COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवल 29 अप्रैल से

पहला राष्ट्रीय जनजातीय कॉर्निवल नई दिल्ली में 29 अप्रैल, 2016 से होगा। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री करेंगे। यह जानकारी नई दिल्ली में जनजातीय मामलों के मंत्री जुआल ओराम ने दी। श्री ओराम राज्यों के जनजातीय कल्याण मंत्रियों, प्रधान सचिवों, सचिवों के सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे। यह सम्मेलन जनजातीय समुदाय के समग्र विकास के लिए रणनीति तैयार करने के बारे में आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि इस कॉर्निवल का उद्देश्य बड़े पैमाने पर जनजातीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों को दिखाना और बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि उद्देश्य जनजातीय जीवन के विभिन्न पक्षों जैसे संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज और जनजातीय समुदाय के कौशल को संरक्षित करना और प्रोत्साहित करना है, ताकि जनजातीय समुदाय की क्षमता का उपयोग उनके समग्र विकास के लिए किया जा सके। उन्होंने कहा कि चार दिन के कॉर्निवल में प्रलेखित परंपरागत, सामाजिक-सांस्कृतिक पक्षों, जनजातीय कलाओं का प्रदर्शन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद, चित्रकारी और पारंपरिक रोग निदान व्यवहारों को प्रदर्शित करना है। उन्होंने कहा कि कॉर्निवल में जनजातीय समुदाय के स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास और संस्कृति के बारे में पैनल संवाद का आयोजन भी किया जायेगा।   
उन्होंने कहा कि सरकार के एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों, आश्रम स्कूलों और देशभर में जनजातीय लड़के-लड़कियों को छात्रावास उपलब्ध कराने के कार्यक्रमों से जनजातीय विद्यार्थियों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने में मदद मिली है। लेकिन, मेधा सृजन की दृष्टि से और सुधार की आवश्यकता है। उन्होनें कहा कि जनजातीय विद्यार्थियों द्वारा बीच में पढ़ाई छोड़ना चिंता का विषय है और इस संबंध में प्रयास किये जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे स्कूलों में विज्ञान, गणित और अंग्रेजी विषयों में शिक्षकों की कमी पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें बड़े पैमाने पर जनजातीय लोगों में शिक्षा स्तर बढ़ाना होगा ताकि उनकी क्षमता का समावेशी विकास में उपयोग किया जा सके।
जनजातीय समुदाय के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि स्थिति बहुत प्रोत्साहित करने वाली नहीं है। कभी-कभी तो जनजातीय समुदाय को औपचारिक स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं मिलतीं इसलिए परंपरागत दवाएं और जनजातीय रोग निवारण प्रणाली का एकीकरण आवश्यक है। उन्होंने कहा कि दूरदराज के इलाकों में स्वास्थ्यकर्मियों के काम न करने की इच्छा के कारण जनजातीय विद्यार्थियों को सही प्रशिक्षण और शिक्षा दिया जाना आवश्यक है ताकि वे स्वास्थ्यकर्मियों का काम कर सकें। जनजातीय लोगों में खून की कमी पर चिंता करते हुए श्री ओराम ने कहा कि उनके मंत्रालय ने इस संबंध में विभिन्न राज्यों में कार्यशालाओं का आयोजन किया है। यह पता लगाया जा रहा है कि देश के किन किन क्षेत्रों में जनजातीय लोगों में खून की कमी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सभी राज्यों ने इस काम को पूरा कर लिया है। उन्होंने राज्यों से आग्रह किया कि वे इस संबंध में निकले नतीजों को जल्द से जल्द केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय से साझा करें ताकि इस प्रकोप से निपटने की रणनीति बनाई जा सके।
जनजातीय मामलो के मंत्री ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के लोगों में बेरोजगारी की समस्या गंभीर है। उन्होंने कहा कि कृषि को टिकाऊ और कमाई के लायक बनाना आवश्यक है ताकि जनजातीय लोगों को सार्थक रोजगार मिल सके। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति के किसानों को संबंधित व्यवसायों जैसे डेयरी, बागवानी, फूल की खेती, मछलीपालन और मुर्गीपालन में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
जनजातीय लोगों के कौशल विकास पर प्रकाश डालते हुए श्री ओराम ने राज्यों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में कौशल आवश्यकताओं को जानने के लिए रणनीति तैयार करें ताकि पैसा कमाने वाले व्यवसायों में अनुसूचित जनजाति के लोगों को लगाया जा सके। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को प्रस्ताव इस तरह तैयार करना चाहिए कि कौशल प्रशिक्षण से संबंधित वर्तमान संस्थानों यानी आईटीआई और वीटीसी का अधिकतम उपयोग किया जा सके।
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री ने सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले वैसे स्वयंसेवी संगठनों के बारे में चिंता प्रकट की जो गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों और उग्रवाद प्रभावित इलाकों में सरकारी एजेंसियों की पहुंच सीमित है, इसलिए स्थानीय लोगों के साथ मिलकर और सेवा भावना के साथ स्वयंसेवी संगठनों के साथ काम करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि साथ ही इस बात की सावधानी बरतनी होगी और यह देखना होगा कि कौन-कौन से स्वयंसेवी संगठन अपने लक्ष्यों के प्रति संकल्पबद्ध हैं। इस अवसर पर केंद्रीय जनजातियों के मंत्री मनसुखभाई धनजीभाई वसावा तथा जनजातीय मामलों के सचिव श्याम अग्रवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

