NARESH MANJHI |
संक्षिप्त खबर
पटना : एक गैर सरकारी संस्था में काम करते हैं नरेश मांझी। वे बताते हैं कि एक माह के अंदर मैंने कई अपनों को खो दिया है। वे बताते हैं, उनकी पुत्री गायत्री कुमारी होनहार छात्रा थी। मैट्रिक में प्रथम श्रेणी से उत्र्तीण होने के बाद आई. एससी. कर रही थी। उसे घरेलू कार्य में मन नहीं लगता था। इस कारण उसकी छोटी बहन से सदैव तू-तू, मैं-मैं होती रहती थी। गायत्री की मां भी ताना मारती थी। इससे नाराज होकर उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह 20 साल की थी। मृतका को गंगा में बहा दिया गया।
अभी नरेश मांझी दुख से गुजर ही रहे थे कि पुनपुन स्थित पैमार घाट के पास रहने वाली उनकी दीदी और जीजा के घर हादसा हो गया। जीजा सुदेश्वर मांझी के पुत्र बारू मांझी ने जहर खा लिया। 25 वर्षीय बारू की मौत हो गयी। पैसे के अभाव में उसे मिट्टी खोदकर दफना दिया गया। इसी बीच एक और हादसा हो गया। इस बार भतीजे ने जहर खा लिया। मृतक का नाम विजय मांझी (25 साल) है। उसके दो बच्चे हैं। विजय की पत्नी जवानी में ही विधवा हो गयी। ज्ञात हो कि महादलितों में इस तरह की मौत कोई नयी बात नहीं है। खासकर मुसहरों में कुछेक ही 60 साल की आयु पार कर पाते हैं। अधिकांश की मौत बीमारी या फिर शराब या जहर खाने से हो जाती है। इनमें बच्चों की मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। विडम्बना यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री भी महादलित वर्ग से आते हैं। इसके बावजूद महादलितों के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है। मुसहरों का आरोप है कि अब तो मुसहरों से मिलना तक वे पसंद नहीं करते, उनकी समस्या सुनने की बात तो बहुत दूर की है।
गंगा में समा गयी महादलितों की बस्ती
पटना : गंगा नदी में पानी बढ़ने से दियारा क्षेत्र जलमग्न हो गया है। इससे कई महादलितों की बस्ती गंगा में समा गयी। भागकर लोग दानापुर प्रखंड कार्यालय में रह रहे हैं। आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से अनाज और भोजनादि की व्यवस्था की गयी है। वहीं दानापुर प्रशासन द्वारा मानस पंचायत के नया पानापुर के कटावपीडि़तों को बसाने के लिए जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया है। साथ ही जमीन का पर्चा भी दिया जा रहा है। लेकिन, पीडि़त शहरी क्षेत्र में जमीन की मांग कर रहे हैं। दानापुर प्रखंड के सीओ कुमार कुंदन लाल ने प्रखंड कार्यालय परिसर में रह रहे कटावपीडि़तों को वहां से हटने का नोटिस दिया है। बताया जा रहा है कि यह कार्रवाई एसडीओ राहुल कुमार के निर्देश पर की जा रही है। इसके पहले भी सात-आठ बार नोटिस दी गयी है, लेकिन पीडि़त परिसर खाली करने को तैयार नहीं हैं।
बीमारी और मौत को मान रहे भूत-प्रेत का चक्कर
पटना : एलसीटी घाट मुसहरी के एक घर में टीबी रोग के चार मरीज हैं। पिता से पुत्र-पुत्री को रोग लगा। पिता सुरता मांझी, पुत्र संतोष कुमार, पुत्री काजल कुमारी और संजू कुमारी टीबी रोग के मरीज हैं। इनका इलाज कुर्जी होली फैमिली अस्पताल में चल रहा था। इनमें से सुरता मांझी की मौत 10 मई, 2014 को हो गई। सुरता मांझी की विधवा सुशीला देवी को कबीर अंत्येष्ठि योजना से लाभ नहीं मिलने पर शव को गंगा किनारे बालू में ही दफना दिया गया। अभी सुशीला देवी पर 7 हजार रूपए का कर्ज है। साथ ही दुकानदार से अनाज उधार लायी थी। इस कारण उसे 10 हजार रूपए जमा करने हैं।
