COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 20 अक्तूबर 2013

‘मालिक’ के सहारे दलित-महादलित का जीवन

न्यूज@ई-मेल
आजतक दलित और महादलितों की स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ है। पटना से सटे दानापुर प्रखंड की स्थिति यह है कि 17 महादलितों को परवाना मिला, लेकिन 25 वर्षों के बाद भी वे जमीन पर कब्जा नहीं कर सके हैं। महादलित आज भी अज्ञानता के दलदल में फंसे हैं। बोधगया में मात्र सात किलोमीटर की परिधि में आंगनबाड़ी, राजकीय मध्य विद्यालय, अच्युतानंद आदर्श उच्च विद्यालय और बोधगया में काॅलेज है। अतिया ग्राम पंचायत के आनंदगढ़ टोला में 250 घरों में महादलित रहते हैं। केवल विजय मांझी ही मैट्रिक पास है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा में महादलित बेहाल हैं। कमता पंचायत के कमता गांव में महादलित मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। आजतक कोई भी वंदा यहां मैट्रिक उत्र्तीण नहीं हो सका है। नक्सल प्रभावित जहानाबाद में मान्दे बिगहा आदर्श ग्राम पंचायत है। यहां के मुखिया तेजप्रताप सिंह का कहना है कि इस पंचायत में 17 गांव हैं। इसमें 10 राजस्व गांव हैं। 16 गांवों में महादलित और दलित रहते हैं। मुसहर, पासवान, पासी, चौधरी, नट आदि समुदाय के लोग हैं यहां। इनमें से सबसे अधिक मुसहर समुदाय की हालत खराब है। मान्दे बिगहा मुसहरी के धर्मेन्द्र मांझी का कहना है कि हमलोग 150 सालों से सड़क के किनारे रहते आ रहे हैं।
भोजपुर में 16 बार नरसंहार हुआ है। आज भी भोजपुर में दबंगों को ‘मालिक’ कहा जाता है। इन तथाकथित मालिकों के द्वारा बंधुआ मजदूर रखना शान-शौकत की बात समझी जाती है। भले ही खेत जोतने के लिए उनके पास हल के साथ एक जोड़ा बैल न हो। वे मुसहर को ही हलवाहा के रूप में रखना चाहते हैं। 
नक्सल प्रभावित क्षेत्र बांका जिले की खबर भी कुछ अच्छी नहीं है। यहां दो सौ सालों से चांदन प्रखंड के धनुवसार पंचायत और लोहटनियां गांव में विकास नहीं हो सका है। इस समय धनुवसार ग्राम पंचायत की मुखिया विनीता देवी हैं। लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता है। इसी कारण 200 सालों में केवल दो ही वंदा यहां मैट्रिक उत्र्तीण हो सका। 
1990 से 15 सालों तक बिहार में सामूहिक नरसंहार का दौर चला। 25 जुलाई, 1995 से 16 जून, 2000 तक 18 बार सामूहिक नरसंहार किया गया। कुल 273 लोगों की हत्या की गयी। वहीं लाल सामंतियों द्वारा 7 बार सवर्णों की हत्या की गई। इसमें 75 लोगों की जान गयी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा गठित बिहार भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष देवव्रत बंधोपाध्याय की अनुशंसा रिपोर्ट में दर्ज है कि लालू-राबड़ी के सत्ता परिवर्तन के साथ ही नरसंहार पर नियंत्रण पा लिया गया। इसके बाद जदयू-भाजपा गठबंधन में नरसंहार पर अंकुश लग गया। कुछ जगहों की घटना अपवाद मानी जा सकती है। अब जदयू और भाजपा के बीच तलाक हो जाने के बाद बिहार की स्थिति बिगड़ने लगी है। बगहा में पुलिसिया फायरिंग में 8 थारू आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया। ऐतिहासिक बोधगया मंदिर में आतंकी हमला किया गया। मशरक में मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की अकाल मौत हो गयी। इसके बाद चापाकल में जहर डालने की हरकत शुरू कर दी गयी है। इन घटनाओं से बच्चे दहशत में हैं। एक-दो नहीं, कई घटनाएं हैं यहां।
