आलोक कुमार
पटना : अब लोगों को मदर टेरेसा के संत घोषित होने का इन्तजार है। लोग पोप फ्रांसिस को धन्यवाद दे रहे हैं कि उन्हें ‘धन्य’ घोषित कर दिया गया है। बताते चलें कि संत घोषित होने की प्रक्रिया को कैनोनाइजेशन कहा जाता है और इसमें कई साल भी लग जाते हैं। भारतीय ईसाई समुदाय के लिए 23 नवम्बर सुपर संडे साबित हुआ। वेटिकन सिटी में दो भारतीयों को संत घोषित किया गया। आजतक भारत के केरल से तीन महान आत्मा को संत बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वेटिकन द्वारा अबतक सिस्टर अल्फोंसा, फादर कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया को संत घोषित किया गया है।
क्या है कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया : ईसाइयों की मृत्यु के बाद शव को एक विशेष तरह के बाॅक्स में रखा जाता है। बाॅक्स को बंद करके कब्रिस्तान में दफना दिया जाता है। मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की जाती है। जब प्रार्थना करने वाले व्यक्ति की प्रार्थना सुन ली जाती है, मृतक के नाम का प्रचार-प्रसार किया जाता है। उसके बाद पोप द्वारा गठित समिति के तहत मंथन किया जाता है। समिति के सदस्य आते हैं, कब्रिस्तान में मृतक के शरीर की जांच की जाती है। उसके बाद ही कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया की शुरूआत होती है। संत केवल याजक ही नहीं, गैर याजक भी बन सकते हैं।
चमत्कार का होता है महत्व : यह अद्भूत चमत्कार धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय के बंधन से मुक्त होता है। अगर किसी कैंसर रोगी को चिकित्सकों ने जांचोपरांत कह दिया कि रोगी लास्ट स्टेज पर है। दवा-दारू का असर अब उसपर नहीं होने वाला। रोगी कुछ ही दिनों का मेहमान है। तब रोगी के परिजन किसी मृत व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करने लगते हैं। अगर ऐसा करने से रोगी की तबीयत में सुधार होता है और अंततः कैंसर रोगी ठीक हो जाता है, तो पुनः चिकित्सक उसकी जांच करते हैं। चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित हो जाने के बाद जिस मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की गई थी, उसे अद्भूत चमत्कार माना जाता है। इस तरह से दो-तीन चमत्कार सिद्ध हो जाने पर उस चमत्कार को रोम द्वारा गठित समिति के सदस्य जांच करते हैं। हर पहलू पर गौर किया जाता है। वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्षों को देखा जाता है। तब मृत व्यक्ति को ‘धन्य’ घोषित किया जाता है और बाद में संत की उपाधि दी जाती है।
भारत की पहली महिला संत अल्फोंसा बनी : सदियों पुराने साबरी मालाबार कैथोलिक चर्च से जुड़े हैं फादर कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया। इसी चर्च से सिस्टर अल्फोंसा भी जुड़ी हैं। इस तरह इससे जुड़े तीन लोग अबतक संत बन चुके हैं। छह साल पहले ही 2008 में सिस्टर अल्फोंसा संत की उपाधि पाने वाली पहली भारतीय बनी थी। चर्च स्काॅलर्स के मुताबिक, साबरी मालाबार चर्च उस जमाने का है, जब अपोस्टल सेंट थोमस पहली सदी (एडी) में केरल तट पर आये थे। वह पूर्वी देशों के उन 22 चर्चों में शुमार है जो रोम के साथ पूरी तरह जुड़े हैं। कोट्टयम जिले के पणिद्यान्नम में संत अल्फोंसा का अंतिम संस्कार किया गया था।
संत कुरियाकोस एलियास चावारा : फादर कुरियाकोस एलियास चावारा को संत घोषित करने की प्रक्रिया 1984 में शुरू हुई। उन्हें 23 नवम्बर को संत घोषित कर दिया गया। फादर चावारा (1805 से 1871) के संबंध में इतिहासकार और समाज सुधारक भी मानते हैं कि वे एक ऐसे शख्स थे, जिन्होंने सिर्फ कैथोलिक ही नहीं, दूसरे समुदाय के वंचित बच्चों में भी सेक्युलर एजुकेशन पर जोर दिया। उन्होंने जो पहला संस्थान शुरू किया, वह संस्कृत स्कूल ही था। उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस भी लगाये और कम्युनिटी लीडर्स को खुद के पब्लिकेशन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयास का ही नतीजा रहा कि केरल के भीतर और बाहर कई एजुकेशन व चैरिटी संस्थाएं खुल गयीं। उनका जन्म अलपुज्जा जिले के कइनाकरी गांव में 10 फरवरी, 1805 को हुआ था। संत कुरियाकोस एलियास चावरा को कोट्टयम के मान्नमन में दफन किया गया है।
त्रिचुर की यूफ्रेसियम्मा : सिस्टर सुफ्रेसिया एक आध्यात्मिक महिला थी। इन्होंने त्रिचुर के एक काॅन्वेंट में लोगों की मदद करते हुए उम्र बिता दी। जो भी उससे प्रेयर के जरिए आता या परामर्श करता, उसे आध्यात्मिक शांति का अहसास होता था। उनका जन्म त्रिचुर के अरनाटुकारा में 17 अक्टूबर, 1877 में हुआ था। सिस्टर यूफ्रेसिया त्रिचुर में यूफ्रेसियम्मा के नाम से मशहुर थीं। उनका निधन 1952 में हुआ और 1987 में उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। संत सुफ्रेसिया को एर्णाकुलम में दफन किया गया।
वेटिकन सिटी का सेंट पीटर्स स्काॅवर : सुपर संडे 23 नवम्बर को वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्काॅवर में विशेष प्रार्थना में पोप फ्रांसिस ने कुरियाकोस एलियास चावारा और सुफ्रेसिया को संत घोषित किया। इस मौके पर केरल से गये कई ईसाई श्रद्धालु भी मौजूद थे। पोप ने जैसे ही वेटिकन में संतों की घोषणा की, पूरे केरल के चर्चों में खुशी व उमंग का माहौल कायम हो गया। इस उमंग और हर्ष को एक नया स्वर दिया गया। उधर वेटिकन में भी घोषणा के समय बड़ी संख्या में केरल से गये श्रद्धालु, दो कार्डिनल, बिशप, कलर्जी और नन मौजूद थे। वहीं संत कुरियाकोस एलियास चावारा और संत सुफ्रेसिया से जुड़े कोट्टायम के मान्नमन, एर्णाकुलम के कुनम्मदू और त्रिचुर के ओल्लुर में तो कई दिन पहले से ही खुशी का माहौल था।
लेखक परिचय : आलोक कुमार समाजसेवी हैं। पिछले कई वर्षों से वे दलित, महादलित व वंचित समुदायों के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही पत्रकारिता उनकी रुचि रही है। विभिन्न विषयों पर आप अखबारों व पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे हैं।
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