COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna
COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

जब भगत पर सवार होता है मरणदेवा

न्यूज@ई-मेल 
  • मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र में महादलितों के बीच फैला है अंधविश्वास

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा जिले के महादलित अब भी अंधविश्वास से निकल नहीं पाये हैं। महादलितों ने सालाना पूजा जश्न में अपने मरण देवा और सात बहिनों काली देवी, मंसा देवी, दुर्गा देवी, सरस्वती देवी, शीतला देवी, पटन देवी और लक्ष्मी देवी को खुश किया। इस अवसर पर शीतला देवी को पाठी और गौरेया स्थान पर खस्सी चढ़ाया जाता है। वैसे सभी देवी-देवताओं को खुश करने की परंपरा को निभाया जाता है। इसके लिए महीनों से तैयारी के बाद पूजा की जाती है। हालांकि कुछ लोग सालाना पूजा आसाढ़ में करते हैं। वहीं कुछ लोग रक्षा बंधन के पहले ही कर लेते हैं। खास बात यह कि सभी जगहों पर बेजुबानों का कत्ल कर ही सालाना पूजा किया जाता है। 
इस बार पूजा का आयोजन आसाढ़ माह के आखिरी सप्ताह में एकंगरसराय प्रखंड के एकंगरडीह गांव के दक्षिणी चमर टोली में किया गया। यहां पर करीब दो सौ सालों से महादलित रविदास रहते आ रहे हैं। ये कुछ मिट्टी और कुछ पक्के मकान वाले 60 घरों में रहते हैं। आबादी साढे़ तीन सौ से ऊपर है। अभी तक सिर्फ 10 बच्चों ने मैट्रिक उत्र्तीण किया है। इनमें अंजू कुमारी और प्रतिमा कुमारी मैट्रिक पास हैं। तंगहाली के बावजूद अंजू कुमारी बीए की परीक्षा देने में सफल हो पायी है। इस समय भारी संख्या में बच्चे स्कूल जाते हैं। कारण कि बच्चों को मिड डे मील मोह रहा है। छपरा की घटना का यहां प्रभाव नहीं है। गांव के कुछ लोग पुश्तैनी धंधा में लगे हैं। ये मवेशी मर जाने के बाद उसे उठाकर अन्यत्र ले जाकर चमड़ा निकालते हैं। चमड़ा बेचने का धंधा पुराना है। दूसरी तरफ मृत मवेशी के मालिक से ही पांच सौ रुपए मवेशी को हटाने के लिए मिल जाते हैं। 
20 कट्ठे जमीन पर चमर टोली फैली है। बताया जाता है कि देवी-देवता गांव की सुरक्षा करते हैं, इसलिए ही इन्हें खुश करने के लिए सालाना पूजा का आयोजन किया जाता है। चमर टोली में काम करने वाले बिरजू रविदास कहते हैं कि हमलोग अपने पूर्वजों की राह पर चलकर देवी-देवाओं को खुश करने में लगे हैं। इसका मतलब है कि हम अपनी जमीन और संस्कृति से कटे नहीं हैं। 
सलाना पूजा से पहले बैठक की जाती है और इसी बैठक में आम राय बनती है। यहीं तय होता है कि पूजा के खर्च के लिए कितना चंदा लिया जाए। इस बार लोगों ने निर्णय लिया कि प्रत्येक परिवार से 140 रुपए चंदा के तौर पर लिया जाएगा। चंदा की राशि से एक बकरी, एक खस्सी, एक मुर्गा, एक मुर्गी, एक कबूतर और एक चेंगना खरीदी गयी। इसके अलावा शराब, गांजा, अगरबत्ती, धूप, चंदन की लकड़ी, अरवा चावल, कपूर, दियासलाई आदि की भी व्यवस्था की गयी। 
सालभर पोंगापथ चलाने वाले गांव के भगत धमेन्द्र रविदास, भक्तिनी भगिया देवी के अलावा बगल गांव की एक भक्तिनी बैठकी में शामिल हुए। यहां के लोग बीमार होने पर भगत के पास ही जाते हैं। उसी समय भगत सातों बहनों की शक्ति के बल पर तंत्र-मंत्र से रोगी को ठीक कर देता है। अगर झाड़-फंूक के बाद भी रोगी ठीक नहीं होता है तो, छोलाछाप चिकित्सकों की शरण में जाते हैं। जो रोगी मर जाता है, मरणदेवा बन जाता है। यहीं का निवासी राजकुमार रेल की चपेट में आकर मर गया था। गांव के लोग कहते हैं कि वह भी मरणदेवा बनकर भगत के ऊपर सवार हो गया। मरणदेवा के सवार होने पर उसे भगत के द्वारा खुश किया जाता है। तभी वह भगत के शरीर से उतरकर अपने ठिकाने की ओर जाता है। 
श्री श्री 108 श्री भगवती स्थान के पास आसन पर बैठने वाले भगत और भक्तिनी को चादर पर बैठाया जाता है। इसके चारो कोने पर कुछ पैसे रख दिये जाते हैं। इसके बाद भगत और भक्तिनी बैठ जाते हैं। मांदर की थाप पर भगत और भक्तिनी झुमने लगते हैं। आसन पर बैठे भगत और भक्तिनी पर एक के बाद एक देवता सवार होने लगते हैं। इसपर भगत और भक्तिनी खेलाने लगते हैं। भक्तिनी बाल खोलकर झूमने लगती है। आये देवताओं की इच्छा पूछी जाती है। उन देवताओं को खुश करने के लिए बेजुबान पशुओं की बलि दी जाती है। हर देवता को अलग-अलग ढंग से खुश किया जाता है। इस दौरान मांदर को जोर-जोर से बजाया जाता है। उपस्थित महिलाएं गीत गाती हैं। इस दौरान दुआ मांगने वालों को भगत आशीर्वाद के रूप में अक्षत देता है। 
गौरेया स्थान जाने के पहले शराब का जाप किया जाता हैं। इसके बाद बगल में स्थित गौरेया स्थान में जाकर पूजा की जाती है। यहां के देवताओं को गांजा चढ़ाया जाता है। भगत और भक्तिनी गांजा पीते हैं। बताया गया कि ऐसा करके देवताओं को समर्पित किया जाता है। अंत में भगत, भक्तिनी और अन्य लोग घर-घर जाकर भाबर करते हैं। जलती आग में अक्षत डालते हैं। ऐसा करने से अशुद्ध आत्मा का प्रवेश घर में नहीं होता है। देवताओं को खुश करने के बाद आसन उखाड़ दिया जाता है। इसके बाद बलि चढ़ाए गये बेजुबानों के मांस को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। कोई तीन घंटे तक जमकर यह सब ड्रामा चलता रहा। 
इस चमर टोली के ही बगल में राजकीय मध्य विद्यालय और प्राथमिक विद्यालय है। इसके बावजूद यहां शिक्षा भी अंधविश्वास को खत्म करने में कारगर हथियार साबित नहीं हो पा रही है। यहां सरकार ने उप स्वास्थ्य केन्द्र खोल रखा है। यहां पर दो एएनएम दीदी बहाल हैं। परन्तु, भवन के अभाव में एएनएम दीदी किसी स्कूल में ही बैठकर चिकित्सकीय सेवा करने को लाचार हैं।
आलोक कुमार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें