COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

इस लोकतंत्र में सुपर हीरो का मतलब?

ग्लैडसन डुंगडुंग
न्यूज@ई-मेल
ग्लैडसन डुंगडुंग
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, देश में एक सुपर हीरो तलाशने की प्रक्रिया में काफी तेजी आयी है। ऐसा सुपर हीरो, जो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सभी समस्याओं को अपनी जादू की छड़ी से छुमंतर कर देगा। इस होड़ में सबसे आगे भारतीय जनता पार्टी है, जिसने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को सुपर हीरो की तरह जनता के सामने पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहीं कांग्रेस पार्टी भी प्रधानमंत्री पद के अपने अघोषित प्रत्याशी राहुल गांधी को मोदी के सामने अलग ढंग से पेश करने की तैयारी कर रही है। दूसरी तरफ दिल्ली में मिली सफलता के बाद लोग आप पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को भी सुपर हीरो ही मान रहे हैं। इसमें गौर करनेवाली बात यह है कि नरेन्द्र मोदी स्वंय को सुपर हीरो की तरह पेश करते हुए कह रहे हैं कि वे रोने नहीं, लोगों के आंसू पोछने के लिए घुम रहे हैं। वहीं झारखंड में लगाये गये भाजपा के बैनर, पोस्टर यही बताने की कोशिश में जुटे हैं कि मोदी का भाषण सुनते ही देश की समस्या खत्म हो जायेगी। यहां सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या सचमुच नरेन्द्र मोदी जैसा एक सुपर हीरो 125 करोड़ लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकता है? क्या लोकतंत्र एक जादू की छड़ी है? और क्या यह आम जनता को तथ्य और सत्य से परे भरमाने की कोशिश नहीं है?  
भारतीय लोकतंत्र का पिछला 67 वर्ष का अनुभव यह बताता है कि सुपर हीरो देश की समस्याओं का समाधान नहीं है, बल्कि उससे यहां की समस्याएं बढ़ी ही है। देश की आजादी के समय नेतृत्वकर्ताओं की भरमार थी, लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरु एक सुपर हीरो बनकर निकले। उन्होंने देश की समस्याओं को समझने के लिए चारो ओर भ्रमण कर ‘डिस्काभरी आॅफ इंडिया’ नामक पुस्तक भी लिखी और विदेशों का भ्रमण करने के बाद वहां की विकास नीतियों को यहां लागू किया। फलस्वरूप, समाज में बडे़ पैमाने पर आर्थिक असमानता बढ़ी। समाज के जिन कमजोर तबकों के पास आजीविका के संसाधन थे, वे संसाधनहीन होते गए और देश का संसाधन पूंजीपतियों के पास केन्द्रित हो गया। बावजूद इसके, एक समय ऐसा था, जब कहा जाता था कि नेहरु के बाद देश का क्या होगा? लेकिन फिर इसी सुपर हीरो के फर्मूला को आगे बढ़ाते हुए इंदिरा गांधी ने देश का नेतृत्व संभाला।
एक समय ऐसा आया, जब भारत में इंदिरा गांधी से बड़ा सुपर हीरो की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती थी! उन्होंने गरीबी हटाओ का जबर्दस्त नारा दिया, लेकिन क्या हुआ? उनके सामने बड़े-बड़े कांग्रेसी नेता मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। फलस्वरूप, यह सुपर हीरो तानाशाह बन गया, जो स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लेकिन, इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आमजनता की गोलबंदी ने उसे धाराशाही कर दिया। जेपी आंदोलन के समय ऐसी स्थिति बन गयी, मानो लग रहा था कि देश में सबकुछ बदल जायेगा। लेकिन ठीक उल्टा हुआ। आज देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट नेताओं के तार जेपी आंदोलन से जुड़े हैं। वहीं देश में भ्रष्ट एनजीओ का जाल बिछानेवाले लोग भी कौन हैं, यह किसी से छुपी है क्या? इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के रूप में फिर से देश को सुपर