महादलितों में अंधविश्वास काफी ज्यादा है। मौत और बीमारी को वे इससे ही जोड़कर देखते हैं। इसी कारण वह भगत और भक्तिनी की बैठक बुलाना चाह रही है। उसे विश्वास है कि अगर देवी-देवताओं के साथ मनुष्यदेवा को पूजा न दी गयी तो बाल-बच्चों पर आफत आ सकती है। सुरता मांझी भी मरकर मनुष्य देवा बन गया है। अगर पूजा नहीं दी गयी तो वह बाल-बच्चों पर ही आक्रमण कर देगा। उसके बाद वह बाहर के लोगों को अपनी चपेट में ले लेगा। इससे बचने के लिए पूजा कराना अनिवार्य है।
आंगनबाड़ी केन्द्रों में शौचालय नहीं
पटना : सूबे के आंगनबाड़ी केन्द्रों की क्या स्थिति है, यह राजधानी के आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति को देखकर ही सहज अनुमान लगाया जा सकता है। एक आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका शारदा देवी बताती हैं कि शौचालय के अभाव में बच्चों को शौचक्रिया के लिए घर जाना पड़ता है। यहां शौचालय का काम अधूरा पड़ा है। वहीं एक अन्य आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका राधा देवी का कहना है कि यहां तो शौचालय बना ही नहीं है। सहायिका तारा देवी बच्चों को घर ले जाकर शौचक्रिया करवाती हैं।
वासगीत पर्चा निर्गत करने को भरे जा रहे आवेदन
गया : पूर्व जिलाधिकारी बालामुरूगन डी द्वारा सरकारी जमीन पर रहने वालों को वासगीत पर्चा देने का निर्णय लिया गया था। यह निर्णय जिले के 150 साल पूर्ण करने के उपलक्ष्य में लिया गया था। अब इसमें गैर सरकारी संस्थाओं से सहयोग लेकर सरकारी भूमि पर रहने वालों के आवेदन पत्र भरे जा रहे हैं। वासगीत पर्चा निर्गत करने के आवेदन पत्र को लोग सीओ साहब को सौंप रहे हैं। जानकारी के अनुसार, पूर्व जिलाधिकारी बालामुरूगन डी के जाने के बाद वासगीत पर्चा निर्गत करने के कार्य में शिथिलता आ गयी थी। अब इसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। 2 अक्तूबर, 2014 के पूर्व ही वासगीत पर्चा निर्गत कर देने का निर्णय लिया गया था। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि जुलाई में 500 लोगों के आवेदन पत्र भरे जायेंगे। इसके बाद मोहनपुर के सीओ जयराम सिंह को आवेदन सौंप दिया जायेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश पासवान ने बताया कि टेसवार पंचायत के सुखदेवचक, जयनगर, सागरपुर, चोरनीमा और सुगवां में महादलित मोहनपुर से बोधगया तक में सड़क और पईन के किनारे रहते हैं। भूदान और गैर मजरूआ जमीन पर रहने वाले सैकड़ों लोगों के पास वासगीत पर्चा नहीं है। वहीं बगुला पंचायत के गांव बान्देगड़ा, मुसहर सबदा, बंगहा, नरहर, और नट्ठा गांव के लोग भूदान भूमि पर रहते हैं। उनको भूदान यज्ञ कमेटी द्वारा वासगीत पर्चा निर्गत नहीं किया गया है। गोपालकेड़ा गांव के लोग भूदान में मिली भूमि पर रहते हैं। वहीं माड़र, चांव और खरगपुरा गांव के लोग वन विभाग की भूमि पर रहते हैं। सिंदुआर पंचायत के सिंदुआर, कृपाचक, जमुआर, बाजूखुर्द और बाजूकला गांव के लोग गैर मजरूआ और भूदान की जमीन पर रहते हैं। मुसहर समुदाय के लोगों के बुमुआर पंचायत के बलजोड़ी बिगहा में 40 घर हैं। ये लाड़ू से बाराचट्टी पथ के किनारे ठौर जमाए हुए हैं। यहां के लोगों ने मोहनपुर प्रखंड के बीडीओ सुशील कुमार सिंह से आग्रह किया है कि वे कल्याण और विकास की किरण महादलितों के ऊपर आने दें।
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