COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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मंगलवार, 8 नवंबर 2016

प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस का आयोजन

नई दिल्ली : प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस - आईएसी 2016 का आयोजन 6-9 नवंबर, 2016 तक नई दिल्ली में किया जा रहा है। इस कांग्रेस में 60 देशों से लगभग 900 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में कृषि जैवविविधता प्रबंधन और आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के बारे में बेहतर समझ विकसित करने से संबंधित चर्चा की जायेगी। 
प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस का आयोजन नई दिल्ली में करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में ईसा पूर्व 9000 वर्षों से खेती और पशुपालन का कार्य आरंभ हो चुका था। भारत में विशिष्ट पौधों और जीवों की विविधता होने के कारण यह महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक है। इसके अतिरिक्त 34 वैश्विक जैवविविधता हॉटस्पॉट में से चार भारत में स्थित हैं - हिमालय, पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी और निकोबार द्वीप समूह। इसके अलावा भारत, फसलीय पौधों की उत्तपति का विश्व के आठ केंद्रों में एक प्रमुख केंद्र है और वैश्विक महत्व की कई फसलों की विविधता का द्वितीयक केंद्र है। 
विश्व की बढ़ती आबादी की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में कृषि जैवविविधता के संरक्षण से टिकाऊपन बनाए रखने पर इस अंतर्राष्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस में प्रकाश डाला जायेगा। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के साथ ही वर्ष 2050 तक 9.7 अरब वैश्विक आबादी (यून डेसा, 2015) की 70 प्रतिशत अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए टिकाऊ कृषि उत्पादन के विषय में भी चर्चा की जायेगी। 
कृषि जैवविविधता ही सतत कृषि विकास का आधार है और वर्तमान तथा भावी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है। वैश्विक कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, कृषि उत्पादकता बढ़ाना, जोखिम कम करना और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें इन बहुमूल्य संसाधनों का संरक्षण करना होगा, क्योंकि हमारी कृषि पद्धति में इनसे आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति होती है और लोगों को आजीविका भी मिलता है। 
प्रकृति ने मानवता को पौधों और पशुओं की प्रचुर विविधता प्रदान की है। विश्व में 3,90,000 पौध प्रजातियों की जानकारी है। इनमें से केवल 5,538 पादप प्रजातियों का प्रयोग ही मानव के भोजन में किया जाता है (रॉयल बोटनिक गार्डन्स क्यू, 2016)। इनमें से केवल 12 पौध प्रजातियों और 5 पशु प्रजातियों का प्रयोग विश्व के 75 प्रतिशत आहार उत्पादन में किया जाता है, जबकि 50 प्रतिशत हमारा भोजन केवल 3 प्रजातियों - धान, गेहूं और मक्का से प्राप्त होता है (एफएओ, 1997)। 
मानव आहार में जैव विविधता की कमी के कारणवश कुपोषण और भुखमरी की समस्या गहरा गई है। अब यह स्पष्ट है कि अत्यधिक दोहन के परिणामस्वरूप प्रकृति द्वारा प्रदत्त यह विविधता लुप्त होने के कगार पर है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की पहल और राष्ट्रीय योजनाओं के समन्वय एवं सहयोग के कारण आज लगभग 7.4 मिलियन पौध जननद्रव्यों का संग्रह राष्ट्रीय और वैश्विक जीन बैंकों में संरक्षित किया जा सका है। भारत में स्थित विश्व के दूसरे सबसे बड़े जीनबैंक में 0.4 मिलियन एक्स सीटू 1,800 पौधों की किस्मों व उनके वनस्पति संबंधितों के जननद्रव्यों को संरक्षित किया गया है। यह भी चिंता जाहिर की जा रही है कि वर्तमान में संसाधनों या उपयोगिता संबंधित सूचनाओं के अभाव में ज्यादातर उपलब्ध जैवविविधता का उपयोग अत्यंत कम हुआ है। इस कारणवश कृषि जैवविविधता अनुसंधान को मजबूत बनाने के लिए नीति निर्माताओं को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। 
कांग्रेस में जीन बैंकों के प्रभावी और कुशल, आनुवंशिक संसाधनों के क्षेत्रों में विज्ञान आधारित नवोन्मेष, आजीविका, फसल विविधता के माध्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा, अल्प ज्ञात फसलों के प्रयोग और फसल सुधार में जंगली फसल संबंधितों की भूमिका को शामिल करना, संगरोध से संबंधित मुद्दें, जैव रक्षा व जैवसुरक्षा और ज्ञान संपदा अधिकारों तथा जननद्रव्य आदान-प्रदान करने के संदर्भ में पहुंच तथा लाभ साझा करने जैसे मुद्दों पर चर्चा ओर ज्ञान साझा किये जाएंगे। इस कांग्रेस के दौरान कृषि जैवविविधता के प्रभावी प्रबंधन एवं उपयोग में समस्त हितधारकों की भूमिका पर चर्चा हेतु जनमंच विकसित करने की भी योजना है। भावी वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा तथा कृषि जैवविविधता का संरक्षण और विविध टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में कृषि जैवविविधता का उपयोग एवं संरक्षण की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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