मजाक डॉट कॉम
राजीव मणि
पचास वर्षीय गंगाराम देहात के एक भोला-भाला किसान हैं। कभी स्कूल नहीं गये हैं। किसी तरह हिन्दी में अपना नाम जरूर लिख लेते हैं। सगुनिया देवी उनकी इकलौती पत्नी है। अपनी पत्नी से वे बहुत प्यार करते हैं। कम उम्र में ही दोनों की शादी हो गयी थी। तबसे आजतक वे अपनी पत्नी को छोड़कर कहीं गांव से बाहर नहीं गये। हां, पूरी जिन्दगी में वे 3-4 बार शहर जा चुके हैं। लेकिन, पत्नी भी साथ हो ली थी। कुल ग्यारह बच्चे हैं इनके ! पूछने पर कहते हैं कि अपने हाथ में क्या है जी। सब प्रभु की माया है। चार बच्चे तो वे खुद ही चाहते थे। बाकी के ‘गलती से’ आ गये। खैर, भरा-पूरा परिवार है इनका। भगवान की दया से किसी चीज की कोई कमी नहीं है।
पिछले साल वे अपनी पत्नी के साथ शहर गये थे। कुछ खरीदारी करनी थी। कुछ सामान खरीदकर घर लाये थे। उसके साथ ही एक लकी कूपन मिला था। दुकानदार ने बताया था कि अगर उनकी लॉटरी निकलेगी, तो पूरे परिवार के साथ एक सप्ताह के लिए विदेश जाने का मौका मिलेगा। हवाई जहाज से जाना-आना और रहना-खाना फ्री। फिर भी गंगाराम ने इसपर ध्यान नहीं दिया था। वे जानते थे कि आजकल फ्री में तो माटी भी नहीं मिलती। सो उन्होंने लकी कूपन अपनी पत्नी को दे दिया था, बेकार समझकर। और पत्नी ने उसे यूं ही ताखा पर रख छोड़ा था। दिन गुजरते गये ..... और एकदिन अचानक उन्हें फोन आया कि आपकी लॉटरी निकल गयी है। आप लकी कूपन के पहले विजेता हैं।
पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। दोनों मरद-मेहरारू उस शहर की दुकान पर जा पहुंचे, पता करने। दुकानदार ने बताया कि सही में आपको लॉटरी लगी है। एक सप्ताह बाद आप सभी को जाना है विदेश। हम सब प्रबंध किये देते हैं। और इसी घटना का असर है कि गंगाराम आज सपरिवार हवाई जहाज में हैं।
गंगाराम अपने परिवार के साथ हवाई जहाज में बैठ गये। यहां सबकुछ नया-नया लग रहा है। सभी यात्री बैठ चुके हैं। पूरा परिवार अचंभित है, कहां आ गये हैं। ..... और कुछ देर बाद ही हवाई जहाज रन-वे पर दौड़कर हवा में तैरने लगता है। इस रोमांच पर सभी बच्चे हंस पड़ते हैं। सगुनिया के मुंह से निकल पड़ता है - ‘‘बाप रे बाप ! बैलगाड़ी जइसन हिलोड़े लेता है।’’ बगल में बैठे गंगाराम अपनी पत्नी को चुप रहने का इशारा करते हैं। फिर इधर-उधर देखने लगते हैं। तभी कुछ सुन्दरियां वहां आ जाती हैं। एकदम परी जैसी ! गोरी-गोरी टांगे दिख रही हैं। ऊपर लड़कों जैसा कपड़ा पहने है। दुपट्टा भी नहीं ! गंगाराम एकदम से उसे देखने लगते हैं। पत्नी केहुनियाती है। फिर भी वे ध्यान नहीं देते। इतने में वह सुन्दरी पास आ जाती है। ‘‘सर, कोई परेशानी है आपको ?’’ गंगाराम के मुंह से कुछ नहीं निकला। फिर पूछती है, ‘‘चाकलेट लेंगे सर ?’’
