- महान साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता लंबे समय से थीं बीमार
- ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण, साहित्य अकादमी और मैग्सेसे पुरस्कारों से सम्मानित
- ज्यादा समय वह आदिवासियों के बीच काम करती रहीं
- चर्चित किताबों में हजार चैरासी की मां, ब्रेस्ट स्टोरीज, तीन कोरिर शाध शामिल
- फिल्म ‘हजार चैरासी की मां’, ‘रुदाली’, ‘संघर्ष’ और ‘माटी माय’ महाश्वेता के उपन्यासों पर आधारित
उनके निधन की खबर मिलते ही सबसे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘‘भारत ने एक महान लेखिका खो दिया है। बंगाल ने एक महान मां को खोया है। मैंने अपना एक मार्गदर्शक खो दिया है।’’
बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट में लिखा, ‘‘महाश्वेता देवी ने कलम की ताकत को बखूबी दिखाया है। न्याय, बराबरी और दया की यह आवाज हमें गहरे दुख में छोड़कर चली गई।’’ फिल्मकार महेश भट्ट और मधुर भंडारकर ने भी महाश्वेता देवी के निधन पर दुख व्यक्त किया। भट्ट ने ट्वीट में लिखा कि वह महिला जो कमजोरों के साथ चली और जिसने ताकतवर लोगों के साथ बैठने से मना कर दिया।
महाश्वेता देवी को ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण, साहित्य अकादमी और मैग्सेसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। तीन दशक से ज्यादा समय तक वह आदिवासियों के बीच काम करती रहीं। उनके साहित्य का काफी हिस्सा आदिवासियों के जीवन पर आधारित था।
यूं तो महाश्वेता देवी बांग्ला में उपन्यास लिखा करती थीं, लेकिन अंग्रेजी, हिंदी और अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद के जरिए उनके साहित्य की पहुंच काफी व्यापक स्तर पर थी। उनकी चर्चित किताबों में हजार चैरासी की मां, ब्रेस्ट स्टोरीज, तीन कोरिर शाध शामिल हैं। उनकी कई किताबों पर फिल्में भी बनाई गई हैं। ‘हजार चैरासी की मां’ पर फिल्मकार गोविंद निहलानी ने फिल्म बनाई है। इसके अलावा ‘रुदाली’, ‘संघर्ष’ और ‘माटी माय’ भी ऐसा सिनेमा है, जो महाश्वेता के उपन्यासों पर आधारित है।
साभार : बीबीसी
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