COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

महोदय, कैसी है इस योजना की व्यवस्था?

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  • प्रसव पीड़ा से भी कष्टकर है जननी सुरक्षा योजना का लाभ लेना
आलोक कुमार
एक सरकारी योजना है। नाम है जननी सुरक्षा योजना। इसके तहत गांव और शहर की गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव करवाने के बाद जच्चा-बच्चा को लाभ पहुंचाने का प्रावधान है। इस समय बिहार में जननी सुरक्षा योजना का हाल ‘अपनी डफली, अपना राग’ की तरह है। योजना में एकरुपता का काफी अभाव है। कहीं जच्चा-बच्चा का नाम कटते ही चेक दे दिया जाता है, कहीं चेक लेने के लिए बाबुओं की चिरौरी करनी पड़ती है। कहीं मैराथन दौड़ चार-पांच माह तक लगाने के बाद ही चेक नसीब हो पाता है। उस चेक को लेकर बैंक जाने पड़ लंबी लाइन।
प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने जननी सुरक्षा योजना की शुरूआत 12 अप्रैल, 2005 को किया था। इसे राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा देशभर में क्रियान्वित किया जाता है। मकसद है ग्रामीण एवं शहरी गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव सुविधा दिलवाना। यानी आशा बहनों द्वारा गर्भवती महिलाओं की पहचान कर प्रसव पूर्व और प्रसव पश्चात स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना ताकि मातृ शिशु मृत्यु दर पर काबू पाया जा सके। इसके अलावा जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराना है।
सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में गर्भवती महिलाओं को पंजीकृत कराना पड़ता है। गर्भधारण के बाद जांच तीन बार करवाना होता है। इसके लिए तीन सौ रुपए दिये जाते हैं। आयरन फोलिक एसिड यानी आईएफए तीन बार लेना पड़ता है। इसके लिए भी तीन सौ रुपए दिये जाते हैं। दो बार टीटी लेना पड़ता है। इसके लिए दो सौ रुपए मिलते हैं। संस्थागत प्रसव करवाने पर सात सौ रुपए दिये जाते हैं। इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव उपरांत 14 सौ रुपए मिलते हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में प्रसव एवं जांच के लिए तीन सौ, आईएफए के लिए तीन सौ और टीटी के लिए एक सौ रुपए दिये जाते हैं। संस्थागत प्रसव के लिए सिर्फ तीन सौ रुपए दिये जाते हैं। इस तरह शहरी क्षेत्रों में जच्चा-बच्चा को 1,000 रुपए मिलते हैं।
गर्भवती महिलाओं को आशा कार्यकर्ताओं द्वारा संस्थागत प्रसव कराने के लिए तैयार किया जाता है। नौ महीने तक उन्हें समझाना-बुझाना पड़ता है। ऐसा करने से स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में जो सुधार आया है, उसका काफी श्रेय आशा कार्यकर्ताओं को जाता है। इसके आलोक में स्वास्थ्य विभाग ने आशा कार्यकर्ताओं को पैकेज दे रखा है। एक बंघ्याकरण करवाने पर 150 रुपए, एक नसबंदी करवाने पर 200 रुपए, टीकाकरण सत्र के दौरान 21 बच्चों को टीकाकरण करवाने पर 200 रुपए, टीबी नियंत्रण (डाॅट्स) के तहत प्रति रोगी 250 रुपए, कुष्ठ रोगी लाने पर 300 रुपए, मोतियाबिन्द आॅपरेशन करवाने पर 175 रुपए, कालाजार रोगी लाने पर 100 रुपए, गांवघर में सेनिटरी नैपकिन का वितरण करने पर 1 रुपया (पैक), किशोर के साथ बैठक करने पर 50 रुपए (बैठक), मृत्यु निबंधन करवाने पर 50 रुपए (प्रति निबंधन) पोलियो टीकाकरण पर 75 रुपए (प्रति दिन) और आशा दिवस में भागीदारी करने पर 100 रुपए देय होगा। इसके अलावा आदर्श दंपति योजना के तहत परिवार नियोजन सुनिश्चित करवा देने पर आशा को 1,000 रुपए प्रोत्साहन राशि मिलनी है। शादी के दो वर्ष बाद पहला जन्म सुनिश्चित कराने पर 500 और पहले बच्चे के जन्म में तीन वर्ष का अंतराल सुनिश्चित कराने पर 500 रुपए आशा को मिलना तय है। सुरक्षित प्रसव कराने के लिए आशा को गांवों में 600 रुपए और शहरों में 200 रुपए प्रोत्साहन राशि मिलती है।
प्रायः प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक ही मोबाइल गाड़ी उपलब्ध रहती है। मोबाइल गाड़ी व्यस्त होने की स्थिति में गर्भवती को टेम्पो पर बैठाकर लाया जाता है। यह काफी खतरनाक होता है। बेलागंज पंचायत के नवाबगंज गांव में रहने वाले राजकुमार दास की पत्नी पूनम देवी को प्रसव पीड़ा हुई। यहां की आशा कार्यकर्ता मंजू कुमारी के कहने पर टेम्पो पर बैठाकर पूनम को संस्थागत प्रसव कराने के लिए लाया जा रहा था। अचानक रेलवे लाइन के पास आते ही उबड़-खाबड़ रोड की चपेट में आने से पूनम देवी का प्रसव पीड़ा बढ़ गया। इसी पीड़ा में टेम्पो पर ही प्रसव हो गया। किसी तरह से पूनम और नवजात कन्या शिशु को संभालकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रांगण में लाया गया। जहां केन्द्र की दाई ने ‘नाभी’ काटकर जच्चा-बच्चा को अलग कर दिया। शिशु को ट्रे में उठाकर अंदर लिया गया। मां को बाहर ही रखा गया। यह स्थिति देख लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। काफी हंगामा के बाद ही पूनम को जननी सुरक्षा योजना के तहत 14 सौ रुपए का भुगतान किया गया।
नक्सल प्रभावित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और रेफरल अस्पताल, संदेश में कार्यरत राज्यकर्मियों को न तो नक्सली और न ही किसी समाजसेवी का खौफ है। यहां राज्यकर्मी अपने काम का पूरा दाम बटोरते हैं। हरेक रोगी से 100 से अधिक रुपए बटोरते हैं। अगर हैंड टू हैंड चेक चाहिए, तो उसके लिए 200 रुपए चढ़ावा चढ़ाना होगा। ऐसा नहीं करने पर तीन-चार माह के बाद ही चेक मिलेगा। जी हां, भोजपुर जिले के संदेश प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का यह हाल है। हालांकि यहां की दीवारों पर अस्पताल प्रबंधन द्वारा लिखवा दिया गया है कि रोगियों से घूस लेना दण्डनीय अपराध है। इसके बावजूद यह खेल यहां धड़ल्ले से चल रहा है।
सच्चाई यह है कि सूबे के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जननी सुरक्षा योजना के तहत 14 सौ रुपए चेक देने के नाम पर रकम बटोरी जाती है। एक मां ने बताया कि जननी सुरक्षा योजना के तहत 14 सौ रुपए के चेक लेने के लिए बड़ा बाबू को 100 रुपए देने पड़े। ज्ञात हो कि यह रकम जच्चा-बच्चा के सेहत को ठीक रखने के लिए दी जाती है। स्वास्थ्य केन्द्र में ही एक महिला ने बताया कि उसे चार माह से दौड़ाया जा रहा है। हां, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेेत्र है नालंदा। यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की हालत ठीक मिली।
पटना जिले के दानापुर बस पड़ाव के बगल में स्टेट बैंक आॅफ इंडिया की शाखा है। साढ़े दस बजे बैंक खुलता है। काउंटर पर बाबू पौने ग्यारह बजे बैठने आते हैं। काम शुरू होते-होते ग्यारह बज जाता है। इस बीच काफी भीड़ लग जाती है। एक ही काउंटर पर दो लाइन! एक में महिलाएं और दूसरी लाइन में पुरूष। इसी लाइन में जननी सुरक्षा योजना से लाभ उठाने वाली महिलाएं भी मिलीं। एक हाथ में 14 सौ रुपए का चेक और दूसरे हाथ में नवजात शिशु! इन्हें दो घंटे से अधिक लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। शिशु स्तनपान करने के लिए रोने लगता है। बगल के मर्दों की घूरती आंखों के सामने किसी तरह से स्तन को ढककर शिशु को दूध पिलाना पड़ता है। फिर भी स्तन का कुछ हिस्सा खुला ही रह जाता है। इसे देखकर मर्द खुश होते रहते हैं। ऐसा लगता है कि प्रसव पीड़ा से भी ज्यादा कष्टकर है यहां जननी सुरक्षा योजना के तहत मिली चेक को भुनाना।
लेखक परिचय : आलोक कुमार ने पटना विश्वविद्यालय से ग्रामीण प्रबंधन एवं कल्याण प्रशासन में डिप्लोमा किया है। ये पिछले कई वर्षों से समाजसेवी के रूप में कार्य कर रहे हैं। दलितों, महादलितों के बीच जाना, उनका दुख-दर्द सुनना और उसे दूर करने का प्रयास करना इनका कार्य है। खासकर मुसहर समुदायों के बीच ये काफी लोकप्रिय हैं।

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