COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

विकास मित्र ही बन गया दलाल

न्यूज@ई-मेल
एकंगरसराय प्रखंड के गांव मण्डाच्छ में प्रेमचंद रविदास रहते हैं। वे मजदूरी करते हैं। सामाजिक कार्यों में भी दिलचस्पी रखते हैं। एकंगरसराय के प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) से प्रेमचंद की बात हुई तो उन्होंने दलालों से किसी भी लेन-देन में सावधान रहने को कहा। प्रेमचंद की पत्नी महापति देवी को इंदिरा आवास से 50 हजार रुपए मिले हैं। साथ ही चम्पा देवी, पप्पू रविदास, राजेश रविदास, चुन्नी रविदास की पत्नी को भी राशि मिली है। विडम्बना यह है कि सरकार और ग्रामीणों के बीच ‘सेतू’ बनने वाला विकास मित्र ही दलाल निकल गया। लाभार्थी महापति देवी के पति प्रेमचंद रविदास ने बताया कि यहां के विकास मित्र प्रह्लाद रविदास राशि विमुक्त होने के पहले 6 हजार रुपए देने की मांग करने लगा। इसपर प्रेमचंद ने विकास मित्र से कहा कि बीडीओ साहब ने किसी को दलाली नहीं देने की बात कही है। इसपर विकास मित्र ने एक ही झटके में ऊपर से नीचे तक के लोगों को हमाम में नंगा कर दिया। उसने कहा कि सभी को दलाली में मिली राशि में से बंदरबांट करना पड़ता है। विकास मित्र के झांसे में प्रेमचंद नहीं पड़े। 
25 सितम्बर, 2013 को एक कार्यादेश जारी किया गया है। पत्रांक 1167 है। इसपर प्रखंड विकास पदाधिकारी का हस्ताक्षर है। इसके अनुसार, वित्तीय वर्ष 2013-14 के अन्तर्गत इंदिरा आवास का आवंटन करते हुए सहायता राशि की प्रथम किस्त पचास हजार रुपए आपके खाते में पहले ही भेजी जा चुकी है। इसी सहायता राशि से आपको इंदिरा आवास का कार्य, छत ढलाई एवं शौचालय का निर्माण पूर्ण करना है। इसके बाद ही दूसरी अर्थात् अंतिम किश्त की राशि विमुक्त की जाएगी। शौचालय निर्माण हेतु आपको अलग से 9100 रुपए मिलेंगे तथा आपको स्वयं 900 रुपए की व्यवस्था करनी होगी। इस प्रकार दस हजार रुपए की लागत से शौचालय का निर्माण कराना अनिवार्य है। अंतिम किस्त की राशि बीस हजार रुपए उसी स्थिति में विमुक्त की जाएगी, जब आपके द्वारा इंदिरा आवास योजना का निर्माण, छत ढलाई एवं शौचालय का निर्माण पूर्ण कर की गयी फोटोग्राफी की एक प्रति 30 नवम्बर, 2013 तक कार्यालय को उपलब्ध करा दी जाएगी। निर्धारित समय सीमा तक आवास का निर्माण, छत ढलाई एवं शौचालय का पूर्ण निर्माण नहीं किये जाने की स्थिति में सहायता राशि की वसूली हेतु कानूनी कार्रवाई की जाएगी। 
प्रेमचंद का कहना है कि इंदिरा आवास योजना की राशि विमुक्त करते समय किसी तरह की जानकारी नहीं दी गयी थी। पहले 45 हजार रुपए में मकान निर्माण करना था। प्रथम किस्त में तीस हजार रुपए निर्गत किया जाता था। इस राशि से लिंटर तक मकान बना लेना था। द्वितीय किस्त में लिंटर से आगे और छत ढलाई कर देनी थी। अब तो पचास हजार रुपए में ही मकान और शौचालय निर्माण कर देना है। अब 50 हजार रुपए में ही पूरा मकान बना लेना है। जानकारी के अभाव में प्रेमचन्द ने 50 हजार रुपए से मकान बनवाने की सामग्री खरीद ली है। इस तरह बुरे फंस गये हैं। अब जेल जाने की नौबत आ गयी है। 
इधर, आगरा में एक आमसभा में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने घोषणा कर दी है कि बढ़ती महंगाई के आलोक में इंदिरा आवास योजना की राशि में बढ़ोतरी कर दी गयी हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 75 हजार रुपए और गैर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 70 हजार रुपए की राशि दी जाएगी। इसे 1 अप्रैल, 2013 से लागू कर दिया गया है। इसके बावजूद इस घोषणा का असर क्षेत्र में नहीं है। और तो और, अब 50 हजार रुपए में से 5 से लेकर 10 हजार रुपए तक दलालों को भी देने पड़ रहे हैं। यह स्थिति सिर्फ इस गांव की नहीं, करीब-करीब पूरे सूबे के गांवों की है। लेकिन सरकार को इससे क्या, सिर्फ घोषणा कर देने और मीडिया में कवरेज मिल जाने भर से मतलब रह गया है। 