दानापुर प्रखंड में रूपसपुर नहर के किनारे राजकुमारी देवी रहती है। वह कहती है कि सरकार द्वारा 25 साल पहले जमीन का परवाना (पर्चा) मिला। इसे लेकर हमलोग दर-दर भटकने को मजबूर हैं। हालांकि दानापुर प्रखंड के अंचलाधिकारी कुमार कुंदन लाल ने फील्ड में आकर जमीन का मुआयना किया। नहर किनारे ही अभिमन्यु नगर है। यहीं के 17 परवानाधारी मुसहरों को सीओ ने आश्वासन दिया कि आने वाले ढाई महीने के अंदर सभी परवानाधारियों को जमीन पर कब्जा दिलवा दिया जाएगा। 
लालू-राबड़ी सरकार में 1987-88 में जमीन की बन्दोबस्ती हुई थी। आवासीय भूमिहीनों को मात्र 2 डिसमिल जमीन घर बनाकर रहने को दिया गया। दुखद पहलू यह है कि लालू-राबड़ी शासन में ही स्थानीय दबंग महादलितों पर कहर बरपाने लगे। उनको लाठी के बल पर टीकने नहीं दिया गया। उसी समय से 17 परवानाधारी पिछले 25 सालों से जमीन का परवाना लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं। 
बोधगया के अतिया ग्राम पंचायत के जन प्रतिनिधि आनंदगढ़ टोला के लोगों की मदद नहीं कर रहे हैं। यहां गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों को पीला कार्ड (अंत्योदय) और लाल कार्ड बनाने में मनमानी की गई है। कुछ लोगों का पीला कार्ड और 248 लोगों का लाल कार्ड बनाया गया है। साथ ही पीला और लाल कार्डधारियों को हर महीने जनवितरण प्रणाली की दुकान से राशन-किरासन उपलब्ध नहीं कराया जाता है। इसे लेकर लोगों में आक्रोश है।
पूअरेस्ट एरिया सिविल सोसायटी पैक्स के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति द्वारा बोधगया प्रखंड के पांच पंचायतों में कार्य किया जाता है। संस्था के अनुसार, ग्राम पंचायत अतिया के कुछेक लोगों के पास बासगीत पर्चा है। बिहार सरकार द्वारा सर्वे कराने के बाद अच्युतानंद आदर्श गिरि की जमीन को बिहार सरकार की जमीन घोषित कर दी गयी। इसके बाद इन्दिरा आवास योजना से 8 महादलितों के मकान बनवाये गये हैं। शेष योजना के इंतजार में हैं। खबर यह भी है कि पंचायत की मुखिया मुनिया देवी द्वारा योजना से राशि दिलवाने के नाम पर 500 रुपए डकार लिये गये हैं। केन्द्र सरकार द्वारा राशि में बढ़ोतरी कर 75 हजार रुपए कर देने पर दलाली के भाव बढ़ गये हैं। राशि मिलने के समय 10 हजार रुपए देने हैं। कुल मिलाकर एक महादलित को 75 हजार रुपए में से 5000 रुपए देने पड़ते हैं। यहां के कुछ लोगों के पास पट्टा है, परन्तु कब्जा नहीं। कुछ का कब्जा है, परन्तु पट्टा नहीं मिला। पेयजल की विकराल समस्या है। 
हिलसा प्रखंड में कमता पंचायत और कमता गांव है। यहां प्रारंभ में ग्रामीण भूमिहीन नियोजन गारंटी कार्यक्रम के तहत मकान बनाया गया। अब बेहद खराब अवस्था में है। छत गिरने को है। 40 घरों में करीब 234 लोग रहने को बाध्य हैं। यहां आजतक कोई भी वंदा मैट्रिक नहीं कर सका है।
लाठी के सहारे चलने वाले बुजुर्ग चमारी मांझी कहते हैं कि सरकार ने गैर मजरूआ भूमि पर ग्रामीण भूमिहीन नियोजन गारंटी कार्यक्रम के तहत घर बनाने का आदेश दिया था। गैर मजरूआ भूमि का रकवा एक बीघा है। 1989 में 27 महादलितों को डेढ़-डेढ़ डिसमिल जमीन दी गयी। सभी के नाम से पर्चा निर्गत किया गया है। थाना संख्या 60 है। जब ठेकेदार मकान बनाने गये, तब गैर मजरूआ जमीन को हथियाने वालों ने ठेकेदार को खदेड़ दिया। ऐसी स्थिति में ठेकेदार दूसरी जगह मकान बनाकर चला गया। आज भी खाता संख्या 197 और खेसरा संख्या 2457 पर दबंग का कब्जा है। इन्दिरा आवास योजना से 10 लोगों का मकान बना है। अल्प राशि होने के कारण मकान अधूरा ही रह गया है।