हीरो मिला। उन्होंने पहली बार जनता को बताया कि केन्द्र सरकार उनके लिए एक रुपये भेजती है, लेकिन उनके पास मात्र 15 पैसा ही पहुंचता है। यह जानने के बाद भी राजीव गांधी इस समस्या का समाधान नहीं निकाल सके और उनके बेटे राहुल गांधी को भी इसी बात को दुहराना पड़ रहा है। अब तो हद यह हो गई कि कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार के शिकार हुए बिना नहीं रह सकी। अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी एक भी सरकारी योजना ऐसी नहीं है, जो पूर्णरूप से सफल रही हो।
देश के अगले तथाकथित सुपर हीरो नरेन्द्र मोदी ने तो कांग्रेस भगाओ देश बचाओ, कांग्रेस भारत छोड़ो और कांग्रेस को बीमारी का जड़ तक कहा है। लेकिन, हमें यह समझना चाहिए कि कांग्रेस के अलावा देश में जनता पार्टी के नेता मोरारजी देशाई, भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सुपर हीरो के हाथों में सत्ता की चाभी दी गई, लेकिन क्या समस्याएं छुमंतर हो पायीं। जब नरेन्द्र मोदी को देश बचाने वाला एकमात्र सुपर हीरो के तौर पर पेश किया जा रहा है, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि गुजरात राज्य जहां वे पिछले 15 वर्षों से सरकार चला रहे हैं, क्या वहां अब कोई समस्या नहीं है? गुजरात के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, भूख से हुई मौत और गरीबी की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। यह सुपर हीरो वहां की मूलभूत समस्याओं का समाधान अपनी जादू की छड़ी से क्यों नहीं कर पा रहा है?
हमें यह भी समझना होगा कि आप पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से चुनाव में जो वादे किये, क्या वे पूरे कर पायेंगे? क्या वे प्रत्येक परिवार को 700 लीटर पानी मुफ्त में देंगे? क्या वे बिजली दर 70 प्रतिशत कम करेंगे? और अगर करेंगे भी, तो उसकी भरपाई के लिए कहां से अतिरिक्त धन आएगा। वैसे देखा जाये तो अपने जमाने व क्षेत्र में एनटी रामाराव, जे. जयललिता, ममता बनर्जी, प्रफुल्ल कुमार महंत, करूणानिधि, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, बीजू पटनायक और नीतीश कुमार भी सुपर हीरो के तौर पर चर्चित रहे हैं। लेकिन क्या इनके शासनकाल में उन राज्यों की समस्याओं का समाधान हो गया? भाजपा एक समय नीतीश कुमार को बिहार का सुपर हीरो बता रही थी, आज उनके खिलाफ ही सवाल उठा रही है।
यह सारा कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत के बहुसंख्यक ऐसे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं जो व्यक्तिवादी सोच पर आधारित है। सबकुछ एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घुमता रहता है। यही वजह है कि यहां नयी-नयी समस्याएं पैदा होती हैं। साथ ही, पहले की समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। हमें यह समझना चाहिए कि नेतृत्व जबतक सामुहिक नहीं होगा, सरकारी बाबू ईमानदारी से काम नहीं करेंगे, लोग अपनी जिम्मेवारी नहीं निभायेंगे। दरअसल भारतीय लोकतंत्र को एक सक्षम नेतृत्व चाहिए जो सभी को लेकर चले। आज लोकतंत्र सही मायने में जिन्दा है तो बस इसलिए, क्योंकि पिछले छः दशकों से लगातार ठगे जाने के बावजूद यहां के किसान, मजदूर, आदिवासी, दलित और गरीब इस उम्मीद में अपना वोट देते हैं कि एक दिन उनके लिए भी सूर्योदय होगा।
ग्लैडसन डुंगडुंग मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। ये आदिवासी समाज से आते हैं और पिछले कई वर्षों से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। ये विचार उनके अपने हैं।

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