COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

भारत के पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानन्द का योगदान

सूक्तियां एवं सुभाषित
ये ‘सूक्तियां एवं सुभाषित’ अद्वैत आश्रम, मायावती द्वारा प्रकाशित ‘विवेकानन्द साहित्य’ से संकलित किये गये हैं। धर्म, संस्कृति, समाज, शिक्षा, सभी महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित ये मौलिक विचार जीवन को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। स्वामी विवेकान्द ने भारत के पुनरुत्थान तथा विश्व के उद्धार के लिए जो महान कार्य किया, वह सभी को विदित है। रामकृष्ण मठ, नागपुर ने ‘सूक्तियां एवं सुभाषित’ नामक संग्रह प्रकाशित किया है। पेश है कुछ अंश:
  • विश्व है परमात्मा का व्यक्त रूप।
  • जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते।
  • धर्म वह वस्तु है, जिससे पशु मनुष्य तक और मनुष्य परमात्मा तक उठ सकता है।
  • यह मानना कि मन ही सब कुछ है, विचार ही सब कुछ है - केवल एक प्रकार का उच्चतर भौतिकतावाद है।
  • यह दुनिया एक व्यायामशाला है, जहां हम अपने आपको बलवान बनाने के लिए आते हैं।
  • जैसे तुम पौधे को उगा नहीं सकते, वैसे ही तुम बच्चे को सिखा नहीं सकते। जो कुछ तुम कर सकते हो, वह केवल नकारात्मक पक्ष में है - तुम केवल सहायता दे सकते हो। वह तो एक आन्तरिक अभिव्यंजना है, वह अपना स्वभाव स्वयं विकसित करता है - तुम केवल बाधाओं को दूर कर सकते हो।
  • एक पन्थ बनाते ही तुम विश्वबन्धुता के विरुद्ध हो जाते हो। जो सच्ची विश्वबन्धुता की भावना रखते हैं, वे अधिक बोलते नहीं, उनके कर्म ही स्वयं जोर से बोलते हैं।
  • सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है, और फिर भी हर ढंग सच हो सकता है।
  • तुमको अंदर से बाहर विकसित होना है। कोई तुमको न सिखा सकता है, न आध्यात्मिक बना सकता है। तुम्हारी आत्मा के सिवा और कोई गुरु नहीं है।
  • यदि एक अनन्त श्रृंखला में कुछ कडि़यां समझायी जा सकती हैं, तो उसी पद्धति से सब समझायी जा सकती है।
  • जे मनुष्य किसी भौतिक वस्तु से विचलित नहीं होता, उसने अमरता पा ली।
  • सत्य के लिए सब कुछ त्यागा जा सकता है, पर सत्य को किसी भी चीज के लिए छोड़ा नहीं जा सकता, उसकी बलि नहीं दी जा सकती।
  • सत्य का अन्वेषण शक्ति की अभिव्यक्ति है - वह कमजोर, अंध लागों का अंधेरे में टटोलना नहीं है।
  • ईश्वर मनुष्य बना, मनुष्य भी फिर से ईश्वर बनेगा।
  • यह एक बच्चों की-सी बात है कि मनुष्य मरता है और स्वर्ग में जाता है। हम कभी न आते हैं, न जाते। हम जहां हैं, वहीं रहते हैं। सारी आत्माएं, जो हो चुकी हैं, अब हैं और आगे होंगी, वे सब ज्यामिति के एक बिन्दु पर स्थित हैं। 
  • कोई भी किसी धर्म में जन्म नहीं लेता, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति धर्म के लिए जन्म लेता है।
  • यदि मैं एक मिट्टी के ढेले को पूर्णतया जान लूं, तो सारी मिट्टी को जान लूंगा। यह है सिद्धान्तों का ज्ञान, लेकिन उनका समायोजन अलग-अलग होता है। जब तुम स्वयं को जान लोगे, तो सब कुछ जान लोगे।
  • हम कभी निम्नस्तरीय पशु थे। हम समझते हैं कि वे हमसे कुछ भिन्न वस्तु हैं। मैं देखता हूं, पश्चिम वाले कहते हैं, ‘दुनिया हमारे लिए बनी है।’ यदि चीते पुस्तकें लिख सकते, तो वे यही कहते कि मनुष्य उनके लिए बना है और मनुष्य सब से पापी प्राणी है, क्योंकि वह उनकी पकड़ में सहज नहीं आता। आज जो कीड़ा तुम्हारे पैरों के नीचे रेंग रहा है, वह आगे होनेवाला ईश्वर है।
  • एक बार स्वामीजी किसी की बहुत प्रशंसा कर रहे थे। इस पर उनके पास बैठे हुए किसी ने कहा, ‘‘लेकिन वे आपको नहीं मानते’’ - इसे सुनकर स्वामीजी ने तत्काल उत्तर दिया - ‘‘क्या ऐसा कोई कानूनी शपथ-पत्र लिखा हुआ है कि उन्हें मेरी हर बात माननी ही चाहिए ? वे अच्छा काम कर रहे हैं और इसलिए प्रशंसा के पात्र हैं।’’
  • अगर कुछ बुरा करना चाहो, तो वह अपने से बड़ों के सामने करो।
  • जब तक भौतिकता नहीं जाती, तब तक आध्यात्मिकता तक नहीं पहुंचा जा सकता।
  • बहता पानी और रमता जोगी ही शुद्ध रहते हैं। 
  • हिंदू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर आधारित है। 
  • पक्षपात सब बुराइयों की जड़ है। 
  • भय ही पतन और पाप का निश्चित कारण है। 
  • ज्ञानी कभी किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता, सम्मान और स्वायत्तता को भंग नहीं करता है। 
  • आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है। 
  • मन की दुर्बलता से अधिक भयंकर और कोई पाप नहीं है। 
  • आपदा ही एक ऐसी स्थिति है, जो हमारे जीवन की गहराइयों में अन्तर्दृष्टि पैदा करती है। 
  • हम भारतीय सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार भी करते हैं। 
  • महान त्याग से ही महान कार्य सम्भव है। 
  • वस्तुएं बल से छीनी या धन से खरीदी जा सकती हैं, किंतु ज्ञान केवल अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है। 
  • जितना अध्ययन करते हैं, उतना ही हमें अपने अज्ञान का आभास होता जाता है। 
  • जिसके साथ श्रेष्ठ विचार रहते हैं, वह कभी भी अकेला नहीं रह सकता। 
  • वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता। 
  • हम ईश्वर को कहां पा सकते हैं अगर हम उसे अपने आप में और अन्य जीवों में नहीं देखते ? 
  • आप को अपने भीतर से ही विकास करना होता है। कोई आपको सीखा नहीं सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपको सिखाने वाला और कोई नहीं, सिर्फ आपकी आत्मा ही है। 
  • आप ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं कर पाएंगे, जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते। 
  • जागें, उठें और न रुकें जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाएं। 
  • हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं। शब्द गौण हैं, विचार मुख्य हैं और उनका असर दूर तक होता है।

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