यहां के संजय मांझी बताते हैं कि आरंभ में हम लोगों को दबंग मात्र 2 सेर चावल मजदूरी में देते थे। इसके विरूद्ध महादलित संगठित हुए। कुदाल और खुरपी टांगकर खेतों में काम करना बंद कर दिया। अहिंसात्मक आंदोलन का परिणाम यह निकला कि दबंग मालिकों ने सेर के बदले में किलो से मजदूरी देना शुरू किया। जब आदमी नहीं मिलता है, तो 2 किलो के बदले 3 किलो अनाज भी दिया जाता है। जरूरी कार्य निपटारा के लिए 5 किलो मजदूरी भी दी जाती है। दबंगों ने साजिश के तहत केवल 8 लोगों का ही जाॅबकार्ड बनवाया। 
कमता गांव के महादलितों ने बताया कि शुरू में खेत मालिकों के यहां 25 मुसहर हलावाहा का कार्य किया करते थे। उनको आठ कट्ठा खेत मिलता था। खाने में सत्तू दिया जाता था। 14 गाही में से 1 गाही धान दिया जाता था। काफी परिश्रम के बाद ही खेत मालिकों की चंगूल से महादलित निकल पाये हैं। कामता गांव में 350 बीघा जमीन गैर मजरूआ है। प्लाट संख्या 2457 बताया जाता है। 
जहानाबाद जिला नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है। यहां पंचायत भवन के ही बगल में मान्दे बिगहा मुसहरी है। यहां के महादलित मनरेगा में कार्य किये हैं, परन्तु उनको काम के बदले दाम नहीं मिल पाता है। ऐसे में आखिर कैसे मनरेगा को पटरी पर लाया जा सकता है। यह समझ से परे है। 
मान्दे बिगहा आदर्श ग्राम पंचायत के मुखिया तेजप्रताप सिंह का कहना है कि इस पंचायत में 17 गांव हैं। इनमें 10 राजस्व गांव हैं। 16 गांवों में महादलित और दलित रहते हैं। मुसहर, पासवान, पासी, चौधरी, नट आदि समुदाय के लोग हैं। सबसे अधिक खराब स्थिति मुसहरों की है। मान्दे बिगहा मुसहरी के धर्मेन्द्र मांझी का कहना है कि हमलोग 150 सालों से सड़क के किनारे रहते आ रहे हैं। यहां 24 मकान हैं। 22 लोगों को पीला कार्ड मिला है। कम ही लोगों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत जाॅबकार्ड मिला है। उसी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कुछ लोगों को ही स्मार्ट कार्ड निर्गत किया गया है। अभी तक प्रवेश मांझी और शिवलोचन मांझी ही यहां मैट्रिक उत्र्तीण हैं। दोनों टोला सेवक हैं। प्रवेश मांझी मान्दे बिगहा में और शिवलोचन मांझी सुखनंदन चक में टोला सेवक हैं। दोनों बच्चों को पढ़ाते हैं। 
प्रवेश मांझी कहते हैं कि यहां इन्दिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण करवाया गया है। किसी तरह से 10 मकान छत तक बन सका। 14 भवन अधूरा है। इन अधूरे मकान को पूरा करने के लिए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा राशि दी जा रही है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के सचिव अमृतलाल मीणा के मुताबिक, 1 अप्रैल, 2004 से पूर्व इन्दिरा आवास योजना से लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों का अधूरा मकान निर्माण करवाने के लिए राशि दी जा रही है। अब अधूरे मकान को पूर्ण करवाने वाले दलाल काम के पीछे लग गये हैं। ज्ञात हो कि पूरे बिहार में इन्दिरा आवास योजना में खुलेआम दलाली चल रही है। अब तो 10 हजार रुपए तक लिये जा रहे हैं। सरकार की बेरूखी के कारण 200 की जनसंख्या पर मात्र 1 ही सरकारी चापाकल है यहां। रामविलास मांझी कहते हैं कि धनौती में हमलोग मनरेगा के तहत काम किये थे। पोखरा का काम मिला था। मजदूरी आजतक नहीं मिली। कई बार मजदूरी की मांग की गयी। वार्ड सदस्य काम करवाये थे। मेरे अलावा सोनमति देवी, युर्दाेधन मांझी, प्रभावती देवी आदि ने भी काम किया था। मजदूरी के लिए अब तो आंख पथरा गयी है।
