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- 125 साल बाद बड़की जलालपुर मुसहरी की दो लड़कियों ने मैट्रिक की परीक्षा पास की
- अब हैं जेडी वीमेंस कॉलेज, पटना में प्रथम वर्ष कला की छात्रा
- ‘पढ़ोगे, लिखोगे तो बनोगे नवाब’ वाली कहावत समझ रहे हैं मुसहरी के लोग
इसी क्षेत्र में बिरजू सिंह रहते हैं। इनकी पत्नी रीता देवी सर्वप्रथम ‘मंथन’, मानव संसाधन केन्द्र से जुड़कर शिक्षा का प्रसार शुरू की थी। वह प्रकाश मांझी के साथ मिलकर बच्चों को पढ़ाती हैं। रीता देवी बताती हैं कि वह 14 सालों से बच्चों को पढ़ा रही हैं। इसका परिणाम अब सामने आया है। बच्चे नियमित स्कूल आ रहे हैं। धीरे-धीरे ही सही, मुसहर समुदाय के बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो रहा है।
एक छात्रा लीलावती कुमारी कहती है कि पहले घर पर ही पढ़ाई की। इसके बाद 2006 में दानापुर स्थित नारी गूंजन द्वारा लालकोठी में खोले गये राजकीय मध्य विघालय, दानापुर में पढ़ाई की। यहां से आठवीं कक्षा पास करने के बाद धनेश्वरी उच्च विघालय, दानापुर से नौवीं व दसवीं कक्षा तक पढ़ी। यहां से मैट्रिक की परीक्षा न देकर राम लखन सिंह हाई स्कूल, पालीगंज से परीक्षा दी। मैं परीक्षा में द्वितीय श्रेणी से पास हो गयी। अभी जेडी वीमेंस कॉलेज, पटना में पढ़ाई कर रही हूं।
लीलावती की मां प्रभावती देवी अपने बच्चों के लालन-पालन के लिए खेत में मजदूरी करती है। पति से अनबन होने के कारण प्रभावती देवी अलग-थलग पड़ गयी। इसके बावजूद वह हिम्मत नहीं हारी। अपने बच्चों को वह माता-पिता, दोनों, का प्यार देने लगी। इसी बीच किसी की सहायता से प्रभावती को राजकीय मध्य विघालय, रूपसपुर, जलालपुर में साफ-सफाई का काम मिल गया। उसे एक साल में सिर्फ पांच हजार रुपए प्राप्त होते हैं।
लोगों का कहना है कि यहां आंगनबाड़ी ठीक से नहीं चलायी जा रही है। दूसरी तरफ बिहार में भले ही 4.50 लाख निःशक्ता हैं। इनको पेंशन देने के लिए 162 करोड़ रुपए स्वीकृत हैं। परन्तु बड़की मुसहरी के स्व. रामनाथ मांझी के पुत्र गोरख मांझी और उसके अनुज गोलू मांझी को स्वीकृत राशि में से एक कौड़ी भी नहीं मिल पायी है। 20 साल के गौरख मांझी जन्म से ही विकलांग हैं। वहीं 17 साल का गोलू मांझी पोलियो से ग्रस्त है। फिलवक्त दोनों सहोदर भाइयों को पेंशन से महरूम होना पड़ रहा है। हालांकि इसके लिए कई बार प्रयास किया गया। जब यह क्षेत्र ग्राम पंचायत में था, तो मुखिया के दरवाजे का चक्कर लगाता रहा। अब नगर निगम के अधीन आ जाने से नगर पार्षद के पास जाकर घिघियाना पड़ रहा है। गौरख मांझी कहते हैं कि यहां तो मनरेगा से भी काम नहीं मिलता। हम गरीबों को कोई देखने वाला नहीं है। बस, भगवान भरोसे जी रहे हैं।
आलोक कुमार
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