अनुसूचित जातियों के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा

सरकार ने चालू वित्त वर्ष को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति उद्यमियों के लिए आर्थिक सशक्तिकरण के वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए ‘स्टैंडअप इंडिया’ योजना के तहत बजट में 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह प्रधानमंत्री की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने की अपील के अनुरूप है जिससे कि वे रोजगार प्रदाता बनें न कि रोजगार मांगने वाले। यह योजना प्रति बैंक शाखा कम से कम दो ऐसी परियोजनाओं को सुगम बनाएगी जिसमें से उद्यमी की प्रत्येक श्रेणी के लिए एक सुविधा होगी। इससे कम से कम ढाई लाख उद्यमियों को लाभ पहुंचेगा। 
सरकार ने दलितों के बीच एक उद्यमशीलतापूर्ण पारिस्थितकीय प्रणाली के निर्माण के लिए उद्योग संगठनों के साथ साझेदारी में एमएसएमई क्षेत्र में एक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति हब की स्थापना करने का भी प्रस्ताव रखा है। यह हब केंद्र सरकार खरीद नीति के तहत बाध्यताओं को पूरी करने के लिए, वैश्विक सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों को अंगीकार करने के लिए तथा स्टैंडअप इंडिया पहल का लाभ उठाने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, उद्यमियों को व्यवसायिक समर्थन देगी।

पिछले 2 वर्षों में एससी व ओबीसी छात्रों को 7,465 करोड़ रुपए की छात्रवृत्तियां

एक समावेशी समाज के निर्माण के लिए, जिसमें कि अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग उत्पादक, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सकें, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा उनके विकास एवं वृद्धि में सहायक विभिन्न योजनाएं लागू की जाती हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य इन लक्षित समूहों का आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक सशक्तिकरण करना है।
अनुसूचित जाति के शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए उपाय
मैट्रिक या माध्यमिक स्तर पर अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए अनुसूचित जाति के छात्रों को सक्षम बनाने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग मैट्रिक के बाद छात्रवृत्ति के रूप में आर्थिक मदद देता है। प्राथमिक स्कूलों, उच्च माध्यमिक स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति के लड़कों और लड़कियों को होस्टल सुविधाओं के लिए भी सहायता दी जाती है। सरकार विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और वैज्ञानिक संस्थानों में एम.फिल, पीएच.डी और समतुल्य शोध करने वाले अनुसूचित जाति के छात्रों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है।  सिर्फ इतना ही नहीं, चुने हुए अनुसूचित जाति के छात्रों को विदेशों में भी मास्टर स्तर के पाठ्यक्रम और पीएचडी की ऊंची पढ़ाई के लिए राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्तियां दी जाती हैं।
2014-15 और 2015-16 के दौरान सामाजिक कल्याण और सशक्तिकरण विभाग ने विभिन्न योजनाओं के तहत लगभग 7,465 करोड़ की छात्रवृत्तियां दी हैं, जैसेकि पूर्व मैट्रिक, मैट्रिक के बाद, राष्ट्रीय विदेशी, राष्ट्रीय फेलोशिप और ईबीसी के लिए डॉ. अंबेडकर मैट्रिक के बाद की छात्रवृत्तियां अनुसूचित जातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों आदि के छात्रों के लिए चलाई जाती हैं। छात्रवृत्तियों से लगभग 3,30,64,900 छात्र को लाभ हुआ है।   
आर्थिक सशक्तिकरण के उपाय 
चालू वित्त वर्ष के दौरान अनुसूचित जाति उप योजना (एससीएसपी) के लिए अतिरिक्त रूप से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 38,832 रुपए आवंटित किए गए हैं। इसका मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले अनुसूचित जाति के परिवारों के आर्थिक विकास की योजनाओं पर जोर देना है।
सरकार ने स्टैंडअप इंडिया अभियान के तहत भी 2.5 लाख अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों के लिए आर्थिक सहायता देने का निर्णय किया है।
इन लक्षित समूहों के आर्थिक सशक्तिकरण के अन्य उपायों में शामिल हैं।
500 करोड़ रुपये की लागत से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उद्यमियों के लिए केंद्र बनाए जा रहे हैं।
मुद्रा योजना के तहत 3.22 करोड़ ऋण दिए गए, जिनमें 72.89 लाख ऋण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति उद्यमियों को दिए गए।
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त एवं विकास निगम द्वारा ऐसी 250 महिलाओं को मोटर ड्राइविंग प्रशिक्षण दिया गया है, जो सफाई कर्मचारी हैं या जिन पर आश्रित है, इनमें से 60 महिलाओं को रोजगार मिला है।
अनुसूचित जाति का सामाजिक सशक्तिकरण
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों की जाँच करने के प्रावधानों को मजबूत करने के लिए, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम (अत्याचार निवारण) में संशोधन किया गया है, और नया अधिनियम 26.1.2016 से लागू किया गया है। नए प्रावधान अनुसूचित जाति के सामाजिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
संसद ने पिछले साल संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) अधिनियम 2015 पारित किया था, जिसमें हरियाणा, कर्नाटक, ओडिशा और दादर और नगर हवेली के नए समुदायों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल किया गया था और अब उन्हें भी वे उन सभी योजनाओं के लाभ मिलेंगे, जो अनुसूचित जाति के सशक्तिकरण के लिए चलाई जा रही हैं।
सरकार का मानना है कि ये सभी उपाय निश्चित रूप से अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देंगे।

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