COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna
COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

पाषाण युग की याद दिलाता बंगालगढ़

खास खबर
बांका जिले में धनुवसार प्रखंड है। यहीं एक गांव है बंगालगढ़। यह गांव महादलितों व आदिवासियों का है। आजादी के 66 साल बाद भी यहां के लोग ताड़ के पत्तों से झोपड़ी बनाकर रहने को बाध्य हैं। कहीं-कहीं तो नजारा बिलकुल पाषाण युग की तरह है। जैसे-तैसे लोगों का जीवन बस कट जा रहा है। सुविधा के नाम पर शून्य! सरकार की तरफ से यहां के लोगों के लिए क्या किया गया, यह अब कहने को नहीं रह गया। यहां रहने वाले लोग वनाधिकार कानून - 2006 के तहत परवाना हासिल करने के पात्र हैं। बावजूद इसके वन विभाग द्वारा परवाना निर्गत नहीं किया जा रहा है। 
यहां के लोग नदी-नाले का दूषित पानी पीने को बाध्य हैं। यहां चापाकल और कुआं निर्माण नहीं होने के कारण यह स्थिति है। करीब 54 परिवार के गरीब लोगों के पास रकम नहीं है कि वे चापाकल या कुआं का निर्माण कर सके। मरता क्या न करता! बंगालगढ़ के लोगों ने नदी-नाले के गंदला पानी को साफ करने का जुगाड़ निकाल लिया। नदी से पानी नाली के रूप में बहकर आगे की ओर बढ़ते चला जाता है। वहां से पानी हटने पर किनारे पर कुछ बालू रह जाता है। इसी किनारे पर लोगों ने पानी को साफ करने में अपना दिमाग लगाया। नाली के किनारे बालू को हटाकर गड्ढा बना लिया जाता है। इसे आदिवासी चुवाड़ी करके संग्रह करना कहते हैं। नाली का पानी बालू से छनकर गड्ढा में एकत्र होने लगता है। इसी गड्ढे के पानी को कटोरा से लेकर दूसरे बर्तनों में डालते हैं। इसी पानी को घरेलू और पेयजल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इस पानी को पीकर लोग रोग के मुंह में समाते चले जा रहे हैं। सरकार पोलियो उन्मूलन के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। परन्तु बंगालगढ़ के लोगों को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं कर पा रही है। 
यहां के अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय के लोगों ने सूबे के मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि जिस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में एक अश्व शक्ति की मशीन लगाकर पेयजल की व्यवस्था की जा रही है। उसी तरह एक अश्व शक्ति वाला मोटर पंप बंगालगढ़ में भी लगवा दें। ऐसा करने से लोगों को शुद्ध पेयजल मिलने लगेगा। ज्ञात हो कि यह एक अश्व शक्ति वाली मशीन दूसरे गांवों में जहां लगी है, सोलर सिस्टम से चलायी जा रही है। 

सुशासन के सरकारी बाबू और वनाधिकार कानून!

बिहार में वनाधिकार कानून-2006 के तहत राज्य सरकार संवेदनशील नहीं है। 7 साल के अंदर केवल 76 लोगों को वनाधिकार कानून के तहत लाॅलीपाॅप की तरह पर्चा थमा दिया गया है। इससे वनभूमि क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच आक्रोश है। स्वंयसेवी संगठन एकता परिषद, बिहार की संचालन समिति की सदस्या मंजू  डुंगडुंग का कहना है कि जमुई जिले में वनभूमि का परवाना मांगने पर प्रशासन द्वारा फर्जी मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। चांदन प्रखंड की समन्वयक वीणा हेम्ब्रम का कहना है कि लोगों को जल्द से जल्द परवाना मिलनी चाहिए। लोग आज भी अपने हक के लिए विभागों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं और उन्हें वन विभाग की प्रताड़ना झेलना पड़ रहा है।  
राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ललित भगत कहते हैं कि केन्द्र सरकार ने वनाधिकार कानून-2006 बनाया है। इसके तहत वनभूमि पर रहने वालों को वनभूमि का पर्चा देकर मालिकाना हक देना है। अभी तक बिहार में सिर्फ 76 लोगों को पर्चा दिया गया है। इसमें दो जिले भाग्यशाली हैं। जिनको वनभूमि पर काबिज रहने का परवाना मिल सका है। फिलवक्त बांका जिले में 54 और गया जिले में 22 लोगों को पर्चा मिला है।
बिहार में बांका, जमुई, मधेपुरा, गया, पश्चिम चम्पारण, अररिया, कटिहार आदि जिलों में वनभूमि है। इस वनभूमि क्षेत्र में 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व रहने वाले अनुसूचित जनजाति और 3 पीढ़ी रहने वाले गैर अनुसूचित जनजाति के लोगों को वनाधिकार कानून-2006 के तहत परवाना देना है। 
वनाधिकार कानून के प्रावधान के तहत ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा वनभूमि क्षेत्र में रहने वाले अनुसूचित जनजाति और गैर अनुसूचित जनजाति के लोगों का चयन किया जाता है। ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा प्रस्ताव पारित कर पंचायत समिति में अग्रसारित किया जाता है। इसके बाद जिला स्तर पर अग्रसारित किया जाता है। ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा अग्रसारित होने के बाद पंचायत समिति द्वारा अनुमोदित होती है और गहन रूप से जांच वन कमिटी के द्वारा होती है। आवेदन को स्वीकार अथवा अस्वीकार करना वन कमिटी के अधिकार क्षेत्र में आता है। वन कमिटी की अनुशंसा के बाद ही वनभूमि क्षेत्र में रहने वाले को वनभूमि का परवाना दिया जाता है। अभी तक कई जिलों में वन कमिटी का निर्माण नहीं किया जा सका है। 
वन अधिकार समिति के सचिव शिव कुमार दास ने बांका जिले के चांदन प्रखंड के अंचलाधिकारी महोदय के नाम से आवेदन दिया है। आजतक यहां से किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकी है। अतरी प्रखंड के नरावट पंचायत के वनवासी पहाड़ के नीचे रहते हैं। गैर अनुसूचित जनजाति श्रेणी के महादलित 4-5 पीढ़ी से यहां रहते आ रहे हैं। इनका आवेदन सीओ को दिया गया है। पर कार्रवाई नगण्य है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें