COPYRIGHT © Rajiv Mani, Journalist, Patna

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शनिवार, 5 नवंबर 2016

एशिया की जनजातियों को जानने को अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

 संक्षिप्त खबरें 
नई दिल्ली : केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम ने कहा है कि एशिया की जनजातियों को भलीभांति जानने की जरूरत शुरू से ही महसूस की जाती रही है। शिलांग में ‘एशिया की जनजातियों को भलीभांति जानने’ पर आयोजित की गई अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए मंत्री महोदय ने जनजातीय मुद्दों पर इतनी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करने के लिए इसके आयोजकों के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी से जनजातीय अध्ययन एवं अनुसंधान को मजबूत करने में सहायक सर्वोत्तम प्रथाओं और रणनीतियों को एकजुट करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘‘एशिया की जनजातियों के लिए विशिष्ट लोगों के रूप में अपने अधिकारों को मान्यता देने के लिए वकालत करना एक मुश्किल कार्य है। अनेक जनजातियों को अपना अस्तित्व बरकरार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और इस प्रक्रिया में अनेक बोलियां भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं।’’ मंत्री महोदय ने यह उम्मीद जतायी कि इस संगोष्ठी से समुदायों के लागों को और ज्यादा सूचनाएं हासिल करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही एशिया की जनजातियों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में भी सहायता मिलेगी।
मंत्री महोदय ने इस अवसर पर एक पुस्तक का विमोचन भी किया, जिसमें शिलांग के सिनॉद कॉलेज में वर्ष 2015 में आयोजित की गई राष्ट्रीय संगोष्ठी से जुड़ी सामग्री भी शामिल है। असम की छह जनजातियों को एसटी का दर्जा देने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय में विशेष सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति इस मसले पर गौर कर रही है। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही सरकार इस दिशा में आगे बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट अतिशीघ्र पेश किए जाने की आशा है।
इस दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन शिलांग स्थित सिनॉद कॉलेज द्वारा पीए संगमा फाउंडेशन के सहयोग से किया जा रहा है। विश्व के विभिन्न हिस्सों के विद्वान इस संगोष्ठी में हिस्सा ले रहे हैं। इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण पश्चिम बंगाल के बर्दवान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफसर स्मृति कुमार सरकार ने दिया। उनका भाषण ‘पूर्वोत्तर भारत के आरंभिक आदिवासी समाज’ पर केंद्रित था। लोकसभा सदस्य श्री कॉनरड के. संगमा ने भी उद्घाटन सत्र में शिरकत की।

देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू

नई दिल्ली : केरल और तमिलनाडु द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) लागू किए जाने के साथ अब यह अधिनियम सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू हो गया है। इसके परिणामस्वरूप 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं और 3 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से चावल मिलेगा। यह घोषणा केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने मीडिया से बातचीत में की। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों से सक्रियता के साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू करने का आग्रह किया था।
श्री पासवान ने कहा कि केंद्र अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में आगे सुधार करने पर फोकस करेगा। इसमें शुरू से अंत तक प्रणाली का कम्प्यूटरीकरण शामिल है। इसके लिए राज्यों, केद्र शासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता दी जा रही है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कामकाज में पारदर्शिता लाना महत्वपूर्ण है। पारदर्शिता राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषता है, ताकि अनाजों की चोरी और डायवर्जन रोका जा सके।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चोरी मुक्त बनाने के लिए केंद्र की ओर से अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए। श्री पासवान ने कहा कि 36 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में लाभार्थी का डेटा का डिजिटलीकरण किया गया है। इसमें लाभार्थी के स्तर तक सूचना उपलब्ध है और सूचना पब्लिक डोमेन में है। 28 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में अनाजों का ऑनलाइन आवंटन किया जा रहा है और 18 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में खाद्यान्न सप्लाई की पूरी श्रृंखला को कम्प्यूटरीकृत किया गया है। राशन कार्डों का आधार से 100 फीसदी जोड़ने का लक्ष्य हासिल किया जाएगा। अभी 71 प्रतिशत राशन कार्ड आधार से जुड़े हैं। एफसीआई का खाद्यान्न नुकसान कम होकर 0.04 प्रतिशत रह गया है और एफसीआई के प्रमुख डीपो ऑनलाइन कर दिये गए हैं।
बेहतर लक्ष्य और खाद्यान्नों के चोरी मुक्त वितरण की दिशा में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना दो अलग-अलग रूप में चलाए जा रही हैं। पहली पद्धति में लाभार्थी के बैंक खाते में खाद्यान्न सब्सिडी नकद रूप में अंतरित की जा रही है। लाभार्थी अपनी पंसद के अनुसार बाजार से अनाज खरीद सकते हैं। यह प्रयोग चंडीगढ़, पुड्डुचेरी तथा दादरा और नगर हवेली के शहरी क्षेत्रों में शुरू किया गया है। दूसरे तरीके में उचित मूल्य की दुकानों को स्वचालित करना है, ताकि बिक्री के इलेक्ट्राॅनिक प्वाइंट (इ-पीओएस) उपकरण के माध्यम से वितरण के समय लाभार्थी के प्रमाणीकरण के साथ अनाजों का वितरण किया जा सके। इस व्यवस्था में परिवार को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा की इलेक्ट्राॅनिक जानकारी होती है। 31 अक्टूबर, 2016 तक 1,61,854 उचित मूल्य की दुकानों में ई-पीओएस उपकरण काम कर रहे हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कामकाज को सहज बनाने के लिए राज्य सरकारों को केंद्रीय सहायता दी जा रही है, ताकि सरकारें राज्य के अंदर परिवहन खर्च और खाद्यान्नों के उतार-चढ़ाव तथा डीलर के मार्जिन का खर्च वहन कर सकें। उचित मूल्य के दुकानों को डीलरों की मार्जिन के लिए सहायता में उचित मूल्य दुकान पर डीओएस उपकरण लगाने और चलाने के लिए सहायता भाग शामिल है। भारत सरकार द्वारा 2016-17 में अबतक राज्य सरकारों को 1874 करोड़ रुपये जारी किए हैं। वर्तमान कवरेज पर अधिनियम के अंतर्गत राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को खाद्यान्नों का मासिक आवंटन लगभग 45.5 लाख टन है और इसमें 11,726 करोड़ रुपये प्रति माह की सब्सिडी और लगभग 1,40,700 करोड़ रुपये सालाना की सब्सिडी है।
गन्ना बकायों के बारे में श्री पासवान ने कहा कि 2014-15 का बकाया 21 हजार करोड़ रुपये था, जो घटकर 205 करोड़ रुपये रह गया है। चना को छोड़कर दालों की कीमतों में गिरावट आई है। गेहूं के मूल्यों के बारे में उन्होंने कहा कि सरकार ने एफसीआई ओएमएस योजना के अतंर्गत घरेलू बाजार में बिक्री के लिए अतिरिक्त 10 लाख टन गेहूं जारी करने का निर्णय लिया है।

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