COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna
COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

शनिवार, 16 अप्रैल 2016

हमें चैन से रहने दो

मेरी दो कविताएं 
हम तो ठहरे
खग पशु
हमें पर्वत जंगल भाता
हे मानव !
समझदार होकर भी
कहां तुम्हें कुछ आता
पर्वतों का
नाश किया और 
जंगलों का सफाया
धरती पर कंक्रीट फैलाकर
तपता हुआ बनाया
तुम्हारी ही करनी से देखो
रूठ गयीं हैं नदियां
इन्हें बनने में लगे थे
हजारों-हजारों सदियां
खुद को शिक्षित बतलाते
पर गढ़ते हो विनाश
हथियारों से कर रहे
देखो अपना ही नाश
कबतक सहूं
चुप रहूं !
अब हमें कुछ कहने दो
हे मानव !
इस धरती पर
हमें चैन से रहने दो
अपनी चिन्ता नहीं तुम्हें
न आने वाली पीढ़ी का 
एकदिन देखना धिक्कारेगा
खून तुम्हारे ‘लाल’ का
अपनी ही करनी से देखो
कितनों का नाश किया
मानव कहते खुद को फिर भी
मानवता को ‘लाश’ किया
तुम से अच्छे तो हम हैं
ईश्वर के सच्चे जन हैं
तुम ना कहना कुछ हमको
अब हमें कुछ कहने दो
हे मानव !
इस धरती पर
हमें चैन से रहने दो।

बिन पानी सब सून

सूखी नदियां
शून्य तालाब, पोखर, नहर
तड़प रहा शहर
सूखा आंखों का पानी
शून्य आत्मा, ईमान, हर पहर
हर रिश्ते में जहर
सूख गये खेत-खलिहान
आह ! मर रहे किसान
तड़प-तड़प निकल रहे प्राण
वीरान गांव चैपाल
हर तरफ कहर
सूखी हज्जत
शून्य मानवता
ढह रहा सभ्य समाज
सूखी जवानी
शून्य उदर, खून
बिन पानी सब सून।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें