राशि दी जाए। परीक्षा के नाम पर हटाने की साजिश पर रोक लगे। पांच लाख रुपए का जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा और स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाए। पेंशन ग्रेच्युटी, अनुकंपा एवं सभी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। चिकित्सा सुविधा, विशेषावकाश एवं अर्जित अवकाश दी जाए। अतिरिक्त कार्य हेतु अतिरिक्त भत्ता तथा आईसीडीएस के अलावा अन्य कार्य न लिया जाए। लंबित मानदेय का शीघ्र भुगतान किया जाए और चयन रद्द - रिकवरी पर मिलने वाले अंक के आधार पर अवधि विस्तार सिस्टम बनाया जाए।
आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं ने किया प्रदर्शन
पटना : एटक सहित सभी श्रमिक संगठनों द्वारा राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध दिवस के अवसर पर बिहार राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन के बैनर तले 14 सूत्री मांगों को लेकर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समक्ष प्रदर्शन किया गया। ज्ञात हो कि सूबे में हरेक आंगनबाड़ी केन्द्र में एक सेविका और एक सहायिका कार्यरत है। इन दोनों की संख्या करीब एक लाख 95 हजार है। सरकार द्वारा सेविका को 3 हजार और सहायिका को 15 सौ रुपए मिलते हैं। आंगनबाड़ी केन्द्र के अलावा इन्हें पल्स पोलियो अभियान, आरएसबीवाई, कुपोषण अभियान आदि में भी सहयोग देना होता है।
औरंगाबाद की सेविका सविता यादव का कहना है कि हमलोगों को तरह-तरह के अभियानों में जोड़ा गया है। मगर, हमारी भुखमरी दूर नहीं की जा रही है। समस्याओं को लेकर 38 जिलों की आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका-सहायिकाएं गांधी मैदान में जुटीं।
बिहार राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन की अध्यक्ष उषा सहनी और महासचिव कुमार विन्देश्वर सिंह ने 14 सूत्री मांगों के बारे में बताया कि आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देकर सेविका को 3 श्रेणी और सहायिका को 4 श्रेणी के कर्मचारी के रूप में समायोजित किया जाय। जबतक सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता, सेविका को 15 हजार और सहायिका को 10 हजार रुपए मानदेय राशि दी जाय। काम का समय निर्धारित कर आठ घंटे किया जाय। गोवा एवं अन्य राज्य सरकारों की तरह बिहार सरकार द्वारा भी सेविका को 4200 और सहायिका को 2100 रुपए अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी जाय। श्रम कानूनों में संशोधन, निजीकरण, उदारीकरण, ठेका प्रथा, मानदेय प्रथा पर रोक लगायी जाय। सेविका को सुपरवाईजर एवं सहायिका को सेविका के पद पर पदोन्नति की व्यवस्था हो तथा उम्र सीमा समाप्त की जाय। सेविका को पांच लाख एवं सहायिका को तीन लाख की बीमा सुविधा दी जाय तथा स्वीकृत बीमा का क्रियान्वयन सुनिश्चित की जाय। चयन रद्द करना बंद हो तथा न्यायिक प्रक्रिया सुलभ बनायी जाय। आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका की बर्खास्तगी वापस ली जाय एवं चल रही बर्खास्तगी की प्रक्रिया पर रोक लगे। सेवानिवृत, पेंशन, ग्रेच्यूटी और प्रोविडेंड फंड सहित सभी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करायी जाय। स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधा एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की सुविधा मिले। सेवाकाल में मृत्यु होने पर योग्यतानुसार अनुकंपा के आधार पर उनके आश्रितों की बहाली हो। तमाम आंगनबाड़ी केन्द्रों के भवन निर्माण शीघ्र हों तथा सभी आधारभूत सुविधाएं शामिल हों। प्रत्येक गांव, मुहल्ला, कस्बा में आंगनबाड़ी केन्द्र खोला जाय। आईसीडीएस का किसी तरह का निजीकरण न हो और गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों व कारपोरेटों को सौंपने की साजिश पर रोक लगे।
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