भोजपुर में आज भी महादलित मुसहरों को गांव के किनारे ही रहना पड़ता है। यहां सरकारी बेरूखी के कारण मुसहर बंधुआ मजदूर बनने को बाध्य हैं। समूची मुसहरी में मालिकों का खौफ बरकरार है। ये महादलित डर से जुबान खोलना पसंद नहीं करते।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र भोजपुर के संदेश प्रखंड में डिहरा पंचायत है। यहीं धर्मपुर मुसहरी है। करीब 150 सालों से मुसहर यहां रहते हैं। 100 घरों में 600 की जनसंख्या में बाल-बच्चे और सयाने हैं। 80 बीपीएल श्रेणी में हैं। 40 लोगों को अंत्योदय श्रेणी में रखकर पीला कार्ड निर्गत किया गया है। 30 लोगों को जाॅबकार्ड निर्गत किया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत 20 लोगों को स्मार्ट कार्ड निर्गत किया गया है। इस मुसहरी में इन्दिरा आवास योजना से निर्मित 100 मकानों में से 50 फीसदी अधूरा है। केवल अगहन मुसहर और शंकर मुसहर ही मैट्रिक पास कर सका है। 
इस क्षेत्र में मुसहरों को काम के बदले तीन सेर चावल मिलता है। उसके साथ सूखी रोटी मिलती है। दूसरे मजदूरों को 60 रुपए मिलते हैं। गांव के रईस नारायण सिंह हैं। उनके पास आज भी 100 बीघा का जोत है। यह कथन श्यामफूला देवी का है। वह बताती है कि इनके पति तुलसी मुसहर बंधुआ मजदूर हैं। नारायण सिंह के पास 20 वर्षों से बंधुआ मजदूरी करते हैं। मालिक एक बीघा जमीन दिये हैं। मालिक और अपना खेत हल से जोतते हैं। सुबह 8 से शाम 5 बजे तक मेहनत करते हैं। मालिक से 700 सौ रुपए लिये थे, अब ब्याज सहित बढ़कर 10 हजार रुपए हो गये हैं। यहां मालिकों का काफी खौफ है। सबकुछ जानते हुए भी लोग कुछ बताना नहीं चाहते। लोग नहीं चाहते कि मालिक और बंधुआ मजदूरों के बीच तनाव हो। श्यामफूला देवी कहती हैं कि भोजपुर की धरती रक्तरंजित होती रही है। अबतक काफी लोगों की जान जा चुकी है। सबसे अधिक खूनी खेल 1996 को में खेला गया। 
बांका भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। चांदन प्रखंड के धनुवसार पंचायत और लोहटनियां गांव में विकास नहीं हो सका है। इस समय धनुवसार ग्राम पंचायत की मुखिया विनीता देवी हैं। यहां जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता है। पिछले 200 साल में केवल दो लोग मैट्रिक की परीक्षा पास कर सके हैं। अभी 45 लड़के-लड़कियां विद्यालय जाते हैं। किसी को मुख्यमंत्री साइकिल योजना से लाभ नहीं मिला है। इसका मतलब कोई भी नौवीं कक्षा उत्र्तीण नहीं कर पाया है। 
यहां करीब 60 घर हैं। 50 को बीपीएल और 10 परिवारों को एपीएल में डाला गया है। 50 बीपीएल परिवारों में से केवल 3 लोगों को अंत्योदय में डालकर पीला कार्ड निर्गत किया गया। बाकी 47 परिवारों को बीपीएल लाल कार्ड निर्गत कर दिया गया। जनवितरण प्रणाली की दुकान से राशन में कटौती करके राशन दिया जाता है। इसका असर इन्दिरा आवास योजना पर भी पड़ा है। कम स्कोर वाले 10 लोगों को इन्दिरा आवास योजना से राशि मिली थी। इसमें 4 लोगों ने अपना पैसा मिलाकर किसी तरह मकान बनवा लिया। शेष 6 लोगों का मकान अधूरा ही रह गया। 