बिहार में ऐसे होता है सरकारी काम 

एक अन्य घटना में अंचलाधिकारी, एकंगरसराय कार्यालय, नालंदा के क्रियाकलाप को देखें। चालू वर्ष के मार्च माह में चार सौ से अधिक वासभूमि उपलब्ध कराने के लिए आवेदन दिये गये। अभी तक जांच पूरी नहीं की जा सकी है। इस बारे में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन पत्र के साथ पोस्टल आर्डर संख्या 18 एफ-200404 दिनांक 23 जुलाई, 2013 को कार्यालय में जमा किया गया। प्रावधान के अनुसार, एक माह के अंदर आवेदक को सूचना उपलब्ध करा देना चाहिए। लेकिन, 17 सितम्बर, 2013 को पत्रांक 1519 के माध्यम से सूचना उपलब्ध करायी गयी। 
गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति के नालंदा जिला समन्वयक चन्द्रशेखर सिंह ने चालू वर्ष के मार्च माह में वासभूमि उपलब्ध कराने हेतु चार सौ से अधिक आवेदन प्रपत्र अंचल कार्यालय में जमा कराया था। सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी मांगी गयी कि अबतक क्या कार्रवाई हुई है। लोक सूचना पदाधिकारी सह अंचलाधिकारी, एकंगरसराय, नालंदा ने देर से सूचना उपलब्ध करायी, जो इस प्रकार है - मार्च माह में प्रगति ग्रामीण विकास समिति के माध्यम से वासभूमि उपलब्ध कराने हेतु कुल 427 लोगों का विभिन्न पंचायतों से सूची प्राप्त हुई थी। राजस्व कर्मचारी, अंचल निरीक्षक से इसकी जांच करायी जा रही है। जांच प्रतिवेदन प्राप्ति के पश्चात वासभूमि उपलब्ध कराने की कार्रवाई की जायेगी। 

महादलितों की जमीन पर दबंगों का कब्जा 

अंचल कार्यालय, दानापुर से निर्गत एक सूची में 59 लोगों के नाम हैं। पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने वर्ष 1986-87 में इन्हें जमीन की बंदोबस्ती की थी। बंदोबस्ती के बाद 43 लोग जमीन पर जा बसे। जिन 16 लोगों की बंदोबस्ती 1987-88 में की गयी थी, वे नहीं बस सके। बिन्द जाति के 43 लोग तो जमीन पर कब्जा करने में सफल रहे, शेष 16 महादलित मुसहर समुदाय के लोग इससे वंचित रह गये। इनकी जमीन पर दबंगों का कब्जा है। ये बेलीरोड-खगौल रोड के किनारे रहने को मजबूर हैं। अब ये यहां से कभी भी उजाड़ दिये जा सकते हैं। 
अंचल कार्यालय दानापुर, अनुमंडल दानापुर, पटना, मौजा-जलालपुर, थाना नं0 22, हल्का सं0 8, पंजी 2 में अंकित परवानाधारकों की सूची के अनुसार, कुल 59 लोगों के नाम से बंदोबस्ती की गयी थी। खाता 149, खेसरा 291 274, रकवा 0.02 डिसमिल है। सभी के नाम से जमाबंदी कर दी गयी है। 1701 से शुरू किया गया है। बंदोबस्ती केश नं0 1 बंटा 86-87 और 13/87-88 है। 
दबंगों ने मुसहरों को जमीन पर चढ़ने नहीं दिया। इन 16 लोगों को सिर्फ 13/87-88 का परवाना लेकर ही संतोष करना पड़ा। अब एकता परिषद के बैनर तले इन्हें जमीन पर कब्जा दिलवाने का प्रयास किया जा रहा है। 25 साल से 16 मुसहर परवाना पकड़कर बैठे हुए हैं। ये हैं तूफानी मांझी, रामा मांझी, बुन्देला मांझी, जामुन मांझी, चैतु मांझी, रामविलास मांझी, भाझी मांझी, धुरखेली मांझी, बहादुर मांझी, रामचन्द्र मांझी, सुखू मांझी, राजेन्द्र मांझी, रामजी मांझी, चन्द्रदीप मांझी, अमरीक मांझी और जामुन मांझी। इनमें कुछ लोगों के पास परवाना अब भी है। कुछ लोग इन 25 सालों में जमीन का परवाना संभाल कर नहीं रख सके।

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