COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

सूबे की जनता को भा रहा ‘आप’ का आना

  • वोट के लिए कुछ भी करेगा
  • गहराने लगी अल्पसंख्यकों व पिछड़ों की राजनीति
 राजीव मणि
मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं मेरी मरजी! जी हां, पहले राजनीति में कुछ ऐसी ही बातें देखने को मिलती थीं। लोकसभा चुनाव में जनता के पास ज्यादा विकल्प नहीं था। तब ना तो ‘नोटा’ था और ना ही ‘आप’ का सोंटा। घुमाफिरा कर दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही जनता फंसी रहती थी। लेकिन, अब मामला पहले जैसा नहीं रहा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की आप पार्टी ने जिस तरह अपनी ताकत साबित की है, उससे बड़े-बड़े दिग्गजों को चक्कर आने लगे हैं। दिल्ली में राहूल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि उन्होंने आप को कम करके आंका। आप से कांग्रेस को बहुत कुछ सीखना है।
बिहार में तो कांग्रेस ने सीखना भी शुरू कर दिया है। आजतक जो नहीं किया, वोट के लिए कुछ भी करेगा की तर्ज पर काम भी शुरू कर दिया है। अबतक कई बार राजधानी पटना में कांग्रेस की तरफ से सफाई अभियान चलाया गया। हाथ में झाड़ू लेकर सड़क की सफाई की गयी। ट्रैक्टर पर झंडा-बैनर लगा सड़क किनारे से कचरा हटाया गया।
इधर, लालू जी भी अपनी ताकत दिखाने में लगे हैं। भाजपा, जदयू, आप, सभी को भला-बुरा कह रहे हैं। रामविलास पासवान यदा-कदा कुछ बोल रहे हैं। भाजपा लगातार जदयू पर वार करती दिख रही है। किसी भी मौके को चूकना नहीं चाहती। लेकिन, अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के भाजपा सांसद व सिने अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा ने यह कहकर अपनी ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है कि दिल्ली के चुनाव परिणाम तमाम राजनीतिक दलों के लिए सबक है। ‘आप’ ने अपने आप को कई राजनीतिक दलों का ‘बाप’ साबित कर दिया है। गाड़ी, बंगले जैसे मुद्दों पर आप को घेरने के सवाल पर उन्होंने साफ-साफ कह डाला कि केजरीवाल की सफलता को ऐसे मुद्दों के आधार पर चुनौती देना सच्चाई से मुंह मोड़ना है।
इन सब के बीच जदयू भी लगातार खुद को श्रेष्ठ साबित करने में लगी है। जदयू ने आठ साल में क्या कुछ किया, बताया जा रहा है। नयी-नयी घोषणाएं की जा रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोस चुनाव में किसी दल से गठबंधन की संभावना से साफ इंकार किया है। उन्होंने कहा है कि विशेष राज्य का दर्जा अब राजनीतिक एजेंडा होगा।
इधर, आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान जोरो पर है। अबतक ना सिर्फ लाखों लोग ‘आप’ से जुड़ चुके हैं, बल्कि श्रीकृष्णा नगर के रोड न. 21 में आम आदमी पार्टी ने अपना कार्यालय भी खोला है। आप के राज्य प्रभारी सोमनाथ त्रिपाठी व पार्टी के वरिष्ठ नेता डाॅ. एएन सिंह ने बताया कि इसी कार्यालय से प्रदेश में पार्टी की तमाम गतिविधियों का संचालन किया जाएगा। इतना ही नहीं, गांवों में भी आप का प्रभाव देखा जा रहा है। प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का बोर्ड लग चुका है। वहीं नगरों में वार्ड स्तर तक पार्टी को मजबूत बनाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने का अभियान चल रहा है।
खास बात यह कि दलित, महादलित, अल्पसंख्यक व सभी पिछड़ी जातियों पर सबकी नजर है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, यही वर्ग तो चुनाव के दिन सबसे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है। और इन वोटरों की संख्या भी अच्छी-खासी है।
सबसे पहले सूबे में कुल वोटरों की संख्या देखें, तो एक आकलन के अनुसार, बिहार में 94.3 लाख नए वोटर आगामी लोकसभा चुनाव में अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे। यह बिहार में कुल वोटरों की संख्या का 1.63 फीसदी है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुल वोटरों का 0.79 फीसदी पुरुष और 0.63 फीसदी महिला वोटर हैं। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 0.11 फीसदी महिला और 0.1 फीसदी पुरुष वोटर हैं।
जनगणना कार्य निदेशालय के संयुक्त निदेशक एके सक्सेना ने पिछले दिनों मगध महिला काॅलेज में आयोजित कार्यशाला में एक आंकड़ा प्रस्तुत किया। बिहार में 2011 की जनगणना के अनुसार, 88 शहरों में झुग्गियां पायी गयीं। इनमें रहने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 12,37,682 हो गयी है। वहीं 2001 की जनगणना के अनुसार, 46 शहरों में स्लम यानी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की आबादी 5,31,481 थी। यह तो बात हुई दलित-महादलितों की झुग्गियों की, अब कुछ वायदें भी देख लें।
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली खां ने कहा है कि राज्य सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली तीन करोड़ महिलाओं को चरणबद्ध तरीके से टेबलेट देगी। यह लाभ उन महिलाओं को मिलेगा, जिनकी बच्चियां पढ़ती हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों को सेन्टर बनाकर ऐसी महिलाओं को कम्प्यूटर-टेबलेट चलाने का प्रशिक्षण दिया जायेगा। संक्षिप्त परीक्षा भी होगी। इससे संबंधित करीब 7 हजार करोड़ की योजना को जल्द अंतिम रूप दिया जायेगा। राज्य योजना से इसे संचालित करने की तैयारी है। यह घोषणा तो बस एक नमूना है, जो चुनाव के वक्त की गयी।
कुल मिलाकर मामला चुनावी है। महंगाई और जनता की आम समस्याओं की बात तो कोई कर ही नहीं रहा है। बिहार में अपराधी फिर से सिर उठाने लगे हैं। बिजली, पानी, पेट्रोल, डीजल सब गायब है। स्वास्थ्य का बुरा हाल है। गरीबों की थाली अब भी नहीं भर रही है।
हां, सोशल नेटवर्किंग पर जमकर कसरत करते लोग दिख रहे हैं। चर्चा है कि जिस राजनेता का आजतक फेसबुक या ट्वीटर से कुछ लेना-देना नहीं रहा, जो कम्प्यूटर और इन्टरनेट का प्रयोग करना भी अच्छी तरह नहीं जानते, वे भी दूसरों की मदद से फेसबुक और ट्वीटर पर अपना एकाउन्ट खुलवा रहे हैं। कई दिग्गजों ने तो इस काम के लिए आदमी तक बहाल कर रखे हैं। इन सब के बीच फर्जी एकाउन्ट भी खूब रंग जमा रहे हैं। विभिन्न तरह के बयान, एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल और आंकड़ेबाजी जमकर हो रहे हैं। ऐसे में इन आंकड़ों और भाषणों से जनता कितना प्रभावित होगी, यह तो वक्त ही बताएगा।
वैसे चलते-चलते एक बात बता देना जरूरी समझता हूं। सभी पार्टी के कार्यकर्ता जाग चुके हैं। चैराहा-नुक्कड़ पर जमा हो योजना बनाते दिख रहे हैं कि मुहल्ले में कहां काम हुआ, कहां नहीं हुआ। इनकी रुचि इसमें ज्यादा है कि कौन-कौन सा काम करवाना है। फंड कहां से और कैसे मिले। किसे काम दिया जाये। अपने आदमियों को गोलबंद करने में लगे हैं। आखिर नफा-नुकसान की बात तो ये कार्यकर्ता भी अच्छी तरह समझते हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व में बहती गंगा में हाथ धोने का मौका जो है।

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