यहां के 50 नौजवान पलायन कर गये हैं। कोलकाता, मुम्बई, गुजरात, दिल्ली आदि जगहों में जाकर कार्य करते हैं। घर से दूर जाकर काम कर जो पैसे कमाते हैं, उससे दो मोबाइल खरीदते हैं। एक मोबाइल अपने परिजनों को घर पर दे देते हैं। दूसरा अपने पास रखते हैं। यहीं मोबाइल उनके लिए जी का जंजाल बन गया है। मोबाइल रखने वाले परिवारों को बीपीएल से निकालकर एपीएल में शामिल कर दिया जा रहा है। सर्वेयर कहते हैं कि इनके घरों में शौचालय नहीं है, परन्तु अधिकांश लोगों के पास मोबाइल है। 2 सरकारी चापाकल हैं। साथ ही सरकारी सुविधाओं का पर्याप्त लाभ यहां नहीं मिल पा रहा है।

यह है सरकारी आंकड़ों का खेल

अबतक राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा राज्य के 1,84,037 भूमिहीन परिवारों को तीन-तीन डिसमिल जमीन उपलब्ध कराया गया है। विभाग द्वारा पहले गैर मजरूआ, आम व अन्य सरकारी जमीन को आवासीय भूमिहीनों को आवास के लिए आवंटित किया गया। जहां सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं थी, वहां सामान्य जमीन को खरीदकर महादलित परिवारों को उपलब्ध कराने की योजना 2009-10 से राज्य में शुरू हुई है। प्रथम चरण में 1,99,047 परिवारों को वास भूमि उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। अभी 1,84,037 आवासहीनों को जमीन मिली है। इस तरह अभी बिहार में 15,010 ही आवसहीन बचे हैं, जिन्हें सरकार द्वारा 20 हजार रुपये प्रति परिवार को जमीन खरीदने के लिए देना है। 
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग का आंकड़ा सरकार को महिमामंडित करने वाला हो सकता है। मगर जनसंगठन एकता परिषद के कार्यकर्ताओं के गले यह बात नहीं उतर रही है। अभी हाल ही में एकता परिषद, बिहार द्वारा 35 हजार आवासीय भूमिहीनों का आवेदन अंचल कार्यालय में पेश किया गया है। ऐसे में किस आधार पर केवल 15,010 आवासहीन जमीन से वंचित हैं। बच्चू मांझी कहते हैं कि आगामी चुनाव के अवसर पर महादलितों के समाने आंकड़ा पेश करके महादलितों को मायावी जाल में फंसाने और भ्रमाने की साजिश की गयी है। 
आंकड़े पर नजर डालें तो अरवल में लक्ष्य 928 के विरूद्ध में 997, गया जिले में लक्ष्य 16471 के विरूद्ध 16474, औरंगाबाद जिले में लक्ष्य 2943 के विरूद्ध में 2943, नवादा जिले में लक्ष्य 6288 के विरूद्ध 6288 और जहानाबाद जिले में 3141 के विरूद्ध 2554 महादलित परिवारों को 3 डिसमिल जमीन दी गयी। इस तरह अरवल 107.44, गया 100.02, औरंगाबाद 100 और नवादा 100 फीसदी उपलब्धि देने वाले जिले हैं। इन चारों जिलों को मिलाने पर कुल लक्ष्य 26,630 था और 26,702 को जमीन आवंटित कर दी गई। ऐसे में इनका शानदार 103 प्रतिशत का आंकड़ा हो जाता है। और इस तरह सौ फीसदी उपलब्धि से भी अधिक का रिकाॅड बन गया है। वहीं जहानाबाद जिले में लक्ष्य 3,141 के विरूद्ध 2,554 महादलित परिवारों को 3 डिसमिल जमीन दी गयी। इसका 81.31 प्रतिशत होता है। जहानाबाद जिले का प्रतिशत लुढ़कने से अब मगध प्रमंडल के पांच जिलों का प्रतिशत 98.03 हो गया है। यह तो प्रथम चरण का हाल-ए-आंकड़ा है। इससे साफ जाहिर होता है कि द्वितीय चरण में जमीन पाने वालों की संख्या में और वृद्धि होगी।
लेखक परिचय : आलोक कुमार ने पटना विश्वविद्यालय से ग्रामीण प्रबंधन एवं कल्याण प्रशासन में डिप्लोमा किया है। ये पिछले कई वर्षों से समाजसेवी के रूप में कार्य कर रहे हैं। दलितों, महादलितों के बीच जाना, उनका दुख-दर्द सुनना और उसे दूर करने का प्रयास करना इनका कार्य है। खासकर मुसहर समुदायों के बीच ये काफी लोकप्रिय हैं।

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