COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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बुधवार, 20 अप्रैल 2016

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन नियम 2016 अधिसूचित

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 की प्रधान नियमावली में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन नियम, 2016 के तहत संशोधन कल अधिसूचित किए गए। 
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 (2016 का नंबर 1) द्वारा हुए संशोधनों के परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार द्वारा अत्याचार निवारण अधिनियम के अनुच्छेद 23 के उपबंध (1) में निहित शक्तियों का प्रयोग कर अधीनस्थ अधिनियम- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 में भी कुछ संशोधन अनिवार्य बनाए गए। 
2. तदनुसार सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारादिनांक 22.01.2016 मंत्रालय, गृह मंत्रालय, आदिवासी मामलों के मंत्रालय, क़ानून मंत्रालय, अनुसूचित जातिआयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु एवं ओडीशा की प्रदेश सरकारों से सदस्यों को लेकर एक टास्कफोर्स का गठन किया गया था। टास्कफोर्स ने दिनांक 02.02.2016 एवं 22.02.2016 को आयोजित दो बैठकों के बाद अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया। टास्कफोर्स की रिपोर्ट में सम्मिलित सिफारिशों के आधार पर और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा आत्मावलोकन के पश्चात पीओए नियमों में निम्न प्रकार के संशोधन किए गएः
(i) अत्याचार निवारण अधिनियम में किए गए संशोधनों से उपजे अनुवर्ती संशोधन। 
(ii) विभिन्न अत्याचारों के शिकार लोगों के लिए राहत राशि का परिमेयकरण एवं पीओए नियमों के अनुलग्नक-1 का प्रतिस्थापन जिसमें विभिन्न अत्याचारों से जुड़े अपराधों की राहत राशि का विवरण है। इसमें अत्याचारों के नये अपराधों में राहत देना आदि शामिल है। 
(iii) बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिए राहत का प्रावधान 
(iv) राहत राशि के मौजूदा परिमाण, 75,000 रुपए से 7,50,000 रुपए के बीच, में लगभग दस प्रतिशत की बढ़ोतरी, अपराध के स्वरूप के अनुसार, औद्योगिक कामगारों के लिए जनवरी 2016 से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से मिलाना। 
3. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन नियम 2016 को तदनुसार 14 अप्रैल, 2016 को भारत के असाधारण गजट में अधिसूचित किया गया। 
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की मुख्य बातें निम्न हैः

  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किए जाने वाले नए अपराधों में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों के सिर और मूंछ की बालों का मुंडन कराना और इसी तरह अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के सम्मान के विरुद्ध किए गए कार्य हैं। समुदाय के लोगों को जूतों की माला पहनाना, सिंचाई सुविधाओं का प्रयोग करने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित रखना, मानव और पशुओं के शवों को निपटाने और लाने ले जाने के लिए तथा बाध्य करना, कब्र खोदने के लिए बाध्य करना, सिर पर मैला ढोने की प्रथा को अनुमति देना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना, जाति सूचक गाली देना, जादू टोना या डायन बताने जैसे अत्याचार को बढ़ावा देना, सामाजिक या आर्थिक बहिष्कारकरना, अनुसूचित जातियोंऔर अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान नामांकन दाखिल करनेसे रोकना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के वस्त्रों का हरण कर आहत करना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को घर, गांव और आवास छोड़ने के लिए बाध्य करना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की पूजनीय वस्तुओं को विरुपित करना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध यौन दुराचरण करना या या ऐसे हाव-भाव से उनको छूना और ऐसी भाषा का उपयोग करना शामिल है। 
  • भारतीय दंड संहिता के तहत आने वाले अपराधों अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य को आहत करने, उन्हें दारुण रूप से आहत करने, धमकाने और उपहरण करने जैसे अपराधों को, जिनमें 10 वर्ष के कम की सजा का प्रावधान है, उन्हें अत्याचार निवारण अधिनियम में अपराध के रूप में शामिल करना। फिलहाल अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर किए गए अत्याचार के मामलों में 10 वर्ष और उससे अधिक की सजा वाले अपराधों को ही अपराध माना जाता है। 
  • मामलों को तेजी से निपटाने के लिए अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में विशेष तौर पर मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतों का गठन और विशेष लोक अभियोजक को निर्दिष्ट करना। 
  • विशेष अदालतों को अपराध का प्रत्यक्ष संज्ञान लेने की शक्ति प्रदान करना और जहां तक संभव हो आरोप पत्र दाखिल करने की तिथि से दो महीने के अंदर सुनवाई पूरी करना । 
  • पीड़ितों तथा गवाहों के अधिकारों पर अतिरिक्त अध्याय शामिल करना आदि रखेगी।
  • शिकायत दर्ज होने से लेकर एवं अधिनियम के अंतर्गत कार्य की उपेक्षा के आयामों को लेते हुए हर स्तर के सरकारी कर्मचारियों के लिए 'जानबूझकर कर की गई ढिलाई' पद की स्पष्ट परिभाषा तय करना। 
  • अपराधों में प्रकल्पनाओं का शामिल किया जाना- यदि अभियुक्त पीड़ित या उसके परिवार से परिचित है, तो जब तक इसके विपरीत सिद्ध न किया जाए अदालतें यह मानेंगी कि अभियुक्त पीड़ित की जाति अथवा जनजातीय पहचान के बारे में जानता था।

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