COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

वोट बैंक की जाल में नहीं फंसेंगे बिन्द

राजीव मणि
पटना। बिहार में बिन्दों की जनसंख्या करीब 40 लाख 20 हजार है। इनमें मतदाताओं की संख्या करीब अठारह लाख है। इसके बावजूद बिन्द समाज को राजनीति में भागीदारी नहीं मिल रही है। अबतक इन्हें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। ये बातें बिहार प्रदेश बिन्द विकास महासंघ की बैठक में दो जनवरी को उठायी गयी। बैठक का आयोजन महासंघ की अध्यक्ष इन्दु देवी के कुर्जी स्थित आवास पर किया गया।
इस अवसर पर इन्दु देवी ने कहा कि बिन्द समाज को न्याय दिलाने के उद्देश्य से ही 2008 में महासंघ की स्थापना की गयी थी। आजादी के एक लंबे अरसे के बाद भी बिन्दों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हक नहीं मिला है। आज भी इस समाज के 40 प्रतिशत लोग नाव चलाकर, मछली मारकर व टोकरी-सूप बनाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। वहीं 10 प्रतिशत लोग खेती तथा शेष 50 प्रतिशत मजदूरी करते हैं।
महासंघ के सचिव राम शंकर महतो बिन्द ने कहा कि बिन्द समाज पहले बिहार प्रदेश निषाद महासंघ से जुड़ा था। इसमें कुल 12 जातियां थीं। शादी-ब्याह एक-दूसरे के साथ होने के कारण इनमें सामाजिक रिश्ता तो है, लेकिन राजनीतिक लाभ से बिन्दों को दूर रखा गया। इस कारण ही अलग से बिन्द महासंघ की नींव पड़ी। कोषाध्यक्ष शिव रतन बिन्द ने कहा कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले हम सभी पार्टियों के पास जायेंगे। जो बिन्दों को अपना प्रत्याशी बनाएगा, वोट उसी को दिया जायेगा। इस अवसर पर रामवल्ली बिन्द, महानन्द प्रसाद बिन्द, वंशराज सिंह बिन्द, राजेन्द्र महतो बिन्द, सुरेश महतो बिन्द, उमा शंकर आर्य, अशोक कुमार, मीना देवी तथा अन्य सदस्य उपस्थित थे।

‘भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता’

पटना। दि आॅल इंडिया बैकवर्ड एण्ड मायनरिटी कम्युनिटी इम्पलाईज फेडरेशन (बामसेफ) एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ का पांच दिवसीय 30वां राष्ट्रीय अधिवेशन 25 से 29 दिसम्बर तक पटना के वेटनरी काॅलेज स्थित साहेब करीब नगर में मनाया गया। इस अवसर पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष केजी बालाकृष्णन ने कहा कि भारत में सामाजिक-आर्थिक समानता नहीं है। बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास के लिए 20 हजार रुपए और आवास एवं जोतने के लिए मुफ्त जमीन देने का प्रावधान है। इसका पालन नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया में मूल निवासियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन भारत में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि यहां शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया गया है। आज अच्छे स्कूल-काॅलेज में सिर्फ पैसे वालों के बच्चे पढ़ रहे हैं। इस अवसर पर बामसेफ के संस्थापक सदस्य मास्टर मान सिंह ने कहा कि बिखरे समाज को महात्मा बुद्ध, कबीर, फूले, कर्पूरी ठाकुर, कयूम, डाॅ. अम्बेदकर जैसे महापुरुषों ने एकजुट किया। इस अभियान को हमें आगे बढ़ाना है।
बामसेफ के सह समन्यवक सुबचन राम ने कहा कि हमें बाबा साहेब की लड़ाई आगे बढ़ानी होगी। सभी के मिलजुलकर किये गये प्रयास से ही यह संभव है। अधिवेशन को न्यायमूर्ति सुभाषचंद्र राजन, डीडी कल्याणी, डीजे सोमैया, ई. एके रंजन, शिवाजी राय, साधु शरण पासवान ने भी संबोधित किया।

डाॅक्टर की लापरवाही ने बनाया निःसंतान

पटना। डाॅक्टर की लापरवाही ने रेखा देवी को निःसंतान बना दिया। महादलित रेखा देवी पटना सदर स्थित पूर्वी मैनपुरा ग्राम पंचायत अंतर्गत गोसाईटोला मुहल्ले में रहती है। वर्ष 1994 में वह पहली बार मां बनी थी।
रेखा बताती है कि जांच के लिए वह अपने पति अर्जुन मांझी के साथ पीएमसीएच गयी। वहां डाॅक्टर ने आॅपरेशन कर बच्चा निकालने की बात कही। डाॅक्टर की बात मानकर ये आॅपरेशन को तैयार हो गये। कुछ दिनों के बाद आॅपरेशन किया गया। बच्चा बच नहीं सका। आॅपरेशन के बाद रेखा को पेट में थोड़ा-थोड़ा दर्द रहने लगा। पेशाब भी बूंद-बूंद कर लगातार गिरने लगा। इससे ये लोग डर गये। इसके बाद कुर्जी होली फैमली अस्पताल में दिखाया गया। यहां भी आॅपरेशन किया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अपनी पत्नी की परेशानी देख अर्जुन उसे राजाबाजार स्थित रामवती नर्सिंग होम ले गये। यहां तीसरी बार आॅपरेशन किया गया। इस आॅपरेशन के बाद भी ना तो रेखा ठीक हो सकी और ना ही कभी मां बन सकी।
अर्जुन कहते हैं कि अबतक मैं अपनी पत्नी की ईलाज में दो लाख रुपए खर्च कर चुका हूं। अमूल ब्रेड का ठेला चलाकर चार हजार रुपए प्रतिमाह कमाता हूं। इससे ही घर का खर्च चलता है। वे कहते हैं कि अब डाॅक्टरों पर से हमलोगों का विश्वास खत्म हो चुका है। हारकर हमलोगों ने परिवार के ही एक बच्चे को गोद ले लिया है। इस बच्चे का नाम रखा है छोटू। यह अभी तीन साल का है।

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