‘‘पैसे लेकर बेचती हो क्या ?’’ गंगाराम ने मासूमियत से पूछ लिया।
‘‘नहीं सर, हवाई जहाज में खाने-पीने की चीजों के पैसे नहीं लगते। आप कुछ लेना चाहेंगे ?’’
गंगाराम थोड़ा नॉर्मल होते हुए बोले, ‘‘अगर ऐसी बात है, तो हमलोगों को लिट्टी-चोखा खिला दो। गोइठा पर का सेका हुआ।’’
‘‘सॉरी सर, हवाई जहाज में गोइठा जलाना मना है। अतः खेद है कि मैं आपको लिट्टी-चोखा नहीं खिला सकती।’’
‘‘अइसन बात है, तो तंदूरी रोटी गरमागरम दे दो। साथ में प्याज की भुजिया और एक लोटा ताड़ी। अब तो मिलेगा न ! ज्यादा महंगा नहीं है।’’
‘‘सर, इस हवाई जहाज में तंदूर भी नहीं है और न ही ताड़ी।’’
यह सुनते ही गंगाराम भड़क गये। ‘‘तब काहे को पूछ रही हो कि क्या चाहिए। कुछ तो है ही नहीं।’’
आज पहली बार परिचारिका को किसी ऐसे शख्स से पाला पड़ा था। वह गंगाराम की बात सुनकर अंदर-ही-अंदर झल्लाई भी थी। लेकिन सहज होते हुए पूछ बैठी - ‘‘सर, आप कॉफी लेंगे ?’’
‘‘अरे काफी नहीं थोड़ा ही दे दो। बकरी का दूध तो होगा ही ? काफी फायदेमंद चीज है। मेरी अम्मा हमको बचपन से ही पिलाती रही है।’’
‘‘सॉरी सर’’ इसके आगे वह कुछ बोल न सकी। अब गंगाराम को सचमुच गुस्सा आ गया था। मन-ही-मन शायद सोच रहे थे कि हमलोगों को देहाती समझकर मजाक करने आ गयी है। यह ख्याल आते ही बोल पड़े, ‘‘तब जाओ यहां से, हमलोग कुछ नहीं खायेंगे। आज उपवास ही रहेगा। लेकिन जाते-जाते इ तो बता दो कि रात में ठंड लगी, तो यहां बोरसी मिल सकती है या इ भी नहीं है।’’
परिचारिका कुछ नहीं बोली। चुपचाप चली गयी। उसके जाने के बाद सगुनिया गंगाराम को समझाने लगी, ‘‘अब इहां भी बकलोली करने लगे। बेचारी कितना अच्छा से पूछ रही थी। खाने को रोटी-सब्जी ही मांग लेते। लेकिन नवाबी करने लगे। अब तोहरे चक्कर में सभे भूखे रह जायेंगे।’’
गंगाराम कुछ नहीं बोले। मुंह फेरकर आंखें बंद कर ली। और जब आंखें खुली, तो खुद को विदेशी धरती पर पाया। वहां हवाईअड्डा से बाहर निकलते ही होटल वाले उन्हें मिल गये। यहीं उनकी बुकिंग कंपनी ने करा रखी थी। खैरियत यह थी कि होटल की तरफ से जो आदमी उन्हें लेने के लिए भेजा गया, वह भी भारतीय था। वहां पैसे कमाने की गरज से पहुंचा था। गंगाराम विदेशी धरती पर अपने मुल्क के आदमी को पाकर काफी खुश हुए। और फिर बातों-बातों में पूरी यात्रा की बात कह सुनायी। गंगाराम की बात सुनकर वह होटल का कर्मचारी समझ गया कि ये महाशय गांव के हैं और यहां इन्हें अकेले छोड़ना ठीक नहीं। उस कर्मचारी की मदद से गंगाराम ने पूरे परिवार के साथ विदेश का मजा लिया और फिर अपने वतन लौट आये।
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